Thursday, 3 July 2008

सापों से बढ़ती मौतें और अनोनीमस जी की टिप्पडी !

साँपों के बारे में कल एनोनीमस जी की की एक बड़ी तल्ख़ टिप्पडी आयी .उन्होंने मुझे विग्यान के मठाधीश होने की उपाधि देते हुए यह उलाहना दिया है कि मैंने उक्त पोस्ट पर भारतीय ज्ञान की उपेक्षा की है .यहाँ मैं विनम्रता के साथ यह कहना चाहता हूँ कि जब सवाल आदमी की जान से जुडा हो तो हमें अकादमीय बहसों में नही पड़ना चाहिए - प्राच्य ज्ञान बेहतर है या पश्चिम का ज्ञान इसके चक्कर में बेचारा रोगी तो दम ही तोड़ देगा .जैसा कि हर साल ऐसे ही झमेले में पड़ कर लोग जान गवाते रहते हैं और एनोनीमस भाई लोग अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही ऐसी मौतों के जिम्मेदार बनते हैं ।
मैं यहाँ विज्ञान का उपदेश देने नही आया .मनुष्य की सोशल ड्यूटी होती है वही निभा रहा हूँ .विभिन्न संचार माध्यमों के जरिये विगत तीस वर्षों से मैं लगातार यह कोशिश करता रहा हूँ कि सर्प दंश के रोगियों की संख्या कम हो सके .इसका श्रेय नही लेना चाहता पर समय से हस्तक्षेप के चलते मुझे अपने सामने कुछ लोगों को मौत के मुंह से वापस आ जाने का अनिवर्चनीय सुख साझा करने का अवसर मिला है -जो मेरे जीवन को सार्थकता प्रदान करता है .
मेरे टिटहरी सरीखे प्रयास से और आप लोगों तक यह बात पहुंचा कर ,इस गुजारिश के साथ कि इस बात को आप और लोगों में बाटें ताकि राजा परीक्षित के समय से छाया सर्प अज्ञानता का तमस धीरे धीरे दूर हो सके .
राजा परीक्षित को भी गुमान था कि उन्हें तक्षक नही डस सकेगा -सारी प्राच्य विद्याएँ उनकी जान नहीं बचा सकीं .इस आख्यान के यथार्थ /निहितार्थ को समझना चाहिए .

एनानिमस जी ,विज्ञान में मुल्ले -मठाधीशों के लिए कोई जगह नही होती और न ही यहाँ फतवों के जारी होने का कोई रिवाज ही है .मैं तो सापों के बारे में ये जानकारियाँ महज आप सभी से इसलिए बाँट रहा हूँ ताकि लोगों अकाल मौतों से बचाया जा सके .
अब कुछ काम की बात हो जाय .यह देखा गया है कि कई उन लोगों को जिन्हें धामन [रैट स्नेक ],पंडोल या देढ़हा [वाटर स्नेक ],या वोल्फ स्नेक आदि विषहीन सौंप काट लेते हैं उन पर झाड़ -फूँक का चमत्कारिक -मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है ।और इसका सेहरा ओझाओं सोखाओं के सर दिया बाँध जाता है .
ओझा सोखा तरह तरह के झाम फैलाते हैं -कान में जडी डालते हैं ,जिससे कान के परदे भी फट जाते हैं -नीम की पत्ती खिलायी जाती है जो घबराहट में मीठी लगती है .मनोन्माद में या दर्द से रोगी चिल्लाता है तो उसे साँप का लहर आना बताया जाता है .वह अनाप शनाप बोलता है तो बताया जाता है कि साँप स्वयं बोल रहा है ।इसे स्थानीय भाषा में 'अभुआना 'कहते हैं .आदि आदि .
अब चूंकि रोगी को तो विषैले सौंप ने तो काटा नही है वह इस तरह के आलतू फालतू उपचार के बाद ठीक भी हो जाता है -पी जे देवरस ने इन झाड़ फूंकों का विस्तृत व्योरा अपनी किताब 'द स्नेक आफ इंडिया ' में दिया है .नेशनल बुक ट्रस्ट आफ इंडिया से हिन्दी और अंगरेजी में प्रकाशित इस पुस्तक को पुराने और नयी पीढी को पढने की ,ख़ासकर जिनका संपर्क अभी गावों से बना हुआ है मैं जोरदार सिफारिश करता हूँ .यह साँपों का वेद है .
विषैले सौंप के मामले में झाड़ फूँक की सारी तदबीरें फेल हो जाती हैं और मरीज तिल तिल कर मौत की और बढ़ता रहता है .जिसका जिक्र कल .......

9 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ज्ञान भी भारतीय/अभारतीय होता है?

CG said...

आपकी बात से पुरजोर सहमति.

तकनीक, ज्ञान में भारतीय, अभारतीय, की बजाय रिज़ल्ट पर ध्यान दिया जाना चाहिये... वैसे भी झाड़-फूंक आदि तो प्लेसबो हैं, जिनका असर क्या होगा... बस इस बात का फायदा उठा लेते हैं कि ज्यादातर सांप ज़हरीले नहीं होते, और लोग सिर्फ डरते हैं कि अब मरे...

आप यह सीरीज़ बन्द न करें

Gyan Dutt Pandey said...

आप सही कह रहे हैं। ओझाई वैज्ञानिक आधार पर अगर प्रमाणित हो तो उसका तर्कसंगत अध्ययन-अध्यापन सम्भव होना चाहिये।
लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Aapki baat sahi hai. Par rudhiwadi dimagon men ghusi sadi gali maanytaaon ka kya kiya ja sakta hai?

Anonymous said...

देखिये अड गये न आप अपनी बात पर, इसीलिये मठाधीश कहता हूँ। विज्ञान पर चर्चा के लिये खुला दिमाग चाहिये। जरा बाहर निकलकर देखे तो सही दुनिया मे क्या हो रहा। क्या आपने यह शोध पत्र पढा है

Plant natural products active against snake bite — the molecular approach

http://www.sciencedirect.com/science?_ob=ArticleURL&_udi=B6TH7-41TMN73-P&_user=10&_rdoc=1&_fmt=&_orig=search&_sort=d&view=c&_acct=C000050221&_version=1&_urlVersion=0&_userid=10&md5=69d8889a46dc9d3aab4c6de78589e6e2

ऐसे हजारो उदाहरण है जब आधुनिक विज्ञान प्राचीन विज्ञान को मान्यता दे रहा है। पर कूप मंडूक वही बात करेंगे जो उनकी अलमारी मे रखी किताबो मे लिखा है।

मुझे पता है विज्ञान प्रचार की आपकी दुकान है और रजनीश जैसे लोग आपकी संस्था मे है। सरकार आपको इसके लिये पैसे देती है।
मै आपके धन्धे मे लात नही मारना चाहता पर यदि मुझे कोई सीईओ भष्ट दिखे तो क्या मै दुनिया भर के सीइओ को भ्रष्ट मान लू। जरा बताये कितने प्राचीन सर्प विशेषज्ञ है अपने देश मे और कितने से आप मिले है जो सबको गाली दे रहे है।

देखिये आपके चाटुकारो को यह पता नही कि देशी और विदेशी ज्ञान क्या होता है। आयुर्वेद को शायद वे विदेशी ज्ञान कह दे। आप मानते है कि नही कि ये देशी ज्ञान है। या मै जो भी कहू वह गलत है।

खैर, एक दबी हुयी आवाज को आपने ब्लाग मे जगह दी उसके लिये धन्यवाद।

zeashan haider zaidi said...

मेरा ख्याल है कि अरविन्द जी तो एक अचूक दवा का नाम बता चुके हैं, अब अनानिमस जी भी किसी प्राचीन कारगर औषधि का नाम बता दें तो हम उनके आभारी रहेंगे.

Ashok Pandey said...

यदि एनोनीमस जी को अपने कहे पर भरोसा है, तो उनसे अनुरोध है कि वे पहचान के साथ बहस को आगे बढ़ायें। अन्‍यथा हम यही समझेंगे कि जिसका अस्तित्‍व ही नहीं है, उसका नाग या करैत क्‍या बिगाड़ लेगा।

गांवों में हम हर साल कई परिचितों को सर्पदंश की वजह से खो देते हैं। नामी से नामी झाड़ फूंक करनेवाले अपनी विद्या का प्रदर्शन करते रह जाते हैं और मरीज कालक‍वलित हो जाता है।

अरविन्‍द जी, बिहार के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों में एंटी वेनोम इंजेक्‍शन शायद ही कभी मिलें। यहां पढ़े लिखे लोगों में भी इस विषय में बहुत कम जानकारी है। आप कृपया इंजेक्‍शन का नाम, कीमत, रखरखाव का तरीका, डोज और उससे संबंधित सावधानियों की बात जरूर बतायें। इस जानकारी के प्रसार से सर्पदंश से मरेनेवाले हजारों लोगों की जान बचायी जा सकती है।

जैसा कि सिरिल गुप्‍ता जी ने भी कहा है आप यह सीरीज जारी रखें। आभार।

Pankaj Oudhia said...

आज की तारीख मे एंटी-वेनम के अलावा कोई विकल्प नही है। बरसो से पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ पर यह मानता हूँ कि इस मामले मे ज्ञान के 'वेलिडेशन' के बाद ही इसे मुहर लगाकर आम लोगो के लिये अनुमोदित किया जा सकता है। लेख की अगली कडियो की प्रतीक्षा है।

admin said...

अनानिमस की बात क्या सच है? इस पर विचार किया जाना चाहिए।
इस संदर्भ मैं दो बातें कहना चाहता हूं। पहली बात यह कि ये जो भी सज्जन हैं इन्हें अपनी बात पर भरोसा नहीं है और न ही इनमें सामने आकर सच कहने का साहस है, अन्यथा ये अपना परिचय देते और सीना ठोक कर कहते कि मैं फला फला और मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं... वगैरह-वगैरह।
हमने अपने साहित्य में बहुत सारी बातें पढी हैं, जिन्हें हम सत्य मानते हैं, पर वे बिलकुल असत्य हैं। उदाहरण के लिए मैं कुछ चीजें गिना देना चाहता हूं। जैसे कि हीरा को चाट लेने से आदमी की मृत्यु हो जाती है। इसका वर्णन हमारे साहित्य में जीभर कर किया जाता है। जबकि यह बात सरासर गलत है। दूसरी बात मोती के जन्म को लेकर है। कहा जाता है कि जब स्वाती नक्षत्र की पहली बूंद सीप के मुंह में गिरती है, तब मोती बनता है, जबकि यह बात भी पूरी तरह से एक गप्प ही साबित हुई है।
दूसरी बात यह कि अरविंद जी ने एक दवाई से सांप के काटे का इलाज बताया है, मेरी अनानिमस जी से गुजारिश है कि कृपया वे भी एक मंत्र बताएं, जिससे सांप का जहर समाप्त हो जाता हो।
अनानिमस जी, प्लीज हमें आपके जवाब का इंतजार रहेगा।