तमाम प्रयासों के बावजूद भी जापान के फुकूशिमा डायची नाभिकीय सयंत्रों से निकले रेडियो आईसोटोप आस पास के वातावरण को दूषित कर रहे हैं -लोगों को दूर हटाया जा रहा है -उत्तरी पश्चिमी भू भागों में खेती प्रतिबंधित कर दी गयी है .निकटवर्ती समुद्र से मछलियों के पकड़ने पर भी रोक लगाई गयी है .यहाँ आयोडीन १३७ और सीजियम -१३१ ही मुख्य रूप से रेडियो धर्मिता के लिए जिम्मेवार हैं .लेकिन इनकी एक बड़ी मात्रा उठे विकिरण -गुबार के साथ प्रशांत महासागर में फ़ैल गयी है ...
जापान में फैलती रेडियो धर्मिता: नेचर न्यूज पर डेक्लान बटलर की रिपोर्ट
फुकूशिमा प्लांट के ४० किमी के दायरे में रेडियो धर्मी आईसोटोप की मात्रा अधिक है जो ०.१२५ मिलिसीवर्ट प्रति घन्टे(mSv h−१) से अधिक है किन्तु ०.३mSv h−१ से कम ही है जो मनुष्य पर अधिक हानिकारक प्रभाव डालती है .मगर कुछ स्थानों पर एक वर्ष पहुँचते पहुंचते रेडियो धर्मिता १००० मिली सीवार्ट तक जा पहुंचेगी जो घातक प्रभाव ड़ाल सकती है. जैसे रक्त की श्वेत कणिकाओं के कम हो जाने से शरीर की रोग निरोधक क्षमता का ह्रास आदि ..
सयंत्र के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र में रेडियो धर्मिता बढ़ रही है और वहां से सम्पूर्ण आबादी का फौरी तौर पर हटाया जाना अब तय हो गया है .इंटरनेशनल एटामिक इनर्जी एजेंसी (IAEA)ने इस आशय की चेतावनी दी है .चारों सयंत्रों को अभी भी "शांत " करने में सफलता नहीं मिल पायी है जबकि दूसरा तो रेडियो धर्मिता की घातक मात्रा उत्सर्जित करने के कगार पर है .
नाभिकीय ऊर्जा का यह अभिशाप हमें इस ऊर्जा स्रोत के पुनर्मूल्यांकन का सबक दे रहा है .
11 comments:
नमस्ते सर
जापानियों का दुर्भाग्य ..
चिन्तनीय स्थिति।
Samadhan isi mein hai ki hum apni Urja aavashyaktaon ko niyantrit karne par ganbhir hon, magar durbhagya se abhi aisa hoga nahin.
हमें भी एटोमिक एनर्जी का विकल्प ढूँढने के साथ साथ अपने संयंत्रों की अधिक सुरक्षा के बारे में सोंचना चाहिए ! शुभकामनायें !!
सही मायने में देखें तो आधुनिक विज्ञान का इतिहास 200-250 वर्ष से अधिक का नहीं हैं, और मनुष्य अपने ज्ञान का प्रायोगिक दोहन करने में इस कदर जुट गया कि उसे आगा पीछा की खबर नहीं रही । चेचेन्या और जापान की घटनायें दु:खद तो हैं ही... पर मिश्रा जी यह सोचिये यदि प्रलय जैसी स्थिति कभी सुदूर भविषय में आती है, तो मनुष्य को प्रलय से अधिक क्षति अपने बनाये हुये सयँत्रों से होगी । बेचारे मनु महाराज भी नौका लेकर निरापद न घूम पायेंगे, पुनर्सृष्टि तो दूर की बात होगी ।
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जापानी विषम स्थिति में हैं, लेकिन वे इस स्थिति से जल्द ही उबर जायेंगे. लेकिन हमारे देश में यदि कभी ऐसी स्थिति आ गयी तो क्या होगा.. सवाल इस बात का है..
क्यों हम लोग विश्व में हुयी आपदा को भारत से जोड़कर देखते है ?
क्या भारत में ऐसी आपदा नहीं आयी है ?
हर आपदा के बाद सवाल उठाते है! ऐसा भारत में होता तो क्या होता ?
क्या २००४ में सुनामी नहीं आयी थी ? कलपक्कम के परमाणु संयत्र को क्या हुवा था !
गुजरात के भूकंप से काकरापार संयत्र को क्या हुवा था !
हमें अपनी क्षमता पर विश्वास क्यों नहीं है ?
क्या भारत आपदा नियंत्रण में विश्व से बेहतर नहीं है ?
अमरीका के कैटरीना तुफान के बाद क्या हालत थी ? ७-८ दिनों बाद पाने में लाशें तैर रही थी ! लूटपाट तो हुए ही, बलात्कार भी !
जापान के हालत सामने है, लोगो के पास छत नहीं है, खाना नहीं है !
२००४ के सुनामी के बाद क्या भारत में ऐसा था ? क्या लोग भूखे थे ? मुंबई की ९० सेमी बरसात के बाद क्या हुआ था ? स्थिति दूसरे दिन नियंत्रण में थी !
हाल ही में न्यूजीलैंड के भूकंप के बाद क्या हुवा ? लूट पाट, चोरी !
परमाणु संयंत्र पर इतने सवाल ! माना ये पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है ! लेकिन विकल्प क्या है ! कोयला आधारित संयत्र से परमाणु संयत्र से ज्यादा विकिरण निकालता है! हमें chaahiye ki ham दुर्घटना से सबक सीखे ! सुरक्षा के नए प्रबंध करे ! आग लग जाने से चूल्हा जलना बंद नहीं होता !
विश्व के विकसीत देश हर पैमाने पर भारत से बेहतर नहीं है !
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आपका
आशीष
आशीष जी ,
इन घटनाओं से सबक लेना जरुरी है और आगत के प्रति हमारी आशंकाओं का एक सकारात्मक पहलू यह तो है ही कि हम भविष्य की योजनाओं और सुरक्षा के प्रति सचेत हो जाय!
भोपाल काण्ड का सबक हमें पूरी पीड़ा के साथ याद है ! भारत में घटनाएं दबा देने की प्रशासनिक प्रवृत्ति है जब तक उसका आयाम भोपाल सा न हो जाय -
मुझे याद है जब मैं इलाहाबाद में कार्यरत था मेरी एक विज्ञान कथा जिसमें विकिरण का उल्लेख था (अमरा वयम ) को पढ़ कर दीन हीन कृशकाय व्यक्ति मेरे पास आया था -और उसके मुताबिक़ वह रेडियो धर्मिता का शिकार हुआ था -भारत के किसी परमाणु सयंत्र में और उसे सेवा मुक्त कर दिया गया था -वह कुछ कुछ मनोविक्षिप्ति का शिकार भी हो गया था और असम्बन्ध बातें कर रहा था -मगर परमाणु सयंत्रों से क्षरित विकिरणों की उसकी जानकारी बड़ी सटीक थी और उसने अपने साथ हुए वाकये का हौलनाक वर्णन किया था -अब वह जिन्दा न होगा ! जब भी परमाणु ऊर्जा दुर्घटनाओं का जिक्र होता है उसका व्यवस्था से हताश चेहरा सामने आ जाता है ..
यहाँ गोपनीयता का आवरण कुछ ज्यादा ही है और छोटे मोटे इक्का दुक्का हादसे दबा दिये जाते हैं -मगर इन सब के बावजूद मैं परमाणु उर्जा को ज्यादा काम का उर्जा स्रोत समझता हूँ !
vishesh jankari se abhipret post....
pranam.
thanks for sharing this post..
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