विश्व की कुछ संस्कृतियों खासकर भारत में किसी के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रर्दशित करने और आशीर्वाद प्राप्त करने की प्राचीन परम्परा रही है.यहाँ पाँव शरीर के एक गौण और उपेक्षित अंग होने के बावजूद भी पूजित और प्रतिष्ठित हैं ! मानो सम्मान देने वाला यह कह रहा हो की मेरे लिए तो आपके शरीर का यह निचला हिस्सा भी शिरोधार्य है .कहते हैं इसी श्रद्धाभाव के अधीन रहकर ही रामायण के एक प्रमुख पात्र लक्ष्मण ने कभी भी नायिका सीता के पाँव के ऊपर उन्हें देखा तक नही था ! भारत में भला पाँव का इससे बढ़कर महत्व भला और क्या हो सकता है की मात्र एक चरण पादुका ने वर्षों तक अयोध्या के सिंहासन पर आरूढ़ हो राज काज संभाला था ।
आईये तनिक देह की भाषा में पांवों के व्याकरण की भी एक पड़ताल कर ली जाय .आम जीवन में जब हम लोगों से मिलते जुलते हैं तो एक दूसरे के चेहरों पर वही भाव लाते हैं जो हम देखना दिखाना पसंद करते हैं .इस तरह हम अपने चेहरों पर मिथ्याभिव्यक्ति के तहत जबरन हंसी और हिकारत के भाव लाने में सिद्धहस्त हो जाते हैं .मगर जैसे जैसे पर्यवेक्षण का सिलसिला चेहरे से दूर निचले अंगों की ओर बढ़ता हैं हम पाते हैं वे उतनी दक्षता से मिथ्याभाव प्रगट नही कर पाते हैं -अब निचले अंगों के हाव भाव मानों उत्तरोत्तर चेहरे की अभिवयक्ति की मानों चुगली करने लग जाते हैं .हाँथ शरीर के लगभग आधे हिस्से तक पहुँचते हैं तो वे सप्रयास चेहरे के झूंठ का अनुसरण करते तो हैं मगर इस उपक्रम में आधे ही सफल हो पाते हैं .यानि वे मुंहदेखी मुंहकही की आधी पोल तो खोल देते हैं ! किसी को संभाषण करते समय जरा उसके हांथों को भी देखते चलिए आपको ख़ुद आभास हो जायेगा की कहीं न कहीं कुछ विरोधाभास है ! साक्षात्कारों में भी और व्याख्यान के अवसरों पर वक्ताओं के लिए सबसे राहत की बात तो यह होती है कि उनके पाँव या तो मेज या फिर पोडियम के पीछे छुपे रहते हैं नहीं तो उनके चेहरे और पांवों के भावों के अंतरविरोधों की पोल खुल जाती ! ऐसे अवसरों पर पैर अक्सर हिलते डुलते रहते हैं मानों वे झूठ और फरेब की दुनिया से भाग निकलना चाहते हों ।
आज भी बहुत से लौकिक कार्यों में बाएँ पाँव को अशुभ और दायें को शुभ माना जाता है -मजे की बात तो यह है कि जब सेना दुश्मन को नेस्तनाबूद करने की आक्रामक मुद्रा में निकले को उद्यत होती है तो वही पुराने रिवाज के अधीन ही लेफ्ट राईट मार्च ही करती है -यानि पहले बायाँ पैर आगे ! अज लेफ्ट राईट मार्च करने वाले रंगरूट भला इस पुराने ज्ञान से कहाँ भिग्य होते हैं ?
पुरूष पर्यवेक्षण की यह श्रृखला यही समाप्त होती है ! यह मेरे नववर्ष के एक संकल्पों में था और मन आज एक गहन प्रशांति के भाव से भर उठा है कि मैंने यह उत्तरदायित्व आज पूरा कर लिया ! मैं इस श्रृखला के प्रशंसकों और आलोचकों दोनों का समान भाव से कृतग्य हूँ कि उनके सतत उत्प्रेरण से यह काम आज अंजाम पर पहुच गया -शिख से नख तक की यह पुरूष पर्यवेक्षण श्रृखला पूरी हो गयी ! मैं ख़ास तौर पर उस सुमुखि ( व्यक्तित्व ) का आभारी हूँ जिनके आग्रह और आह्वान ( भले ही उसका कोई भी मकसद रहा हो ) पर मैंने यह प्रोजेक्ट स्वीकार किया !
अब यह मौलिक काम / शोध प्रबंध जो पहली बार चिट्ठाजगत में शोभित /चर्चित हुआ पिछली श्रृंखला -नारी नख शिख सौन्दर्य के साथ ही समाहित हो " नर -नारी नख शिख सौन्दर्य " शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य है !
20 comments:
बड़ी ज्ञानवर्धक रही श्रृंखला... आशा है ऐसी और भी श्रृंखलाएं पढने को मिलेंगी.
हमने पूरी श्रंखला पढ़ी है. संभव है कि कुछ पोस्टों पर न टिपियाया हो, वह भी एक संकोच के आधीन. बहुत ही आनंद आया. हमारा आग्रह है कि इसे एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवा दें. इस विषय पर संभवतः किसी ने नहीं लिखा होगा. आभार एवं शुभकामनायें.
कविता का व्याकरण पढ़ा था, आज पाँवों का भी पढ़ लिया ।
नव वर्ष के संकल्प की पूर्ति के लिये बधाई ।
इस समर्पण भाव (dedication) को मैं नत-नयन देखता रहा बस । कुछ भी व्यक्त करने अथवा टिप्पणी करने का उद्धत भाव नहीं जुटा पाया । प्रकारान्तर से की गयी टिप्पणियाँ स्वयं को संतोष देने के लिये ही की गयीं थीं, केवल सिर हिलाना था वह । यद्यपि इतना विनीत हो कर कुछ कहने से भी डर लग रहा है आपके ब्लॉग पर, क्योंकि यहाँ (साई ब्लोग नहीं) तो विनय भी आत्म-दैन्य एवं आत्म-प्रक्षेपण के नाम से विभूषित हो जाया करता है ।
कितना सुन्दर होगा इस पूरे शोध का छ्प कर आना। क्या पुस्तकाकार ? कब तक ?
एक नयी शुरुआत भी होगी इस चिट्ठाजगत के लिये ।
अरविन्द जी आपका यह प्रयास बहुत ही बढ़िया रहा ...बहुत सी बाते जानी हमने इस श्रृंखला के माध्यम से ...आपने जिस रोचक तरह से इसको प्रस्तुत किया वह अच्छा लगा ..शुक्रिया
आपको साधुवाद!!
पूरी श्रृंखला बहुत उम्दा चली. ढ़ेरों जानकारी प्राप्त की. आनन्द आ गया.
बधाई एवं शुभकामनाऐं.
यह श्रृंखला हमारे लिए कई अनूठी जानकारियों का स्रोत रही। जितनी निष्ठा और धैर्य के साथ आपने इस संकल्प को पूरा किया, वह कम ही देखने को मिलता है।
"विश्व की कुछ संस्कृतियों खासकर भारत में किसी के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रर्दशित करने और आशीर्वाद प्राप्त करने की प्राचीन परम्परा रही है."
यहूदियों के बीच 2000 बीसी से अगले 2000 साल तक जमीन पर 7 बार झुक कर साष्टांग प्रणाम करने की आदत थी. लगता है कि यह भी पैर छूने का ही एक अन्य रूप है.
सस्नेह -- शास्त्री
पूरी श्रंखला ही बहुत जानकारी परक रही और आपने इसको बडे ही रोचक अंदाज मे प्रस्तुत किया. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
मेरे द्वारा सौंपा गया कार्य आज आपने पूरा किया, इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद (वैसे धन्यवाद जैसा शब्द बहुत छोटा होगा फिर भी ). मैं आपकी बहुत आभारी हूँ की आपने सिर्फ मेरे कहने पर तमाम विरोधों के बावजूद इसे पूरा किया. आशा करती हूँ आप ऐसे ही निश्पक्ष बने रहेंगे.
पुनः
धन्यवाद
लवली
रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी का बहुत शुक्रिया अरविन्द जी
बधाई !!!
संकल्प के पूरे होनें की बधाई .
नव युग में पांव छूने की परम्परा श्रद्धा के घटने या आधुनिकता के बढ़ने से घुटना छूने मेँ तब्दील हो रही है। इसे क्या कहा जाना चाहिये?
आप ने इस श्रंखला से हिन्दी अन्तर्जाल को समृद्ध किया है। इस के लिए कितना श्रम करना पड़ा होगा। यह वह व्यक्ति जो वैज्ञानिक आधार पर लेखन करता है सहज ही जान सकता है। आप को इस श्रंखला के सफलता पूर्वक पूर्ण कर लेने पर शत शत बधाइयाँ।
इस महत्वपूर्ण श्रृंखला के समापन पर हार्दिक बधाई। अब तो इसे कम्पइल कर पुस्तकाकार रूप में देखने की अभिलाषा है। आशा है जल्दी ही यह काम भी पूर्ण होगा।
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अभिनय के उस्ताद जानवर
लो भई, अब ऊँट का क्लोन
क्या बात है? मैं पादुका की बात कर रहा हूं और आप पाद की! आज पूरी शृंखला पढ़ गया. मज़ा आया. बड़ी दिलचस्प जानकारी दी है आपने. पर भाई, इन पादों में एक जोड़ी पादुका तो पहना दी होती. हमको बताया होता, आपको थोड़ा डिस्काउंट भी दे देते.
श्रृंखला के शानदार समापन पर शतकोटि साधुवाद। इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करा रहे हैं यह बहुत अच्छी बात है।
बधाई आपके जीवट को भी जिसने एक प्रतिक्रियात्मक बात को चुनौती के रूप में स्वीकारा और सफलता पूर्वक निर्वाह भी किया। पुनः बधाई।
@आप सभी प्रियजनों का ह्रदय से आभार ! जिन्होंने इतना स्नेह संबल दिया इस श्रृंखला को होने में !
पुनः पुनः बहुत आभार !
श्रृंखला पूरी करने पर बहुत बहुत बधाई.
बड़े अलग से विषय पर सुरुचिपूर्ण लेखमाला।
कुछ लोग तो पाँव छूने के बहाने घुटने के ऊपर जेब छु कर ही अपने को धन्य समझ लेते हैं
काम पर काम परक शोध ग्रन्थ का पुस्तकाकार प्रबंधन के लिए धन्यवाद . आशा है आपकी काम के प्रति उर्जा इसी प्रकार पल्लवित होती रहेगी
आपका ग्रन्थ सौंदर्य प्रतिभागियों के तथा परखी जानो के लिए ज्ञान का स्रोत बने इसकी सुभकामना स्वीकार करें
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