Monday 28 April 2008

मछलियों पर एक ऑर राषट्रीय सम्मेलन !

कामन कार्प मछली जिसकी इन दिनों गंगा -यमुना मे बाढ़ आयी हुयी है -यह अभिशाप है या वरदान ?
मछलियों पर एक ऑर राषट्रीय सम्मेलन अभी कल यानी २७ अप्रैल ०८ को लखनऊ मे संपन्न हुआ है .यह आई . सी .ए आर नामक राष्ट्र- स्तर के कृषि अनुष्ठान की एक इकाई ,रास्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो लखनऊ द्वारा २६-२७ अप्रैल को आयोजित था .इसका विषय था 'जलजीव आनुवंशिक संसाधन पर रास्ट्रीय सम्मेलन '।
जाहिर है मछलियाँ भी अब सतह पर हैं .वैसे वैज्ञानिक मान्यता तो यह है कि मछलियाँ जब सतह पर आने लंगें तो समझिए उनका अंत काल निकट है -शायद वैसे ही जैसे कहते हैं कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की और रुख करता है। पर अभी तो फिलहाल लखनवी मछलियाँ जो सम्मेलन में सतह पर आयीं वे सब खुशहाल ,चुस्त दुरुस्त ऑर हृस्ट पुष्ट हैं ।
सम्मेलन का उदघाटन जाने माने कृषि वैज्ञानिक डॉ मंगला राय ने किया .उन्होंने जलजीवों के सरक्षण पर तो जोर डाला ही वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे मछलियों की नस्ल सुधार की कोशिश करें ।
मैंने धार्मिक तालाबों मे पहले से ही सरक्षित मत्स्य सम्पदा पर ध्यान आकर्षित कर उसके शोधात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला .इस समय गंगा नदी [प्रणाली] मे घुसपैठ कर बैठी चीनी मूल की कई मछलियों पर गहरी नजर है -पर अब उन्हें निकाला कैसे जाय -वैज्ञानिकों की अक्ल जवाब दे गयी है .यह हमारे देशज मछलियों पर क्या सितम ढायेगी यह देखा जाना है -कामन कार्प एक ऐसी ही मछली है जिसने अप्रैल मे ही बच्चे दे दिए जबकि हमारी देशी मूल की कार्प मछलियों के पेट मे अब अंडे बननाशुरू ही हुए है -यानी अभ्यागत मछली के बच्चे जब खा खा कर मुस्तंड हो जायेगे तब कही बरसात मे हमारी देशी कार्प मछलियाँ अंडे -बच्चे देंगी .तब कौन बाजी मारेगा यह एक साधारण बुद्धि का आदमी भी बता सकता है -पर हमारे वैज्ञानिक चुप्पी साधे हैं -कौन बवाल मोल ले ,वैसे भी भारत के प्रजातंत्र मे वैज्ञानिकों को/की सुनता ही कौन है ?इस देश मे अभी तक वैज्ञानिक सेलिब्रिटी नही बन पाये हैं .
बहरहाल नेशनल ब्यूरो ऑफ़ फिश जेनेटिक रेसोर्सस [एन बी ऍफ़ जी आर ],लखनऊ के निदेशक डॉ वजीर सिंह लाकडा ने विषय प्रवर्तन किया और यह भी उद्घोषणा की कि जल्दी ही भारत के कई प्रदेशों के राज्य मीनों का निर्धारण हो जायेगा .राज्य पशु -पक्षी की ही तर्ज पर .
कुल मिलाकर यह सम्मेलन मछलियों की [आनुवंशिक ] संपदा की दुर्दशा को बयान करता एक दस्तावेज बन गया .विचित्र संयोग या विडम्बना यह कि यह सारा आयोजन एन बी ऍफ़ जी आर की सिल्वर जुबली पर आयोजित हुआ .हाँ संस्थान ने अतिथि वैज्ञानिकों की खातिरदारी मे कोई कोर कसर नही रखी.सभी को आभार .

2 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

पर अभी तो फिलहाल लखनवी मछलियाँ जो सम्मेलन में सतह पर आयीं वे सब खुशहाल ,चुस्त दुरुस्त ऑर हृस्ट पुष्ट हैं ।
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वाह, पोस्ट पर हास्य-व्यंग का टैग/लेबल लगा दें!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

चलिए इसी बहाने कामन कार्प जैसी अनोखी मछली के बारे में जानकारी मिली। वैसे कामन कार्प का सवाल छोडा टेढा है, जिसके बारे में मत्स्य वैज्ञानिकों को समय रहते सोचना चाहिए। अन्यथा फिर वही कहावत दोहराई जाएगी कि अब पछताए होत क्या...