दाढी छुपा सकती है मुहांसों से भरे चहरे को !चित्र सौजन्य -howstuffworks
ज्यादातर व्यवहार विद मानते हैं कि दाढी दरअसल पौरुष भरे यौवन की पहचान है -एक लैंगिक विभेदक है बस ! पौरुष का यह प्रतीक मात्र दिखने में ही भव्य नहीं बल्कि यह अपने रोम उदगमों में अनेक गंध -ग्रंथियों को भी पनाह दिए हुए है .मतलब यह चहरे के कई पौरुष स्रावों के लिए माकूल परिवेश बनाए रखती है .किशोरावस्था के आरम्भ से ही चहरे की गंध (सेंट ) ग्रंथिया भी सक्रिय हो उठती हैं -नतीजतन चहरे पर खील-मुहांसों की बाढ़ आ जाती है !जिस किशोर का भी चेहरा अतिशय मुहांसों से भरा हो तो वह बला का की काम सक्रियता( सेक्सिएस्ट ) वाला हो सकता है -कुदरत का यह कैसा क्रूर परिहास है!
दाढी से भरा पूरा चेहरा वास्तव में एक दबंग /आक्रामक पुरूष की छवि को ही उभारता है .वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म निरीक्षणों में पाया है कि कोई भी पुरूष जब आक्रामक भाव भंगिमा अपनाता है है तो वह अपनी ठुड्डी को थोडा ऊपर उठा देता है और दब्बूपने में ठुड्डी स्वतः गले की ओर खिंच सी आती है .अब चूँकि पुरूषकी ठुड्डी और जबडा किसी भी नारी की तुलना में अमूमन भारी भरकम होता है -दाढी इसी दबंगता को उभारने की भूमिका निभाती है .हमारा अवचेतन दाढी को इसी आदिकालीन जैवीय लैंगिक सिग्नल के रूप में ही देखता है ।
तो तय हुआ कि दाढी पुरूष को पौरुष प्रदान करती है -पर तब एक प्रश्न सहज ही उठता है कि फिर रोज रोज यह दाढी सफाचट करने की 'दैनिक त्रासदी' का रहस्य क्या है आख़िर ?यह प्रथा कब क्यों और कैसे शुरू हो गयी और वैश्विक रूप ले बैठी ! यह कुछ अटपटा सा नहीं लगता कि पुरूष अपने ही हाथों अपने पौरुष को तिलांजलि दे देता है और वह भी प्रायः हर रोज !
आख़िर क्या हुआ कि दुनिया की अनेक संस्कृतियों के युवाओं ने इस लैंगिक निशाँ से दरकिनार होने को ठान ली ?किसी भी से पूँछिये दाढी बनाना सचमुच एक रोज रोज के झंझट भरे काम से कम नहीं नही है -हाँ नए नए शौकिया मूछ दाढी मुंडों की बात दीगर है वहां तो कुछ गोलमाल ही रहता है -रेज़र कंपनियां ,आफ्टर शेव और क्रीम लोशन उद्योग तो बस उनके इसी टशन की बदौलत ही अरबों का वारा न्यारा कर रही हैं ! डॉ दिनेशराय द्विवेदी और मेरे जैसे वयस्कों के लिए तो रोज रोज की समय की यह बर्बादी अखरने वाली ही होती है .
एक साठ साला आदमी जिसने १८ वर्ष की उम्र से ही यह दैनिक क्षौर कर्म शुरू कर दिया हो और कम से कम १० मिनट रोज अपना समय इसके लिए जाया करता रहा हो तो समझिये वह कम से कम २५५५ घंटे यानी पूरे १०६ दिन सटासट -सफाचट में ही जाया कर चुका है .तो आख़िर इतनी मशक्कत किस लिए ?? जानेंगे अगले अंक में !
12 comments:
बढ़िया लेखा रहा. बस एक अनुरोध. इस मुंहासे वाले का चित्र हटाकर कोई भव्य दाढी वाला यहाँ लगाइए ना. लग रहा है जैसे मुख्य विषय मुंहासे ही हैं, दाढी नहीं.
जानेंगे हम भी अगली किश्त में ..इन्तजार रहेगा .रोचक है यह भी
ये टाइम का हिसाब बता कर डरा दिया आपने।लगता है वापस दाढी रखना पडेगा।इंतज़ार रहेगा अगली कडी का।
@बिल्कुल ठीक बात कही भूत भंजक भाई आपने , इसी उधेड़बुन में था पर फिर मुंहासे वाल चित्र लगा कर प्रकारांतर से दाढी का महिमा मंडन किया है -थोडा झेल लें भाई !
दाढ़ी का उल्लेख सही समय किया है। अब दशहरे तक इसे बढ़ते ही रहना है। मेरी नहीं मैं नवराते में भी रोज दाढ़ी मूंडता हूँ।
कम १० मिनट रोज अपना समय इसके लिए जाया करता रहा हो तो समझिये वह कम से कम २५५५ घंटे यानी पूरे १०६ दिन सटासट -सफाचट में ही जाया कर चुका है .तो आख़िर इतनी मशक्कत किस लिए ??
" ye bhut rochak hai, kitna time waste kerteyn hain log ha ha ha , aagey kya jankaree hai intjar hai'
regards
बहुत ज्ञान वर्धक श्रंखला है ! इसे पढ़ने के बाद अगली का इंतजार करना पङता है !
बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
आप चाहो तो हमारा फोटो लगालो ! ना दाढी है ना मुहांसे ! :) कैसा लगेगा ? बहुत रोचक जानकारी दिलचस्प अंदाज में ! बहुत बधाई आपको !
बात गालों की और दाढ़ी की
बात करते हो क्यों उघाड़ी की
उम्र से लेन-देन क्या करना
बात चलती हो जब भी गाड़ी की
सच कहूं मौज आई हिस्से में
बात ली मान जब भी साड़ी की
मिश्र जी आप का तजुरबा है
हमको बतलाऒ बात नाड़ी की
बेचारा किशोर। जब वह पूरे जोर से हीरो नजर आना चाहता है तब प्रकृति उसे चांद के क्रेटर देने में संलग्न रहती है! :(
आप कितना भी अच्छा लिख ले मे तो दाडी नही रखूगां, क्यो कि मेरे बच्चो को ओर उन की मां को विकुल पसंद नही, मेने तोडे समय मुछें रखी तो ओफ़्फ़िस मे सभी पीछे पढ गये , कि इन्हे कटवाओ इन के साथ तुम गुस्से बाले लगते हो, तो भाईयो मेने दो महीने की मेहनत को दो मिन्ट मे साफ़ कर दिया.
वेसे आप का लेख बहुत ही अच्छा हे.
धन्यवाद
इसी टाइम की बर्बादी की वजह से मैं दाढी बनाने से परहेज़ करता हूँ. ये अलग बात है कि कुछ लोग मुझे कट्टर मज़हबी समझ बैठते हैं.
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