जी हाँ उस तारे की चर्चा यहाँ और यहाँ पहले भी हो चुकी है मगर बात अभी भी बाकी है ... ओरियान यानि हिन्दी के मृग नक्षत्र का बेटलजूस यानि आर्द्रा तारा इन दिनों सुर्खियों में है ....कल रात मैंने भी इसकी भव्यता को नंगी आँखों से निहारा -आज रात या इन दिनों किसी भी रात आप इसे देख सकते हैं -यहाँ तक शहरों की चुंधियाती रोशनी में भी ...रात आठ साढ़े आठ बजे छत पर जाइए ...लगभग अपने सिर के ऊपर तनिक दक्षिण दिशा में निहारिये -एक साथ तीन तारे त्रिशंकु सरीखे दिखेगें और इसी के थोडा बाएं तरफ ही तो है यह आर्द्रा तारा जो लाल चमक लिए है ...यह बस अपने अस्तित्व की अंतिम घड़ियाँ गिन रहा है या फिर समाप्त हो चुका है और अब जो हम देख रहे हैं वह तकरीबन ६०० वर्ष पहले इस तारे के विनाश के ठीक पहले की लालिमा हो सकती है ....दावे हैं कि जब इसके सुपरनोवा बनने की रोशनी धरती पर आयेगी तो यह एक दूसरे सूरज की तरह चमक उठेगा ...मायन कलेंडर के अनुसार २०१२ में दुनिया ख़त्म हो जायेगी -अब कुछ कल्पनाशील लोग इस तारे यानि आर्द्रा के धरती के दूसरे सूरज बन जाने के साथ ही इसे क़यामत का तारा भी मान बैठे हैं ....
.ओरियान मंडल के तीन तारों के बाईं ओर है आर्द्रा
मजेदार बात तो यह हुई है कि एक खगोल -फोटोग्राफर स्टेफेन गुईसार्ड ने मायन सभ्यता के ध्वंसावशेष के एक मंदिर के गुम्बज के ठीक ऊपर चमकते इस तारे की एक रोमांचपूर्ण तस्वीर उतारी है जो यहाँ दिख रही है -यह उनकी तनिक शरारत सी है ताकि २०१२ वाले प्रलय के दावों में थोड़ी और नमक मिर्च लग जाए -मगर इस बात से दीगर जरा उस चित्र को तो देखिये जो सचमुच कितना रोमांचपूर्ण लग रहा है अपने विनाश के मुहाने पर आ पहुंचे इस तारे का दृश्य!आप प्रतिभा के धनी इस फोटोग्राफेर की सराहना किये बिना नहीं रह पायेगें ठीक वैसे ही जैसे बैड अस्ट्रोनामी ब्लॉग के फिल प्लेट उनकी फोटोग्राफी की प्रशन्सा करते नहीं अघाते ..
गौर करने की बात यह है कि मायन सभ्यता ही नहीं हमारे कई मंदिरों और स्थापत्य के नमूनों की स्थापना में भी खगोलिकी का बहुत सहारा लिया गया है ...नक्षत्रों से मंदिरों के कोणों और परिमापों को संयोजित किया गया है ....हमारे पूर्वज पोथी पत्रों से नहीं बल्कि सीधे आसमान को निहारते थे और उन्हें आकाश में तारों और ग्रहों की स्थितियों का आज के बहुसंख्यक लोगों की तुलना में अच्छा ज्ञान भी था ....कन्याकुमारी के मंदिर में सूर्योदय की पहली किरण अपरिणीता पार्वती की नथ पर पड़ती है जो हीरे की है ..और सारा पूजा मंडप आलोकित हो उठता है ......मतलब यह मंदिर प्रत्येक मौसम में सूर्योदय की किरणें किस्समान बिंदु पर अवश्य पड़ेगी इस सटीक गणना के साथ निर्मित हुआ है .....इधर देखा जा रहा है कि हमारे कुछ उत्साही लोग अपने पूर्वजों की खगोलीय क्षमताओं की खिल्ली उड़ाते हैं मगर उन्हें खुद भी आकाशीय ग्रहों और तारों के बारे में अपने पूर्वजों की तुलना में नगण्य सी जानकारी है ....मगर जैसा कि फिल कहते हैं उन्हें अतिज्ञानी भी मानने की जरुरत नहीं है - कई मायनों में उनकी बेबसी समझी जा सकती है उनके पास साधारण से दूरदर्शी तक न थे जिनकी एक विकसित श्रृखला हमारे पास आज है!उन्होने अपनी नंगी आँखों से ही खुले आसमान को निहारा और कृषि और बाद में धर्मों से अनेक ग्रहों नक्षत्रों के सम्बन्ध जोड़े ...
यह कितना रोचक हैं न कि जिन तारों और नक्षत्रों को उन्होंने निहारा आज उनके वंशधरों के रूप में हम भी हम उन्ही को देख रहे हैं और हमारी आगे की पीढियां भी उन्हें इसी तरह देखेंगी ....ये एक तरह से हमारी पीढ़ियों को जोड़ने वाले प्रकाश पुंज हैं ....मायन लोगों ने आर्द्रा तारे को क्यों मंदिर के गुम्बज के सापेक्ष प्राथमिकता दी होगी ? क्या उनके वंशधर इसकी गुत्थी सुलझा लेगें -या उन्होंने लाल तारे के रूप में उसके अवसान को अनुमानित कर लिया था और विदाई के तौर पर उसकी स्मृति में एक भव्य इमारत तैयार कर गए होंगें!
आपसे गुजारिश है आज या किसी एक रात को पूरे परिवार के साथ असमान में चमकते इस तारे -आर्द्रा का दीदार कर ही लीजिये ..पता नहीं यह कल हो या न हो!तारे को खोजने में यहाँ दिया चित्र उपयोग में लायें!
14 comments:
धन्यवाद इस जानकारी के लिये। गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ।
ऐसे स्टेफेन गुईसार्ड की वेबसाईट में सभी चित्र सुन्दर हैं। और वहां मायन मन्दिर एवं ऑरायन तारा समूह के भी कई चित्र हैं पर यह सबसे सुन्दर।
..रात आठ साढ़े आठ बजे छत पर जाइए ...लगभग अपने सिर के ऊपर तनिक दक्षिण दिशा में निहारिये....
दिल्ली में प्रदूषण—रोशनी—धुंध के चलते तारे नहीं दिखते. तारे को भी विनाश के लिए दिल्ली मिलेगी नहीं तो क्या कर लेगा ये हमारा... इसलिए हम इस चिंता से मुक्त हैं :)
aaj raat me dekhte hain..
रात ८.३० के बाद का यही कार्यक्रम रहेगा. आभार.
धन्यवाद इस जानकारी के लिये। गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ।
अरविन्द जी,
इस पोस्ट के लिये बहुत धन्यवाद ।
बचपन से अन्तरिक्ष में रूचि थी, आज से तकरीबन १५-१८ साल पहले बचपन में मथुरा में रात को छ्त पर बिस्तर लगाकर सोना और तारों को निहारना याद है। पिताजी का सप्तऋषि तारामण्डल दिखाना और उसकी सहायता से ध्रुव तारे को दिखाना भी याद है । उन दिनों पूर्णिमा को चांद की इतनी रोशनी होती थी कि तीसरी मंजिल पर बिना किसी अन्य रोशनी के हमने सिर्फ़ चांद की रोशनी में लूडो खेला है ।
शहरों में रहते रहते तारों से रिश्ता छूट गया और कहां समय आकाश निहारने का । पिछले महीने का एक किस्सा सुनाता हूँ। टेक्सास में हमारे एक मित्र के पिताजी का एकदम गांव खेडे में बहुत बडा रेंच है, उन्होने एक सप्ताहांत पर कुछ मित्रों को बुलाया । दिन भर अमेरिका के गांव जीवन के मजे लिये, बिजली, केबल, फ़ोन, ऐसी सब तो था वहां। थोडी परेशानी बस मुख्य सडक से २ किमी अन्दर मिट्टी की कच्ची सडक पर गाडी चलाने में हुयी थी और सेलफ़ोन का सिग्नल नहीं था। लेकिन साहब जैसे जैसे शाम ढली और अंधेरा हुआ, हम बावले हो गये। इतना घुप्प अंधेरा और इतने तारे हमने अपने जीवन में कहीं नहीं देखे । हमने तकिया लिया और जा पंहुचे खुले मैदान और धीरे धीरे सभी मित्र आ गये, हमारे साथियों में एक नासा में कार्यरत है और उसने तारों/नक्षत्रों के बारे में बताना शुरू किया। मिल्की वे वाली बेल्ट को पहले बार इतना साफ़ देखा । उस अद्भुत अनुभव को सोचते ही रोंगटे खडे हो जाते हैं।
आज शाम को फ़िर से आसमान निहारने की कोशिश करेंगे शायद सफ़ल हों।
आभार,
नीरज
एक बार प्रलय तो आनी ही चाहिये जिस मे सब पापी मरे, सिर्फ़ वो पापी बचे जिन्होने ने भुल से या गलती से एक आध पाप किया हो, ओर वो भी मरे जिन्होने दुसरो के हक मारे हो, देश का सत्यनाश किया हो,बहुत सुंदर जानकारी, जिस दिन मोसम अच्छा हुआ मे भी देखू गा इस तारे को.धन्यवाद
गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई
@नीरज जी बिलकुल ऐसा ही बचपन हमने भी बिताया है ..आज आर्द्रा दिख जाए तो बताईयेगा !
बहुत रोचक....विज्ञान तो पढ़ा मगर अन्तिक्ष और खगोल के बारे में बचपन में ही पढ़ा...पिताजी बताया करते थे...अब खगोल नहीं पढता...
आपने कन्याकुमारी के मंदिर वाली बात बहुत सही बतायी.....और बताइए प्लीज.
ये कनाडा में EDMONTON में कैसे देख पाऊंगा...और मुसीबत ये की इतनी ठण्ड (-२० डिग्री) में ज्यादा देर रात में खुले में खड़े भी नहीं हो सकते...
सहायता कीजिये...
pahle main aapki tahe dil se aabhari hoon blog par jo aapne aakar hausala badhaya ,aesi jaankariyo ka labh sada yahan se hame milta rahe .vande matram ,jai hind .
कल रात बादल छाये हुए थे. आदर के दर्शन नहीं कर पाए. मुन्नाभाई लगे हुए हैं.
अरविन्द जी,
इस पोस्ट के लिये बहुत धन्यवाद ।
ये है हमारे न्यायालयो के निर्णय और फील प्लेट खींचाई :
http://blogs.discovermagazine.com/badastronomy/2011/02/03/america-and-india-love-their-antiscience/
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