कभी आपके मन में यह सवाल कौंधा है कि इस धरती पर कुल कितने जीव जंतु हैं ? यह सवाल हमारे पूर्वजों के मन को भी मथता रहा है । बाबा तुलसी ने रामचरितमानस में इसे यूँ कूता -
आकर चार लाख चौरासी ,जाति जीव जल थल नभ वासी -मतलब चौरासी लाख जीव जंतु जमीन ,वायु और पानी में निवास करते हैं ! इस मामले में वैज्ञानिक किसी निश्चित संख्या तक नही पहुँच पाए हैं बल्कि ये मानते हैं कि इस ग्रह पर जीव जन्तुओं की संख्या पाँच लाख से १० करोड़ तक कुछ भी हो सकती है मगर अभी तक पहचाने गए जीवों की संख्या १५ लाख नवासी हजार तीन सौ इकसठ है -मतलब अभी तक तुलसी दास द्वारा आकलित संख्या तक जीवों की पहचान नही हो पायी है नित नए जीव खोजे जा रहे हैं .
जो जीव अभी तक पहचाने गए हैं उनमें अकेले कीट पतंगों की ही प्रजाति संख्या ९ लाख पचास हजार है .५ हजार चार सौ सोलह स्तनधारी हैं , 9,956 चिडियां हैं , 8,240 रेंगने वाले जीव यानि सरीसृप हैं , 6,१९९ मेढक सरीखे जल और थल दोनों जगह रहने वाले जीव हैं .ये तो रहे रीढ़ वाले प्राणि .अब बिना रीढ़ वाली प्रजातियाँ जो जानी जा सकी हैं 1,203,375 हैं ! 297,326 पेड़ पौधों की प्रजातियाँ हैं - कुछ अन्य जातियों में लायिकेन दस हजार ,मशरूम सोलह हजार .और भूरे शैवाल दो हजार आठ सौ उनचास है .कुल 1,589,361 !
अब हम फिर अपने पुराने सवाल पर लौटते हैं क्या इन सभी प्रकार के जीवों को ब्रह्मा या अल्लाह मियाँ या गाड ने फुरसत से अलग अलग गढा है ? जैसे कुम्भार अपनी चाक पर मिट्टी के तरह तरह खिलौने और बर्तन बनाता है ? एक वैज्ञानिक हुए हैं कैरोलस लीनियस (१७०७-१७७८) उन्होंने जीवों की इस अपार विविधता को समझने बूझने में बड़ा मन लगाया और उनकी पहचान की एक द्विनामी पद्धति लागू की जो आज भी प्रचलन में है .अब जैसे उसी द्विनामी पद्धति में मनुष्य यानी हम सब का दुहरा नाम है -होमो सैपिएंस जिसमें होमो शब्द हमारे बृहद गण को बताता है जिसमें केवल हमारी ही प्रजाति अब धरती पर है शेष की हालत है कि रहा न कुल कोऊ रोवन हारा -होमो इरेक्टस ,होमो हैबिलिस आदि जातियाँ कब की काल के गल में समां चुंकी ! होमो नियेनडरथेलेंसिस काफी करीबी रिश्ते में था पर वह भी धरा से मिट गया -हमारे आगे वह भी टिक नही पाया ! आज होमो गण की अकेली सैपिएंस प्रजाति यानि हम सब समूची धरा पर अकेले काबिज है ! पर कब तक ??
तो क्या हमारी प्रजाति और दीगर जीव जंतुओं में कोई संबध भी है या अलाह मियाँ ने मनुष्य और दीगर जीवों को अलग अलग बनाया है ? ऐरिस्टाटिल (३८४-३२२ ईसा पूर्व ) कुछ कुछ अवतारवाद की ही तर्ज पर माना कि जीव रूपाकार बदल कर दूसरे तरह तरह के जीवों में बदलते जाते हैं .उन्होंने यह माना कि पदार्थ जीवों में बदलते हैं जिसे अंडे के भीतर के पदार्थ का मुर्गे /मुर्गी में रूपांतरण हो जाता है ! मगर फिर यह सवाल आया कि पहले कौन पैदा हुआ मुर्गी या अंडा ? यह सवाल अभी भी हंसी मजाक में लोग बाग़ पूंछते हैं मगर जवाब देने वाला गंभीर हो जाता है ।
इस कड़ी की अगली पोस्ट तक आप भी इस मुद्दे पर थोडा विचार कर लें कि पहले अंडा आया या मुर्गी ? अगर अंडा तो वह कहाँ से आया ? और अगर मुर्गी तो वह बिना अंडे से कहां से धमक पडी ?
14 comments:
बहुत लाजवाब जनकारी दी आपने आज.
आज का सवाल :- पहले अण्डा या मुर्गी?
अंडा वह चीज है जो मु्गी से उत्पन्न हुआ और मुर्गी वह चीज है जो अण्डे से पैदा हुई.क्यों सर जी , मेरा जवाब ठीक है या नही? :)
रामराम.
पहले अंडा आया या मुर्गी ? अगर अंडा तो वह कहाँ से आया ? और अगर मुर्गी तो वह बिना अंडे से कहां से धमक पडी ?
" सवाल तो बडा गहरा और रहस्मय है ......अगर इसका जवाब है तो हमे तो बडी बेसब्री से अगली कड़ी का इन्तजार है....धरती पर कुल कितने जीव जंतु है ये भी अपने आप में एक अनबुझ पहेली है....बेहद रोचक जानकारी मिली आज के इस लेख से ...."
Regards
सब अल्लाह का कमाल है भाई - हमारी क्या औकात.
...और, अगर ये भगवान दास - अल्ला मियाँ की करामात है, तो वो तो बहुत ही नामुराद है क्योंकि उसने वायरस, जर्मस, फंगस, पैरासाइट इत्यादि क्या क्या नहीं बना दिए जिससे कि आदमी रात दिन परेशान होता रहे...बेमौत मरता रहे...
बेहद रोचक जानकारी मिली आज के इस लेख से ...अच्छा लगा पढ़कर !"
बड़े गम्भीर प्रश्न हैं जीव विविधता को ले कर। पर मेरा मानना है कि जैव विविधता में वायरस, जर्मस, फंगस, पैरासाइट्स (@ रविरतलामी) का भी सकारात्मक योगदान है। उनको गायब कार दें तो कई उपयोगी कड़ियां गायब हो जायेंगी!
वाह... बेहद उत्कृष्ट आलेख.. जानकारी से लबालब.. कमाल है भाई जी आपका भी...
जानकारीपूर्ण पोस्ट.
आपने जिस तरह से लेख में लिखा जंतुओं के बारे में ...वो बहुत अच्छा था ....आपके प्रश्न भी .....उम्दा लेखन
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जानकारी से ओत - प्रोत लेख । शायद इसीलिए पुराने समय मे कहा जाता था की इंसान का जन्म चौरासी लाख योनियों (जीव-जंतु)मे जन्म लेने के बाद मिलता है ।
अंडा और मुर्गी का सवाल तो पेचीदा है । :)
बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपके इस लेख ने अरविन्द जी ...रोचक लगा इसको जानना
ना पहले मुर्गी आई ओर ना ही अंडा सब से पहले आये वायरस, जर्मस, फंगस इत्यदि, ओर इन से धीरे धीरे जातियां बनी ओर तबदील होती रही ओर फ़िर किसी अण्डे से आज की मुर्गी निकली होगी.
या आप ऎस भी सोच सकते है, की भगवान बनाने तो बत्त्ख लगा था, लकिन सारा समान कम पड गया तो, कंजुसी मओ मौर्गी बन गई, ओर फ़िर ऎक मुर्गा बनाना पडा, फ़िर तो दे दनादन अंडे पए अंडे
आप ने जान कारी बहुत अच्छी दी, आप का धन्यवाद
मेरे विचार में मुर्गी और अन्डा इस समय के स्रूप में साथ साथ आये।
very stimulating post...I am enjoying it
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