यह कौन महाशय हैं पहचाना आपने ? इनकी जीभ तो देखिये !! क्या कहना चाहते हैं ये ?
रहिमन जिह्वा बावरी कह गयी सरग पताल आपुन तो भीतर गयी जूता खाई कपार
जी हाँ, जीभ स्वाद ग्रहण करने के साथ ही मनुष्य की वाचालता में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है .जीभ रहित मनुष्य एक तरह से गूंगा है तो जीभ सहित वह वाचालता की हदें भी पार कर जाता है .जीभ की सतह पर यही कोई १० हज़ार स्वाद कलिकाएँ होतीहैं जो मूल रूप से चार स्वादों की अनुभूति कराती हैं -मीठा और नमकीन जीभ के अग्र भाग ,खट्टा दोनों साईडॉ तथा कड़वा जीभ के पिछले हिस्से से महसूसा जाता है .जीभ की गति बहुत न्यारी है -यह सतत हिल डुल कर मुंह की साफ़ सफाई में भी जुटी रहती है -दांतों मे फंसे भोजन के छोटे टुकणों की भी यह सफाई करती चलती है ।
बोलने चालने में दांत का कितना बड़ा योगदान है वे अच्छी तरह जानते होंगे जो कभी दंत चिकित्सक के सानिध्य से गुजरे होंगे .जब चिकित्सक थोड़ी ही देर के लिए जीभ की गति को रोकता है तो कितना अनकुस लगता है .जीभ को ज़रा उँगलियों से नीचे दबाकर बातचीत का उपक्रम करें -आपको भी यह यथार्थ समझ में आ जायेगा !
अब आईये जीभ के कुछ खासमखास उपयोगों की भी चर्चा कर लें { पवित्रता वादी कृपया क्षमा करेंगे !).गहन प्रणय व्यवहारों के दौरान चुम्बन की एक 'जिह्वान्वेशी ' ( टंग प्रोबिंग ) किस्म दरसल चुम्बन के ही उदगम -अतीत की ओर हमारा ध्यान खींचती है .मजे की बात तो यह है की चुम्बन की जन्म कथा का सम्बन्ध काम क्रीडा से तो कतई नहीं है .यह मातृत्व के उन सुनहले दिनों की याद दिलाती है जब आधुनिक युग के तरह तरह के बेबी फ़ूड नहीं हुआ करते थेऔर माताएं बच्चों की दूध छुडाई ( वीनिंग ) को लेकर तरह तरह का उपक्रम करती रहती थीं .माँ पहले तो खाद्य पदार्थ को लेकर उसे अपने मुंह में कूट पीस कर लुगदी बनाती थी और फिर उसे बच्चे के मुंह में सीधे जीभ के सहारे अंतरित कर देती थी .यह था चुमबन का उदगम ! अब यह तरीका वैसे तो सभ्य समाज से विदा पा चुका है पर अभी भी कई आदिवासी संस्कृतियों में यह प्रचलन में है .
दरअसल चुम्बन पाना ,चुम्बन देना दोनों ही गहरे प्रेम का प्रगटीकरण है .और इस प्रक्रिया में जीभ कोई तटस्थ दर्शक तो रहती नहीं बल्कि यथावशय्क वह बढ़ चढ़ कर हिसा लेती है .मगर सावधान ! कभी कभी जिह्वान्वेशन जीभ की ही सेहत के लिए भारी पड़ सकता है -चरमानंद के पलों में यदि सावधानी नहीं बरती गयी तो आनंदानुभूति में जबड़ों के सहसा भिंच जाने से जीभ कट भी सकती है .
जीभ के यौनांग अन्वेषणों के पीछे भी व्यवहार विद बचपन में वात्सल्य भाव से यौनांगों की देखभाल का रिश्ता पाते हैं .मगर इसके अलावा भी जीभ को नर अंग के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है .नारी होठ और पुरूष जिह्वा को उनके यौनांगों के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल के कई संकेत भी दुनिया में प्रचलन में हैं .दक्षिण अमेरिका में पुरुषों को अर्ध खुले होठों के बीच से जीभ को धीमें धीमें दायें बाएँ घुमा कर यौनामंत्रण देते देखा जाता है ।
नगर वधुएँ भी अपने ग्राहकों को आमन्त्रित करने के लिए कुछ ऐसे ही इशारे करती है मगर इन्हे सभ्यसमाज अश्लील मानता है ।
भारतीय चिंतन में शायद इसलिए ही जीभ पर कडा अंकुश /अनुशासन रखने की हिमायत की गयी है -यह रसना तो है ही वाचालता और नाना प्रकार के सुख भोगों के लिए भी प्रवचन -प्रताडित होती है ।
दुःख की मारी है हमारी जीभ बिचारी !
7 comments:
जीभ का उपयोग कुण्डलिनी साधक खेचरी मुद्रा में कर तालू से अमृत पान करतें है कामोन्माद में जीभ कटने का कोई प्रसंग स्वतः तो सुनने में नहीं आया हाँ दूसरे की जीभ कटने का प्रसंग काम केलि में अवश्य सुनने को मिला है क्या पुरुषों की जीभ खाद्य पदार्थों के आलावा अन्य सुखों के लिए ज्यादा लार टपकाती है बनिस्पत स्त्रियों के क्या इस पर कभी कोई शोध हुआ है यदि हुआ हो तो अवश्य कीजियेगा | रसना के सम्बन्ध में रसपूर्ण बाते बताने के लिए साधुवाद
मिश्रा जी इतनी जानकारी एक जगह मिलना मुश्किल है ! आपने वाकई बहुत मेहनत से रसना के रस के बारे में बताया है ! दिमाग के कई सवाल इससे सुलझ जाते हैं और जानकारी में वृधि होती है ! ये सिलसिला यूँ ही चलते रहना चाहिए ! धन्यवाद !
कमाल है - जीभ पर इतना सारा सोचा लिखा जा सकता है! यह जान कर दांतो तले जीभ दबाने का मन हो रहा है!
भई वाह
जै हो
जीभ पुराण की
मिश्रा जी , बहुत ही अच्छी जानकारी मिली आपी पोस्ट पर !!!
Jankari ke liye aabhar.
जीभ चर्चा सुन कर अच्छा लगा। वैसे अगर इसमें जीभ चलाने का भी थोडा चर्चा हो जाता तो और बढिया होता।
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