कहाँ चुम्बन जैसा सरस मन हरष विषय और कहाँ विज्ञान की नीरसता ..आईये मानवीय सर्जना के इन दोनों पहलुओं में तनिक सामंजस्य बिठाने का प्रयास करे .. चुम्बन के विज्ञान(philematology ) पर एक नजर डालते हैं!
http://www.youtube.com/watch?v=7ykfQANwS_w&feature=player_embeddedविज्ञान की भाषा में चुम्बन -आस्कुलेशन(osculation) किन्ही भी दो व्यक्तियों के बीच की सबसे घनिष्ठ अभिव्यक्ति है जिसके चलते कितनी ही साहित्यिक ,सांगीतिक और चित्रकलाओं की गतिविधियाँ उत्प्रेरित - अनुप्राणित हुयी हैं ...कहते हैं कुछ चुम्बनों या उनकी दरकार ने इतिहास के रुख को भी पलट दिया है ..मगर यह सब यहाँ विषयांतर हो जाएगा -यहाँ साईंस ब्लॉग की भी मर्यादा तो बनाए रखनी है न ..बाकी सब के लिए तो क्वचिदन्यतोपि है ही ....निश्चय ही चुम्बन एक नैसर्गिक सी लगने वाली अनुभूति है मगर क्या यह सहज बोध प्रेरित गतिविधि है ? आकंडे कहते हैं कि दुनिया में तकरीबन दस फीसदी लोग आपस में अधरों का स्पर्श तक नहीं होने देते ..तब भी इसे आखिर क्या सार्वभौमिक सांस्कृतिक गतिविधि मान ली जाय ? बहुत से वैज्ञानिक इसे महज सांस्कृतिक गतिविधि नहीं मानते .....चुम्बनों का पारस्परिक विनिमय साथी के कितनी ही जानकारियों का अनजाने ही साझा करा देती है ...हम प्रेम रसायनों -फेरोमोंस का साझा करते हैं .... प्रेम रसायनों(डोपा माईन,सेरोटोनिन आदि ) का एक पूरा काकटेल ही साझा हो जाता है और हमारे सामजिक बंध को और मजबूती दे देता है ,तनाव घटाता है ,उत्साह उत्प्रेरण और हाँ सुगम यौनिकता की राह भी प्रशस्त करता है यानि जैसा भी संदर्भ /अवसर हो .....हम पर एक जनून तो तारी हो ही जाता है -यह सचमुच प्रभावकारी और सशक्त है -आजमाया हुआ नुस्खा है अगर किसी ने न आजमाया हो तो फिर हाथ कंगन को आरसी क्या ?
सहज चुम्बन दिव्य सुखाभास की अनुभूति देता है ...और मस्तिष्क के 'प्रेमिल क्षेत्रों' को प्रेरित कर प्रेम रसायनों का एक पूरा डोज रक्त धमनियों में उड़ेल देता है ...यह सब महज सामाजिक औपचारिकताओं से भी निश्चय ही अलग एक कार्य व्यापार का संसार सृजित करता है ....हम जानते हैं हमारे नर वानर कुल के कुछ सदस्य अपने बच्चों को मुंह से मुंह खाना खिलाने के दौरान अधरों के संपर्क में आते हैं और शायद चुम्बन-व्यवहार का उदगम इसी गतिविधि से ही हुआ हो मगर ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका उदगम और विकास साथी के लैंगिक चयन में भी भूमिका निभाते हैं -इसी दौरान साथी की शारीरिक जांच भी इस लिहाज से हो जाती है कि उनका जोड़ा संतति वहन के लिए पूर्णतया निरापद है भी या नहीं ...मतलब संतानोत्पत्ति और उनके लालन पालन में तो कहीं कोई लफड़ा नहीं रहेगा -यह सब रासायनिक परीक्षण चुम्बन के दौरान ही अनजाने हो जाता है ....कितने ही प्रेम सम्बन्ध इन्ही कारणों से आगे नहीं बढ़ पाते -रासायनिक लाल झंडी है चुम्बन ....फिर शुरू होता है तुम अलग मैं अलग की कहानी और असली माजरा समझ में नहीं आता ...कई बार तो पहला चुम्बन ही निर्णायक हो जाता है ..अवचेतन तुरत फुरत भांप जाता है की अरे यह नामुराद तो बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा पायेगा ...वैज्ञानिकों की माने तो चुम्बन भावी घनिष्टतम संपर्कों की देहरी है ..लाघ गए तो चक्रव्यूह का अंतिम फाटक भी फतह नहीं तो देहरी पर ही काम तमाम .....
तो यह चुम्बन -आलेख शेरिल किरशेंनबौम की 'द साईंस आफ किसिंग' पुस्तक से परिचय कराने के लिए और किसी को नजराने के लिये लिखा गया है ...और अगर आपमें और अधिक जिज्ञासा जगा सका तो अंतर्जाल अवगाहन का विकल्प तो आपके पास है ही -हम विज्ञान संचारको का काम बस प्यासे को कुंए तक पंहुचा देना भर है ....पानी आप खुद निकालिए और पीजिये .....
एक मिनट का यह वीडियो भी देख सकते हैं ....
13 comments:
चुम्बन का विज्ञान?
चुम्बन तो सरस है, विज्ञान नीरस है।
अदभुत सामंजस्य है।
चुंबन और विज्ञान का अद्भुद संयोग प्रस्तुत किया गया है लेख मे... किन्तु यह प्रश्न मेरे मन मे बहुत पहले उठा था कि इस शारीरिक क्रिया का क्या उद्देश्य हो सकता है। कहाँ से और कैसे उद्भव हुआ चुंबन का। मेरा पहला निष्कर्ष यह है कि चुंबन ममत्व से उपजा है। दूसरों की पीड़ा हर लेने की सांकेतिक अभिव्यक्ति है चुंबन। यह लगभग सारे स्तनपाइयों मे विभिन्न रूपों मे पाया जाता है। बच्चे के जन्म से उसे चाट कर साफ करने की प्रक्रिया कहीं न कहीं चुंबन से जुड़ी हुई है।
दूसरी स्थिति स्तनपान से जुड़ी हो सकती है। फ्रायड की संप्राप्ति थी कि बच्चे की काम ऊर्जा प्रारम्भ मे उसके होठों मे होती है, और स्तनपान मे उसे जो संतुष्टि मिलती है वह काम का ही एक रूप है। चुंबन इसी प्रक्रिया का सांकेतिक रूप हो सकता है।
आपने तो पूरे शरीर में ही बिजली दौड़वा दी..
मानवीय भावनाओं को विज्ञान का आवरण। जय हो।
बहुत खुब जी...
आज ही इसी से मिलते जुलते विषय पर ये पढ़ा :
"फ्रॉयड की नज़र में सेक्स से ही संसार की हर चीज़ और हर क्रिया तय होती है। विकसित होती है। यह उनका सर्व-काम-वाद है। फ्रॉयड का कहना है कि एक बच्चा पैदा होता है। वह मां का दूध पीना शुरू करता है। बच्चे की यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रिया है। मां, बच्चा और स्तनपान। इसी में है सारा जहान। फ्रॉयड का मानना था कि मां के गर्म दूध के प्रवाह से बच्चे के मुंह में उत्तेजना उत्पन्न होती है। एक सुखद संवेदना। प्लेज़रेबल सेंसेशन। इसलिए उन्होंने बच्चे के ओठ को कामोत्तेजक क्षेत्र कहा। एरोजेनस ज़ोन की तृप्ति आरंभ में आहार और पोषण से जुड़ी होती है। इसलिए आरंभ में यौनक्रिया आत्मरक्षा की क्रिया है। बाद में वह इससे अलग होती है। आहार और आत्मरक्षा से यौन क्रिया आरंभ होती है।"
सभ्यता और विकास शायद हमें प्रकृती से दूर ले जाते है !
लिपिस्टिक ज़्यादा नहीं है ?
crap
@पद्म जी और आशीष जी
आपने एक रोचक पहलू को विस्तार दिया ..आभार !
dear anom,
whats crap ,ceaseless kisses or this post!
your obsession w... s..
Dear anom,
you call it obsession but what i feel its most natural spontaneous creative force which guide humanity to prosper in every way ...the feeling is just wonderful ,euphoric and attainment of the everlasting bliss..only one who experiences it can only realize....
best,
विज्ञान की इस विधा से अनभिज्ञ था अब तक.
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