Thursday 5 March 2009

हवाई मौत जो सर्र से गुजर गयी !

यह तो इटोकावा है मगर जो गुजरी वह भी ऐसी ही मगर छोटी मौत थी ! सौजन्य :बी बी सी
पिछले सोमवार को जब हम ब्लागिंग स्लागिंग और जिन्दगी के दीगर लफड़ों में मुब्तिला थे तो एक मौत हवाई रास्ते सर्र से मानवता के सिर पर से गुजर गयी ! मौत क्या पूरी कयामत कहिये ! एक क्षुद्र ग्रहिका (एस्टरायड) आसमान में काफी नीचे तक ,करीब ७२००० किमी तक बिना नुक्सान पहुंचाए गुज़री ! इसका नाम २००९ ,डी डी ४५ था और यह ३०मीटर की परिधि की थी ! बताता चलूँ की यह दूरी चन्द्रमा की दूरी से पाँच गुना कम थी .यह क्षुद्र ग्रह थोडा और नीचे आ गया होता तो यहाँ साईबेरिया के तुंगुस्का क्षेत्र में सन १९०८ के दौरान हजारों परमाणु बमों को भी मात वाले विनाश सा मंजर दिखला जाता जो एक ऐसे ही क्षुद्र ग्रह के आ गिरने से हुआ था !

दरअसल मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच टूटे फूटे अनेक सौर्ग्रहीय अवशेष ,धूमकेतुओं के टुकड़े आदि एक पट्टी में सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं जहा से कभी कभी कभार ये पथभ्रष्ट होकर धरती का रूख भी कर लेते हैं ! धरती पर आसमान से दबे पाँव आने वाली इन मौतों का खतरा हमेशा मंडराता रहता है ।

अब नासा के जेट प्रोपोल्सन प्रयोगशाला से जारी ऐसे खतरनाक घुमंतू मौतों की सूची पर एक नजर डालें तो आज ही एक और क्षुद्र ग्रह धरती की ओर लपक रहा है ! पर इससे भी खतरे की कोई गुन्जायिश नही है -मगर ऐसे ही रहा तो बकरे की माँ कब तक खैर मनाएंगी ...एक दिन आसमानी रास्ते से दबे पाँव आयी मौत कहीं ....? कौन जाने ? मगर फिकर नाट वैज्ञानिक इन नटखट सौर उद्दंदों पर कड़ी और सतर्क नजर रखे हुए हैं जरूरत पडी तो जैसे को तैसा की रणनीति के तहत वे इन्हे परमाणु बमों से उड़ा देंगें या रास्ता बदल देने पर मजबूर कर देंगें !

सारी दुनिया की रक्षा का भार वैज्ञानिक उठाते आरहे हैं पर कितने अफ़सोस की बात है कि समाज उन्हें वह इज्जत नही देता ,उन्हें वैसा सर आंखों पर नहीं उठाता जितना वह नेताओं पर अभिनेताओं पर मर मिटने तक उतारू रहता है !

11 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अक्सर मौत सर से गुजर जाती है। टकरा जाती तो क्या आपका आलेख पढ़ते?

इसी लिए हम वैज्ञानिकों को कम किस्मत और ज्योतिषियों को ज्यादा पूछते हैं।

रंजू भाटिया said...

देखा था यह टीवी पर ..अच्छी जानकारी दी आपने

Anshu Mali Rastogi said...

यहां विज्ञान को लोग अब भी हव्वौ समझते हैं। वैज्ञानिक को पापी। यहां नेता को ज्यादा तरजीह दी जाती है वनिस्पत वैज्ञानिक के। आपसे सौफीदस सहमत।

P.N. Subramanian said...

बढ़िया जानकारी हम तो वैज्ञानिकों के आगे नतमस्तक हैं. आभार.

P.N. Subramanian said...

बढ़िया जानकारी हम तो वैज्ञानिकों के आगे नतमस्तक हैं. आभार.

CG said...

आज तो बाल-बाल बचे!

वैसे वैज्ञानिक अपने समाज के unspoken heroes हैं. उन्हें चाहे समाज का प्यार मिले न मिले, वह तो अपना काम करेंगे.

कहते भी हैं pursuit of knowledge is for the sake of knowledge, not to any other end.

Science Bloggers Association said...

यह धरती वासियों की खुशकिश्‍मती ही थी।

ताऊ रामपुरिया said...

आपका कहना सही है पर काम और मानवता की भलाई करने वालॊ को उनके जीते जी शायद ही कोई उचित मान मिल पाया हो. पर वो इतिहास मे अमर होते हैं.

आज सभी वैज्ञानिक न्युटन, एडीशन..आईम्सटाईन गैलेलियो...आदि को सारी दुनिया जानती हैं. पर कितने नेता हैं जिनको बाद मे कोई जानता है.

एक नक्ष्त्र और धूमकेतू जितना फ़र्क है दोनो मे.

तो घोडा तो घोडा ही रहेगा और संतू तो गधा ही रहेगा.

रामराम.

Gyan Dutt Pandey said...

वैज्ञानिक जागरूकता की कमी अवश्य है। असल में खगोल के प्रति जिज्ञासा का जो स्तर होना चाहिये सो है नहीं। मैं स्वयम एक अच्छा टेलीस्कोप लेने की तमन्ना रखता हूं, पर न जाने कहां मिल पायेगा।
कुछ लाभ गूगल अर्थ से मिलता है।

और आप यह सब सामने ला कर बढ़िया काम करते हैं!

Udan Tashtari said...

बच ही गये समझो..वैज्ञानिकों के लिए मेरे मन में विशेष आदर भाव है और आपके लिए भी. अब मत डरवाना. :)

राज भाटिय़ा said...

अजी वैज्ञानिकों को तो सभी इज्जत से ही देखते है ओर इज्जत भी करते है, यह जो घटना आप ने लिखी इस बारे यहां टी वी पर दिखाते रहते है, ओर दिखाते भी इस तरह से कि लोगो के दिल मै डर न बने, मेने भी कई बार सोचा कि इन के बारे कुछ लिखू, लेकिन ऎसी साधारण सी बातो से हमारे यहां डर का माहोल बन जाता है, ओर लोग पुजा पाठ, ओर पता नही क्या क्या करने लग जते है, हमारे टी वी , ओर समाचार पत्र भी इन बातो को नमक मिर्च लगा कर बताते है,अभी दो अम्हीने पहले भी एक लडकी ने आत्महत्या इसी डर के मारे कर थी भारत मै कि महा पर्लाय आ जाने वाली है.
इन बातो पर लेख अच्छे लगते है लेकिन थोडा समझा कर जेसा कि आप ने लिखा है .
आप का धन्यवाद