शायद अब राज खुल जाय कि क्यों कुछ किस्म के खसम लोग कुनबे की मुर्गी के सामने सिर झुकाए कुक्डूं कूँ कुकड़ू कूँ करते रहते हैं -अरे वही जिन्हें हेनपेक्ड हस्बैंड्स कहते हैं ...मुझे ताज्जुब होता आया है कि आखिर मुर्गी के कुनबे की यह एक ख़ास विशेषता मनुष्य में कैसे आ गयी .जो लोग जानवरों के व्यवहार में तनिक रूचि लेते हैं उन्हें पता होगा कि मुर्गियों में एक पेक आर्डर होता है जिसमें कुनबे की मुर्गी (जेंडर इनर्ट शब्द ) जब तक दाना चुगने के लिए चोंच नहीं मारती बाकी का कुनबा मुंह ताकते देखता रहता है ...क्या मजाल कि कोई और दूसरा (कुनबा) सदस्य भले ही भूख से बिलबिला रहा हो खाने के दाने पर चुग्गा मार ले ...कहने को तो भारतीय नारियां सताई हुई प्रजाति हैं मगर मैंने खुद कितने घरों में देखा है पुरुष बकरी की तरह मिमियाता रहता है ..मगर वो बकरी वाली बात फिर कभी आज साईब्लोग मुर्गियों के कुनबे की प्रतीति कराते इस विचित्र मानवीय व्यवहार का कोई सूत्र सम्बन्ध ढूँढने निकला है ...
एक कुकड़ू कूँ मुर्गा
हकीकत यह है कि पुरुष के लैंगिक क्रोमोजोम वाई पर जीनों की संख्या महिला के लैंगिक एक्स क्रोमोजोम की तुलना में बहुत कम है ....एक्स पर वाई की तुलना में १४०० जीन अधिक पाए गए हैं ..भले ही किसी दैहिक एक्स क्रोमोजोम (आटोजोम ) पर जीनो की संख्या लैंगिक एक्स से ज्यादा हो मगर पुरुष का अभागा लैंगिक वाई पूरे शरीर के सबसे कम जीनो को रखने वाला क्रोमोसोम है ...बिल्कुल इसी तरह मुर्ग परिवार में भी नर जेड जीन पर सबसे कम जीन होते हैं -दरअसल स्तनपोषी जीवों में तो लिंग निर्धारण की एक्स वाई प्रणाली है जिसमें एक्स मादा और वाई पुरुष का प्रतिनिधित्व करते हैं मगर चिड़ियों में डब्ल्यू जेड प्रणाली होती है जिसमें जेड नर की नुमाईंदगी करता है -मतलब स्तनधारियों में एक्स वाई जहां नर और एक्स एक्स जहाँ मादा होती है वहीं मुर्गों और दीगर चिड़ियों में जेड जेड नर और डब्ल्यू जेड मादा होती है -
निरीह कुकड़ू कूँ पति बेचारा
पाया गया है कि बिचारे मुर्गे के जेड जेड गुणसूत्र पर बहु कम जीन होते हैं ...और उसी तरह मनुष्य के वाई पर भी एक्स की तुलना में बहुत कम जीन ...मुर्गी का डब्ल्यू जेड काम्बो ज्यादा जीनो को रखता है बनिस्बत नर के जेड जेड के ....तो भैया जीनो का जज्बा देखें तो नारियां मुर्ग काल से ही जायदा दबंग हैं और आज भी यही ट्रेंड बना हुआ है ..तब बिचारा मुर्गा क्यों न मिमियाता फिरे ...
मनुष्य और मुर्गे की जीनों का यह समान्तर दास्ताँ साईंस की मशहूर शोध पत्रिका नेचर के ११ जुलाई १० के ताजातरीन अंक में छपी है ....
10 comments:
जीन थ्योरी पसन्द आयी। लेकिन आपने बेचारे मुर्गे को भी मिमिया दिया है। उसे तो कुकुडाने दीजिए।
दिशा न बदल दे आपकी यह पोस्ट।
:) अगर किसी मुर्गी ने आप की पोस्ट पढ ली तो मुकदमा ना कर दे..... वेसे हमारा हाल भी इस बेचारे मुर्गे की तरह है, अगर हमारी बीबी एक बार कहे की बेठ जाओ...... तो हम बिलकुल नही तक नही बेठते
आँखें खोलती पोस्ट। अब अपनी औकात में रहना सीखें ये गुर्राते नर... :)
science ke goodh shodhon ko aam aadmee tak le jaana sachmuch chunautee bharaa kam hai
or aap ko is kaam me mahart hasil hai sir
@ वैसे तो अजित गुप्ता नें ठीक कहा है कि मुर्गा मिमियायें क्यों ? पर कुड्कुडाने से बेहतर है चेंचियाना !
@ अरविन्द जी,
अव्वल तो ये कि कुदरत (नेचर ) नें अगर लैंगिक निजाम विकसित किया है तो फिर ये क्यों सोचना कि अपनी अपनी जनानी के सामने मुर्गे और मर्द एक जैसे नहीं होंगे ?
क्या आपको लगता है कि प्रकृति ने जेंडर डिस्ट्रिब्यूशन में मेल बनाम मेल और फीमेल बनाम फीमेल कोई भेदभाव किया होगा ? अब विज्ञान व्याख्यायें करता रहे ,क्या फर्क पड़ने वाला है ! जिसे निर्धारित करना था उसने निर्धारित कर दिया ! मिमियाना कहो...चेंचियाना कहो आपका हिस्सा !
दाता जो है उसका इकबाल बुलंद रहे :)
मुझे तो सिद्धर्थ शंकर जी का कमेन्ट बहुत अच्छा लगा। हा हा हा। धन्यवाद।
कुछ अवैज्ञानिक बातें:
- संख्या की अधिकता हमेशा श्रेष्ठता की परिचायक नहीं होती।
- पुरुष पूर्ण होता है - एक्स और वाइ दोनों जो होते हैं।
- ऐसा कोई सम्प्रदाय बताइए जिसमें नारियाँ कृष्ण बन कर रहती हों। राधा बने पुरुषों का तो बाकायदा सम्प्रदाय ही है।
- प्रभुता पा चुकने की स्थिति में पुरुष में सहिष्णुता अधिक दिखती है। कॉर्पोरेट जगत में ऐसा देखा गया है।
बाकी रही बात दबंगई की तो वह किसी में भी हो सकती है। एक दबंग नारी को तो प्रदेश देख ही रहा है। :)
सताए हुए प्राणी में कोई लिंग भेद नहीं चलता ...प्रताड़ित स्त्रियाँ हैं तो पुरुष भी हैं ... !
ओह, तो ये है मिमियाने का राज़।
शुक्रिया।
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