Creation of a Bacterial Cell Controlled by a Chemically Synthesized Genome
We report the design, synthesis, and assembly of the 1.08-Mbp Mycoplasma mycoides JCVI-syn1.0 genome starting from digitized genome sequence information and its transplantation into a Mycoplasma capricolum recipient cell to create new Mycoplasma mycoides cells that are controlled only by the synthetic chromosome. The only DNA in the cells is the designed synthetic DNA sequence, including "watermark" sequences and other designed gene deletions and polymorphisms, and mutations acquired during the building process. The new cells have expected phenotypic properties and are capable of continuous self-replication.
1 The J. Craig Venter Institute, 9704 Medical Center Drive, Rockville, MD 20850, USA.2 The J. Craig Venter Institute, 10355 Science Center Drive, San Diego, CA 92121, USA.
* To whom correspondence should be addressed. E-mail: jcventer@jcvi.org
Received for publication 9 April 2010. Accepted for publication 13 May 2010.
ध्यान दीजिये इस टीम में तीन भारतीय हैं और क्रैग की विनम्रता देखिये उन्होंने अपना नाम सबसे अंत में रखा है .भारतीय मूल के शोधार्थी हैं संजय वाशी ,राधा कृष्णकुमार और प्रशांत पी पार्मर .आईये आपको अंगरेजी में छपी इस संक्षिप्ति का भी सार बता दें -वो कहते हैं न 'सार सार को गहि रहे थोथा देय उडाय' वैसे यहाँ थोथा है भी नहीं -सॉलिड रिसर्च है बाबा ....इस भारी भरकम टीम (मैंने गिना २५ ,आप भी ट्राई करें !)का कहना है कि उन्होंने "रासायनिक संश्लेषित जीनोम द्वारा नियंत्रित जीवाणु कोशा का सृजन " कर दिखाया है -.
हम 1.08-Mbp Mycoplasma mycoides JCVI-syn1.० जीवाणु की सरंचना ,संश्लेषण और संयोजन की घोषणा करते हैं जिसकी डिजिटलीकृत जीनोम सीक्वेंस सूचना - संस्थापन एक दूसरे जीवाणु Mycoplasma capricolum में करते हुए एक नए
Mycoplasma mycoides जीवाणु का सृजन किया गया है जो संश्लेषित गुणसूत्र द्वारा नियंत्रित है .इस नए सृजित जीवाणु का "डी एन ऐ संरचित और संश्लेषित है और वाटरमार्क से युक्त भी ..और यह पुन्रुद्भवन की क्षमता भी रखता है "
इस तरह जैविकी के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो गया है ! भले ही इस पर बहुत वाद विवाद होगा मगर मित्र जीवाणुओं की फ़ौज और उनसे औषधियों का दोहन अब आसान हो जायेगा ! समुद्रों के तेल संदूषणों और कई अन्य प्रदूषणों को दूर करने में कृत्रिम जीवाणुओं की फ़ौज कारगर होगी ! अजोन परत की पुनरुस्थापना में भी ये जीवाणु मददगार होगें ! बस इनके रोगाणु में उत्परिवर्तित हो जाने के खतरे हैं जिनका कोई आतंकवादी संगठन भी बेजा इस्तेमाल कर सकता है .हमें इन जीवाणुओं से जुड़े सुरक्षा के मानकों को बहुत ऊंचा रखना होगा !
बहरहाल हम इस कृत्रिम जीवाणु युग का स्वागत करते हैं ..!