Wednesday 25 March 2009

एक अन्तरिक्ष यात्री का चिट्ठा ....!

सांद्रा मैग्नस
यहाँ हम जमीन पर बैठे टिपिया रहे हैं कोई आकाश -अन्तरिक्ष के पार से चिट्ठे लिख रहा है -और यह हैं अन्तरिक्ष यात्री सांद्रा मैग्नस जो अन्तरिक्ष से एक ब्लॉग लिखती हैं -स्पेस बुक ! वे बस अगले कुछ दिनों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आई एस एस ) से धरती पर लौटने वाली हैं ! मेरे एक पसंदीदा ब्लॉग -बैड अस्ट्रोनोमी के ब्लागर फिल प्लैट लिखते हैं कि सांद्रा मैग्नस एकमात्र वह शख्श हैं जो अन्तरिक्ष से ब्लागिंग करती हैं ! डिस्कवरी यान से सांद्रा आई एस एस तक पहुँची थीं ! फिल प्लैट ने सांद्रा के अन्तरिक्ष यात्रा के अनुभव पर लिखे ब्लॉग को भी लिंक किया है ! मैंने जब अन्तरिक्ष से की गयी इस चिट्ठाकारिता को देखा तो आप से भी इस अलौकिक अनुभव को बाटने के लिए व्यग्र हो गया ! मैं यहाँ सांद्रा के चिट्ठे के कुछ अंशों के उद्धरण देने का लोभ रोक नही पा रहा -


"...मुझे सही सही तो नही पता कि मैं अन्तरिक्ष में कहाँ थी मगर रात हो चुकी थी और मैंने एक कक्ष की खिड़की के निकट अपने को संभाला .....मैं कोशिश करूंगी कि जो कुछ मैंने देखा उसे शब्द चित्रों में प्रस्तुत करुँ ....यह घोर निबिड़ रात्रि है ..अब अफ्रीका के ऊपर तूफ़ान के चलते बिजलियाँ कौंध सी रही हैं ऐसा लग रहा है कि आतिशबाजी हो रही हो ! लगता है कोई बड़ा तूफ़ान है जो फैलता जा रहा है ! .....यद्यपि कि धरती का क्षितिज अलक्षित है ,बादलों की बिजलियों और शहरों की चमक में धरती और अन्तरिक्ष का फर्क साफ तौर पर देखा जा सकता है ! रात्रि कालीन उत्तरी धरती के क्षितिज को काली रोशनाई के मानिंद आकाश से सहज ही अलग कर देखा जा सकता है .धरती के पार्श्व के एक छोर से निकलती सी लग रही आकाश गंगा (मिल्की वे ) मानो अपनी ओर यात्रा के लिए पुकार सी रही है .....यह सब मुझे विस्मित सा कर रहा है... ओह कितना सुंदर !

कभी कभार कोई जलबुझ करती लाल रोशनी भी रह रह कर दिख जाती है जो दरअसल सैटेलाईट हैं ..ये तेजी से गुजर जाते हैं ! चमचमाते तारे भी अद्भुत लग रहे हैं ...इस समय आई एस एस रात्रि भ्रमण कर रहा है अंधेरे की कारस्तानी का दर्शक बन रहा है ....अभी नीचे तो अँधेरा ही है मगर तारों से जगमगाती यामिनी अब विदा ले रही है क्योंकि सूर्यदेव की चमक अंधेरे के वजूद को मिटाने पर आमादा है ! मगर धरती पर सूर्योदय के ठीक पहले एक दम से कृष्णता फैल गयी है और कुछ भी दिख नही रहा है जैसे न तो धरती और न ही आसमान का कोई वजूद है ! बस जैसे मैं ही अस्तित्व में हूँ और अन्धता के एक महासागर में खो सी गयी हूँ और जहाँ सूरज बस खिलखिलाने वाला है और लो धरती तक सूरज की किरने जा पहुँचीं और वह एक बार फिर से सहसा ही प्रगट हो गयी है ...तारे सहसा ही छुप गए हैं यद्यपि वे वही हैं जहाँ थे ......."


यह वह कविता है जिसे अन्तरिक्ष से लिखे ब्लॉग पर डाला गया है ! इस महिला को भला कौन नही आदर देगा ! सांद्रा को सलाम !





21 comments:

समयचक्र said...

बहुत ही रोचक जानकारी देने के लिए आभार

ताऊ रामपुरिया said...

मिश्राजी, आपकी इस पोस्ट को पढकर मंत्रमुग्ध से हो गये. एक आस्त्रोनाट की भावनाएं किस कदर उन्होने व्यक्त की है वो बता नही सकता. युं लग रहा है किसी कवि की कविता पढी हो और आपने भी बहुत ही अनोखे अंदाज मे अनुवाद किया है. आपसे निवेदन है कि इस ब्लाग के औए भी मटेरियल हिंदी के पाठकों के लिये मुहैया करवाने की कृपा करें.

सांद्रा मैग्नस कॊ सलाम .

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

मिश्राजी, आपकी इस पोस्ट को पढकर मंत्रमुग्ध से हो गये. एक आस्त्रोनाट की भावनाएं किस कदर उन्होने व्यक्त की है वो बता नही सकता. युं लग रहा है किसी कवि की कविता पढी हो और आपने भी बहुत ही अनोखे अंदाज मे अनुवाद किया है. आपसे निवेदन है कि इस ब्लाग के औए भी मटेरियल हिंदी के पाठकों के लिये मुहैया करवाने की कृपा करें.

सांद्रा मैग्नस कॊ सलाम .

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

मिश्राजी, आपकी इस पोस्ट को पढकर मंत्रमुग्ध से हो गये. एक आस्त्रोनाट की भावनाएं किस कदर उन्होने व्यक्त की है वो बता नही सकता. युं लग रहा है किसी कवि की कविता पढी हो और आपने भी बहुत ही अनोखे अंदाज मे अनुवाद किया है. आपसे निवेदन है कि इस ब्लाग के औए भी मटेरियल हिंदी के पाठकों के लिये मुहैया करवाने की कृपा करें.

सांद्रा मैग्नस कॊ सलाम .

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी said...

अंतरिक्ष से लिखना, सचमुच एक विशिष्ठ अनुभव होगा। हम बस सिर्फ पढ़ सकते हैं। जय ब्लागरी!

प्रेमलता पांडे said...

गज़ब का अनुवाद! लगता नहीं किसी अन्य भाषा में अभिव्यक्ति हुयी होगी।
धन्यवाद यहाँ पढ़वाने के लिए।

P.N. Subramanian said...

सांद्रा मैग्नस के ब्लॉग की लिंक देकर आपने अच्छा किया. हमने कुछ पुराणी प्रविष्टियाँ पढ़ लीं और विडियो, चित्र आदि भी देख पाए. आभार.

Yunus Khan said...

अदभुत । फौरन स्‍पेस बुक पर गए । आपकी दी बाकी लिंक पर भी गए और एक नई दुनिया खोल दी आपने हमारे लिए ।

Anonymous said...

वाह क्या वर्णन है हमारी धरती का!
आपके शब्दों का चुनाव भी बढ़िया

बवाल said...

वाह वाह अरविंद साहब, एक अलग ही अनुभव से दो चार कराया आपने। सांद्रा जी को हमारा भी सलाम।

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी जानकारी दी आपने ... लिंक भी दिया ... अंतरिक्ष के बारे में सांद्रा मैग्‍नस के द्वारा लिखे गए कुछ अंशों को भी पढा ... बहुत अच्‍छा लगा ... धन्‍यवाद ।

Abhishek Ojha said...

आकाश-पाताल कुछ नहीं बचा है ब्लॉग्गिंग से :-)

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सांद्रा से मिलकर प्रसन्‍नता हुई। इस मुलाकात के लिए आभार।

रंजू भाटिया said...

ब्लागिंग के नशे से कैसे बचे कोई ...अदभुत.. रोमांचक ..पढ़ते पढ़ते ही जिस रोमांच का अनुभव हुआ ..वह कहने के लिए शब्द नहीं है ..बहुत अच्छा अनुवाद किया आपने ..सांद्रा मैग्नस का ब्लॉग बुक मार्क कर लिया है .सच में यह दुनिया बहुत सुन्दर है अदभुत है ..और अदभुत है यहाँ पर बसने वाले लोग ...बहुत बहुत शुक्रिया अरविन्द जी इस रोमांचक खबर से रूबरू करवाने के लिए

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

भाई, यात्री सांद्रा मैग्नस से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद.

Gyan Dutt Pandey said...

सान्द्रा ने बहुत अच्छा लिखा है। काश हमें भी वह देखने और वर्णित करने को मिलता!

रवीन्द्र प्रभात said...

रोचक जानकारी देने के लिए आभार !

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति और अच्छी जानकारी .

Ashok Pandey said...

अद्भुत। रोमांचक। अब हम कह सकते हैं कि अंतरिक्ष में नहीं गए तो क्‍या हुआ, अंतरिक्ष से लिखा चिट्ठा तो पढ़ चुके हैं।

उन्मुक्त said...

अरे वाह।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह... क्या रोमांचक एवं खोजपूर्ण आलेख है.!!! मज़ा आ गया.... बधाई...