इबोला यानि ई वी डी(Ebola virus disease) -इबोला हीमोरजिक फीवर नर वानर समुदाय का रोग है जो इबोला विषाणु से होता है। विषाणु के संक्रमण के बाद दो दिन अथवा तीन सप्ताह के बाद भी लक्षण उभर सकते हैं। लक्षणों में इन्फ्लुएंजा जैसा बुखार, गले में खरास , मांसपेशियों में दर्द और सरदर्द हैं. कुछ भी निगलने में कठिनाई भी हो सकती है। तत्पश्चात वमन (उल्टी /कै) दस्त और शरीर पर चकत्ते होते हैं और लीवर और गुर्दे ठीक से काम नहीं करते। खून की उल्टियाँ भी होती हैं. मरीज के शरीर के भीतर और बाहर भी रक्तस्राव शुरू हो जाता है। यह जानलेवा है।
इस विषाणु का संक्रमण पहले से ही संक्रमित मुख्यतः कपि वानरों या दूसरे जानवरों या मनुष्य के रक्त सम्पर्क या शारीरिक द्रव से संपर्क से हो सकता है। मनुष्य से मनुष्य में यह फ़ैल रहा है, अभी तक अफ्रीका में इसका ज्यादा कोप है मगर अब यह विश्वव्यापी बीमारी का स्वरुप लेता जा रहा है. कहा जा रहा है कि चमगादड़ों की एक प्रजाति (फ्रूट बैट ) बिना इससे प्रभावित हुए इसे फैला रही है। चूंकि मलेरिया, हैजा और अन्य विषाणु जनित रोगों के लक्षणों से इबोला के लक्षण मिलते जुलते हैं अतः इसके निर्णायक निदान /पहचान के लिए वाइरल प्रतिपिण्डों की जांच रक्त सैम्पल से की जाती है।
बचाव ही इसका कारगर उपाय है क्योकि अभी तक इसका प्रभावी टीका और शर्तिया इलाज सुलभ नहीं है.मांसभोजी मांस को छोटे वक्त हाथों पर दास्ताने पहने और अच्छी तरह उसे पकाएं। और किसी मरीज के आस पास या संपर्क में होने पर हाथों को साबुन से अच्छे ढंग से साफ़ करते रहे।अभी तक मृत्यु दर 50 से 90 के बीच देखी जा रही है। यह सबसे पहले सूडान और कांगो से पहचाना गया -और वर्ष 1976 से ही सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में देखा जाता रहा है। लगभग दो हजार लोग इसके चपेट में आ चुके हैं। इस समय यह महामारी का रूप ले चुका है और पश्चिमी अफ्रीका के गुएना, सिएरा लियोन और लाबेरिया तथा नाइजेरिया में कहर बरपा रहा है। एक हजार से अधिक लोग अब तक मर चुके हैं। वैक्सीन को विकसित करने के प्रयास युद्ध स्तर पर हैं मगर कोई कारगर सफलता नहीं मिल सकी है।