कमीने इश्क के बाद जो कुछ और सामग्री इस बहुप्रिय विषय पर मेरे खलीते में थी उसे रिसायिकिल बिन में डाल दिया था ,मगर आज फिर उस बिन को खलिया कर निकाल लाया हूँ -अब चिट्ठे पर भी कभी कभार कुछ कचरा नहीं आयेगा तो फिर कैसे श्रेष्ठ रचनाओं की तुलनात्मक साख बनेगी ! लिहाजा इश्क ,प्रेम ,वासना ,यौनाकर्षण जो भी कह लें आप , पर कुछ और जानकारी लेकर बन्दा हाजिर है !
मगर पहले एक पाठ दुहराई हो जाय तो फिर मामला आगे बढे ! अब तक यह तय पाया गया कि कुदरत को इसकी तनिक भी परवाह नहीं कि हम लवेरिया या रोमांस के रस में कितना सरोबार और डूब उतरा रहे हैं ,उसका मकसद तो खास तौर पर यही रहता है कि उसकी जनन लीला बदस्तूर जारी रहे और प्रेम को समर्पित जोड़े (पेयर बांड ) संतानोत्पत्ति कर शिशुओं की देखभाल का भी जिम्मा साथ उठायें ! बस इसी काम को अंजाम देने को कुदरत ने ये सारे चोचले गढे हैं !
पुरुष स्वभावतः सुन्दर चेहरों का चहेता है -"हर हंसी चेहरे का मैं तलबगार हूँ " .यही नहीं वह भावी सहचर में उन घटकों /अवयवों की भी चेतन -अवचेतन तलाश करता है जो प्रजनन -उर्वरता की द्योतक हों . वह ऐसे स्पष्ट यौन संकेतकों की तलाश करता है जैसे पतली कमर और चौडे कूल्हे जो प्रजनन की उर्वरता का पावरफुल संकेत देते हैं ! इसी तरह नारियां भी चौडे और पुष्ट कंधे ,चौड़ी छाती , कसी मुश्कों ,और भरी पूरी दाढी पर फिदा होती हैं -यह सारे लक्षण नर हारमोन के प्राबल्य को जताते हैं !
यौन गंध सूघने में मनुष्य की नाक भी कोई नीची नहीं है .साबित हो चुका है कि साथ साथ रहने वाली नारियों का मासिक चक्र मेल कर जाता है ! यह रासायनिक गंध संकेतो के जरिये ही संभव होता है ! पुरुषों का अवचेतन ही यह भाप लेता है कि अमुक नारी का अंडोत्सर्जन ( ओव्यूलेशन )कब हो जाता है, जिस समय निषेचन की सम्भावना सबसे अधिक होती है ! इस काल में पुरुष सहचर उसके प्रति बहुत केयरिंग ,याचनापूर्ण और चाँद सितारे तोड़ने का भी संकल्प लेने को उतारू दिखता है ! एक होता है मेजर हिस्टोकाम्पैटीबिलिटी फैक्टर ( एम् एच ऍफ़ ) जो यह क्ल्यू देता है कि प्रेमोन्मत जोड़े संतति वहन के योग्य हैं भी या नहीं ! इसका चूकिं गर्भ रक्षा से सीधा सम्बन्ध होता है और एक जैसे एम् एच ऍफ़ के रहते गर्भ रक्षा संभव नहीं है तो चुम्बन के समय लार के विनिमय से इसकी पहचान अवचेतन में ही जोड़े कर लेते हैं और समान होने पर प्रत्यक्षतः किसी न किसी बहाने से दूर होने लगते हैं !
हामरे कई सांस्कृतिक रीति रिवाजों में यौन वर्जनाओं के पीछे अनचाहे गर्भ और यौन जनित बीमारियों के रोक की ही कवायद होती है जो पुश्तैनी तौर पर चली आ रही हैं ! आज की आधुनिक जीवन शैली के "समागम पूर्व " व्यवहार -डेटिंग और पेटिंग भी जोडों की यौन उपयुक्तता की छान बीन के तरीके हैं जो उपयुक्त सहचर के चयन का मार्ग ही प्रशस्त करते हैं ! कुछ सच्चे जोडों के मस्तिष्क के अंदरूनी हिस्सों को फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजेस के जरिये देखा गया है जो अपनी सक्रियता के उच्च बिंदु पर जा पहुँचते हैं जिसमें डोपामाईन रसायन के प्रमुख भूमिका होती है ! सक्रियता के ये पहचान बिंदु वेंट्रल तैग्मेंटल एरिया में उभरते हैं -जिसकी आगे की प्रक्रिया को ऊपर का एक हिस्सा न्यूक्लियस अक्यूम्बेंस संभालता है जहाँ डोपामाइन के साथ अब सेरोटोनिन (यह केले में मिलता है -खूब खाईए केले मूड फ्रेश रहेगा ) भी आ मिलता है ! आगे स्नेह.वात्सल्य भावना का जिम्मा आक्सीटोसिन नमक हारमोन निभाता है ! बच्चों के जन्म पर भी इसी आक्सीटोसिन का निकलना अधिक रहता है जो माँ में ममत्व उभारता है ! यहाँ तक कि प्रसूति गृहों में सद्य प्रसूता के साथ की महिलाएं भी तीव्र ममत्व का अनुभव करती हैं -जाहिर हैं आक्सीटोसिन उनकी घ्राण इन्द्रिय को भी प्रभावित करता है !
ब्रेन का लव सिग्नल कौडेट न्यूक्लियाई में होता है जो दोनों ओर यानि जोड़े में होता है -प्रेम के भावातीत भाव को यही प्रेरित करता है ! इस तरह कई जैव रसायन (opioids ) जब सक्रिय होते हैं तब हम आप यह समझ लेते हैं किसी अमुक ने सुखद अनुभूतियों का पिटारा आपको सौंप दिया है जबकि यह खुद हमारा ही मस्तिष्क होता है जो हमें खुशियों की सौगात सौंपता
है !
अभी कुछ और है आगे ...
14 comments:
हमेशा की तरह वैज्ञानिक जानकारी को अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया है आप ने।
आपने तो उधेर कर रख दिया सबकुछ । चलिये हम भी समझ गये इस इश्क का राज । ये केमिकल्स जो न कराये ।
अजब है गंध ! हम आगे पढ़ कर ही कुछ और कहेंगे..
गजब की प्रविष्टियाँ । ऐसा होता साइंस का स्वरूप तो शायद साइंस का विद्यार्थी हुआ होता !
अरविन्द जी ,
रिसायिकिल बिन को ही डस्ट बिन भी कहा जाता है और वहाँ यूज मी लिखा होने का ये मतलब नही होता की उसमे से कुछ भी निकाल कर उसका प्रयोग कर लें, इसका मतलब होता है अगर आपके पास और भी कचरा है तो कृपया कर इसमें डाल आस पास के वातावरण को स्वच्छ रखने में योगदान दें न की सॉफ्ट पॉर्न लिख कर वातावरण प्रदूषित करें और ऐसा कर अपने को स्वच्छ मानसिक होने का परिचय दें|
जैसे आज ही कुछ लोगों को पता चला होगा की प्यार का नाम प्रेम, इश्क, मोहब्बत के अलावा वासना ,यौनाकर्षण और तो और इसे जो कुछ भी कह लें|
"वह ऐसे स्पष्ट यौन संकेतकों की तलाश करता है जैसे पतली कमर और चौडे कूल्हे जो प्रजनन की उर्वरता का पावरफुल संकेत देते हैं !"
वैसे तो इसके विना भी यह पोस्ट पूरी की जा सकती थी परन्तु जब आपने ये कचरा भी निकाल ही दिया है तो क्या वास्तव में प्रेम की शुरुआत इसी कचरे की समंदर से होती है ?
अरविन्द जी, प्रेम, प्रणय और यौन भावना का अर्थ शब्दकोष में भी भिन्न - भिन्न हैं|
क्या विज्ञान अपने सम्मान और प्रचार प्रसार के लिए श्रृंगारिकता की गली का भटियारा हो गया है अरविन्द जी? पोस्ट पढ़ कर सबसे पहले यही प्रश्न मस्तिष्क में आया.
"नारियां भी चौडे और पुष्ट कंधे ,चौड़ी छाती , कसी मुश्कों ,और भरी पूरी दाढी पर फिदा होती हैं -यह सारे लक्षण नर हारमोन के प्राबल्य को जताते हैं !"
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नर हारमोन के प्राबल्य का एक लक्षण तो "उजड़ा हुआ छप्पर" भी है. उसकी ओर कितनी नारियाँ आकर्षित होती होंगी? :-)
रोचक जानकारी. कठिन विषय को आसान बनाना आपको बखूबी आता है.
@लवली जी, संभवतः विज्ञान को आम जन तक पहुँचाने के फिराक में लोकप्रियकरण के चलते आपको इस आलेख में श्रृंगारिकता का समावेश लग सकता है ! मगर आप अगर इसी विषय पर विश्व प्रसिद्ध पापुलर पत्रकाएँ भी देखें -यहाँ इन्टरनेट पर भी तो आपको लगेगा की इस आलेख में उनकी तुलना में शतांश भी तथाकथित श्रिगारिकता नहीं है !
दरअसल हमारे परिवेश हमारे टेम्परामेंट को निर्मित करते हैं -जो सापेक्षिक है ! मैंने इस लेख के लिए ईमानदार प्रयास किया है फिर भी जब हम वस्तुनिष्ठता से विचलित होते हैं तो ऐसे आरोप भी लग ही सकते हैं -स्पष्ट कर दूं यहाँ निरा विज्ञान मत खोजिये -यह लोकप्रिय विज्ञान है !
Men see ample breasts and broad hips as indicators of a woman's ability to bear and nurse children--though most don't think about such matters so lucidly. आकाश राज जी ,
जिस अंश पर आपको आपत्ति है उसे टाईम पत्रिका के जनवरी १७ ,२००८ के अंक से लिया गया है और नीचे वैसे ही उधृत है !
यदि आप संस्कृत साहित्य में और लोक गाथाओं में नायिका वर्णनों को देखें तो यह उसके सामने कुछ नहीं है -दरअसल अश्लीलता के सापेक्षिक दृश्य नर मुंडों में अलग अलग उभरते हैं - आपका स्वागत है मुंडे मुंडे जायते तत्वबोधः !
मूल आलेख भी यहाँ से पढ़ लें !
जिस पर आज का वृत्तांत आधृत है !
"Women see a broad chest and shoulders as a sign of someone who can clobber a steady supply of meat and keep lions away from the cave. And while a hairy chest and a full beard have fallen out of favor in the waxed and buffed 21st century, they are historically--if unconsciously--seen as signs of healthy testosterone flow that gives rise to both fertility and strength."
@ वाह घोस्ट बस्टर जी आप दिनेश जी से चुहल बाजी करना कब छोडेगें ,हा हा हा ,उजडा हुआ छप्पर ! देखिये बात दाढी की हुयी थी !
हम तो चुपचाप सब पढेगे सभी टिपण्णीयां, लेकिन प्यार की भाषा मै यह सब कहां,चलिये शायद आज कल इसे ही प्यार कहते हो, हम ठहरे पुराने विचार के
पूर्वाग्रह ग्रस्त हो कर तो पौराणिक गाथाऒं से भी खूब अश्लीलता निकाली जा सकती है....
अरविंद जी के ब्लाग को जब से पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता रहा हूं, लेकिन इन आलेखों में कहीं भी पोर्न या साफ्टपोर्न ढूंढने के लिये पोर्न की कल्पना करनी पड़ेगी..... मैं शायद कर नहीं पाया.... हां सधी भाषा व बेबाकपन इनकी विशेषता है... खैर....
आपका यह ब्लाग अपने आप मे अनूठा है. इसकी जितनी तारीफ़ की जाये कम है. इतनी सटीक वैज्ञानिक जानकारी मिलती है कि बस आपको धन्यवाद देते देते ही मन नही थकता. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
प्यार को शायरों और दीवानों के फितूर से बाहर निकालकर वैज्ञानिक प्रयोगशाला में चीर-फाड़ करती इस पोस्ट पर कुछ लोग एतराज करने को आतुर दिख रहे हैं। यह इस नाजुक से शब्द के प्रति उनके भावुक पूर्वाग्रह को दिखाता है।
लेकिन एक नये दृष्टिकोण से किया गया यह विश्लेषण निश्चित ही स्वागतयोग्य है।
बोल्ड एण्ड ब्यूटीफुल... साधुवाद।
नासिका की गंध क्षमता बढाने के लिए केले का उपयोग अच्छा है लेकिन यह फल भी बड़ा मंहगा हो चला है आपके लेख पढ़ कर तो केला ही फलो का राजा बन जायेगा
ये केमिकल लोचा कभी कभी भारी पड़ने लगता है
रही बात गंध की तो वह तो क्षणिक ही होती होगी
हम तो इश्क़ की एक ही परिभाषा जानते हैं जानम तेरे प्यार में हम जाने क्या क्या भूल गए
तेरी आंखे याद रही पर तेरा चेहरा भूल गए
(सो अब गंध सूंघने की क्षमता पर भरोसा कर इश्क़ फरमाना रिस्की है मेरे भाई )
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