Monday, 19 August 2013

कन्हैया किसको कहेगा तू मैया?

वैज्ञानिकों के एक नए प्रयोग ने एक बार फिर असमंजस कि स्थिति पैदा कर दी  है . ऐसे एक और प्रायोगिक "कन्हैया" की किलकारियां गूंजने वाली हैं जिसके एक पिता और दो माएं होंगी।  आईये वैज्ञानिकों के इस नए प्रयोग की एक झलक  लें। सामान्य तौर पर तो हर बच्चे की एक माँ और एक पिता  होते हैं जो बराबर बराबर का आनुवंशिक पदार्थ -गुणसूत्र  उस तक अंतरित करते हैं।  गुणसूत्रों का अंतरण हमारी जनन कोशाओं -अंड और शुक्राणु के सम्मिलन  से होता है जो एक प्रक्रिया जिसे अर्धसूत्रण (मियासिस ) कहते हैं के जरिये आधे आधे भाग में मां और पिता से बच्चे में पहुँच कर पूर्णता पाते हैं।मनुष्य की कोशिका के केन्द्रक में  ये आनुवांशिक   पदार्थ होते हैं।  खैर यह तो हाईस्कूल स्तर की बायलाजी है जो आपमें बहुतों को पता होगी।  

जो बात बहुतों को पता नहीं है वह यह है कि मनुष्य की कोशिकाओं के केन्द्रक के अलावा/बाहर के जीवनद्रव्य (साईटो प्लास्म ) की  माईटोकांड्रिया में भी आनुवंशिक पदार्थ मिलने की जानकारी  काफी बाद में हुई और उसका भी आनुवंशिक अंतरण पीढी दर पीढी होता जाता है -मगर सबसे रोचक बात यह है कि ये माईटोकांड्रियल जीन महज माँ से अंतरित हो बच्चे तक पहुंचाते हैं। माईटोकांड्रिया वैसे तो कोशिका का 'पावर हाउस'  कहा जाता है जो शरीर के लिए ऊर्जा देने का काम करता है।  मगर आश्चर्यजनक रूप से  पाया गया कि इसमें भी कुल सैंतीस जीन मिलते हैं हालांकि मनुष्य के कोशिका -केन्द्रक में तकरीबन तेईस हजार जीन पाए गए हैं।  अब भले ही माईटोकांड्रियल जीन की ये संख्या बहुत कम है मगर इनमें किसी भी विकार से कई आनुवंशिक  रोग होते देखे गए हैं।  जिसमें से एक तो पेशियों की समस्या (माईटोकांड्रियल मायोपैथी )  और आप्टिक न्यूरोपैथी है जो स्थायी अन्धता तक उत्पन्न कर सकती है। 
 माईटोकांड्रियल जीन केवल मां से ही बच्चों तक पहुंचता है
जैसा मैंने बताया माईटोकांड्रियल जीन केवल मां से ही बच्चों तक पहुंचता है। अब अगर किसी मां के माईटोकांड्रियल जीन डिफेक्टिव हों तो? फिर तो बच्चा ऊपर वर्णित बीमारियों से ग्रस्त हो जाएगा ? फिर क्या किया जाय ? वैज्ञानिकों ने ऐसे मामले में यह जानकारी हो जाने पर कि किसी मां के माईटोकांड्रियल जीन में खराबी है -निषेचित अंड के जीवन द्रव्य (साईटोप्लास्म)  को स्वस्थ मां के जीवनद्रव्य से प्रत्यारोपण की तकनीक विकसित कर ली है।  मतलब विकारग्रस्त माईटोकांड्रियल जीन को ही हटा दिया जाना और उसके स्थान पर स्वस्थ मां के माईटोकांड्रियल जीन को स्थापित कर दिया जाना।  ऐसा करने का सबसे आसान तरीका यह पाया गया है की विकारग्रस्त माँ के निषेचित अंड के नाभिक को सामान्य स्वस्थ मां  की अंड  कोशिका में प्रत्यारोपित कर दिया जाय।  मतलब अब सम्बन्धित/संभावित  बच्चे की  दो माएं और एक पिता होंगें।  एक मां का नाभिकीय आनुवंशिक पदार्थ ,दूसरे का स्वस्थ माईटोकांड्रियल जीन. यह तकनीक क्लोनिंग तकनीक से इस मायने में भिन्न है कि जहाँ  निषेचित नाभिक एक धाय मां (सरोगेट मदर ) के निषेचित नाभिक रहित अंड कोशिका में प्रत्यारोपित होता( nuclear transfer cloning) है।  

8 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

विज्ञान के नये आयाम.

virendra sharma said...

संक्षिप्त और सुन्दर महत्वपूर्ण अद्यतन जानकारी आपने दी है एतराज है तो बस यही "शीर्षक एक और कन्हैया "योगेश्वर कृष्ण की हेटी करता है वह तो योग बल से उत्पन्न हुए माने जाते हैं। अ -मैथुनी सतयुगी सृष्टि के पहले प्रिंस हैं।

Himanshu Pandey said...

महत्वपूर्ण!

ताऊ रामपुरिया said...

अब ये तो विज्ञान है जो भी हो जाये वो कम है, बढिया जानकारी मिली, हार्दिक शुभकामनाएं.

रामराम.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

चमत्कार है यह तो।
जानकारी बाँटते रहिए। साधुवाद।

Arvind Mishra said...

वीरू भाई यह शीर्षक एक लोकप्रिय गाने से लिया गया है -इदं न मम !

प्रवीण पाण्डेय said...

यदि कोई तीसरी पाले तो तीन हो जायेंगी, रोचक।

Anonymous said...

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