Sunday, 2 November 2008

पुरूष पर्यवेक्षण :गरदन पर आ रुकी यात्रा !

ये पुरूष पर्यवेक्षण अब मेरे गले की हड्डी बनता जा रहा है -यह पर्यवेक्षण यात्रा के गर्दन तक आ पहुचने पर शिद्दत के साथ अहसास हो रहा है .अभी कोई आधे दर्जन ख़ास पड़ाव बाकी हैं और मेरा ध्यान उचट रहा है .वैज्ञानिक विषयों के निरूपण के साथ यही समस्या है -यदि पूरे मनोयोग से उनका निर्वाह नही हुआ तो फिर विषय के साथ न्याय भी नही हो पाता .यह भी दिख रहा है की जिस उत्साह के साथ बन्धु बाधवियों ने नारी -नखशिख सौन्दर्य यात्रा को लिया था वह सहकार पुरूष यात्रा में नही दिख रहा है .बहरहाल मैंने यह संकल्प लिया है तो पूरा तो करूंगा ही -
भले ही शनैः शनैः ....
आईये जल्दे जल्दी गर्दन की कुछ छूटी बातें हो जांय .गर्दन कई महत्वपूर्ण इशारों /भंगिमाओं को प्रगट करने में बड़ी मददगार है .यह वही अच्छी तरह रियलायिज कर सकता है जिसकी गरदन अकड़ गयी हो . जैसे हाँ या ना कहना ,दायें बाएँ गर्दन हिला कर नहीं (इनकार )और ऊपर नीचे गर्दन हिला कर हाँ (स्वीकार)के इशारे तो बहुत आम हैं .दूर से कोई जाना पहचाना आता दिखता है तो हम गर्दन कुछ पीछे की और ले जाकर अपनत्व दिखाते हुए उसका खैर मकदम करते हैं और गर्दन को झुका कर उसके सम्मान में अपनी पोजीशन डाउन दिखाते है -मगर यह बाद वाला सिग्नल ज्यादातर औपचारिकता ही है .यह किसी दबंग के सामने गर्दन झुकाने वाली भंगिमा नही है .नतमस्तक तो हम ईस्वर या ईश्वरीय सत्ता सरीखे के समक्ष ही होते हैं -मत्था टेकते हैं किसी बहुत ही आदरणीय के सम्मुख !
गले की मुसीबतें भी कुछ कम नही हैं अभी कल ही अनूप शुक्ल जी ने एक सन्दर्भ में टेटुआ दबाने का जिक्र छेड़ा था -लोगबाग आत्महत्या के निर्णय में इसी बिचारे गले के ही गले पड़ जाते हैं -चूंकि गर्दन से ही श्वास नलिका गुजरती है -फांसी का गहरा दंश इसी गले को ही झेलना पड़ता था .दंड देने के नृशंस प्रथाओं में धड से गर्दन को अलग करने का ही उपक्रम प्रमुख रहा है .
मनुष्य की विकास यात्रा में बिचारे गले ने क्या क्या नही झेला है फिर भी आज हम बहुतो की गर्दन सही सलामत है तो समझिये हम बहुत ही भाग्यशाली हैं .
एक निवेदन : पुरूष पर्यवेक्षण की यह यात्रा अभी कुछ समय तक इसी गर्दन पर ही सवार रहेगी -कुछ ऐसा आ पड़ा है की मुझे अपनी गर्दन की फिक्र हो आयी है -यह चर्चा अब एक पखवारे का विराम मांगती है सुधी जनों से .हाँ मैं कहीं जा नही रहा पर अभी ये चर्चा यहीं रुकेगी ! इस बीच मैं मित्रों के ब्लागों को देखता रहूँगा पर १५ नवम्बर तक टिप्पणी सक्रियक न रह पाऊँ .
आप से गुजारिश है कि भूलियेगा मत ! तो एक पखवारे के लिए विदा !

12 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

टेंटुआ दबाना से बेहतर है छ इन्च छोटा करना। ज्यादा फूलप्रूफ! :)

प्रवीण त्रिवेदी said...

गर्दन , चाहे जो महत्ता रखे ?

अकड़ और शान का प्रतीक हमेशा बनी ही रहेगी !

रोचक जानकारी !

Udan Tashtari said...

गर्दन का ख्याल रखना जरुरी है..वो जरुर रखिये...चाहे जितना विराम हो ले..ज्ञान जी ने टेटुआ कह सचेत कर ही दिया है.

ताऊ रामपुरिया said...

डाक्टर साहब आप कोई भूलने की चीज थोड़ी ही हो ! आप तो टेंटुआ मेरा मतलब गर्दन को रेस्ट देकर लौटिये जल्दी से ! आपका इंतजार रहेगा ! बहुत शुभकामनाएं !

Shastri JC Philip said...

"अभी कोई आधे दर्जन ख़ास पड़ाव बाकी हैं और मेरा ध्यान उचट रहा है ."

अरे क्या गजब कर रहे हैं. शीर्ष तक पहुंचने के पहले ही आप गला दबा रहे हैं. ऐसा न करें.

2 हफ्ता छुट्टी ले लें एवं फिर लिखे!!

रवि रतलामी said...

"....यह भी दिख रहा है की जिस उत्साह के साथ बन्धु बाधवियों ने नारी -नखशिख सौन्दर्य यात्रा को लिया था वह सहकार पुरूष यात्रा में नही दिख रहा है .बहरहाल मैंने यह संकल्प लिया है तो पूरा तो करूंगा ही -
भले ही शनैः शनैः ...."


भले ही आपके लिखे को तात्कालिक प्रतिसाद नहीं मिले, पर आप जो भी लिख रहे हैं, वो सार्थक लेखन है - आने वाले युगों, पीढ़ियों के लिए बेहद काम की चीज. अगर ये बात ध्यान में रखें तो आपके संकल्प पूरा होने में यकीनन तेजी आएगी.

seema gupta said...

" always read and found so many new things on this blog to enrich the knowledge... but what has disturbed you sir???? please continue the same.... well you have decided to be away for couple of days, have a nice time and be back with full energy and spirit"

all the best
Regards

भूतनाथ said...

डाक्टर साहब नमस्ते ! मैं भी छुट्टी पर और आप भी जा रहे हैं ! चलिए आपसे वहीं आकर मिलता हूँ ! शुभकामनाएं !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

गर्दन की लम्बाई और आकार-प्रकार के आधार पर लोगों के व्यक्तित्व के बारे में कई बातें प्रचलित हैं। छोटी गर्दन वाले या गर्दन विहीन व्यक्ति के बारे में तो कई कहावतें प्रचलित हैं। लगता है कि उनका उल्लेख ‘डीसेन्सी’ के विपरीत मानकर छोड़ दिया आपने। अच्छा ही किया ... :)D

राज भाटिय़ा said...

एक अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद

योगेन्द्र मौदगिल said...

क्या बात है
आपके साथ भूतनाथ ने भी छुट्टी ले ली
चलो
जो हुआ ठीक ही हुआ मिश्रा जी

admin said...

शायद इसीलिए कहा जाता है कि जो भी काम करो अपनी गर्दन बचाके।
पुरूष पर्यवेक्षण से आपको जल्दी ही निजात मिले, अब तो यही दुआ मांगी जा सकती है। सही कहा न?