चिडियों में प्रायः नर ही ज्यादा चमकदार और तड़क भड़क पंखों - डैनो वाले होते हैं मादाएं अनाकर्षक ! ऐसा भला क्यों ?
जिन पक्षी प्रजातियों जैसे मोर में नर बहुसंगिनी (पाली गैमस ) सहवासी होता है उनमें मादाएं बहुत ही साधारण दिखने वाली होती हैं -वे ही अंडे देने ,सेने से लेकर बच्चों /चूजों की परवरिश का मुख्य जिम्मा संम्भालती हैं -नर जैसी बला की खूबसूरती उन्हें परभक्षी शिकारियों का शिकार बना सकती हैं और फिर संतति/वंश परम्परा भी खतरे में पड़ सकती है ! लिहाजा कुदरत ने उन्हें खूबसूरती नही बख्शी ! इन प्रजातियों में नर शिशुओं के लालन पालन का कोई जिम्मा नही संभालता -बस अपने सुंदर और भड़कीले रंगों हाव भाव से मादा को रिझाता है और रति प्रसंग को अंजाम देकर अपनी जैवीय जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है -अपने पर्ने याचन के दौरान यदि वह किसी परभक्षी का शिकार भी हो जाता है तो मानो उसी पल का इंतज़ार कर रहा उसका प्रतिद्वंद्वी नर हरम को संभाल लेता है !
आखिर जब तड़क भड़क रंग प्रतिरूपों से नर पक्षी को इतना खतरा है तो फिर कुदरत ने उसे इतना भड़कीला बनाया ही क्यों की वह परभक्षी शिकारी के आँख की किरकिरी बन जाय ? व्यव्हारविदों का कहना है कि दरअसल चमकीले पंख स्वस्थ और चुस्त -स्फूर्त नर के चयन में मादा को उकसाते हैं -इन्हे प्रणय याचन का शार्ट कट कहा जाता है -जो नर जितना ही अधिक चमकदार है वह उतना ही स्वस्थ है -मादाएं उसकी ओर उतनी ही सहजता से आकृष्ट होंगीं -पर यहीं खतरा भी है ! यह चमक और भड़कीलापन शिकारियों को भी उतनी ही सहजता से आकर्षित करता है -जीवन और मौत की यह लुकाछिपी प्रक्रति के आँगन में चलती रहती है !
मोरिनी को रिझाता मोर
कुछ एक संगिनी (मोनोगैमस ) प्रजाति के पक्षियों में भी नर आकर्षक होता है मगर यहाँ भी मादा ही सारा प्रसूत और बच्चों की सेवा सुश्रुषा का जिमा संभालती है -नर यहाँ भी उठल्लू का चूल्हा ही रहता है बस निठल्ला -कोई काम काज नही बस प्रणय याचन ,मादा का निषेचन ,बस छुट्टी ! ऐसे नर को शिकारी चट कर जायं तो क्या फर्क पड़ता है -वंशावली तो कायम ही रहेगी !
बहुगामी प्रजातियों में नर मोर की खूबसूरती अपनी पराकाष्ठा पर पहुँची हुयी है -यहाँ मादा उसी नर से संसर्ग की हामी भरती है जिसके पंख प्रारूप बेहद चमकदार और भड़कीले हों बाकी के नर इस स्वयम्बर /रासलीला को दूर से बस निहारते ही रह जाते हैं !
मोर के चित्ताकर्षक नृत्य को यहाँ और यहाँ भी देख सकते हैं ! मादा तो न्योछावर है पर पास ही किसी शिकारी की भी गृद्ध दृष्टि मोर पर हो सकती है !
10 comments:
ओ ! ऐसा है क्या !
बहुत आभार इस रोचक श्रंखला के लिये.
रामराम.
सुंदर आलेख. अभी कुछ दिनों से एक बुलबुल के जोड़े का अवलोकन कर रहे हैं. उन्होने ने हमारे ही घर में लगे हरसिंगार के पेड़ में एक तश्तरी नुमा घोंसला बनाया. अंडे भी दिए. हमारी नज़रों में तब आया जब नर और मादा दोनों ही अपनी चोंच में कीट पतंग आदि लेकर आने लगे. दोनों पेड़ में ओझल हो जाते. भोजन लाने का यह क्रम चलता रहा.. हमें शंका हुई तो उनका घोंसला दिखा जिसपर केवल एक ही चूजा बैठ हुआ था. एक दिन एक गिलहरी कहीं से आ गयी. दोनों ने ही एक साथ मिलकर उसे चोंच मार कर भगाते दिखे. कहने का तात्पर्य यह की यहाँ नर भी बराबरी से बच्चे के लालन पालन, सुरक्षा आदि में सहभागी है.
वंश ही कहाँ है जो वंश परंपरा होगी? वहाँ तो प्रजाति को बनाए रखने का दायित्व होता है। जिस में नर का योगदान रिझाने और अंडनिषेचन मात्र का ही है।
अच्छी ज्ञानवर्धक श्रंखला है।
आप हमें अच्छी राह पर लेकर चल रहें है। काफी ज्ञानी हो जाने की आशंका है हमें:)
थोड़ा सम्हाल के जी। यह प्रणय गाथा अब पर्दे से बाहर निकल रही है।
वाह बहुत बढ़िया लगा! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी जानकारी प्राप्त हुई !
मेरे ब्लोग पर नजरे इनायत करने के लिये शुक्रिया।
रोचक जानकारी के लिये धन्यबाद
Ye sochne ki baat hai.
अच्छी जानकारी.
Thhis is great
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