यह है इक छल्ला निशानी -साभार -flickr
किन्ही भी दो लोगों के कान एक जैसे नहीं होते .इसलिए कभी कानों की बनावट के जरिये ही अपराधियों के पहचान की कवायद शुरू की कई थी मगर फिनगर प्रिंटिंग के चलते यह तरीका जल्दी ही भुला दिया गया .कानों की बारीकियों को पहचानने के लिए उन्हें १३ क्षेत्रों में बँटा गया है -मगर मुख्य भाग तो ललरी (लोब)और डार्विन उभार ही हैं जिनका वैकासिक महत्त्व है .लोब के बनावट में भी भिन्नता पायी जाती है -लटकने वाले फ्री लोब और न लटकने वाले लोब .कानों की बनावट और लोगों के व्यक्तित्व को लेकर आज भी तरह तरह की बातें कही सुनी जाती हैं .जैसे लंबे कान किसी सफल व्यक्ति की निशानी है ,छोटे और गहरे कान किसी दृढ़ता वादी तो नुकीले कान किसी मौका परस्त की पहचान हैं .अरे अरे यह क्या कर रहे हैं आप -अपने कानों को क्यूँ टटोल रहे हैं -अरे भाई इन बातों का कोई वैज्ञानिक पुष्टिकरण तो हुआ नहीं है !
कई और रोचक सन्दर्भ कानों से जुड़े हुए हैं -सूर्य - कुंती पुत्र कर्ण तथा गौतम बुद्धके कर्ण प्रसूता होने के आख्यान क्या इंगित करते हैं ? यह तो स्पष्ट है कि कान महापुरुषों की जीवन आख्याओं से जुडा तो है .यह ज्ञान और विवेक से भी गहरे जुडा हुआ है -शायद इसलिए कि इसी के जरिये हम तक इश्वर और ज्ञान की बातें पहुँचती हैं -श्रोतम श्रुतैनैव .......शायद इसलिए ही पूरी दुनिया में बालकों के कान उमेठने का रिवाज चल पडा -जो मानों बुद्धि के बंद दरवाजों /तालों को खोलने का यह एक उपक्रम हो !हमारे आप में शायद ही कोई इस कान उमेठन संस्कार से बचा रह पाया हो !
शिक्षकों द्वारा कान उमेठने ,कान पकड़ कर मुर्गा बनाने जैसे दंड बुद्धि के खोलने के यत्न ही तो हैं ? मानों इनके उमेठते रहने से शुषुप्त बुद्धि जागृत हो जायेगी ! "एक कान से सुना दूसरे से बाहर " जैसे फिकरे भी हमें यही बताते रहते हैं कि दोनों कानो के बीच किसी किसी मेंबुद्धि का लोप हो गया रहता है .रोचक तो यह है कि बालकों की तुलना में बालिकाओं के कान कम उमेठे जाते हैं -क्या यह बालिका होने का लाभ है या फिर यह आदिम समझ कि उनका बुद्धि से कोई लेना देना नहीं होता ? सच तो यह है कि आज बुद्धि की कुशाग्रता में बालिकाएं कम नहीं -पर कहीं उनकी भी कुशाग्रता और कानों के उमठने का कोई सम्बन्ध ना हो ? हो सकता है प्रख्यात गणितग्य शकुन्तला देवी के कान उनके शिक्षक उमेठते रहे हों ! कौन जानें !(मात्र विनोद !)
कान उमेठने को लेकर एक रोचक बात का खुलासा और हुआ है -कहा जाता है कि बीते दिनों के राजकुमारों के वैसे तो कान उमेठने की मनाही रहती थी मगर शिक्षकों को यह गुप्त हिदायत भी रहती थी कि यदि राजकुमार ज्यादा शरारत करें तो उनके कान खींचे जायं -मगर इसके पीछे एक विचित्र सी अपेक्षा रहती थी कि कान खींचने से राजकुमार के यौनांग लंबे और ठोस बनेंगे -यह कान और यौनांग के सम्बन्ध - प्रतीकार्थ क्यों और कैसे वजूद में आए विस्तृत विवेचन की मांग करते हैं ।
कानों को लेकर कई ऐसे ही अंधविश्वासों के चलते कई और रीति रिवाज भी शुरू हुए .मसलन पुरुषों के भी कान छेदने की रस्म .कान छेदने के बाद कर्ण छल्ले के मात्र एक कान में पहनावे का चलन ! शेक्सपीयर अपने एक ही कान में स्वर्ण छल्ला पहनते थे ---कारण ? एक ऐसा विश्वास कि छल्ले के जोड़े में से एक पति तथा दूसरा पत्नी पहनें तो दोनों के बिछुड़ने का डर नही रहता -छल्ला कभी बिछड़ जाने पर भी उन्हें मिलाने को आश्वस्त करता था -कभी हजारों मील की समुद्री यात्राओं पर निकलने वाले यात्रियों की वापसी संदिग्ध ही रहती थी -तब इसी एकल छल्ले के साहरे ही लोग वापसी और प्रिया मिलन की आस बांधे रहते थे .
चलते चलते: मरे बचपन के दिनों में एक फिल्मी गाना भी प्रेमी जनों के बीच एक छल्ला निशानी के आदान प्रदान की बात करता था --आजा मेरी रानी ले जा छल्ला निशानी -जिससे वे प्रेमी युगल कभी बिछड़ ना जाएँ !आप क्या कुछ और मतलब समझते थे ? मैं भी तो कुछ और..... पर क्या? यह नही समझ पाता था !ख़ुद अपना कान उमेठा तो कुछ समझ आया !!
अभी भी बाकी है ...........
11 comments:
कान में दो बार लगा दिया...अब आगे बढ़िये.. :)
जरा होले होले!!
" wonderful information, enrching knowledge day by day"
Regards
रोचक है ...यह कड़ी भी ,,शुक्रिया इतना सब इस बारे में बताने के लिए
ये फोटो वाला पुरुष तो सुन्दर की बजाय मेहरा लग रहा है! :-)
बडी सहजता से आप जानकारी को शब्दों में पिरो देते हैं, रोचकता और विषय की गरिमा बनाए रखते हुए। बधाई।
बहुत उपयोगी जानकारी रोचकता से परोसी गई है !
इसके लिए धन्यवाद ! हम आज से ही अपने कान को
उमेठना शुरू करते हैं! अगर ताऊ बुद्धि में कुछ सुधार
आया तो ताई का भी लट्ठ से पीछा छुट जायेगा !
उनको यह काम दे देंगे ! वाह भई मिश्राजी , आपके
सानिंध्य में ये हुवा ना " आम के आम और घुठलियों
के दाम " यानी ताई लट्ठ का काम हाथ से कर लेगी
और हमारी बुद्धि तेज हो जायेगी !
Wah sahab
gyanvardhan barabar ho raha hai
ab thoda or aage..
यह पुरूष व स्त्रियों के कान में भेद क्यों रहता है एक कान से सुनना और एक कान से निकाल देना | जहाँ तक कान को खींच कर अंग विशेष के वृदधी की बात है दूर की कौडी है यदि ऐसा होता तो आज कल उन विज्ञापनों में वर्णित यंत्रों की दूकान बंद हो चुकी होती लोग अपने कानों को खींच खींच कर ही अपनी कमियों को दूर कर लेते जैसे राम्देओ के अनुयायी नाखून रगड़ कर अपना गंजापन दूर होने की खुस्फाह्मी पाले रहतें है कान खींचने से स्त्रियों में क्या परिवर्तन होते होंगे आप के तर्क से स्थिति विस्फोटक सी हो जायेगी इसी कारन आप का उक्त तर्क कानाफूसी पर आधारित लगती है
khubsurat....
आपका कान खींच कर अंग बृद्धि से सम्बन्ध से ऐसा लगता है कि कुछ महिलाओं को अपने पतियों ke कान खींचने में आनंदातिरेक की अनुभूति होगी और पतियों को यह इलाज कराने में कोई आपत्ती भी नहीं होगी
ख़ुद अपना कान उमेठा तो कुछ समझ आया !!Kya samajh aaya?
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