Friday 13 June 2008

एक जाति प्रथा वहाँ भी है !

एक जाति प्रथा सामाजिक कीटों में भी है -जहाँ कई किस्म के वर्ग हैं जो काम के विभाजन की अद्भुत बानगी प्रस्तुत करते हैं .दीमक ,चीटियाँ ,ततैये ऑर मधुमखियों में एक बहुत ही जटिल सामाजिक संगठन देखने को मिलता है .इस प्रकार के अध्ययन को अमेरिकी वैज्ञानिक ई ओ विल्सन ने विगत दशक के आंठवें दशक में पूरी प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया ऑर मशहूर अमेरिकी पुरस्कार 'पुलित्जर पुरस्कार 'से नवाजे गए .उन्होंने जीव जंतुओं में सामजिक संगठन की जैवीय पृष्ठभूमि को समझने बूझने के एक नए विज्ञान को ही जन्म दे दिया -नाम दिया ,सोशियोबायलोजी अर्थात समाज जैविकी .आश्चर्य है कि तीन दशक के पश्चात् भी इस विधा में भारत ने कोई संगठित पहल नही की है ।
जैसी सामाजिक व्यवस्था इन कीटों में पाई जाती है वह मनुष्य के अलावा किन्ही ऑर जंतु -यहाँ तक कि स्तन्पोशियों में भी नही मिलती .इन कीटों में रानियाँ ,बादशाह ,श्रमिक ,सैनिक तथा अढवा -टिकोर के लिए कारिन्दें भी होते हैं और क्या मजाल किसी के काम मे कोई चूक हो जाय .सभी एक जुटता से काम करते हैं और एक विशाल प्रणाली को जन्म देते हैं ।
यहाँ अभी तक आरक्षण की मांग नहीं उठी है .

4 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

पंत जी की कविता याद आ रही है - "चींटी को देखो, ... वह सरल विरल काली रेखा.. "
चींटियों ने मुझे हमेशा फैसीनेट किया है। वैसे ही सामाजिक कई अन्य जीव भी होंगे।

Udan Tashtari said...

इनकी सामाजिक संरचना पर और विस्तार से बताईयेगा. काफी दिलचस्प लग रहा है.

बालकिशन said...

आपका का ब्लाग और अजित जी का ब्लाग (शब्दों का सफर) कभी मिस हो जाय तो वैस ही लगता है जैसे पहले कभी स्कूल मे कोई दिन एब्सेंट होने पर लगता था.
बहुत ही रोचक जानकारिया मिल रही है.
हाँ इनमे कभी भी आरक्षण की मांग नहीं उठेगी क्यूंकि ये मनुष्य नहीं हैं.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सही कहा आपने, वहाँ मनुष्य नहीं हैं, वर्ना उनकी सामाजिक प्रणाली भी ध्वस्त हो गयी होती।