भारत की प्राचीन जादुई प्रभावों वाली सोम बूटी और सोमरस पर विस्तृत चर्चा यहाँ पहले ही की जा चुकी है. आखिर वह कौन सी जडी -बूटी थी जो अब पहचानी नहीं जा पा रही है? क्या यह विलुप्त ही हो गयी? मशरूम (खुम्बी /गुच्छी) की कोई प्रजाति या भारत और नेपाल के पहाडी क्षेत्रों में पाया जाने वाला यार सा गुम्बा ही तो कहीं सोम नहीं है -यह पड़ताल भी हम पहले कर चुके हैं .भारत में सोम की खोज कई शोध प्रेमियों का प्रिय शगल रहा है -जिसके पीछे मुख्यत तो कौतूहल भाव रहा है मगर इसके व्यावसायिक निहितार्थों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती ...मेरा तो केवल शुद्ध जिज्ञासा भाव ही रहा है सोम को जानने समझने की और इसीलिये मैं इस चमत्कारिक जडी की खोज में कितने ही पौराणिक /मिथकीय और आधुनिक साहित्य को देखता फिरता रहता हूँ ...
एक बार अपने पैतृक आवास पर अवकाश के दिनों मुझे अथर्ववेद परायण के दौरान एक जगह सोम के बारे जब यह लिखा हुआ मिला कि 'तुम्हे वाराह ने ढूँढा" तो मैं बल्लियों उछल पडा था - कारण कि मशरूम की कुछ प्रजातियाँ तो वाराह यानी सुअरों द्वारा ही खोजी जाती हैं ....यह वह पहला जोरदार भारतीय साक्ष्य था जो सोम को एक मशरूम प्रजाति का होने का दावा कर रहा था ....
सोम बूटी का नया दावा:नागफनी की एक प्रजाति
अब अध्ययन के उसी क्रम में एक नागफनी की प्रजाति के सोम होने का संकेत मिला है .जिसे पेयोट(peyote) कहते हैं -सोम का जिक्र मशहूर विज्ञान गल्प लेखक आल्दुअस हक्सले ने अपनी अंतिम पुस्तक आईलैंड(island ) में भी किया था .अपनी एक और बहुचर्चित पुस्तक 'द ब्रेव न्यू वर्ल्ड' में उन्होंने संसार के सारे दुखों से मुंह मोड़ने के जुगाड़ स्वरुप सोमा बटी का जिक्र किया था तो आईलैंड में मोक्ष बटी का जिक्र किया जिसका स्रोत कोई फंफूद बताया गया था ....उन्होंने अपनी एक नान फिक्शन पुस्तक 'द डोर्स आफ परसेप्शन' में नागफनी की उक्त प्रजाति का भी जिक्र किया है जिसमें मेस्केलाईन नाम का पदार्थ मिलता है जिसकी मादकता मिथकीय सोम से मिलती जुलती है और इसके बारे में उन्होंने लिखा कि इसका प्रयोग दक्षिण पश्चिम भारत के कई धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता रहा है ..ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत का यह कोना संस्कृति के आदि चरणों का साक्षी रहा है.....
जाहिर है पेयोट अब सोम के संभाव्य अभ्यर्थी बूटियों में उभर आया है .....किन्तु विकीपीडिया में इसे टेक्सास और मैक्सिको मूल का बताया गया है? क्या यह नागफनी भारत के कुछ भी हिस्सों में होती रही है? और क्या इसका प्रयोग अनुष्ठानों में मादक अनुभवों के लिए होता रहा है -इस तथ्य की ताकीद की जानी है ....और इसलिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ कि कोई भी सुधी जन ज्ञान प्रेमी इसके बारे में जानकारी देकर सोम साहित्य गवेषणा के यज्ञ में हविदान करें तो स्वागत है .
14 comments:
अच्छी जानकारी.
नयी और अच्छी जानकारी
और प्रयोग प्रारम्भ किये जायें।
सोम की खोज के कुछ और करीब पहंचने के संकेत हैं शायद.
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डिस्कवरी चैनल के एक प्रोग्राम में भारत, अफगानिस्तान और ईरान की यात्रा में सोम बूटी का जिक्र भी आया था। ईरान के पुराने नगरों के भग्नावशेषों में सोम रस तैयार करने के पात्र आदि भी दिखाए थे और यह भी अफगानिस्तान में आज भी यह बूटी 'होम' के नाम से पंसारियों के पास आसानी से मिल जाती है।
(नयी पुरानी हलचल पर लिंक)
जानकारी परक आलेख...
आभार...
डॉ जमाल साहब ,
आपने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है ...दरअसल अवेस्तन या पारसियों का Haoma ही सोम है और मजे की बात देखिये हमारे यहाँ सामान्य यग्य अनुष्ठानों के लिए होम शब्द ही व्यवहृत होता है -होम करने का मतलब सोम आयोजन !
@ आदरणीय अरविन्द मिश्रा जी ,
आपका शुक्रिया कि आपने एक सही बात की तस्दीक की,
इससे एक ऐसी बात हम सबके सामने आती है जिससे कि हमें हमारी प्राचीन परंपराओं को समझने में मदद मिलेगी और इसी के साथ वृहत्तर भारत की सांस्कृतिक एकता भी प्रमाणित होती है। यही एकता भारत को विश्व का सिरमौर बनाएगी।
धन्यवाद !
@ आदरणीय अरविन्द मिश्रा जी ,
आपका शुक्रिया कि आपने एक सही बात की तस्दीक की,
इससे एक ऐसी बात हम सबके सामने आती है जिससे कि हमें हमारी प्राचीन परंपराओं को समझने में मदद मिलेगी और इसी के साथ वृहत्तर भारत की सांस्कृतिक एकता भी प्रमाणित होती है। यही एकता भारत को विश्व का सिरमौर बनाएगी।
धन्यवाद !
कन्फर्म हो जाइएगा, तो बताइएगा, लगे हाथ हम भी ट्राई कर लेंगे। :)
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एक यादगार सम्मेलन...
...तीन साल में चार गुनी वृद्धि।
Nice post !!
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
मिश्र जी नमस्कार, जानकारी भरी पोस्ट्।
I know. Even i saw. But can not tell.
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