आज विजयादशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन की परम्परा रही है. क्यूँकि राम के आराध्य शिव हैं फिर इस खुशी के मौके पर उनके रूप प्रतीति का दर्शन क्यूँ न किया जाय ? एक पक्षी का नाम ही नीलकंठ पड़ गया -अपने पंख पर नीले रंग की अनुपम छटा के कारण यह पक्षी जिसे अंगरेजी में Indian Roller (Coracias benghalensis), या Blue Jay कहते हैं , शिव का ही प्रतिरूप बन गया है !आप इस बेहद खूबसूरत पक्षी को बाग़ बगीचों ,वन उपवनों ,टेलीफोन ,बिजली के तारों पर बैठे और सहसा जमीन पर आ पहुँच कीट पतंगों को चोंच में भर ले उड़ने और उनके हवाई नाश्ते के दृश्य को देख सकते हैं ..अगर आज यह आपके आसपास न दिखे तो दुखी मत होईये ऊपर का चित्र देखकर रस्म अदायगी तो कर ही लीजिये !
राहत की बात यह है कि अभी भी यह पक्षी खात्मे की राह पर नहीं है मगर इसका दिखना कुछ कम जरुर हुआ है .भारतीय महाद्वीप में यह हिमालय से लेकर श्रीलंका ,पाकिस्तान आदि सभी जगह मिलता है .विकीपीडिया के मुताबिक़ यह बिहार ,कर्नाटक ,उडीसा और आन्ध्रप्रदेश का राज्य पक्षी है .
आज नीलकंठ देखकर अपना दिन शुभ कीजिये मगर इसके संरक्षण में भी आप भी कुछ भूमिका निभा सकें तब बात बने
21 comments:
दर्शन के लिए धन्यवाद .....मगर क्या और कैसे किया जा सकता है ....इस पर और जानकारी अपेक्षित है !!
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
मैं तो भूल ही गया था कि विजयादशमी के दिन इस पक्षी का दर्शन करना शुभ माना जाता है।
आप के जरिए फिर उन यादों को ताजा करने का मौका मिला।
वैसे भी इस महानगरी में इस पक्षी के दर्शन तो होने से रहे :)
मित्रों ,यह चित्र इसलिए ही यहाँ दिया गया है ताकि आप अपने नेत्रों को धन्य कर सकें ,और दर्शन का पुण्य ले सकें -महानगरों में ही नहीं इसकी संख्या अब कस्बों गाँवों में कमतर हो चली है -हाँ अभी फिलहाल विलुप्ति का कोई तात्कालिक खतरा नहीं है !
मान सहित विष खाय के शंभु भयो जगदीश।
बिना मान अमृत पिये राहु कटायो शीश ॥
नीलकंठ का यही संदेश है।
आपने ही दर्शन करा दिया।
शीर्षक देख के चौंक गया कि यह पोस्ट डॉ अरविन्द मिश्र की है ? मगर पूरी पोस्ट पढ़ा और आपकी विविधता पसंद आई !
नीलकंठ को देखना शुभ मानते थे हम बचपन में, आज बरसों बीत गए नीलकंठ को देखे बिना ! हम लोग सामान्य जीवों के प्रति इतने निष्ठुर हैं कि एक आध पक्षी कम हो गया या विलुप्त हो जाए, हम ज्ञानियों को कोई कष्ट नहीं होता !
गिद्ध, गौरया , तोते और यहाँ तक कि कौए भी आज कहीं दिखाई नहीं पड़ते ! प्राकृतिक वातावरण में आये बदलाव के लिए हम अपने योगदान पर कभी खेद व्यक्त नहीं करते !
सादर
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई
शीर्षक देख के चौंक गया कि यह पोस्ट डॉ अरविन्द मिश्र की है ?
वो ही सही है जो आप ने पहले सोचा ....
ये है विज्ञान के सौदागर
जिसे बेचते ये है
,@ अनाम भाई या बहन ,
आपके सम्बोधन से ही लग गया कि आप मेरे हितैषी हैं ......आपका धन्यवाद जो अनाम बनकर भी मेरी आँखें खोलने यहाँ आये !
आपकी ही बात ठीक लगती है मेरे जैसे नासमझ लोग ब्लाग जगत के लिए एकदम बेकार हैं ! पहली लाइन मैं ठीक मान लेता हूँ, मगर दूसरी समझ नहीं आयी कृपया बताएं डॉ अरविन्द मिश्र क्या बेचते हैं ??
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें। इस सुन्दर पक्षी नीलकंठ के दर्शन हुए अच्छा लगा , वास्तव में देखे हुए तो वर्षो बीत गये हैं.
regards
एक दिन देर से ही सही ..नीलकंठ के दर्शन किये ...
आभार !
सतीश भाई ,आपने सही बात की है ,अब बताएं अनाम भाई,बहना !
"मित्रों ,यह चित्र इसलिए ही यहाँ दिया गया है ताकि आप अपने नेत्रों को धन्य कर सकें ,और दर्शन का पुण्य ले सकें ......
हा ...हा....हा.... हा......
अरविन्द भाई दशहरा पर दर्शन कराने के लिए धन्यवाद :-(((((((
आपको धन्यवाद देना भूल गया था अतः बापस आया हूँ ...आपको नीलकंठ मिलें या न मिले उल्लू तो हर जगह हैं ...??? जय हो जय हो ....यह पोस्ट पढ़ अपने बाल नोचने का दिल करता है
darshan karane hetu aabhar!
nice post!!!
regards,
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
साईब्लाग [sciblog]
का नाम बदल कर
साईं बाबा ब्लॉग कर ले या sainbabablog
और साईं बाबा की फोटो लगा ले
@उल्लू तो हर जगह हैं ...??? जय हो जय हो ....यह पोस्ट पढ़ अपने बाल नोचने का दिल करता है
खिसियानी बिल्ली बाल नोचे हाहाहा
अब इस ब्लॉग से हमे ये ही उम्मीद है दीवाली पर कोनसा पक्षी पुण्य देगा
जल्दी बताना ??
@बेनामी भाई /बहना अच्छा याद कराया आपने -दीप पर्व पर आपका आह्वान जरुर
अब क्या करोगे पंडित जी ... गोस्वामी जी की शरण चलें ! पुण्य देने वाले पक्षी से पहले, खल वंदना ठीक रहेगी ...
और समय दीप पर्व से बेहतर क्या होगा :-)) मेरे जैसा मंद-बुद्धि भक्त गुरुजनों की मदद करने में इतना ही प्रयत्न कर सकता है !
टिप्पणियां तो 'जन-संसद' हैं. कहा जाता है कि फ्रांसीसी भी भारतीयों की तरह न सिर्फ विवाद देखने सुनने में रुचि लेते हैं, बल्कि पक्ष बन कर शामिल भी हो जाते हैं. खैर..., नीलकंठ के कंठ पर तो नीला रंग नहीं होता न.
देर से आयी चलो आज का दिन तो शुभ कर ही लिया। धन्यवाद। अगर रोज़ इन्हें देखने से दिन शुभ होता है तो रोज़ आ जाया करूँ? धन्यवाद।
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