मिथकों का राहु जो सूर्य को निगल लेता है -ऐसी मान्यता है !
कैसा लगेगा जब एक साक्षात देवता परसों २२ जुलाई को सहसा अदृश्य हो जायेगें ! बात सूर्य देवता की हो रही है जो २२ जुलाई प्रातः ६ बज कर २१ मिनट से अदृश्य होते होते कुछ मिनटों के लिए पूरी तरह अदृश्य हो जायेगें -यानी सम्पूर्ण /समग्र सूर्य ग्रहण ! सूर्य हमारे नजरों के सामने उपस्थित /दृश्यमान एक साक्षात देवता है -बाकी किस्से कहानियों में भले प्रगट होते हैं ,वैसे तो अदृश्य ही रहते हैं -मगर सूर्य सदैव प्रगट देव हैं .मगर इन पर भी ग्रहण लग रहा है -और ये कुछ मिनटों के लिए ही सही अदृश्य होने वाले हैं !
आख़िर सूर्यग्रहण क्यों लगता है ? यह सवाल जब हजारो साल पहले लोगों ने गुनी जनों /तत्कालीन बुझक्कडो से पूंछा होगा तो अपने तब के ज्ञान और कल्पनाशीलता के मुकाबले उन्होंने लोगों की जिज्ञासा शान्त करने के लिए जो कुछ कहानी गढी होगी वह विश्व के मिथकों का एक रोचक दास्तान बनी -भारत में यह कथा अदि समुद्र मथन से जुड़ती है जिसमें मंथन से निकले कई रत्नों मे से एक अमृत के बटवारे में राहु का छुप कर देवताओं के बीच आ धमकना सूर्य और चन्द्रमा से छिपा नही रह गया तो उन्होंने विष्णु को इशारे से इस घुसपैठिये राक्षस के बारे में बता दिया और उन्होंने झटपट सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया , धड केतु बन गया -अब चूंकि वह अमृत पान तब तक कर चुका था इसलिए जिंदा रह कर आज भी सूर्य और चन्द्रमा को रह रह कर मुंह का ग्रास बना लेता है ! अब यह कहानी आउटडेटेड हो गयी है -आज हमें पता है की सूर्य की परिक्रमा के दौरान धरती और चन्द्रमा जो ख़ुद धरती की परिक्रमा करता है ऐसे युति बना लेते हैंकि सूरज के प्रकाश को देख नही पाते तब सूर्य ग्रहण लग जाता है ! दरअसल राहु केतु का कोई अस्तित्व नही है ! यह महज कपोल कल्पना है -हाँ ज्योतिषीय गणनाओं की परिशुद्धि के लिए इन्हे छाया ग्रह मानकर काम चलाया जाता है !
भारतीय वान्गमय में सूर्यग्रहण का पहला उल्लेख जयद्रथ वध के मिथक को माना जाता है -निहत्थे अभिमन्यु को जयद्रथ द्वारा नृशंस तरीके से मार दिए जाने से क्षुब्ध अर्जुन प्रतिज्ञा करते हैं कि अगले ही दिन सूर्यास्त के पूर्व वे अगर जयद्रथ को नही मार पाते तो प्राण त्याग देगें -ख़ुद की चिता बनाकर ! मगर दूसरे दिन तो अभूतपूर्व सैन्य -व्यूह रचना के चलते दिन बीत चला ,सूर्य डूबने को आया और लो डूब भी गया मगर जयद्रथ तक अर्जुन नहीं पहुँच सके ! लिहाजा उनकी चिता बनाई गयी और वे जैसे ही चिता पर आरूढ़ हुए सूर्य फिर से चमचमा उठा -कृष्ण मानो तैयार बैठे थे -जयद्रथ अर्जुन की अन्त्येष्टि देखने को उतावला सामने ही था -कृष्ण के एक इशारे से धनुर्धर अर्जुन ने जयद्रथ का सर काट दिया -सूर्य अब अस्ताचल की ओर बढ़ चुके थे ! महाभारत की कथा में सूर्य को ढकने का कौशल कृष्ण के सुदर्शन चक्र को जाता है मगर जरा सी समझ से आप इस पूरे वृत्तांत के मर्म को समझ सकते हैं -दरअसल यह एक सम्पूर्ण ग्रहण ही था और जिसकी जानकारी कृष्ण को थी और उन्होंने यह जानते हुए जयद्रथ वध की रणनीति बनाई थी जो कामयाब हुयी !
कितनी बार सूर्यग्रहण लगा है -मगर आदमी का बाल भी बांका नही हुआ है ! इस बार भी कुछ नही होने वाला है !
अरे सब आज ही लिख दूंगां तो कल परसों क्या लिखूंगा ?
कल सूर्यग्रहण के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखूंगा ! और परसों भी !
11 comments:
यह कहानियां हम सुनते आ रहे हैं ..किसी भी नयी चीज को बताने का कोई जरिया तो तलाश करना होता है ..सही कहा आपने कि उस समय यह कहानी बुन दी गयी होगी जो सदियों से यूँ ही चलती आ रही है ..आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा शुक्रिया
जब राहू और केतु की कहानी सुनी तो साथ ही वास्तविक कारण भी पता था। ग्रहण एक सुंदर खगोलीय घटना है। जिस का आनंद लेना चाहिए।
काफ़ी सारा सीज़न तो लगभग सूखा बीत गया पर अब सूर्य ग्रहण के पास आते आते सावन को अपने कर्त्तव्य का स्मरण हो आया है. दो-तीन दिनों से घटाएँ छाई हैं और बूंदा-बांदी चालू है. हमारे यहां तो सूर्य ग्रहण खुद ग्रहण की चपेट में है. ईश्वर करे कि स्थिति बने और हम लोग भी इस दुर्लभ घटना के साक्षी बन सकें. वैसे आप तो किस्मतवाले हैं, वाराणसी में पूर्ण ग्रहण है. हम कुछ किलोमीटर से चूक गये. पूर्ण ग्रहण वाली पट्टी थोड़ा नीचे से गुजर रही है.
रोचक प्रसंग है,चर्चा जारी रहे.
सूर्य ग्रहण के charche बहुत हो रहे हैं..लगभग हर भारतीय टीवी चैनल पर.सूर्य ग्रहण के charche बहुत हो रहे हैं..लगभग हर भारतीय टीवी चैनल पर.
सामयिक प्रस्तुति,
वैज्ञानिक विश्लेषण पढने २२ के बाद ayenge.
क्या अरविंद जी आप भी ना बड़े वो हैं जी। आपने तो राहू-केतू को ऑल ऑफ़ अ सडन संता-बंता बना डाला हा हा।
लीजिये इस साल के ग्रहण के खतरों पर तो किताबें लिखी गयी हैं :)
कल इन्तजार रहेगा इसका वैज्ञानिक पक्ष जानने का. आपका आभार.
जयद्रथ वध का प्रसंग यहाँ उचित ही प्रयुक्त है, पर क्या इसे कृष्ण की चातुरी मान लें कि इस खगोलीय घटना को उन्होंने अपना चमात्कारिक कृत्य सिद्ध कर दिया होगा विश्वासी और श्रद्धावनत जनसमुदाय के सम्मुख ।
सूर्य ग्रहण पर बारीक निगाह रखेंगे आप और इसीलिये बहुत कुछ उपयोगी और जरूरी जान सकेंगे हम सूर्य ग्रहण के बारे में । धन्यवाद ।
लगता नही कि कल इसे देख पायेंगे. इसकी सारी ही पट्टि मे बादल देवता अवरोधक रहेंगे. कोई ना कोई चैनल वाला कहीं से तो दिखायेगा. उसे ही देख लेंगे.
रामराम.
अब यह तो मानना पड़ेगा कि श्री कृष्णा जी पर्ले दर्जे के खगोलशास्त्री थे!
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