Monday, 4 May 2009

एक उल्लू शहर में !

यह है बार्न आउल जिसे लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है बनारस में !
बनारस में इन दिनों एक उल्लू चर्चा का विषय बना हुआ है ! जिसे एक बच्चे ने घायल अवस्था में वरुण नदी के पास परसों पाया और कलेजे से लगा कर रखे हुए हैं ! यह थोडा अलग सा है ! आज टाईम्स आफ इंडिया में पूरी रिपोर्ट यहा है ! मुझे इसके पहचान के लिए जब ब्यूरो चीफ बिनय सिंह जी ने पूंछा तो मेरे मुंह से इसे देखते ही निकल गया ,"अरे यह तो बार्न आउल /स्क्रीच आउल है -हिन्दी में बोले तो करैल !
वो कहते हैं ना-
बरबाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफी है ,हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा

मगर मुझे तो आज कल के माहौल पर अकबर इलाहाबादी का शेर ज्यादा फब रहा है !

कद्रदानों की तबीयत के अजब रंग हैं आज , बुलबुलों की ये हसरत की वे उल्लू हुए

बहरहाल टाईम्स आफ इंडिया का यह आलेख पढ़ ही लें ! और गहराई से उल्लू चिंतन के लिए यहाँ भी तशरीफ़ ले जा सकते हैं -बल्कि ले ही जायं अगर फुरसतिया हों !

18 comments:

seema gupta said...

उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन माना जाता है . आपकी दिवाली की पोस्ट भी पढ़ ली , बार्न आउल को पहली बार देखा है यही दुआ है की ये पक्षी जल्दी से ठीक हो जाये.

regards

P.N. Subramanian said...

टाईम्स ऑफ़ इंडिया में तो आप ही को कोट किया है.अच्छी जानकारी थी.

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी जानकारी .

Ashok Pandey said...

पसंद आयी उल्‍लू चर्चा।

रंजू भाटिया said...

उल्लू चिंतन ..भी पढ़ा और टाइम्स की खबर भी ..शुक्रिया

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया जी. दिवाली के दिन याद आगये जब ५ दिन उल्लुओं के साथ ही बिताये थे.

रामराम.

Abhishek Ojha said...

फुरसतियाजी का तो पता नहीं पर हम तो पढ़ आये :-)

डॉ .अनुराग said...

इश्वर स्वस्थ करे इस निरीह पक्षी को....

प्रवीण त्रिवेदी said...

उल्लू चिंतन में हमारी भी पहुँच मानी जाये!!

प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर

Science Bloggers Association said...

मुझे लगता है यह उल्लू शहर के अपने रिश्तेदारों से मिलने आया था, पर दिन में आने के कारण इसके रिश्तेदारों ने लिफट नहीं दी।
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किस्म किस्म के आम
क्या लडकियां होती है लडको जैसी

दिनेशराय द्विवेदी said...

भैया! पहचान तो आए कि जे लछमी जी का ही हेलीकोप्टर हैगा। पर लछमी जी की भी खबर-वबर है का?

Gyan Dutt Pandey said...

अरे, यह तो हमारे गांव के पीपल के कोटर में रहने वाला कुचकुचवा है!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

ये उल्लू महाशय अपने सफेद रंग के कारण सरस्वती जी को न भा जाँय। यदि ऐसा हुआ तो लक्ष्मी जी पैदल हो जाएंगी। उसके आगे की तो नारद जी ही पता लगा पाएंगे।

अच्छी मनभावन पोस्ट। लिंक पर जाकर भी अच्छा लगा।

संगीता पुरी said...

वाह .. दर्शन करा दिया आपने हमारा भी।

Udan Tashtari said...

आह!! धन्य भये दर्शन करके.

zeashan haider zaidi said...

"बरबाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफी है ,हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा"
अब ये तो इलेक्शन के रिज़ल्ट के बाद मालुम होगा की कितने उल्लू चुने हमने.

योगेन्द्र मौदगिल said...

भाई जी उल्लू हो या उल्लू का पट्ठा हमें तो दोनो ही अच्छे लगते हैं

भारत में तो वैसे भी आम रिवाज़ है कि साहब ना मिलें या मेम साहब ना मिले तो ड्राइवर को तो नमस्ते कर ही लो

RAJ SINH said...

दीवाली चिन्तन भी पढा और टायिम्स भी . सन्तुश्थ हुये. बच्पन से लोग हमे उल्लु कहते रहे . हमे खुद पता नहीन था कि हम इतने बुद्धिमान क्योन हैन .