खबर यहाँ है .हालांकि फालो अप नहीं है मगर मैं समझ सकता हूँ कि बंगलादेशियों का दिल जीतने के लिए अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने यह पेशकश की होगी और डायनिंग टेबल पर हिलसा सजी होगी .खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री हिलसा के आकर्षण में ऐसे बधे कि कह पड़े कि हिलसा के स्वाद के लिए अगर उन्हें अपना शाकाहार छोड़ना पड़े तब भी वे तैयार हैं.
लद गए दिन हिलसा के ....
हिलसा सचमुच बंगाली मोशाय के दिल की रानी है हालाकिं उसे यह ओहदा बाबू मोशाय की पेट पूजा से हासिल हो पाया है ...जहां आम मछलियाँ १००-२०० रुपये किलो मिलती हैं हिलसा का दाम बंगाल में १००० रुपये किलो तक पहुँच गया -पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच कई राजनीतिक -कूटनीतिक प्रयासों के बाद अब जाकर इसका दाम लगभग ५०० रूपये प्रति किलो स्थिर हुआ है ... यह मछली ज्यादा तादाद में अब बँगला देश से ही आती है ....जहाँ इसे 'राष्ट्रीय मीन' का गौरव मिला हुआ है .मगर इसकी खपत पश्चिम बंगाल में बहुत अधिक है जहां जुलाई -सितम्बर के बीच यह १०० टन प्रतिदिन तक पहुँच जाती है ...
हिलसा के लिए यमदूत बन गया फरक्का बाँध
..पश्चिम बंगाल में हिलसा की खपत का ७० फीसदी बंगलादेश से और बाकी स्थानीय स्रोतों ,दीघा और मुम्बई के डायमंड हार्बर से आता है . आज भले ही भारत में हिलसा की इतनी कमी हो गयी हो मगर हमेशा ऐसा नहीं था -सारी मुश्किल शुरू हुयी फरक्का बान्ध के १९७५ में वजूद में आने से जिसके बाद हिलसा ही नहीं महाझींगा मात्स्यिकी का उत्तर -पूर्वी भारत की नदियों से लगभग सफाया ही हो गया क्योकि इस बाँध में मछलियों के समुद्र(बंगाल की खाड़ी ) से इस पार आने के लिए समुचित 'फिश वेज' या 'फिश पासेस/सीढियां ' नहीं बनाए गए और विशालकाय ऊंचे बाँध को लांघ कर हिलसा या महाझींगा का प्रवास गमन कर नदियों तक आ प्रजनन करना लगभग अवरुद्ध हो गया -दोनों प्रजातियाँ समुद्र से उल्टा चलकर प्रजनन काल में गंगा नदी और जुडी नदी प्रणालियों में आ जाती थीं -और प्रजननं के बाद बेशुमार बच्चे वापस लौट जाते ..
फरक्का बाँध बन जाने से इन प्रजातियों का पूरा प्रवास गमन ही रुक गया लिहाजा इनका पूरा व्यवसाय ही नष्ट हो गया -यह एक उदाहरण ही बाताता है कि कैसे यहाँ विभिन्न अनुशासनों के विशेषज्ञों के बीच तालमेल का घोर अभाव है और एक दूसरे के विचारों के प्रति असहिष्णुता ..बांध निर्माण की ये गलतियां रूस में नहीं अपनाई गयीं -अमेरिका में इसके ऐसे मामलों की जानकारी होते ही सामन मछलियों की राह के रोड़े बने बांधों को तोड़ दिया गया और मत्स्य विशेषज्ञों की देख देख रेख में फिर से बांधों का निर्माण हुआ ....मगर भारत में गंगा नदी की पूरी की पूरी हिलसा और महाझींगा मात्स्यिकी का सफाया हो गया और राजनीतिक इच्छा शक्ति का इतना बड़ा अभाव कि आज हम हिलसा की भीख बांग्लादेश से मांगने को अभिशप्त हैं मगर फरक्का डैम में आवश्यक पुनर्निर्माण नहीं करा पाए हैं और अब तो पानी भी सर के काफी ऊपर जा चुका है .
क्या अब भी हमारे प्रधानमंत्री हिलसा की यह दर्दीली दास्ताँ सुनेगें ?
15 comments:
इस पोस्ट से हिलसा के बारे में काफी जानकारी मिली ..
यह तो बहुत ही जानकारी-वर्धक पोस्ट थी..
मानवो ने अपनी सहूलियत के लिए जानवरों का जो हश्र किया है, उसका फल भोग कर जाना पड़ेगा..
हिलसा के बारे में काफी जानकारी मिली ..
यह तो हिलसा के प्रवाह का बाँध बन गया है।
रोचक पोस्ट.
इस पोस्ट को पढकर संवेदनशील प्रधानमंत्री अपनी एक और रात की नींद उदा दें शायद. विशेषज्ञों का येह तालमेल हमारे यहाँ क्यों नहीं बन पाता !!!
Latest infomation about Hilsa. A fish ladder should immediately be constructed to solve the problem of scarcity of the fish.
नीति निर्धारक समस्याओं की जड़ में जाना ही नहीं चाह्ते !
ऐसी जानकारियाँ देने वाले ब्लॉग कम हैं. इस ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.
बाकी जो प्रधान जी कर आये हैं, उस पर भी तो देखिये...
और फिर फायदा भी क्या हिलसा को बांध मारे या आदमी, बात तो लगभग एक ही है.
http://hindi-kavitayein.blogspot.com/
मछलियों की गंध आ रही है। सो अभी जा रहा हूँ।
इस लेख में फिश लैडर को सचित्र और सरल शब्दों में समझा दीजिये तो पूर्ण हो जाय।
सादर,
गिरिजेश
डॉक्टर साहब… इस खबर दो सवाल उठ खड़े हुए हैं…
1) मनमोहन द्वारा हिल्सा खाने का निर्णय स्वाद के कारण लिया गया या बांग्लादेश को खुश(?) करने हेतु…
2) फ़रक्का बाँध के कारण हिल्सा महंगी हो गई, कहीं इसीलिए तो ममता दीदी नाराज़ नहीं हो गईं?
:) :) :)
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