Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Monday, 21 December 2009
अवतार के बहाने विज्ञान गल्प पर एक छोटी सी चर्चा !
विज्ञानं गल्प फिल्म अवतार इन दिनों पूरी दुनिया में धूम मचा रही है ! फ़िल्म भविष्य में अमेरिकी सेना द्वारा सूदूर पैन्डोरा ग्रह से एक बेशकीमती खनिज लाने के प्रयासों के बारे में है ! पूरी समीक्षा यहाँ पर है ! अमेरिका में अब यह बहस छिड़ गयी है कि यह फ़िल्म विज्ञान गल्प (साईंस फिक्शन या फैंटेसी )है भी या नहीं.मेरी राय में यह एक खूबसूरत विज्ञान फंतासी ही है और अद्भुत तरीके से हिन्दू मिथकों के कुछ विचारों और कल्पित दृश्यों से साम्य बनाती है!
दरअसल विज्ञान गल्प /फंतासी का हमारी समांनांतर दुनिया से कुछ ख़ास लेना देना नहीं होता ! हमारे परिचित चरित्र और चेहरे इन कथाओं में नहीं दिखते -क्योंकि अमूमन विज्ञान फंतासी भविष्य का चित्रण करती है -भविष्य की दुनिया ,वहां के लोग और वहां की प्रौद्योगिकी -या फिर धरती से अलग किस्म की किसी सभ्यता की कहानी! दिक्कत यह है कि जिस दुनिया या लोगों या तकनीक से लोग परिचित नहीं है उसे कैसे और किस तरह दिखाया जाय ! लोग इसलिए ही विज्ञान कथाओं के पात्रों से खुद को जोड़ नहीं पाते और ऊब उठते हैं ! विज्ञान कथाकार /फिल्मकार एक अजनबी से माहौल /परिवेश के चित्रण के साथ यह भी भरपूर कोशिश करता है कि वह दर्शकों को किसी न किसी बहाने रिझाये रहे -यह काम एक सशक्त कथा सूत्र पूरा करता है जिसमें प्रायः मानव और मानवता के ही गहरे सरोकार व्यक्त होते हैं -और मारधाड़ के दृश्य भी इनमें बतौर फार्मूले के डाले जाते हैं ताकि विनाश या युद्ध प्रेमी दर्शक लुत्फ़ ले सकें ! साथ ही एक होशियार विज्ञान कथाकार मनुष्य के जाने पहचाने विचार अवयवों को ख़ूबसूरती से मुख्य कथा की धारा में पिरोता चलता है ताकि दर्शक कथा से जुड़े रह सकें !
इसलिए अवतार में हिन्दू मिथक से अवतारों की अवधारणा ली गयी है -धरती पर अधर्म बढ़ने पर विष्णु अवतार लेते हैं -यह लोगों के मन में रचा बसा है-इसकी व्याख्या की जरूरत भी नहीं है यहाँ -यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ....तदात्मानं सृजाम्यहम ! रोचक बात यह है कि अवतार स्वयं में एक स्वतंत्र ईकाई होने के बावजूद भी मुख्य चेतना -विष्णु से सम्बद्ध होता है ! अवतार में भी पैन्डोरा के मूल निवासियों के बीच पहुँचने के लिए धरती के वैज्ञानिक एक अवतार का ही सृजन करते हैं! मगर तरीका खासा वैज्ञानिक है -तकनीक को व्याख्यायित किया गया है -जो मिथक और विज्ञान कथा के फर्क को दर्शाता है!
पैन्डोरा ग्रह के वासियों के बीच रहने और उनका विश्वास हासिल करने के लिए उनकी जोड़ के डी एन ये से मानव के डी एन ये का मिलान कर -और मूल मनुष्य के मष्तिष्क को पैन्डोरा वासी से ही दिखने वाले प्रतिकृति में "डाउनलोड़" कर अवतार रूपी नायक का सृजन करके नए ग्रह -वातावरण में उतार देते है -वहां लोग इस "आसमानी सभ्यता " के प्रतिनिधि को स्वीकार कर लेते हैं और आगे चलकर वही उनका मुखिया बनता है और आसन्न विपत्ति से उन्हें छुटकारा दिलाता है ! कृष्ण भी तो हूबहू यही करते हैं -वे कहीं कहीं तीसी के फूल की सी निलीमा लिए दिखते हैं -पैन्डोरा वासी भी नीले लोग हैं ! वहां के लोगों की पूंछे हैं -हिन्दू मिथकों में एक पूंछ से सारी लंका जला दी गयी है ! हिंदूओ मिथक कथाओं में गरुण तो विष्णु के वाहन हैं -पैन्डोरा वासी और उनका मुखिया अवतार भी एक भव्य गरुनाकार पक्षी पर सवारी करत्ता है -वहां विचित्र से घोड़े हैं ! विष्णु का आगामी अवतार भी घोड़े पर चढा हुआ दिखाया गया है ! लगता है अवतार फ़िल्म की अनेक दृश्यावलियों को सीधे सीधे हिन्दू मिथकों से उड़ा लिया गया है ! अब एक अजनबी ग्रह के वासियों और प्राणियों को फिल्मकार दिखाए भी तो कैसे -हिन्दू मिथक आखिर कब काम आयेगें ?
आधुनिक विज्ञान कथा साहित्य का हिन्दू मिथकों से यह समन्वय काफी रोचक है -फ़िल्म देखकर आईये फिर और चर्चा होगी!
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8 comments:
बहुत अच्छी जानकारी है देखते हैं कब देख पाते हैं। धन्यवाद्
अवतार फिल्म कि यह चर्चा बहुत अच्छी लगी... मैं आज ही सोच रहा हूँ सुबह से यह फिल्म देखने के लिए.... बताइए.... मेरा PVR में टिकट भी नहीं लगता है.... फिर भी मैंने आज तक PVR में कोई फिल्म नहीं देखि.... पर आज सोच रहा हूँ सुबह से.... कि अवतार देखूं.... अब हिंदी फिल्म तो देखने का मन ही नहीं करता है.... जब कोई हिंदी फिल्म देखो तो यही लगता है कि अरे! इस फिल्म को तो मैं पहले ही HBO, AXN, या फिर STAR MOVIES पे देख चुका हूँ..... इसीलिए हॉल में जाने का मन नहीं करता है..... पर यह अवतार मैं देखूँगा...... अगर आपका लखनऊ आने का कोई प्रोग्राम है ...तो बताइए.... सब लोग साथ ही देखेंगे...... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट.....
हम भी देख आये फिल्म चश्मा लगाके थ्रीडी :)
सुझाव अच्छा है, घरवाली से पूछते हैं. जायेगी तो हम भी जायेंगे.:)
रामराम,
आपके विचारों से पूरी तरह सहमत।
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मानवता के नाम सलीम खान का पत्र।
इतनी आसान पहेली है, इसे तो आप बूझ ही लेंगे।
Sundar vivechna ki aapne....
Mera beta to yah film dekhne ko itna bechain hai ki iske liye yahan se kolkata jaane ki jid machahye hue hai....
Aapke is vivran ko padh meri utsukta bhi badh gayi...
देख के आते हैं इस तरह से विषय वैसे ही रोचकता लिए होते हैं ..शुक्रिया
जानकारी बढ़िया लगी..देखने का प्लान है जल्दी ही.
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