Tuesday, 26 November 2013

यादों की आंखमिचौली-झूठीं यादों का गड़बड़झाला!

सावधान! नए वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि कुछ यादें झूठी भी हो सकती हैं।  अर्थात आप कुछ ऐसा याद किये हुए हो सकते हैं जो आपके जीवन में घटा ही न हो। फिर भी आप शान से अपने संस्मरण में किसी ख़ास घटना और दृश्य का जिक्र कर सकते हैं और शेखी बघारते रह सकते हैं.ऐसी क्षद्म स्मृतियों की जन्म प्रक्रिया अभी ठीक से नहीं समझी जा सकी है मगर वैज्ञानिकों ने पुष्टि कर दी है कि इनका वजूद है और इनके चलते विषम स्थितियां भी उत्पन्न हो सकती हैं।  अब किसी घटना के अगर आप कोर्ट में चश्मदीद गवाह बने जो वस्तुतः आपके सामने घटी ही नहीं मगर आपको पूरा भरोसा है कि आपने उसे देखा है तो आपकी गवाही किसी को जेल के सींखचों में डाल  सकती है या निकाल भी सकती है।

दिमाग का एक हिस्सा एमयिगडेला स्मृतियों को सहेजने का काम  करता है.अभी हाल में ही प्रोसीडिंग्स आफ नेशनल अकादेमी आफ साइंसेज में छपे अध्ययन से यह साफ़ पता लगता है कि सामान्य और और तेज याददाश्त वाले दोनों तरह के लोगों में यह स्मृति दोष समान रूप से पाया जाता है।  कुछ लोगों की याददाश्त बहुत अच्छी  होती है जिन्हे "highly superior autobiographical memory -HSAM" कहा जाता है।  प्रयोगों में पाया गया है कि इनकी याददाश्त भी इनके साथ आँख मिचौली कर सकती है -वे झूठे स्मृति प्रतिरूपों को भी याद रख सकते हैं , यह पूरा अध्ययन अभी हाल में ही टाईम पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।स्मृति विभ्रम या विकृति के इस अध्ययन को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी लारेंस पैथीस के नेतृत्व में किया गया है। 

मजे की बात यह है कि चूहों पर किये गए अनुसन्धान में ऐसी छदम स्मृतियों को उत्पन्न करने में सफलता मिली है और ऐसे स्मृति पैटर्न को एक से दूसरे चूहे के दिमाग में भी आरोपित कर पाना सम्भव हुआ है।  
मेमोरी के लिए जिम्मेदार कोशायें/ द्रव्य (मेसेंजर आर एन ऐ आदि  ) ट्रांसफर एक से दूसरे चूहों में करना सम्भव हो गया है और इससे किसी छद्म स्मृति प्रतिरूप को भी एक चूहे से दूसरे चूहे तक में अंतरित किया जा सकता है।  यह अध्ययन भी प्रसिद्ध शोध पत्रिका साईंस के एक हालिया अंक में विस्तार से प्रकाशित हुआ है। स्मृति आरोहण के ऐसे अध्ययन मानवीय संदर्भ में कई सम्भावनाओं को जन्म देते हैं जिनमें जहाँ स्मृति दोषों को ठीक किया जा सकेगा ,बहुत बुरे अनुभवों की याद को हटाया  जा सकेगा वहीं इस तकनीक का बहुविध दुरुपयोग भी हो सकता है।  

अब हो सकता है कि आप  अपनी यादों की हकीकत को भी एक बार फिर से परखना चाहें। सम्भव है कि कोई कटु या मधुर याद जिसे आप सजोये हुए हैं वह अनायास ही एक वहम के रूप में आपकी धरोहर बनी हुयी हो।  

Monday, 4 November 2013

धड़कते दिल से मंगलयान आरोहण का इंतज़ार

भारत जैसे गरीब देश के लिए अरबों रुपयों का यह तमाशा या वैज्ञानिक आतिशबाजी क्या शक्ति प्रदर्शन का हेतु लिए महज दिखावा हैं। यह सवाल कई लोगों के जेहन में कौंध रहा है .नहीं नहीं यह मौका है भारत को अपनी तकनीकी क्षमता का स्व -आकलन का ,खुद को साबित करने का .

आज नहीं तो निकट भविष्य में ही मानुषों का मंगल पलायन होना ही है -बिना मंगल पर पहुंचे मानवता का मंगल नहीं है यह तथ्य अब विज्ञानी और विज्ञान कथाकार अच्छी तरह समझ गए हैं . हमारे संस्रोत तेजी से ख़त्म हो रहे हैं ,जनसख्या बढ़ रही है -उन्नत देश गरीब देशों को अंगूठा दिखा मंगल पर मंगल मनाने की जुगत में है -ऐसे में भारतवासियों का हर वक्त अपने गरीबी के अरण्य रोदन के बजाय इस मंगल मुहिम को प्रोत्साहित करना चाहिए -यह पूरी मानवता के (भविष्य के ) अस्तित्व के लिए करो या मरो का प्रश्न है . 




मुझे लगता है कि चन्द्र बस्तियां बसे न बसे किन्तु मंगल पर मानव बस्तियां निश्चय ही एक हकीकत बनेगीं . मार्स - 1 2 प्रोजेक्ट तो ऐसी किसी सम्भावना को एक दशक के भीतर ही पूरा करने के अभियान पर है . आज मंगल आरोहण पर जाने वाले मंगलयान यानि मार्स आर्बिटर मिशन (मॉम ) का एक मकसद है लाल ग्रह पर मीथेन की उपस्थिति का पता लगाना जो कार्य पहले किसी ने नहीं जांचा परखा . अगर मीथेन की उपस्थिति वहाँ पायी जाती है तो निश्चय ही यह जैवीय पर्यावास के लिए एक शुभ संकेत होगा . चंद्रयान ने जैसे चन्द्रमा पर पानी की पुष्टि का अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किया है वैसे ही मीथेन की उपलब्धता की मगल पर पुष्टि इस अभियान का एक बड़ा हेतु है .हमारा पड़ोसी चीन अपने मंगल अभियान में अब तक असफल रहा है मगर उसकी कोशिशें जारी है। अपने मगलयान को मंगल पर पहुँचने में दस माह का समय लगेगा . वहाँ पहुँच कर यह उसकी परिक्रमा करता रहेगा और इसके खोजी यन्त्र तथा कैमेरे जरूरी सूचनाएं मुहैया कराते रहेगें .

आज सुबह सुबह ही जब स्वप्निल भारतीय ने अमेरिका से मुझे फेसबुक पर एक तुरंता सन्देश भेजा कि उनके लेख के लिए मैं अपनी त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करूं तो मुझे लगा कि समूची दुनिया भारत के इस अभियान को बड़ी व्यग्रता से देख रही है . याहू के इंडियन साईंस फिक्शन ग्रुप ने भी इस अभियान पर एक चर्चा छेड़ दी है .

शुभकामनाएं भारत -कर दो साबित खुद को!

Friday, 11 October 2013

स्त्री यौनिकता और मदन लहरियां:अचंभित करने वाले तथ्य!

बात उन्नीस सौ पच्चास -साठ के दौरान की है जब वाशिंगटन युनिवेर्सिटी, सेंट लुइस के विलियम मास्टर्स और विरजीनिया जान्हसन के सेक्स विषयक शोध परिणामों ने तहलका मचाया था . उन्होंने ख़ास तौर पर स्त्री यौनिकता पर कई ऐसे शोध परिणाम उजागर किये कि लोग सकते में आ गए और बहुत हो हल्ला मचा .सारी दुनियां में मास्टर्स और जान्हसन के दावे चर्चा का विषय बन गए . तमाम दीगर बातों में उनका यह भी रहस्योद्घाटन था कि स्त्रियाँ में चरमानन्द( )की अनुभूति मदन लहरियों(multiple orgasm) के रूप में होती है -मतलब पुरुष जहाँ स्खलन के साथ मात्र एक ही चरम आंनंद उठाता है, नारियां इस मामले में उनसे समृद्ध हैं।तब से आज तक पुरुष -नारी की यौनिकता पर अनेक अध्ययन हो चुके हैं ,मगर एक नये अध्ययन की चर्चा टाईम पत्रिका ने अपने हाल के अंक में(एशिया  एडीशन, अक्तूबर  07, 2013) की है जो डॉ इडेन फ्रामबर्ग और नाओमी वोल्फ के शोध पर आधारित है.
उनके नए अध्ययन में मुझे तो कोई ख़ास बात नहीं नज़र आती मगर टाईम ने इसे बारह 'अचंभित करने वाले तथ्य' का शीर्षक दिया है . जबकि सच तो यह है कि इनमें सदमाकारी कुछ भी नहीं है . यह सच है कि ज्यादातर भारतीयों को उनकी सहचरियों/संगिनी को आर्गेज्म मिलाता है या नहीं इस के बारे में शायद ही पता हो . बहुतों को बस खुद से मतलब रहता है संगिनी की परवाह ही नहीं रहती . यह बहुत संभव भी हो सकता है क्योकि भारत में सेक्स एक टैब्बू ही बना रहा है और लोग इस मुद्दे पर ठीक से शिक्षित प्रशिक्षित नहीं होते -यह 'काम' पूरी तौर पर बस कुदरत के हवाले ही हो रहता है . अनेक यौन ग्रंथियां फलस्वरूप जीवन भर रह जाती हैं .
आईये नए अध्ययन की एक बानगी लेते हैं . नया अध्ययन भी स्त्री यौनिकता के कई पहलुओं पर से पर्दा उठाने की बात करता है . जैसे उसके अनुसार कभी बहुत पहले स्त्रियों के ऋतु धर्म का चक्र चन्द्रकलाओं से पूरा तारतम्य रखता था .अँधेरे पक्ष में ऋतुस्राव और पूर्णिमा को ही प्रायः अंड स्फुटन होता था . मगर सभ्यता की रोशनी ने यह चक्र बेतरतीब कर दिया .शयन कक्ष के लट्टुओं में उस आदिम प्रक्रिया की लय टूट ही गयी . हाँ कुछ नए प्रयोग चंद्रकला से फिर से जुड़ने के हैं जिसे 'ल्यूनासेप्शन' कहा जा रहा है . एक और खुलासा यह है कि संसर्ग के पांच से आठ दिन बाद तक भी कतिपय मामलों में शुक्राणु जीवित रह सकता है और गर्भ ठहर सकता है . शुक्राणु गर्भमुख के पास के योनि श्लेष्मा में सुरक्षित रह सकता है जबकि प्रायः शुक्राणु संसर्ग हो उठने के कुछ घंटे ही जीवित रहते हैं .
यह एक रोचक बात यह भी बताता है कि  'हाई हील' सैंडल नारी आर्गेज्म पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है . इससे श्रोणि मेखला की कुछ नर्व्स दबती हैं जो आर्गेज्म पर बुरा प्रभाव डालती हैं . सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह हुआ है कि आर्गेज्म लेने वाली स्त्रियाँ ज्यादा कर्मठ और सृजनशील होती है. और यह एक फीडबैक प्रक्रिया है -मतलब ज्यादा आर्गेज्म ज्यादा कर्मठता और सृजन और यह पुनः समुचित आर्गेज्म के लिए उकसाता है . यह भी कि गर्भ निरोध गोलियां कामोत्तेजना को घटाने वाली पाई गयीं हैं . एक रोचक बात यह भी उभरी कि कुछ ढंग की कुर्सियों पर बैठना प्यूदेंडल नर्व को संवेदित कर यौन उत्तेजन को उकसा सकती है . और देर तक बैठना उसे दबा भी सकती है . नहाने के बाद स्त्रियाँ बेहतर आर्गेज्म पाती हैं .

बाकी के शोध परिणाम बस पुराने शोध अध्ययनों के पिष्ट पेषण भर हैं जैसे नारी शरीर के कामोद्दीपक क्षेत्र -भगनासा ,कुचाग्र ,जी स्पाट ,गर्भ द्वार(opening of the cervix) हैं , चरम आनंद के समय होने वाली सिरहनों का कारण गर्भाशय का शुक्राणुओं के बटोरने में होने वाला संकुचन है . अध्ययन यह भी बताता है कि सभी नारियां चरम आनंद पा सकती हैं मगर यह कैसे मिले यह सभी को ठीक से पता नहीं होता .

Sunday, 29 September 2013

जलजला जजीरा - समुद्र में अचानक यह क्या उभर आया ?

अभी पिछले हप्ते (24,सितम्बर 13 ) पाकिस्तान में जो एक भीषण भूकंप आया (जलजला ) आया था उसके चलते समुद्र में एक नया जजीरा बन गया -यहाँ के मीडिया में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुयी . मगर अमेरिकी भूगर्भ शास्त्रियों ने इसमें ख़ास रूचि दिखायी हैं . लोगों ने मजाक में यह भी कहा कि चलो अमेरिका को एक नया नौसैनिक अड्डा मिल गया है . अमेरिकी भूगर्भ शास्त्री बिल बर्न्हार्ट के अनुसार यह मिट्टी बालू गाद और पत्थरों का एक जखीरा है और यहाँ समुद्र पंद्रह से बीस मीटर गहरा है यानि यह समुद्र तट से ज्यादा दूर नहीं है .मजे की बात है कि इस नए मड आईलैंड के बनते ही सैलानियों की आवाजाही भी शरू हो गयी है। यह जजीरा ग्वादर की पश्चिमी खाड़ी पड्डी जिर्र के समीप है .
बिल बर्न्हार्ट के मुताबिक़ यह गाद समुद्र की तलहटी से भूकंप के दौरान ऊपर उठ आयी जबकि भूकंप का केंद्र यहाँ से तीन सौ अस्सी किलोमीटर दूर है . उनके अनुसार भूकम्पों के समय जमीन में गहरे दबी मीथेन गैस,कार्बन डाई आक्साईड भूगर्भीय परतों के हिलने से दबाव मुक्त होकर बाहर निकल पड़ती हैं और अपने साथ भारी मात्रा में समुद्री गाद को ऊपर ढकेल देती हैं। यह नया जजीरा ऐसे ही बना है . अभी भी यहाँ से मीथेन गैस का चल रहा है जो ज्वलनशील है . नया जजीरा मकरान खाड़ी में पिछले सौ सालों में निकलने वाले सैकड़ों जजीरो में से एक है .
                       लो जी जलजले जजीरे पर सैलनियों का जमघट भी शुरू हो गया 
दरअसल यह पूरा क्षेत्र अरेबियन टेकटानिक प्लेटों के उत्तर दिशा में और नीचे की ओर बढ़ने तथा यूरेशियाई प्लेटों के नीचे  जाने की हलचलों से व्याप्त है -इस प्रक्रिया में अरेबियन प्लेट की मिट्टी और गाद खुरच उठती है और इसके चलते दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान औरदक्षिणी  पूर्वी इरान के समुद्री छोरों पर कई नए जजीरे बनते जा रहे  हैं .पाकिस्तान के भूगर्भ शास्त्री आसिफ इनाम का कहना है कि इन जजीरों से समुद्री परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है .

दरअसल यह पूरा क्षेत्र अरेबियन टेकटानिक प्लेटों के उत्तर दिशा में और नीचे की ओर बढ़ने तथा यूरेशियाई प्लेटों के नीचे जाने की हलचलों से व्याप्त है -इस प्रक्रिया में अरेबियन प्लेट की मिट्टी और गाद खुरच उठती है और इसके चलते दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान और दस्क्स्हीं पूर्वी इरान के समुद्री छोरों पर कई नए जजीरे बनते जा रहे हैं .पाकिस्तान के भूगर्भ शास्त्री आसिफ इनाम का कहना है कि इन जजीरों से समुद्री परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है . नया जजीरा मगर ज्यादा टिकने वाला नहीं है और कुछ माहों या वर्ष के भीतर समुद्र के सतह के भीतर छुप जाएगा . यह खबर सैलानियों के उत्साह को ठंडा कर सकती है .

Monday, 19 August 2013

कन्हैया किसको कहेगा तू मैया?

वैज्ञानिकों के एक नए प्रयोग ने एक बार फिर असमंजस कि स्थिति पैदा कर दी  है . ऐसे एक और प्रायोगिक "कन्हैया" की किलकारियां गूंजने वाली हैं जिसके एक पिता और दो माएं होंगी।  आईये वैज्ञानिकों के इस नए प्रयोग की एक झलक  लें। सामान्य तौर पर तो हर बच्चे की एक माँ और एक पिता  होते हैं जो बराबर बराबर का आनुवंशिक पदार्थ -गुणसूत्र  उस तक अंतरित करते हैं।  गुणसूत्रों का अंतरण हमारी जनन कोशाओं -अंड और शुक्राणु के सम्मिलन  से होता है जो एक प्रक्रिया जिसे अर्धसूत्रण (मियासिस ) कहते हैं के जरिये आधे आधे भाग में मां और पिता से बच्चे में पहुँच कर पूर्णता पाते हैं।मनुष्य की कोशिका के केन्द्रक में  ये आनुवांशिक   पदार्थ होते हैं।  खैर यह तो हाईस्कूल स्तर की बायलाजी है जो आपमें बहुतों को पता होगी।  

जो बात बहुतों को पता नहीं है वह यह है कि मनुष्य की कोशिकाओं के केन्द्रक के अलावा/बाहर के जीवनद्रव्य (साईटो प्लास्म ) की  माईटोकांड्रिया में भी आनुवंशिक पदार्थ मिलने की जानकारी  काफी बाद में हुई और उसका भी आनुवंशिक अंतरण पीढी दर पीढी होता जाता है -मगर सबसे रोचक बात यह है कि ये माईटोकांड्रियल जीन महज माँ से अंतरित हो बच्चे तक पहुंचाते हैं। माईटोकांड्रिया वैसे तो कोशिका का 'पावर हाउस'  कहा जाता है जो शरीर के लिए ऊर्जा देने का काम करता है।  मगर आश्चर्यजनक रूप से  पाया गया कि इसमें भी कुल सैंतीस जीन मिलते हैं हालांकि मनुष्य के कोशिका -केन्द्रक में तकरीबन तेईस हजार जीन पाए गए हैं।  अब भले ही माईटोकांड्रियल जीन की ये संख्या बहुत कम है मगर इनमें किसी भी विकार से कई आनुवंशिक  रोग होते देखे गए हैं।  जिसमें से एक तो पेशियों की समस्या (माईटोकांड्रियल मायोपैथी )  और आप्टिक न्यूरोपैथी है जो स्थायी अन्धता तक उत्पन्न कर सकती है। 
 माईटोकांड्रियल जीन केवल मां से ही बच्चों तक पहुंचता है
जैसा मैंने बताया माईटोकांड्रियल जीन केवल मां से ही बच्चों तक पहुंचता है। अब अगर किसी मां के माईटोकांड्रियल जीन डिफेक्टिव हों तो? फिर तो बच्चा ऊपर वर्णित बीमारियों से ग्रस्त हो जाएगा ? फिर क्या किया जाय ? वैज्ञानिकों ने ऐसे मामले में यह जानकारी हो जाने पर कि किसी मां के माईटोकांड्रियल जीन में खराबी है -निषेचित अंड के जीवन द्रव्य (साईटोप्लास्म)  को स्वस्थ मां के जीवनद्रव्य से प्रत्यारोपण की तकनीक विकसित कर ली है।  मतलब विकारग्रस्त माईटोकांड्रियल जीन को ही हटा दिया जाना और उसके स्थान पर स्वस्थ मां के माईटोकांड्रियल जीन को स्थापित कर दिया जाना।  ऐसा करने का सबसे आसान तरीका यह पाया गया है की विकारग्रस्त माँ के निषेचित अंड के नाभिक को सामान्य स्वस्थ मां  की अंड  कोशिका में प्रत्यारोपित कर दिया जाय।  मतलब अब सम्बन्धित/संभावित  बच्चे की  दो माएं और एक पिता होंगें।  एक मां का नाभिकीय आनुवंशिक पदार्थ ,दूसरे का स्वस्थ माईटोकांड्रियल जीन. यह तकनीक क्लोनिंग तकनीक से इस मायने में भिन्न है कि जहाँ  निषेचित नाभिक एक धाय मां (सरोगेट मदर ) के निषेचित नाभिक रहित अंड कोशिका में प्रत्यारोपित होता( nuclear transfer cloning) है।  

Tuesday, 18 June 2013

23 जून को निकलेगा बड़का चाँद,देखना मत भूलियेगा!

आगामी 23 जून की पूर्णिमा को एक नयनाभिराम आकाशीय नज़ारा देखने को तैयार रहिये .इस दिन इस वर्ष का बडका चाँद निकलेगा बोले तो सुपर डुपर मून . आसन्न पूर्णिमा को चाँद धरती के सबसे निकट (perigee )  रहेगा और इसलिए इस वर्ष  दिखने वाले सबसे बड़े चाँद का खिताब हासिल करेगा . धरती के इतना करीब चाँद फिर एक साल के इंतज़ार के बाद अगस्त 2014 में ही दिखेगा . वैसे तो सारे देश में मासूम सक्रिय   हो गया है और बादल छाये  की संभावना ज्यादा है मगर हो सकता है कुछ लोगों के बादलों से लुकाछिपी  चाँद नज़र आ ही जाय . पिछली बार जब मार्च 19, 2011 को धरती के सबसे निकट यानी 'पेरिगी'  का चाँद दिखा था तो इसे सुपर मून का नामकरण दे दिया गया था। अभी पिछले महीने 24-25 मई  का चाँद भी एक छोटा सुपर मून ही था .इस नामकरण का भी एक रोचक मसला  है.

मजे की  बात है कि सुपर मून का नामकरण किसी आधुनिक ज्योतिर्विद (एस्ट्रोनामिस्ट )  द्वारा न देकर एक फलित ज्योतिषी द्वारा दिया गया है मगर अब इसे सब ओर  मान्यता मिल गयी है . फलित ज्योतिषी रिचर्ड नोले ने अपने अपने वेब साईट astropro.com पर 1979 में यह नामकरण किया था . जिसके  अनुसार सूर्य ,पृथ्वी और चन्द्रमा के एक सीध में आने पर और चन्द्रमा के धरती के सबसे निकट आने की अवस्था में सुपरमून का वजूद होता है और ऐसी स्थिति वर्ष में  चार -छह बार आ सकती है . इस २3  जून 2013 को धरती से चाँद की  दूरी बस केवल 356,991 किलोमीटर  रहेगी! इसके दो सप्ताह बाद सात जुलाई को ही चाँद अपनी कक्षा  में धरती से सबसे दूर चला जाएगा जिसे एपोजी (apogee)  कहते हैं और तब चाँद धरती से 406,490 किमी दूर होगा .

 इस चित्र  से पूर्ण चन्द्र और बडके चंद्र का फर्क समझा सकता है (सौजन्य:अर्थस्काई

खगोलविदों की गड़ना के अनुसार नवम्बर 2016 का बड़का चाँद धरती के इतने निकट होगा कि उतना निकट फिर नवम्बर 25, 2034 को आयेगा . अर्थस्काई वेबसाईट ने विगत सुपरमूनों (2011-2016)  का एक विवरण  दिया है। दो पूर्णिमा  के बीच का वक्त एक चान्द्रमास  कहलाता  है यानी  29.53059 दिन का औसत समय. सुपर मून साल भर में के चौदह चान्द्र्मासों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज  करते हैं .क्या इस बार के सुपर मून से धरती पर और भी  प्रबल ज्वार भाटे आयेगें ? इस बड़के चाँद से तो और भी बड़े ज्वार आने की संभावना है .अगर इसके साथ मौसमी तूफ़ान का भी संयोग हो गया तो बड़े ज्वार की संभावना बनेगी . समुद्र तट के किनारे बसे लोगों को थोडा चौकस सहना चाहिए
























 

Sunday, 2 June 2013

साईंस ब्लागिंग:बढ़ते कदम!

विगत दिनों साईंस ब्लागिंग पर  राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली और तस्लीम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साईंस ब्लागिंग के एक कार्यशिविर में भाग  लेने का अवसर मिला . इस आयोजन में अन्य महानुभावों के साथ ही राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली के निदेशक डॉ. मनोज पटैरिया भी उपस्थित हुए .हिन्दी में  साईंस ब्लागिंग की शुरुआत आशीष श्रीवास्तव ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति   अगस्त ,2006 से और उन्मुक्त ने साईंस और साईंस फिक्शन पर वर्ष 2006 से ही कई बेहतरीन विज्ञान विषयक पोस्ट लिख कर किया. इस ब्लॉग ने इस विधा की संभावनाओं को देखते हुए  तदनंतर  भारत में साईब्लाग के नामकरण से नियमित साईंस ब्लागिंग की नीव  भी तभी रख दी थी जब दुनिया के और विकसित देश इंटरनेट से जुड़े अन्य संभावनाओं में विज्ञान संचार का भविष्य तलाश कर रहे थे . 
इस पहल का ही यह परिणाम था कि भारत में दुनियां का पहला साईंस ब्लॉगर असोशिएसन भी वजूद में आ गया जो सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत पंजीकृत है और इसका  एक वैधानिक स्टेटस है. खुशी की बात है कि इन सद्प्रयासों का फल अब संगठित रूप लेता दिख रहा है .विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत हमारे कई मित्र अभी भी इस विधा को लेकर कई तरह के प्रश्न करते हैं जिनका जवाब मैं सहर्ष देता हूँ और आज यहाँ भी उन सवालों को उत्तर सहित रखना चाहता हूँ -
प्रश्न -साईंस ब्लागिंग(विज्ञान चिट्ठाकारिता ) की परिभाषा क्या है ?
उत्तर -वह अंतर्जालीय विधा जो ब्लॉग के जरिये विज्ञान का संचार /लोकप्रियकरण करती है साईंस ब्लागिंग कही जाती है .
प्रश्न- कौन कर सकता है साईंस ब्लागिंग ?
उत्तर : वैज्ञानिक (अपने विषय विशेष से सम्बन्धित ), विज्ञान पत्रकार , साईंस के छात्र मुख्यतः ग्रेजुएट -पोस्ट ग्रेजुएट ,विज्ञान शोधकर्ता और पर्यावरण -वन्यजीवन विशेषज्ञ /सक्रियक और विज्ञान कार्यकर्ता/सक्रियक आदि साईंस ब्लागिंग कर सकते हैं .
प्रश्न -साईंस ब्लागिंग का प्रतिपाद्य क्या है अर्थात इसके अधीन विज्ञान के किन विषयों को लिया जा सकता है ?
उत्तर -वे सभी विषय जिन्हें लक्ष्य वर्ग या आम जनता तक ले जाया जाना हो.
प्रश्न-विज्ञान ब्लागिंग का लक्ष्य वर्ग क्या है ?
उत्तर -यह निर्भर करता है कि साईंस ब्लॉगर कौन है ? यदि वह शोधरत वैज्ञानिक है तो वह अपने समवयी (पीयर )/ समान क्षेत्र में शोधरत वैज्ञानिकों को शोध की प्रगति और समस्याओं को अवगत कराने के लिए साईंस ब्लागिंग का सहारा ले सकता है . अगर वह विज्ञान का शैक्षणिक क्षेत्र का प्रोफ़ेसर है तो छात्रों को विषय की सरल सहज समझ के विकास को लक्षित कर साईंस ब्लागिंग कर सकता है ,यदि कोई पर्यावरण या वन्य जीवन का सक्रियक है तो आम लोगों तक इनसे जुड़े मुद्दों को उन तक पहुंचाने और इस तरह जन जागरण के लिए विज्ञान ब्लागिंग को जरिया बना सकता है . विज्ञान पत्रकार विज्ञान से जुड़े अनेक समाचारों , रपटों को संचारित कर सकता है . इस तरह विज्ञान ब्लागिंग का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसके तहत कई लक्ष्य वर्ग आ सकते हैं।
प्रश्न -साईंस ब्लागिंग का उद्येश्य क्या है ?
उत्तर -विज्ञान का संचार और आम लोगों तक विज्ञान को सहज सरल तरीके से ले जाना और लोगों में वैज्ञानिक नजरिया उत्पन्न करना ,विज्ञान की अभिरूचि के साथ विज्ञान विषयों के प्रति जागरण ही साईंस ब्लागिंग का मुख्य उद्येश्य है .
इस समय विज्ञान के प्रति छात्रों में गिरती अभिरुचि को भी इससे पुनर्जीवित किया जा सकता है . बच्चों को विभिन्न सरकारें मुफ्त में लैपटाप दे रही हैं जो विज्ञान ब्लागिंग की ओर  उन्हें सहज ही उन्मुख कर सकता है .
प्रश्न -एक विज्ञान ब्लॉगर से विज्ञान की जानकारी के अलावा और क्या अपेक्षित है ?
उत्तर : उसे अंतर्जाल पर कार्य करने का आरम्भिक अनुभव होना चाहिए . और कम्प्यूटर अप्लिकेशन्स /इस्तेमाल करने की मूलभूत बातें पता होनी चाहिए . यह जल्दी सीखा जा सकता है .
प्रश्न -ब्लॉग क्या है ?
उत्तर -यह आनलाईन डायरी है -वेब और लाग का संक्षिप्त रूप है ब्लॉग!
प्रश्न -कैसे बनाए जाते हैं ब्लाग ?
उत्तर -गूगल में हाऊ टू मेक अ ब्लॉग लिख कर सर्च करें और बताये लिंक पर जाएँ जहाँ ब्लॉग मिनटों में बनाने की साईट उपलब्ध हैं -हाँ किसी ब्लॉग को तकनीकी दृष्टि से समृद्ध करने के कई उपाय हैं जिन्हें तकनीकी विशेषज्ञों से सीखा जा सकता है .इस लिहाज से राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली के  सहयोग से आयोजित की जाने वाली कार्यशालाएं बहुत लाभकारी हैं .
प्रश्न -साईंस ब्लॉग का कंटेंट क्या हो ?
उत्तर -यह साईंस ब्लॉगर के ऊपर निर्भर है -यदि वह विज्ञान पत्रकार है तो विज्ञान से जुड़े समाचारों को कवर करेगा -रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा ....और यदि पर्यावरण से जुडा कोई सक्रियक हुआ तो वह पर्यावरण से जुड़े मसलों को उठा सकता है -जन जागरण कर सकता है , व्हिसिल ब्लोवर की भूमिका भी निभा सकता है . एक विज्ञान शोधकर्ता वैज्ञानिक अपने शोध की समस्याओं को समान लोगों से साझा कर सकता है ,चर्चा कर सकता है !
एक सूचना है कि राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद ,नई दिल्ली और तस्लीम के संयुक्त तत्वावधान की आगामी कार्यशाला रायबरेली में हैं जिसके लिए आप तस्लीम के संयोजक डॉ जाकिर अली रजनीश( zakirlko@gmail.com) से सम्पर्क कर सकते हैं .

Sunday, 17 March 2013

पैनस्टार्स ने तो निराश किया अब इसान से ही आशा!

आकाश में एक हप्ते से आँखें गड़ाए रखने के बावजूद भी जब पैनस्टार्स धूमकेतु   नहीं दिखा तो आज मैंने हार मान ही ली .वैसे दो एक दिन तो बादलों की धमाचौकड़ी ने खेल बिगाड़ा मगर यह अब साफ़ हो चला है कि यह नंगीं आँखों से नहीं दिखने वाला . अब तो इसकी सूरज के आँगन से वापसी भी शुरू हो चुकी है , मैंने अपने 7 गुणे पचास की क्षमता वाले बायिनाक्यूलर से भी काफी प्रयास किया मगर इस धूमकेतु को नहीं दिखना था तो नहीं दिखा . दिनेशराय द्विवेदी जी  भी कोटा से इसे देखने के प्रयास में अपनी कई शामें छत पर गुजार चुके हैं और कल इसके लिए एक विशेष प्रयास पर निकलने वाले हैं -उन्हें शुभकामनाएं! मगर इस धूमकेतु ने निराश किया  है , वह धूमकेतु या पुच्छल तारा ही क्या जो सब लोगों को नंगीं आँखों से न  दिख जाय और सभी को अपनी लम्बी पूँछ से रोमांचित कर दे।
कहने को तो  यह धूमकेतुओं का वर्ष है  मगर अब तक सूरज के पास  आये लेम्मन और पैनस्टार्स धूमकेतुओं ने निराश किया है ,अब सारी आशा केवल इसान से है जो इस साल के आखीर में आसमान में जलवा फरोश  होगा। उम्मीद है यह नंगीं आँखों से खूब दिखेगा। आईये एक नजर फिर इस वर्ष के धूमकेतुओं पर डालते चलें .

लेम्मन
इस वर्ष पैनस्टार्स (PANSTARRS ,C/2011 L4) और इसान (ISON ,C/2012 S1) की  बड़ी चर्चा है जो नंगी आखों से सीधे देखे जा सकेगें  . दुर्भाग्य से पैनस्टार्स ने निराश किया है . एक और  अन्तरिक्षीय घुमक्कड़ भी माह फरवरी में ही सहसा दिखाई पडा जिसका नाम है -लेम्मन ( Lemmon ,C/2012 F6)  .इसे माउंट लेम्मन एरिज़ोना के  अलेक्स गिब्ब्स ने मार्च 2012 में ही ढूंढ निकाला था। तब यह सूर्य की पृथ्वी से दूरी के भी पांच गुना अधिक दूर था , मगर विगत फरवरी माह (2013) में यह सौर सीमा के काफी भीतर तक आ गया और धरती से दूरबीन के सहारे दिखने लग गया था। मगर दक्षिणी गोलार्ध में ही बाईनाकुलर से दिख पाया।और इसकी चमक(कान्तिमान)  6.2 से 6.5 के बीच रही-मतलब नंगी आँखों से ठीक ठीक न दिख पाने की स्थिति। यह सूरज के सबसे करीब मार्च 24, 2013 को आया और यह दूरी  धरती की सौर कक्षा से तनिक कम थी . यह मई 2013 में  सूर्य सामीप्य से अपनी वापसी के दौरान फिर टेलीस्कोप के जरिये दिख सकेगा .
 पैनस्टार्स

लेम्मन की सूर्य से मुलाकात कर वापसी अभी हुयी ही थी कि एक और धूमकेतु आ धमका -पैनस्टार्स -यह नामकरण इसे ढूँढने वाले टेलीस्कोप के नाम (Pan-STARRS)  पर पड़ा।  मार्च माह में यह कुछ कुछ शुक्र ग्रह के कान्तिमान का हो गया था . पांच मार्च 2013 को यह अपने भ्रमण पथ पर धरती के सबसे नजदीक (1.10 Astronomical Units, AU) आ पहुंचा था। एक ऐ यू धरती से सूर्य की दूरी का सममान है . मतलब यह धूमकेतु  धरती से सूरज की दूरी से भी अधिक दूरी से हमसे दूर ही रहा और अब तो और भी दूर होता जा रहा है!
पैनस्टार्स विगत 10 मार्च को सूर्य के संबसे करीब था -इतना अधिक पास जैसे सूर्य और बुध के बीच का फासला हो (0.30 ऐ यू ) यानी  साढ़े चार करोड़ किलोमीटर। यही वह समय था जब इसकी चमक तेज हुयी  थी और पूछ का निर्माण भी अस्तित्व में आ चुका था .यह मार्च माह में सूर्यास्त के पश्चात पश्चिम दिशा में कई देशों से क्षितिज पर दिखता रहा . मार्च 12 ,13 और 14 को यह चंद्रमा के पास दिखा .फिर उत्तर की ओर धीरे धीरे क्षितिज के और ऊपर होता गया।  इसकी पूछ और खुद इसे बाईनाक्युलर से ही ठीक तरह से देखा जा सकता है  . पैनस्टार्स एक अन -आवधिक पुच्छल तारा है -मतलब यह पिछली बार कब आया था और आगे कब आएगा इसका कोई निश्चित समय काल ज्ञात नहीं है . यानि  यह "वंस इन अ लाईफ टाईम" का मौका अपने दर्शकों को दे चुका  है।
 इंतज़ार है एक धुंधकारी धूमकेतु   इसान का 
 अगली सर्दियों तक एक धुंधकारी धूमकेतु धरतीवासियों के लिए कौतूहल का विषय बनने  वाला है और कहते हैं कि अब तक के धूमकेतुओं में वह सबसे भव्य और चमकदार होगा . किन्तु कई खगोलविद यह भी कहते हैं कि कोई धूमकेतु कैसा दिखेगा यह शर्तिया तौर पर पहले से नहीं कहा जा सकता -क्योकि पिछले हेली और केहुतेक पुच्छल तारों का प्रदर्शन  निराशाजनक रहा था .नए ढूंढें पुच्छल तारे के इसान  (ISON) के बारे में भी कुछ ऐसे ही उहापोह हैं -किन्तु इसके खोजी शौकिया खगोलविदों आरटीओम नोविचोनोक (बेलरस ) और विटाली नेवेस्की(रूस) का  मानना है कि यह एक भव्य प्रदर्शनकारी धूमकेतु बनेगा! बोले तो पूरा धुंधकारी . इसे इसलिए ही अंतर्जाल पर ड्रीम कमेट कहा जा रहा है .यानी धूमकेतुओं के चहेतों के कितने ही सपनो को साकार कर जायेगा ईसान! 

    

Saturday, 16 February 2013

किसी पिंड ने पिंड छोड़ा तो कोई और आ धमका!

पहले से ही अंतर्जाल पर अफवाहें जोर पर थी  कि एक क्षुद्र ग्रह धरती से आ टकराने वाला है -और वह भी प्रेम दिवस के आस पास । जबकि वैज्ञानिक ऐसे अफवाहबाजों को पानी पी पीकर कोस रहे थे और पूरी दुनिया को आश्वस्त कर रहे थे कि कुछ भी अनहोनी नहीं होगी .मगर यह तो संयोगों का संयोग हो गया -लगभग उसी समय रूस के कई शहरों में एक भयानक उल्कापात हुआ -सहसा तो सारी दुनिया के विज्ञान संचारक भी चौक पड़े कि आखिर यह क्या हो गया -मैंने देखा कि  मशहूर विज्ञान संचारक और बैड एस्ट्रोनामी के (कु)-विख्यात ब्लोगर फिल प्लेट ने 15 फरवरी की सुबह ही अपने फेसबुक अपडेट में यह खबर बहुत अनिश्चित से मूड में दे दी कि उन्होंने रूस में एक उल्का गिरने की खबर सुनी है मगर वे दरियाफ्त कर रहे हैं -मैं उनके ब्लॉग अपडेट पर भी नज़र गडाए रहा और मामला आखिर साफ़ हो गया -सचमुच रूस में 15 तारीख यानी शुक्रवार की सुबह सुबह सूरज उगते ही एक और आग का गोला,उतना ही चमकता हुआ अचानक दिखा . भयानक आवाज  हुयी .इसकी विस्फोटक शक्ति पृथ्वी के वायुमडल में प्रवेश करते समय 300 किलोटन से अधिक थी। एक आकलन है कि आसमान में हुए इस विस्फोट की क्षमता सन् 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम के विस्फोट की तुलना में कई गुना अधिक(300 kilotons of TNT) थी । यह उल्का सन् 1908 में गिरी तुंगुस्का उल्का के बाद पृथ्वी पर गिरनेवाला सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है। गनीमत रही कि यह आसमान में ही विस्फोटित हो गया और एक महा विनाश टल गया हालांकि तब भी 1200 से ऊपर ही लोग घायल हुए हैं जिनमें से 50 से अधिक घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

अब अंतर्जाल पर अफवाह उड़ाने वालों की बन आयी थी -देखा न, हमने तो पहले ही कह रखा था ..... :-) मगर भाई यह वह पिंड  नहीं था  जिसके गिरने की बात वे बड़े जोरशोर से उड़ा रहे थे -वह तो क्षुद्रग्रह 2912 डी ऐ 14 धरती के करीब आया और चुपके से चल भी दिया . यह बात कल ही स्पष्ट हो गयी थी कि 2912 डी ऐ 14 रूस में नहीं गिर। नासा ने साफ़ कर दिया कि जो उल्का गिरी वह तो कोई अनजान राहों का भटका अन्तरिक्षी राही था जो अचानक धरती पर आ टपका -यह उल्कापिंड विपरीत दिशा यानी सूरज के बाईं ओर -उत्तर से दक्षिण की ओर आयी मगर 2912 डी ऐ 14 तो दक्षिण से उत्तर की ओर गतिमान था . फिल प्लेट जी प्लस की हैंग आउट वीडियो चैटिंग पर लाईव बने हुए थे।
यह एक बड़ी खगोलीय घटना थी ,भारतीय लोगों को छोडिये -कितने ही बन्दे यहाँ अज्ञानता के आनंद में गोते लगा रहे हैं मगर मैं तो इस घटना से काफी उद्वेलित  हूँ . इसके कई कारण हैं -क्या धरती पर सचमुच किसी ऐसे ही उल्का पात /वृष्टि से प्रलय दबे पाँव सहसा आ जायेगी? यद्यपि इस घटना के बाद मची खलबली के बीच एक दावा यह आया कि रूस ने समय रहते ही एक मिसाईल इस फ़ुटबाल के मैदान के बराबर की उल्का पर साध दिया था और जिसके चलते वह खंड खंड हो गयी और आसमान में ही भस्म हो गयी? मगर क्या सचमुच? वैज्ञानिक नहीं मानते -उनके मुताबिक़ यह वैसी ही स्थिति है कि कोई क्रिकेट का फील्डर बिलकुल असावधान सा  बाउंड्री पर हो और अचानक बल्लेबाज का अप्रत्याशित छक्का उसकी सहज पहुँच सीमा के कुछ आगे गिरने को बढ़ चला हो तो क्या वह उसे कैच कर पायेगा? यही स्थिति लगभग इन उल्काओं की है -इनमें से कोई अचानक ही मंगल और और वृहस्पति के बीच की खगोलीय पिंड के मलबा पट्टी से धरती की ओर आ टपकता है और इतना कम समय बचता है कि उसे नष्ट करना अभी तक तो असंभव ही रहा है . फिर भी रूस के इसे मिसाईल से मार देने के दावे तो विज्ञान कथाओं में खूब वर्णित है . रूस में अभी भी लोगों में दहशत है -एक राजनेता ने दावा किया किया है कि दरअसल यह अमेरिका का कोई था परीक्षण था .

अमेरिका और रूस में स्पेस -अदावत की जड़ें काफी पुरानी हैं। हाँ एक यह बात हैरत में डालती है और यह बात याहू  इन्डियन साईंस फिक्शन समूह पर भी चर्चा में आयी कि रूस के उल्कापात की जद में क्या कोई विमान नहीं आया जबकि इसने कई प्रदेशों को आच्छादित किया है . 2912 डी ऐ 14 ने भी क्या किसी भी संचार उपग्रह को डिस्टर्ब नहीं किया?
हम विज्ञान संचारक ऐसे मौको का भी एक सकारात्मक उपयोग करते हैं -आपको इस विषय पर थोड़ी जानकारी देने का मौका हम नहीं छोड़ते -क्या आपको कुछ और पूछना है तो स्वागत है!
बहरहाल चैन की नीद सोईये,खतरा फिलहाल टल गया है। 
पुनश्च:कुछ परिभाषाएं यहाँ देखें  

Monday, 11 February 2013

टल जायेगी यह आसमानी बला भी ......!


धरती का एक निकटवर्ती क्षुद्रग्रह -2012 DA14 हमारे काफी पास से 15 फरवरी(2013)  को गुजर जाने वाला है जो किसी आसमानी बला से कम नहीं है . मगर प्रेम दिवस आराम से मनाकर आराम फरमाएं ,कोई खतरा नहीं है। नभ वैज्ञानिकों ने जोड़ घटा कर देख लिया है कि यह  धरती से टकराने वाला नहीं है हालांकि यह धरती से चंद्रमा की कक्षा से भी कम दूरी (27,680किमी ) तक आएगा . यहाँ तक की यह हमारे तमाम भूस्थिर कृत्रिम संचार उपग्रहों (communications satellites) की परिधि के भी भीतर .तक आ जाएगा ,यही नहीं यह अब तक धरती के इतने पास से बिना नुकसान पहुंचाए गुजर जाने वाला सबसे बड़ा क्षुद्र ग्रह है .
यह क्षुद्र ग्रह खुली  आँखों से तो नहीं दिखेगा मगर इसे अंतर्जाल पर दिखाने के इंतजाम किये गए हैं . तो क्या होगा जब यह धरती के सबसे करीब से गुजर जाएगा? उत्तर है कुछ नहीं :-) कम से कम इस बार तो घबराने की कोई बात नहीं है . यह इतने कम गुरुत्व का है कि इसके चलते न तो कोई ज्वार उठेगा और न ही ज्वालामुखी भभक उठेगें . हाँ लगता है अपने टीवी चैनेल और भारत के फलित ज्योतिषी  अभी तक इससे बेखबर हैं नहीं तो अब तक हो हल्ला मच गया होता .
क्षुद्र ग्रह का भ्रमण पथ (साभार ,अर्थस्काई )
हाँ क्षुद्र ग्रहों /ग्रहिकाओं और धूमकेतुओं के धरती से टकराने की संभावनाओं से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता -बहुत से लोग मानते हैं कि धरती पर प्रलय के कई कारणों में से एक ये भी हो सकते हैं . कोई छह करोड़ पहले ऐसे ही एक टकराव से डायनासोर के लुप्त हो जाने के कयास हैं . साईबेरिया के तुंगुस्का क्षेत्र में पिछली शती(1908)  भी ऐसे ही एक महा विस्फोट में बहुत विनाश हुआ था . अब जैसे यही गृह है -पूरा 45 मीटर लम्बा और करीब एक लाख तीस हजार मेट्रिक टन भारी है -धरती से इसके टकराने का मतलब है एक साथ अनेक  परमाणु /हाईड्रोजन बमों का फूट  पड़ना-अर्थात महाविनाश! प्रलय! खुदा न खास्ता ऐसा कोई क्षुद्र ग्रह धरती से टकरा जाय तो 2,4 मेगाटन टी एन टी ऊर्जा निकलेगी -ऐसा ही एक छोटा पुच्छल तारा या क्षुद्र ग्रह जब तुंगुस्का से टकराया था तो सारे रेनडियर जानवर मारे गए थे और पूरा वन क्षेत्र विनष्ट हो गया था हालांकि कोई विशाल गड्ढा नहीं पाया गया है . भारत की लोनार झील के भी किसी क्षद्र ग्रह  के टकराने से वजूद में आने की बात कही जाती है . पुष्कर का विशाल जलाशय भी ऐसी ही बना होगा क्योंकि वहां की जन श्रुतियों में आसमान से एक विशाल ब्रह्म कमल के आ टकराने का जिक्र है . तो ऐसे क्षुद्र ग्रह समूची धरती को तो तबाह नहीं कर सकते मगर हाँ एक भरे पूरे शहर का तो सफाया कर ही सकते हैं।
नक्षत्र विज्ञानी इस पर चौबीसों नज़र रखे हुए हैं कोई फ़िक्र की बात नहीं है . सूरज का इसका परिभ्रमण पथ धरती सरीखा है और यह निरंतर अपने भ्रमण पथ पर धरती से दूर पास आता  जाता रहा है -कहते हैं यह 2020 में फिर करीब से गुजरेगा मगर तब भी टकराहट की संभावना नहीं है !