विश्वप्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका टाईम(अक्टूबर ६ ,२००९) का यह ताजातरीन लेख महिला सेक्सुअलिटी में रूचि रखने वालो /वालियों के लिए रोचक हो सकता है ! एलायिसा फेतिनी द्बारा लिखा 'व्हाई वीमेन हैव सेक्स " शीर्षक यह लेख हो सकता है यौन कुंठाओं वाले एक बड़े भू भाग के भारतीय उपमहाद्वीप का प्रतिनिधि चित्रण न करता हो मगर एक प्रजाति के रूप में मनुष्य की सहचरी के गोपन व्यवहार का कुछ सीमा तक अनावरण करता ही है ! नैतिक मान्यताओं को लेकर आज बहुत कुछ अस्पष्ट और संभ्रमित भारतीय मानस भले ही ऐसे अध्ययनों से प्रत्यक्षतः दूरी बनाए रखना चाहता हो मगर ऐसे अध्ययनों के अकादमीय महत्व को सिरे से नकारा नहीं जा सकता !
टेक्सास विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी द्वय सिंडी मेस्टन और डेविड बस ने दुनिया भर से १००० के ऊपर महिलाओं को इस अध्ययन के लिए चुना और नतीजों को पुस्तकाकार रूप भी दे दिया है -उन्होंने २३७ कारण गिनाएं है की क्यों महिलायें यौन संसर्ग करती हैं /राजी होती हैं ! सबसे आश्चर्यजनक है की महज उदाद्त्त प्रेम ही यौन सम्बन्ध बनाने का अकेला सहज कारण कम मामलों में पाया गया ! टाइम ने यौन विषयक अध्येताओं का साक्षात्कार भी छापा है ! सार संक्षेप यहाँ प्रस्तुत है -विषय की समग्र समझ के लिए उक्त लेख और सम्बन्धित कड़ियों के अनुशीलन की सिफारिश की जाती है !
नर - नारी यौन सम्बन्धों के पीछे शारीरिक आकर्षण ,सुखानुभूति (चरम आनंद !) की चाह या प्रेमाकर्षण /अनुरक्त्तता जैसे अनेक कारण हो सकते हैं ,मगर नारी यौनोंन्मुखता के पीछे भावात्मक लगाव की भूमिका रेखांकित की गयी है ! नारी, पुरुष से कहीं अधिक ऐसे मामलों में यौन सम्बन्ध की आकांक्षी हो उठती है जहाँ मानसिक /भावात्मक जुडाव महसूस करती है ! जबकि पुरुष प्रकृति वश अवसर की ताक में भी रहता है ! नारियां छोटे अवधि के सांयोगिक संबंधो को लेकर खास तौर पर सतर्क और "चूजी " होती हैं ! पुरुष की यौन सम्बन्धों की चाह के पीछे सहकर्मियों में अपने स्टेटस को ऊंचा उठाने की भी मनोवृत्ति जहां आम तौर पर देखी गयी है इस अध्ययन में कुछ नारियों को भी इसी मानसिकता के वशीभूत पाया गया है !
नारियां यौन सम्ब्न्धोन्मुख कब और क्यों होती हैं के जवाब में अध्येताओं का कहना है कि उनमें भी यह चाह लैंगिक आकर्षण ,भौतिक सुख,प्रेम के प्रागट्य और किसी के प्रति लगाव की अभिव्यक्ति या उद्दीपित होने पर आवेग के शमन के लिए भी हो सकता है ! या फिर यह आत्म गौरव या यौन गौरव (सेल्फ एस्टीम या सेक्स एस्टीम ) को ऊंचा उठाने ,लचीले सहचर को खुद तक आसक्त बनाए रखने की युक्ति और कुछ मामलों में तो महज सर दर्द को दूर करने के उपाय (हाँ, यह कारगर है !) के रूप में यौन सम्बन्ध की अभिमुखता देखी गयी है ! अध्येता द्वय ने कामक्रीड़ा की आर्थिकी पर भी एक भरा पूरा अध्याय लिख मारा है जिसमें प्रतिदान (और प्रतिशोध की भी ! ) भावना लिए नारियों के यौन संसर्ग वर्णित हुए हैं ! कोई काम करने के लिए -भले ही वह घर के कूड़े की सफाई में सहयोग (याद आयी दीवाली ? ) ,रात्रिभोज का पक्का इंतजाम या फिर महंगे (स्वर्ण ) उपहार को यौन संसर्ग से हासिल करने की भी जुगत इस्तेमाल में है ! पुस्तक का एक अध्याय नारी यौन सम्बन्धों के काले अध्याय पर भी है जहां वे धोखे का शिकार होती है ,छली जाती है और बलपूर्वक यौन कर्म में संयुक्त कर ली जाती है !
अध्ययन की एक चौकाने वाली जानकारी यह रही कि महिलाओं ने कहीं कहीं सेक्स सम्बन्ध महज प्रतिशोध के लिए बनाए -धोखेबाज प्रेमी को यौन जनित रोगों का 'उपहार " अपनी सहेलियों के जरिये या फिर ईर्ष्यावश सहेली के पहले से ही 'इंगेज्ड ' पार्टनर को कामपाश में बाँधने (मेट पोचिंग ) को भी बखूबी अंजाम दिया गया ! इस घटना को अंजाम देने वाली रोमान्चिताओं ने जहाँ यह स्व -कृत्य बखाना वहीं इससे पीड़ित नारियों ने भी अपना दुखडा भी रोया ! मैं इन दिनों खुद अंतर्जाल पर मेट हंटिंग (सावधान :नामकरण का कापीराईट मेरा है ) के एक रोचक यौन व्यवहार के अध्ययन में लगा हूँ ! नतीजा तो शायद गोपन ही रह जाय !
नारी यौनोंन्मुखता के पीछे बकौल डार्विन "फीमेल च्वायस " की बड़ी भूमिका है और यह आज भी सही है ! आज की आधुनिका भी लाख डेढ़ लाख पहले की उसी आदि अफ्रीकी महिला की ही अविछिन्न वंशज है जिसने अपने निर्णय में कोई चूक नहीं की थी और सही पुरुष पुरातन के चयन से हमारी वंश बेलि का मार्ग प्रशस्त कर दिया था -एक लैंगिक निर्णय की सफल महिला की सफल जैवीय दास्ताँ है मानव विकास ! आज उसी महिला महान की वंशधर नारियां वैसी ही यौन मानसिकता /मनोविज्ञान -पुरातन ज्ञान का वरण किये हुए हैं जिसका जीवनीय मूल्य है ! उनका यौन चयन आज भी व्यापक मामलों में बेहतर उत्तरजीविता और प्रजनन सफलताओं की गारंटी है !
और यह हकीकत है कि लैंगिक प्रतिस्पर्धा के जैवीय परिप्रेक्ष्य में "वरणीय नर " जल्दी ही प्रणय आबद्ध हो इंगेज्ड हो उठते हैं -कोई न कोई उनकी अंकशायिनी बन ही जाती हैं -इस मानवता के परचम को भी तो बुलंद किये रहना है मेरे भाई ! सुयोग्य वर की तलाश इसलिए ही सदैव मुश्किल रहती है -योग्यतम जल्दी चुन जो लिए जाते हैं - कहीं न कहीं प्रणय पाश में बध ही जाते हैं. प्रेम या योजित किसी भी तरह के सम्बन्ध में ! इसतरह योग्य पुरुष के लिए आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, नारियों में मनचाहे पुरुष चयन की प्रतिस्पर्धा जारी है !
पूरी किताब भले न मिल सके इस पूरे आलेख का आस्वादन यहाँ मय समस्त कड़ियों और नयनाभिराम चित्रों के किया ही जा सकता है -मेरी सिफारिश है !
22 comments:
रोचक!
आपकी सिफारिश पर ध्यान दिया जा रहा है :-)
बी एस पाबला
रोचक है, एक अच्छा आलेख पढ़वाया आपने।
237 कारण कम ही लगते हैं अगर ज्यादा नारियों पर सर्वे किया जाता तो हो सकता है आगे एक शून्य और बड़ जाता।
एक पुरानी कहावत है।
"स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य कोई नहीं जान सकता"
आप भी कहां कहां से ढुंढ लाते हैं ऐसी खोजपरक खबरें?
रामराम.
नेति..नेति..
चरैवेति..चरैवेति...
time magazine hum padh pate aisa nahin lagta parantu aapke madhyam se nai jankariyan mili, dhanywad. aapne sar sankshep mein kafi jankari dedi.
रोचक.
बहुत रोचक .
धन्यवाद
कुछ अदभुत बातें खुलकर सामने आई हैं। पर आश्चर्य का विषय यह है कि इस पर किसी नारीवादी ने कोई आपत्ति नहीं उठाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
तमगा लेकर ही मानेंगे !
गोबर पट्टी में रहते हुए ऐसी बातें !!
लोग लुगाई नाराज हो जाएँगे
राम राम।
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स्त्री पुरुष सम्बन्धों से रहस्यों के आवरण हटने ही चाहिए - बहुत कचरा भरा है समाज में।
KYA AISA AB HAMAARE DESH MEN BHI HOTA HAI?
टाइम जैसी पत्रिकाओं में इस तरह के लेख पहले भी आते रहे हैं । यह सामान्यत: उच्च वर्ग के स्त्री-पुरुषो पर किये गये सर्वेक्षण पर आधारित होते है जब कि यह विषय मनुष्य जाति के हर वर्ग से सम्बन्धित है। हो सकता है झोपड़पट्टी मे या आदिवासी क्षेत्रों में जाकर इस विषय पर काम किया जाये तो कुछ और परिणाम मिले । बहर हाल इस विषय को पाठकों तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद ।
आपने एक रोचक विषय उठाया है, कम से कम पुरूषों के लिए तो है ही।
पुरूषप्रधान समाज की मानसिकता इसे ऐसे ही रूप में लेने को अभिशप्त है, जैसा कि विवेक और जाकिर भाई की टिप्पणियों से जाहिर होता है। भले ही यह आपका मंतव्य रहा हो या नहीं।
इसलिए समझदारी का तकाज़ा कहता है कि प्रस्तुति और विश्लेषण का तरीका ऐसा होना चाहिए कि यह सिर्फ़ प्रचलित मानसिकताओं की सनसनीखेज़ तुष्टि का जरिया भर बन कर ना रह जाएं बल्कि एक सहिष्णु यथार्थ समझ की सही दिशा की राह प्रशस्त करता हो।
शरद कोकास एक गंभीर इशारा जरूर कर रहे हैं पर वहां भी यौन संबंधों का हथियारगत इस्तेमाल अवश्य ही मिलेगा।
पुरूष प्रधान समाज में स्त्री के अधिकार सीमित हैं। स्त्री पुरूष के लिए संपत्ति है और इसके अनुरूप ही भोग्या सामग्री। उसके लिए यौन संबंध यौन तुष्टि के साथ-साथ अपनी सत्ता के प्रस्फुटिकरण और प्रदर्शन का साधन भी हैं। इसीलिए वह यौन संबंधों के लिए अवसरवादी है और अपनी सत्ता और स्त्री की निर्भरता के चलते अवसरों की संभावनाएं भी खूब रखता है।
इस सारे जंजाल में स्त्री व्यक्तित्व की आधिकारिक उपस्थिति कहीं भी अभिव्यक्त नहीं होती। इसीलिए वह वह बराबरी के, प्रेम के, भावनात्मक संबंधों के अवसरों के लिए हमेशा प्रतीक्षारत रहती है।
स्त्री के व्यक्तित्व का यही खालीपन, लंपट पुरूषों के लिए और अधिक अवसर उपलब्ध कराता है। और फिर धोखा, छल, मोहभंग जैसी अवस्थाओं की परिणति अस्तित्व में आती हैं।
स्त्री केवल यौन तुष्टि के उपकरण के रूप में अपनी पुरजोर उपस्थिति दर्ज़ कर पाती है। पुरूष जब कभी भावुकता में भी होता है तो इसकी परिणति यौन संबंध तक खींच ले ही जाता है।
कुलमिलाकर लाबलुब्बेआब यह कि सामान्यतया स्त्री के लिए पुरूष की यह यौन जरूरत और उसकी पूर्ति के लिए स्त्री की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता उसके लिए एक हथियार की तरह उभरने की संभावना पैदा करती है जिसका कि इस्तेमाल तात्कालिक रूप से अपना मनोइच्छित प्राप्त करने में किया जा सकता है।
इसी की अभिव्यक्ति, जैसा कि इस आलेख में जिक्र है, भौतिक वस्तुओ, उसके क्रियाकलापों में सहायता और भावनात्मक संतुष्टि को यौन संबंधों के जरिए प्राप्त करने के रूप में होती है।
जहां बराबरी के से संबंधों की उपस्थिति होती है, वहां फिर भी इनके पृष्ठभूमि में होने की संभावनाएं हो सकती हैं।
मनुष्य की यौन संबंधों की सहज और प्राकृतिक जरूरत इसी व्यवस्थागत रूप के चलते विकृतियों के लिए अभिशप्त है।
०००००
आप इनको विमर्श के केन्द्र में लाने का जो महती प्रयास कर रहे हैं, वह सराहनीय है।
इस विमर्श को एक सचेत और सही दिशा देने की जरूरत तो आज के सामाजिक परिदृश्य में है ही।
इस हेतु आपका शुक्रिया।
@ समय
विषय और उसके निहितार्थों की आपकी समझ और भाष्य प्रभावित करते हैं !
बहुत आभार !
रोचक विषय..
kaafi achhi pahel ki hai aap ne ....
roochak jaankaari............
वाह दादा... बढ़िया आलेख... आपकी सिफारिश पर आज रात को ध्यान देंगें..
मगर नारी यौनोंन्मुखता के पीछे भावात्मक लगाव की भूमिका रेखांकित की गयी है ! नारी, पुरुष से कहीं अधिक ऐसे मामलों में यौन सम्बन्ध की आकांक्षी हो उठती है जहाँ मानसिक /भावात्मक जुडाव महसूस करती है !
Naree ka maanisk judaav hamesha bahut maayne rakhta hai
Samay ji
इस सारे जंजाल में स्त्री व्यक्तित्व की आधिकारिक उपस्थिति कहीं भी अभिव्यक्त नहीं होती। इसीलिए वह वह बराबरी के, प्रेम के, भावनात्मक संबंधों के अवसरों के लिए हमेशा प्रतीक्षारत रहती है।
aapne bhi bahut sahi baat kahi hai
मिश्र सर, मुझे दिमाग को चकरा देने वाली क्वांटम भौतिकी के बारे में पढना बहुत अच्छा लगता है. हिंदी में इस विषय पर अधिक पढने को नहीं मिलता. क्यों न प्राचीन भारतीय ऋषियों के तत्व चिंतन और अरस्तु आदि के पदार्थ सम्बंधित विचारों से लेकर नाभिकीय कणों की खोज और वर्तमान सुपरस्ट्रिंग थ्योरी को समेटनेवाली एक श्रृंखला को इस ब्लौग में स्थान दिया जाय.
भाई साहिब इस पूरे आलेख के शीर्षक का एक ही सीधा सादा उत्तर है पुरुषों के उकसाने पर
कोई नई खोज नहीं है, शरद कोकास ने सही कहा इस पर विचार करें। यह मानव-विविधता विग्यान की बात है कोई भी वैग्यानिक-सीमित अन्वेषण खोज कोई नियम नहीं बना सकती।
----हरि अनंत हरि कथा अनंता की भांति मानव व्यवहार अनंत है और सच कहा--नारी को ब्रहमा भी न जान पाया, मानव की क्या औकात ।
बहुत रोचक एवं ट्राफिक खेंचू पोस्ट है |
यह अनेक बार सुस्थापित किया जा चुका है कि छोटे-छोटे प्राणियों से आधुनिक मानव तक काम सम्बन्ध बनाने में स्त्री यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह किस पात्र से यौन संबंधों के परिणामस्वरूप स्वस्थ और सबल संतान को जन्म दे पायेगी इसी प्रकार पुरुष भी संभावित काम सखी में यह देख लेना चाहता है कि क्या वह गर्भ धारण और संतानोत्पत्ति हेतु सुपात्र और सक्षम है ?
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