इन दिनों पेटा- 'पीपल फार द एथिकल ट्रीटमेंट्स ऑफ़ एनिमल्स ' जीव जंतुओं के प्रति मानवीय सहानुभूति को जुटाने में एक रायशुमारी में लागा हुआ है -मेरे पास भी उनकी चिट्ठी आई है .दुनिया भर में वैज्ञानिक प्रयोगों के नाम पर ,सौन्दर्य प्रसाधनों की जाँच के नाम पर और शिकार की प्रवृत्ति के शमन हेतु जानवरों पर आज के कथित सभ्य मनुष्य द्वारा भी कम जोर जुल्म नहीं ढाए जा रहे हैं .ब्रिटेन में लोमड़ी का शिकार ,जापान द्वारा व्हेल , औए सील जैसे स्तनपोषियों का कत्ले आम ऐसी ही नृशंस घटनाएँ हैं .आज भी काम काज के सिलसिले पर जानवरों के प्रति सहानुभूति न दिखाकर उनसे अमानवीयता की बर्बर सीमा तक जाकर कार्य लिया जाता है -बैलगाड़ियों और भैसागाडियों को देखकर आपको ऐसा जरूर लगा होगा.
कई लोग देखा देखी जानवरों को पाल तो लेते हैं मगर उनका ध्यान नहीं रखते ..कई पालतू कुत्ते भी बदहाली की दशा में दिखते हैं .यह तो अच्छा हुआ कि अब ज्यादातर बंदूकों की जगह जानवरों को कैमरों से शूट किया जा रहा है मगर फिर भी इनके प्रति जन जागरूकता और सहानुभूति के लिए पता निरंतर प्रयास में जुटी एक वैश्विक चैरिटी संस्थान है .मैंने इसका सदस्य बनने का निर्णय लिया है और एक हजार रुपये की दान राशि इन्हें भेज रहा हूँ -इसके एवज में ये अपनी पत्रिका की एक वर्ष की सदस्यता भी देंगें .
मेरी सिफारिश है आप भी इस अभियान से जुड़े और जानवरों के प्रति सहानुभूति का जज्बा कायम करने में अपना सहयोग दें! मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि पेटा द्वारा जानवरों के प्रति नैतिकता की दुहाई को लेकर ऐसे चित्रों का प्रमोशन कही आपत्तिजनक तो नहीं ?
10 comments:
पता नहीं क्या प्रमोट किया जा रहा है ?
ये तो इन्सान के रूप में छुपे भेड़ियों को प्रमोट किया जा रहा है ,जानवरों को पालने का ढोंग करने वाले ज्यादातर लोग इंसानी जज्बात से कोसों दूर होते हैं ,यह गंभीर शोध का विषय है जिस पे हर इन्सान को शोध करना चाहिए /
ऐसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
अरविन्द जी , एक बात कहूँगा, बुरा मानोगे तो मान लेना :) हम लोग सिर्फ १००० रूपये मैगजीन के तौर पर चन्दा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री क्यों समझ लेते है, अगर सच में हम इस विषय पर गंभीर हैं तो ? बजाय ऐसा करने के आप सड़क पर किसी बग्गी-भैसे के ऊपर कड़ी धुप में लाठियां बरसाते बग्गी वाले को रोककर ये कहते कि भैया मैं तुझे १०० रूपये दूंगा मगर तू इस भैंसे को घर तक बिना मारे ले जाएगा ! इसी तरह करीब दस भैसे इस चिलचिलाती गर्मी में मार से बच सकती थी, उस हजार रूपये से !
गोदियाल जी आपका विचार /सलाह काबिले गौर है शुक्रिया !
अर्विंद जी यह युरोपियान देखने मे जेसे होते है वेसे है नही, यह तो पत्रिका का प्रचार ओर नग्न माडल का प्रचार, ओर जो पेसा आ गया मुफ़त मै,बाकी गोदियाल साहब से बिलकुल सही कहा.
धन्यवाद
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"मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि पेटा द्वारा जानवरों के प्रति नैतिकता की दुहाई को लेकर ऐसे चित्रों का प्रमोशन कही आपत्तिजनक तो नहीं ?"
दो बातें हैं देव...
१- प्रमोशन चित्र का नहीं बल्कि PETA के जानवरों के प्रति मानवीय व नैतिक रवैया रखने के उद्देश्य का हो रहा है ।
२- चित्र में आपत्तिजनक क्या है ? चित्र देखा, लिखा है:-
Don't get taken for a ride
HORSE DRIVEN CARTS ARE CRUEL
आपत्तिजनक क्या है...मॉडल, अश्व या संदेश...स्पष्ट करें .... ;)
मुझे तो सब सुंदर ही सुंदर लगा।
ghoda nakli hai baalaa asli hai,
ho sakta hai meri bhool ho,
mujhe aisa laga !
Jai Ho Maharaaj....
@praveen shaah ji
आपके इसी प्रेक्षनीय दृष्टि का को तो कायल हूँ आर्य
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