Friday, 17 April 2009

पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण -2

हमने गतांक में जाना कि कैसे आज के जूते मोजे वाले आधुनिक मानव के लिए उसके पाँव की आदिम गंध क्षमता एक बड़ी मुसीबत बन चुकी है ! बस फायदा केवल सौन्दर्य प्रसाधन की निर्माता कम्पनियों को है जो पैरों को साफ़ सुथरा बनाए रखने के नित नए उत्पादों को लांच कर मालामाल हो रही हैं ! हमारी एक जबरदस्त आदिम क्षमता की कितनी बुरी गत बन चुकी है ! आईये आगे बढ़ें !

जिस तरह शिनाख्त के मामलों में हमारे अन्गुलि छाप बड़े काम के हैं उससे ज़रा भी कमतर नहीं है हमारे पाँव की उँगलियों की छाप ! यह भी मनुष्य दर मनुष्य पहचान की जीवंत दस्तावेज हैं ! मगर अब चूंकि पांवों की अंगुलियाँ ज्यादातर मोजे और जूतों की आवरण लिए रहती हैं ये प्रायः छुपी रहती हैं और अपराधी तक को भी इन्हे ढंकने के लिए अतिरिक्त दस्तानों की जरूरत ही कहाँ पड़ती है ! उनके लिए तो मोजे ही स्थायी दास्ताने बने रहते हैं . इसलिए ही अपराध स्थल से उँगलियों के निशान लेने का प्रचलन रहा है -और पद गंध के अनुसरण के लिए कुत्तों का सहारा लिया जाता है !

कुछ और पद पदावलियाँ ! पाँव के तलवे और एंडी के चमड़ी का रंग सदैव जन्मजात ही रहता है -भले ही इन्हे कितना "सन टेन " किया जाय ! ये हमेशा सफ़ेद या कंट्रास्ट कलर लिए रहते हैं -जिससे इच्छित भाव सिग्नलों को और भी उभार कर सम्प्रेषित किया जा सके ! पाँव की नीचे की चमड़ी और हथेली की चमड़ी का कंट्रास्ट रंग में होना एक मकसद से है ! अब खुली हथेली /पंजे का अंदरूनी चमड़ी का भाग किस तरह आशीर्वाद के पारम्परिक भूमिका के साथ ही एक प्रमुख राष्टीय राजनीतिक दल का प्रचार चिह्न बना हुआ है इस सन्दर्भ में दृष्टव्य है ! मगर याद कीजिये कैसे इसी पैर के तलवे की चमक कृष्ण के लिए जानलेवा भी बन गयी जिन्हें एक व्याध ने उनके तलवे की कौंध के चलते सर संधान से उन्हें तब हत किया था जब वे बिचारे सद्य समाप्त महाभारत की सोच में विचार मग्न किसी वन में बैठे थे ! तथ्य यह है कि पाँव और हथेली की चमड़ी में रंगोत्पादक मिलानिन तत्व नही होता या नगण्य होता है !

सबसे आश्चर्यजनक तो यह ही कि हाथों की विकलांगता में यही पाँव ही सहरा बन जाते हैं ! आपने हाथों के विकलांग ऐसे कई साहसी लोगों की शौर्य कथाएं भी देखी सुनी होगी जिन्होंने असम्भव कामों को भी पांवों से अंजाम दे दिया ! लिखने का काम ,चित्रकारी और यहाँ तक कि मैंने पांवों से एक नाई को हजामत-दाढी बनाते देखा है ! फिजी और भारत में भी कई लोग दहकते अंगारों पर पाँव डालते निकल जाने का हैरत अंगेज प्रदर्शन करते देखे गए हैं ! अभी तक इस प्रदर्शन की संतोषप्रद वैज्ञानिक व्याख्या नही हो पायी है !

प्राच्य -संस्कृति में जहाँ नर पांवों को मार्शल आर्ट की दीक्षा से विभूषित कर उसे एक प्रहार -आयुध के रूप में विकसित किया जाता रहा है वहीं नारी को पावों को और भी स्त्रैण बनाए रखने का कुचक्र रचा गया है -इन्हे छोटा बनाए रखने की यातनाएं चीन में दिए जाने का एक नृशंस इतिहास रहा है ! इन दिनों भारत में जूतम पैजार का जो नजारा दिख रहा है वह पाँव पर्यवेक्षण के संदर्भ में भी बड़ा मौजू है ! किसी पर जूता फेंकना भले ही अपमानजनक कृत्य हो मगर किसी से मिलने के पहले जूता उतार देना एक तरह से उसका सम्मान करना ही हुआ ! उसका स्वामित्व स्वीकारना हुआ ! अब मंदिरों और कई पूजा स्थलों के बाहर जूता निकलने के पीछे अपने आराध्य का सम्मान ही तो है ! अब हमारे "देव तुल्य " नेताओं से मिलने के पहले भी जूता बाहर ही निकालने की आचार संहिता बस लागू ही होने वाली है !

10 comments:

श्यामल सुमन said...

कैसे कैसे लोग हैं जनता के सरदार।
छोड़ के जनहित वे करें जूतम और पैजार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Himanshu Pandey said...

महाभारत की कथा का सन्निवेश आकर्षण बढ़ाता है।

जूते बाहर निकालने की आचार संहिता ! बन ही जाय तो अच्छा ।

महेन्द्र मिश्र said...

उम्दा विश्लेषण किया है . बढ़िया पोस्ट के लिए धन्यवाद.

P.N. Subramanian said...

हमें एक नयी बात सीखने को मिली. हाथ और तलुवे के चर्म में मेलानिन का आभाव. आभार आपका.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया जानकारी मिली.

रामराम.

Abhishek Ojha said...

पाँव के छाप भी बड़े काम के हैं ! क्या कुछ ज्योतिषी भी पाँव की रेखाएं देखते हैं?

admin said...

Mahatvapoorn jaankaari.

admin said...

Mahatvapoorn jaankaari.

Shastri JC Philip said...

"-इन्हे छोटा बनाए रखने की यातनाएं चीन में दिए जाने का एक नृशंस इतिहास रहा है ! "

उम्मीद है कि इस विषय को आप एक लेखमाला के रूप में प्रस्तुत करेंगे. चीन की बात पढी हुई है, लेकिन यह जानना चाहता हूँ कि और किन संस्कृतियों में ऐसी आदतें पाई जाती हैं.

सस्नेह -- शास्त्री

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत बढिया जानकारी मिली,आपका आभार !