Monday, 8 March 2010

नर नारी समानता का आख़िरी पाठ

हमने अभी तक देखा कि गुफाकाल से ही नर नारी के कार्य विभाजनों में फर्क के बावजूद भी उनके बीच सामाजिक स्तर का कोई  फर्क नहीं था बल्कि पुरुषों की तुलना में नारियां एक समय में एक  साथ ही कई कामों का कुशलता से संचालन करती थीं और उनकी यह क्षमता आज भी विद्यमान है. जबकि अमूमन पुरुष एक समय में किसी एक मुख्य कार्य में ही ध्यानस्थ हो जाता है जो उसके प्राचीन काल की आखेटक प्रक्रति /प्रवृत्ति की ही जीनिक अभिव्यक्ति -शेष है. प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में में नर और नारी को तब के कबीलाई समाजों में बराबर का स्थान था बल्कि कहीं कहीं नारी ज्यादा प्रभावी रोल में थी -ईश्वरीय शक्ति से युक्त भी क्योकि वह सृष्टि -सर्जक थी -प्रजनन और संतति संवहन की मुख्य अधिष्ठात्री -यही कारण था कि पहले के कितने समाज मातृसत्तात्मक भी थे-नारियों की तूती बोलती थी और यहाँ तक कि  ईश्वर का  आदि स्वरुप भी खुद ममत्व का ,नारी का ही था -आदि शक्ति रूपी देवियाँ पहले प्रादुर्भाव में आयीं -अगर हम खुद अपने सैन्धव सभ्यता की बात करें तो भी यही इंगित होता है कि तत्कालीन समाज में नारी का स्थान ऊंचा था और आर्यों से पराजित और पुरुषों का समूह संसार होने के बाद  आर्यों द्वारा पोषित वैदिक संस्कृति में भी नारी पूर्व की ही भांति प्रतिष्ठित  बनी रही -वैदिक काल की अनेक ऋषि पत्नियों का सम्मान जनक उल्लेख हमें इसकी याद दिलाता है -यहाँ विस्तार विषय से विचलन हो जायेगा .. अस्तु ...मगर कालांतर में स्थितियां बदलीं और तेजी से बदलती रहीं.

नर नारी की समानता का संतुलन तब डगमगाता गया जब मानव जनसंख्या तेजी से बढी ,नगर और कस्बे  बढ़ते  चले गए और कबीलाई मानव नागरिक बनने लग गया -मानवीय संदर्भ में एक नए सांस्कृतिक विकास की देंन -धर्म (रेलिजन ) के बढ़ते प्रभावों ने अब कई विकृतियों को जन्म देना शुरू किया -नागरीकरण और धर्म के मिलेजुले अजीब सम्बन्धों ने आदि शक्ति स्वरूपा देवियाँ को विस्थापित कर देव -देवताओं को केंद्र में लाना शुरू किया -ममत्व की जीवंत मूर्तियाँ अब अधिकारवादी पुरुष देवों में बदलती गयीं -स्त्रीलिंग ईश्वर अब पुल्लिंग बन गया था! आदर्श हिन्दू जीवन शैली जो आज भी सैन्धव और आर्य संस्कृति का समन्वय किये  हुए  है आदि शक्ति रूपी देवियों और आदि देवों के बीच समान  साहचर्य ,समान श्रद्धा की ही पोषक बनी हुई है,किन्तु धर्म के सैद्धांतिक -कर्मकांडी स्वरुप में ही, व्यवहार में स्थिति बदल चुकी है .

लगता है  प्रतिशोधी पुरुष देवो ने पूरी दुनिया में ही अपने पवित्र प्रतिनिधियों के जरिये  कालांतर में और निरंतर भी खुद की धनाढ्य सत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए अपनी पद- प्रतिष्ठा और अनुयायी पुरुष जमात को उच्च  सामाजिक स्तर देने का सिलसिला जारी रखा रखा है -नारी की अस्मिता को भी दांव पर लगाते हुए जो उत्तरोत्तर निम्न से निम्नतर सामाजिक स्तर पर पहुँचती रही -उससे उसके  सामाजिक उच्चता का वैकासिक जन्मसिद्ध अधिकार भी पुरुष देवताओं के बढ़ते वर्चस्व से छिनता चला गया - दरअसल उसी वैकासिक जन्मसिद्ध अधिकार की पुनर्प्राप्ति के प्रयास के तौर पर नारीवादी आंदोलनों को पहले तो पश्चिम से और अब उचित ही पूर्व से समर्थन मिला है .वे आज अपनी "आदि शक्ति" रूपी  सामाजिक सम्मान  की वापसी के लिए संघर्षरत हैं -अधिकारों की मांग कर रही हैं .और यह जायज भी है कम से कम भारतीय मनीषा के लिए तो अवश्य ही! देर सवेर उन्हें यह प्राप्त होकर ही रहेगा .मगर इन आंदोलनों को सही परिप्रेक्ष्य और स्पष्ट लक्ष्य की ओर संचालित होना होगा .वे कुछ भी नया नहीं मांग रही हैं बल्कि वास्तविकता तो यही है कि वे अपनी उसी खोयी हुई प्रतिष्ठा और ताकत की पुनर्वापसी चाहती हैं जो उन्हें अपने आदिकाल की भूमिका में प्राप्त था -स्वप्न साकार होने लग गए हैं!

13 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया आलेख. आखिरी पाठ भी हो गया.

seema gupta said...

बहुत रोचक जानकारियां मिली इन आलेखों से...

regards

दिनेशराय द्विवेदी said...

डाक्टर साहब इस आलेख के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ। आप ने समाज में नारी और पुरुषों के बीच संबंधों को जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है वह बहुत लोगों को अपने विचारों में संशोधन के लिए प्रेरित करेगा।

रानीविशाल said...

यह सीरिज बहुत जोरदार थी ...आखरी अंक भी बहुत अच्छा लगा.
नारी सम्मान के लिए जताई गई मंशा बहुत अच्छी है. निसंदेह देर से ही सही लेकिन यह पूरी होकर रहेगी ...आलेख के लिए आभार !

Saleem Khan said...

अति सुन्दर !!!

महिला दिवस पर सभी ब्लॉगरों को "हमारी अन्जुमन" की तरफ़ से बहुत बहुत बधाई !!!

Saleem Khan
Founder, Hamari Anjuman

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छा लगा आलेख धन्यवाद्

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छा लगा

mukti said...

जब हम कहते हैं, तो झगड़ा करते हैं आप. अब खुद ही कह रहे हैं. बड़े सयाने ! चित भी मेरी पट भी मेरी. वाह !!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

- " -
:)
69

Arvind Mishra said...

@गिरिजेश जी ये सबसे नीचे वाला चिह्न श्लील नहीं है और भारत में ज्यादा व्यवहार में भी नहीं -कुछ मुक्त लोग भले ही अपनाते हों -

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

यींग और यांग का आंकिक प्रतीक है यह।
नारी और पुरुष तत्त्वों का प्रतीक।
घूमती सममिति।

Arvind Mishra said...

@मैं समझा felatio !

Alpana Verma said...

आज भी उतर पूर्व की तरफ आदिवासियों में ऐसा देखने को मिलता है..जैसा आप ने बताया है.

**अच्छा और सुलझा हुआ लेख..
आप के इस ब्लॉग के लेख भी पढ़ते हैं लेकिन हर बार कमेन्ट क्या करें समझ नहीं आता.