Thursday, 5 March 2009

सृजन नहीं बस विकास के हैं प्रमाण ! ( डार्विन द्विशती )

धरती पर अलौकिक सृजन और इसके पीछे किसी "इंटेलिजेंट डिजाइन " की भूमिका की सोच को जहाँ तर्कों के सहारे सिद्ध करने की चेष्ठाये हो रही हैं ,जीवों के विकास के कई पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं ! कुछ को हम सिलसिलेवार आपके सामने लायेंगें ! बस थोड़े धीरज के साथ यहाँ आते रहिये और विकास की इस महागाथा में मेरे साथ बने रहिए !




यह है आर्कियोप्टरिक्स का फासिल


जीवाश्मिकी एक ऐसा ही अध्ययन का विषय है जो जमीन के नीचे दबे "गडे मुर्दों " की ही तर्ज पर अनेक जीव जंतुओं के अतीत का उत्खनन करता है ! मतलब जमीन में दफन सचाई जो विकास वाद के सिद्धांत को पुष्ट करती है ! इस धरा पर अब तक असंख्य जीव जंतु पादप जीवन व्यतीत कर काल कवलित हो उठे हैं ! उनमें से अपेक्षाकृत थोड़े ऐसे भी हैं कि धरती के गर्भ में मृत होकर भी अपने रूपाकार सरंक्षित किए हुए हैं -वे एक तरह से पत्थर सरीखे बन गए हैं जिन्हें जीवाश्म कहते हैं -यानी फासिल !

जीवाश्म दरअसल जैवीय अतीत की के वे स्मारक हैं जो विकास की गुत्थी सुलझाने में बडे मददगार हुए हैं ! इनमें परागकण ,स्पोर ,और सूक्ष्म जीवों की बहुतायत हैं जिनमें से अधिकाँश तो कई समुद्रों की पेंदी में मिले हैं ! कुदरत द्बारा इनको संरक्षित करने का काम बखूबी किया गया है जैसे वह ख़ुद विकासवाद के पक्ष में प्रमाणों की ओर इंगित कर रही हो ! कुदरत का ही एक तरीका ही जिसे पेट्रीफिकेशन या पत्थरीकरण कहते हैं जिसमें सम्बन्धित जीव समय के साथ पत्थर जैसी रचना में तब्दील होता जाता है ! ऐसे ही जीवाश्मों का एक बड़ा जखीरा एरिजोना प्रांत के बढ़ ग्रस्त इलाकों से मिला था ! वहाँ ज्वालामुखीय लावे में भी जीवों का रूप संरक्षण होता रहा है .

एक सबसे हैरतअंगेज जीवाश्म बावरिया क्षेत्र से मिला था जो रेंगने वाले जीवों यानि सरीसृपों और चिडियों के बीच की विकासावस्था का था -मुंह में दांत था , डैने विशाल थे !यह उडनेवाला डायनासोर सा लगता था . इसका नामकरण हुआ आर्कियोप्तेरिक्स !



कुछ ऐसा ही दीखता था आर्कियोप्टरिक्स



इसी
तरह कनेक्टीकट घाटी में डायिनोसर के जीवाश्म पाये गये जिन्हें पहले तो
विशालकाय पक्षी समझ लिया गया था क्योंकि उनमे भी चिडियों के पैरों सदृश तीन उंगलियाँ ही थीं ! भारत में गुजरात और मध्यप्रदेश में भी डाईनोसोर के अनेक जीवाश्म पाये गये हैं !


यह है घोडे के विकास के क्रमिक चरण

घोडे और हांथीं के तो विकास के सभी चरणों के सिलसिलेवार जीवाश्म मिल चुके हैं जिन्हें देखते ही विकासवाद की कहानी मानों आंखों के सामने साकार हो उठती है !



और यह हाथी के पुरखे !

जारी ....

9 comments:

प्रवीण त्रिवेदी said...

अरे सर जी !! आप बताये रहिये हम कोशिश कर रहे हैं आपके साथ कदम से कदम मिलाने की

प्रवीण त्रिवेदी said...

अरे सर जी !! आप बताये रहिये हम कोशिश कर रहे हैं आपके साथ कदम से कदम मिलाने की

दिनेशराय द्विवेदी said...

प्रकृति अपनी कहानी खुद कहती है।

स्वप्नदर्शी said...

bahut badhiya, dhanyvaad

बवाल said...

आदरणीय अरविंद जी,
मैं आपसे सहमत तो १०० % हूँ मगर आज तक ये नहीं समझ पाया के इन सब प्राणियों का उल्लेख हमारी धरती के किसी के भी धार्मिक या ऐतिहासिक ग्रंथों में क्यूँ नहीं है?

Arvind Mishra said...

भाई बवाल ,
मजहबी किताबों में इनका उल्लेख इसलिए नहीं है की वहां गडे मुर्दे उखाड़ने की सख्त मनाही है ! वहा जो कह दिया गया गया वह अंतिम सत्य है जबकि विज्ञान की मान्यता ठीक इसके उलट है -अक्लमंद को इशारा काफी !
शुक्रिया !

ताऊ रामपुरिया said...

सही कहा आप्ने. शायद विज्ञान और मजहबी किताबों मे यही फ़र्क है. बहुत बढिया लेख.

रामराम.

रंजू भाटिया said...

बहुत रोचक बताते रहे ..शुक्रिया

Gyan Dutt Pandey said...

ऑर्कियाप्टेरिक्स तो बचपन में घोटा था दर्जा आठ में!
आपने याद दिला दिया!