मनुष्य विशेषांग एक तरह से शुक्राणुवाही अंग /नलिका ही तो है ! मगर यह दो मामलों में बहुत विशिष्ट है -
१-मनुष्य के दूसरे नर वानर (प्रायिमेट ) सदस्यों के शारीरिक डील डौल के अनुपात में उनके जननांग छोटे हैं जबकि मनुष्य अपवाद के तौर पर ऐसा प्रायिमेट है जिसका विशेष अंग उसके शरीर के अनुपात में काफी बडा है ! और
२-इसे सपोर्ट करने के लिए कोई अतिरिक्त बोन (हड्डी) भी नही है जबकि एक छोटे आकार के बानर के अंग विशेष को हड्डी का सपोर्ट भी है ।
मनुष्य के आकार की तुलना में तीन गुना भारी भरकम गोरिल्ला का विशेष अंग तो बहुत छोटा है .मनुष्य के अंग विशेष के सहजावस्था की लम्बाई अमूमन ४ इंच ,व्यास १,१/४ इंच ,परिधि ३,१/२ इंच और उत्थित अवस्था में औसत लम्बाई ६ इंच ,व्यास १,१/२ इंच ,परिधि ४,१/२ इंच तक जा पहुँचती है !मगर इसकी साईज को लेकर विश्व के कई भौगोलिक क्षेत्रों में काफी विभिन्नताएं देखी गयी हैं और इसका सबसे बड़ा आकार १३,३/४ इंच तक देखा गया है .अजीब बात यह है कि शारीरिक डील डौल और अंग विशेष समानुपात में नही पाये जाते बल्कि देखा यह गया है कि बड़े अंग विशेष के गर्वीले वाहक प्रायः छोटे कद काठी के लोग ही होते हैं और बड़े डील डौल वालों में इसका विपरीत होता है ! उत्थित अंग विशेष का जमीन से कोण ४५ डिग्री होता है जो टार्गेट का सही कोण है !
अपने उत्थित अवस्था में यह विशेष अंग कुदरती अभियांत्रिकी का बेजोड़ नमूना है -ऐसी कठोर किंतु हड्डी विहीन और रक्त नलिकाओं के बारीक संजाल से युक्त रचना प्रकृति में शायद ही कोई दूसरी है ! और ऐसा भी कुदरत की एक सोची समझी सूझ है - साथी के यौन सुख में वृद्धि की ! यह बात बंदरों के अंग विशेष के उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगी ! बन्दर का जननांग जहाँ छोटा सा कील सरीखा ,हड्डी युक्त होता है ,मादा के निमित्त मात्र तीन ही प्रयासों में साहचर्य /सहवास की इतिश्री कर लेता है ! फलतः बंदरिया यौन सुख का वह चरमानंद(आर्गैस्म ) नही उठा पाती जैसा कि मानव मादा को प्रकृति की ओर से सहज ही उपहार स्वरूप प्रदत्त है !
मनुष्य प्रजाति में नर और मादा दोनों ही यौनक्रिया से जोरदार रूप से पुरस्कृत किए गये हैं जिन्हें चरम आनंदानुभूति का वह वरदान मिला है जिससे पूरा प्राणी जगत अमूमन वंचित है -जिस अनुभव की शाब्दिक व्याख्या बडे बड़े शब्द ज्ञानी भी नही कर पाते -एक महान चिंतक ने तो इस परमानंद को सम्भोग से समाधि तक के आध्यात्मिक अनुभव की परिधि में ले जा रखा था ! मगर जीव विज्ञानी और व्यवाहारविद इसे कुदरत की वह युक्ति बताते हैं जिससे दम्पति के बीच प्रगाढ़ता बढे और वे दोनों अपने शिशु के लालन पालन की एक अत्यधिक लम्बी अवधि में साथ साथ रहें ! यह "पेयर बांड" को और भी घनिष्ट बनाए रखने और एक दूसरे के प्रति समर्पित रहने का निरंतर रिवार्ड है !
जाहिर है मनुष्य में यौन क्रिया केवल प्रजनन के लिए नही बल्कि दम्पति के रिश्तों के बीच सीमेंट का काम भी करती है ! यह मनुष्य प्रजाति की उत्तरजीविता ,संतति संवहन के लिए बहुत जरूरी है ! इसलिए ही इस अद्भुत आनंद की तलाश में वह अपने मार्ग के अनेक बन्धनों और बाधाओं को भी पार कर जाना चाहता है .चरमानंद की अनुभूति मनुष्य के मस्तिष्क में मार्फीन सदृश रसायनों की अच्छी खासी खेप के कारण होती है जो आह्लाद का अतिरेक तो कराती ही हैं साथ ही तत्क्षण कई दुःख दर्द के भुलावे हेतु जादुई औषधि तुल्य बन जाती हैं ! यदि यह धरती कोटि कोटि मानवों से पटती गयी है तो इसमें आश्चर्य कैसा -चरमानन्दानुभूति के चलते तो यह होना ही था न ?
9 comments:
संतुलित आलेख.
जनसंख्या वृद्धि की अबुझ पहेली के हल के साथ :)
your articles are informative. one query. woman has hair above neck only and below neck whole body is hairless except underarm and pubic area. so please in any article explain the purpose and utility of it.
आप ने ठीक व्याख्या की है।
महत्त्वपूर्ण जानकारी. आभार.
ओह, यौन सम्बन्धों का सीमेण्टिँग रोल तो सोचा न था।
बहुत ही सही बात ओर बडे ही ढके छुपे शवदो मै आप ने बहुत ही सुंदर ढंग से बताई.
धन्यवाद
आज के माहौल में जरूरी एवं सटीक व्याख्या... स-टीका भी... जय हो..
संतुलित एवं सारगर्भित आलेख।
आपके इन बेहतरीन लेखों से कम-अज़-कम ये तो पता चल ही रहा है कि ----
ये चक्करवा क्या है ?
ये दुनिया इसी चक्कर में तो घूम रही है जी। हा हा।
नमस्कार।
Post a Comment