Thursday 31 July 2008

अब आ पहुंचे हैं नारी की खूबसूरत टांगो तक ......

सौजन्य -शटरस्टाक
नारी की `लम्बी´ टांगे खूबसूरती का प्रतीक मानी गयी है। यौन परिपक्वता की उम्र आते - आते टांगे अपनी अधिकतम लम्बाई ले लेती हैं। इसलिए इनकी अतिरिक्त लम्बाई ``अति लैंगिकता ´´ का प्रतीक बन जाती है ।तरह-तरह के उत्पादों के विज्ञापन/प्रदर्शन में नारी की टांगों को प्रमुखता से दिखाया जाता है। भले ही उत्पाद विशेष और नारी की टांगों का दूर दराज का भी कोई सम्बन्ध न हो। यह उपभोक्ताओं को आकिर्षत करने की एक चालाकी भरी युक्ति है ।
यह भी गौरतलब है कि विश्वसुन्दरियों की प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने वाली रूपसियों की टाँगे अपेक्षाकृत लम्बी होती हैं। इन लम्बी टांगों को ऊंची ऐड़ी के जूतों पर साध कर उन्हें और भी लम्बा (खूबसूरत) बना दिया जाता है। फैशन की दुनिया में स्कर्ट की घटती बढ़ती लम्बाई भी टांगों के सौन्दर्य प्रदर्शन से नियमित होती रही है। नारी की जांघों का प्रदर्शन काफी कामोद्दीपक माना गया है ऐसा इसलिए है कि जांघे नारी योनि की निकटता का बोध कराती हैं।

10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अत्यन्त संक्षिप्त विवरण रहा यह। आप को आलोचना भले ही सहनी पड़ी हो। मगर यह श्रंखला ठीक चल रही है। इस के उपरांत नारी के सोलह श्रंगारों पर भी लिखें तो उत्तम रहेगा। इस से लोगों को ऐतिहासिक जानकारी, श्रंगार का महत्व और उन की वैज्ञानिक उपयोगिता का पता लगेगा।

admin said...

द्विवेदी जी सही कह रहे हैं, यह पोस्ट काफी संक्षिप्त रही। क्या पिछली पोस्ट में हुए बवाल से बचने का विचार मन में दबा हुआ था?

L.Goswami said...

Arvind jee se anurodh hai agr gahno ke baare me likhen to aadiwasiyon se shuru karen.

Gyan Dutt Pandey said...

टेनिस खिलाड़िनों की टांगे बहुत आकर्षक होती हैं। सम्भवत अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है वह सुगढ़ता।

vipinkizindagi said...

aapki post bahut achchi hai, padne men bhi maza aa raha hai,
ummid hai aage bhi nari ke vishay par achchi post padne ko milati rahegi

Arvind Mishra said...

द्विवेदी जी ,
मैं ठहरा विज्ञान का सेवक ,साहित्य की मेरी समझ अधकचरी है और ज्ञान पल्लवग्राही .आपसे सादर आग्रह है कि नारी सौन्दर्य के अन्य भारतीय प्रतिमानों -सोलह श्रृगार ,नायिका भेदादि की चर्चा आप अपने विषद अध्ययन के आधार पर करें .मैं उसमे योगदान कर सका तो खुशी होगी -
लवली जी ,
अभी तो आपके पहले ही आग्रह पर विचारण चल रहा है -पुरूष -नख से शिख तक पर एक व्यवहार शास्त्रीय नजरिया -जो उत्तरदायित्व आप लोगों में से किसी को उठाना था ,मगर आपके तार्किक अनुरोध को टालना यह इंगित करेगा कि विज्ञान का नजरिया पक्षपात भरा है .
आभूषण फिर कभी .....

मुनीश ( munish ) said...

Mr. Mishra i must appreciate u for your sincere efforts enriching the hindi blogosphere.
i have just noticed that many hon'ble members of moral-policing squad have criticised ur previous post and to them i want to say that if at all they are concerned about falling moral standards of people writing in public domain then they must see the Delhi and Bombay editions of two major english dailies ,namely TOI and HT and then they will realise what cheapness really means and to top it all many schools ask students to bring these papers into classrooms for loud reading.
Now we are not forced to read Arvind's blog ,but how can we avoid newspapers ? i think all moral people of this country must first of all see the pathetic and miserable treatment given to womanhood by the mainstream press and should not raise hue and cry about an innocuous little blog.

Anonymous said...
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arun prakash said...

where is kadli stambh look like THIGH. THAI LAND KO BHOOL GAYE HAIN KYA

राज भाटिय़ा said...

अर्विन्द जी,आप हम आप को लगातार पढ रहे हे,लेकिन इस बार आप ने कुछ खास नही लिखा, लेकिन जितना लिखा रोचक लिखा, धन्यवाद