यह गौर तलब है कि वनमानुषों की मादाओं का स्तर अपेक्षाकृत बहुत पिचका और बिना उभार लिए होता है। नारी स्तनों की सबसे अहम भूमिका दरअसल यौनाकर्षण (सेक्सुअल सिगनलिंग) ही है। व्यवहार विज्ञानियों ने नारी वक्ष की यौनाकर्षण वाली भूमिका की एक रोचक व्याख्या प्रस्तुत की है। उनका कहना है कि नर वानर कुल के तमाम दूसरे सदस्यों में मादाओं के नितम्ब प्रणय काल के दौरान तीव्र यौनाकर्षण की भूमिका निभाते हैं - उनके रंग आकार में सहसा ही तीव्र परिवर्तन हो उठता है। उनके नर साथी इन नितम्बों के प्रति सहज ही आकर्षित हो उठते हैं। यह तो रही चौपायों की बात किन्तु मानव तो चौपाया रहा नहीं।
विकास क्रम में कोई करोड़ वर्ष पहले ही वह दोपाया बन बैठा-दो पैरों पर वह सीधा खड़ा होकर तनकर चलने लगा। वैसे तो और उसके पृष्ठभाग में नितम्ब अपने कुल के अन्य सदस्यों की ही भा¡ति अपनी यौनकर्षण वाली भूमिका का परित्याग नहीं कर पाये हैं- किन्तु मानव के ज्यादातर कार्य व्यापार आमने सामने से ही होने लगे, और नितम्ब पीछे की ओर चले गये। अब जरूरत आगे, सामने की ओर ही वैकल्पिक यौनाकर्षक `नितम्बों´ की थी और यह भूमिका ग्रहण की नारी स्तनों ने। नारी के वक्ष दरअसल उसी आदि यौन संकेत का ही बखूबी सम्प्रेषण करते हैं - सेक्सुअल नितम्बों का भ्रम बनाये रखते हैं, मगर सामने से मानव मादा के स्तनों की यह नयी यौन भूमिका कुछ ऐसी परवान चढ़ी कि उसके मूल जैवीय कार्य यानी शिशु को स्तनपान कराने में मुश्किलें आने लगीं।
अपने उभरे हुए गुम्बदकार स्वरूप में नारी के स्तन शिशुओं का मुंह ढ़क लेते हैं, स्तनाग्र अपेक्षाकृत इतने छोटे होते हैं कि शिशु उन्हें ठीक से पकड़ नहीं पाता। उसकी नाक स्तन से ढक जाती है और वह सांस भी ठीक से नहीं ले पाता। प्राइमेट कुल के अन्य सदस्यों के शिशुओं को यह सब जहमत नहीं झेलनी पड़ती। क्योंकि उनकी मा¡ओ के स्तन छोटे पतले और पिचके से होते हैं और चूचक लम्बे, जिन्हें शिशु आराम से मु¡ह में लेकर दुग्ध पान करते हैं।
नारी के पूरे जीवन में स्तनों की विकास यात्रा सात चरणों में पूरी होती है। जिनमें बाल्यावस्था के `चूचुक स्तन´, सुकुमारी षोडशी के उन्नत शंकुरूपी स्तन, नवयौवना के स्थिर उभरे स्तन तथा मातृत्व और प्रौढ़ा के पूर्ण विकसित, अर्द्धगोलाकार - गुम्बद रूपी स्तन और वृद्धावस्था के सिकुड़े स्तन की अवस्थाए¡ प्रमुख हैं।
क्रमशः
10 comments:
आज सार्थक एवं उपयुक्त टिप्पणी नहीं कर पा रहा हूँ..शायद मेरी ही कमी है..क्षमापार्थी हूँ...माफ किजियेगा.
अच्छा विश्लेषण है..
दुबारा टिप्पणी कर रहा हूँ क्योंकि मुझसे पहले समीर भाई की टिप्पणी से ऐसा आभास हो रहा है जैसे आप का यह लेख सार्थक कहलाने योग्य नहीं है..?
मैं ऐसा नहीं मानता.. आखिर यौन विषय जीवन की निरन्तरता का मूल है.. हम सब के प्रति जिज्ञासा को पोषित करेंगे और यौन विषय के प्रति आँखें मूँदे रहेंगे.. क्यों? क्या वहाँ ज्ञान के आलोक की ज़रूरत नहीं है..? क्या अज्ञान के उस अँधेरे में सिर्फ़ विकृतियां पलने देनी चाहिये?
अभय तिवारी जी की बात में दम है। पता नहीं क्यों आपकी इस श्रंखला में पाठक तो बहुत आ रहे है, ऐसा ब्लॉगवाणी और चिटठाजगत चुगली कर रहे हैं, पर टिप्पणी करने से बच रहे हैं। शायद यह हम मनुष्यों के व्यक्तित्व का लिजलिजापन है कि वह एकांत में बैठकर मस्तराम की कहानियाँ तो पढ लेगा, पर बैठक में इन विषयों पर सार्थक चर्चा नहीं कर सकता।
अभय भाई
मेरी टिप्पणी का आशय आलेख के सार्थक न होने से कतई नहीं है. मैं तो खुद ही स्वस्थ योन विषयक चर्चाओं का पक्षधर रहा हूँ.
मेरी टिप्पणी केवल मेरी भावनाओं को उचित शब्द न दे पाने की विडंबना के प्रति क्षमाप्रर्थना थी अन्यथा अगर मैं इस आलेख को गलत या सार्थक न मानता तो चुपचाप निकल जाता या मौन धारण किये रहता, कौन रोकता.
आशा है आप समझेंगे: शायद मेरी ही कमी है..वाक्य में अंतर्निहित भावना.
हम तो शंकर के "नारीस्तनभरनाभिदेशं, द्दृष्ट्वा मागा मोहा वेशम। एतन्मान्सवसादिविकारं, मनसिविचिन्तय वारम वारम" के प्रभाव में मानव और अन्य जीवों के इस अन्तर को तो कभी नोटिस नहीं किये। आपने इस पोस्ट में अन्तर बता ज्ञान वर्धन किया - इसके लिये धन्यवाद।
और शंकर के श्लोक में भी स्तन का उद्दीपक अभिप्राय तो स्पष्ट ही है!
आवासः क्रियतां गंगे पाप वारिणी | स्तन मध्ये तारून्या व मनोहारिणी हारिणी| या तो पाप नाशिनी गंगा के तट पर वास करें या मनोहर हार वाले तरुनी का वक्षस्थल पर रहें आपके लेखो ने कवि की कल्पनाओं पर सोचने को मजबूर किया है दिर्घावती लांब स्तनों की कल्पना हमारे शास्त्रों में की गई है पुराने ऋषि महार्षिवो ने एकांत में इस पर बार ही शोध किया है
नारी के सुडोल,सुगठित,गुम्बदाकार स्तन पुरुषों की सर्वोच्च चाहत रही है।स्त्री को यह प्रकृति की अनमोल देन है।स्तनों के बारे में सुरुचिपूर्ण.विग्यान सम्मत आलेख केलिये बधाई,आभार!
संस्कृत कवियों ने नारी की जंघाओं की तुलना केले चिकने मृसन तने से तथा स्तनों की घड़े से भी की है .घडा भर दूध उतरता था शिशु पान में .(नारी के स्तन यौन -आकर्षण का चुम्बक हैं .).
बहुत ही अच्छी जानकारी मेरे ब्लॉग पर भी आपको निमंत्रण है www.guide2india.org
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