Sunday 22 July 2012

मंगल का मेन्यू अब धरती पर भी ..यम यम!


मंगल अभियान के तहत अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) 2030 के वैज्ञानिक अपने मंगल ग्रह अभियान की तैयारियों में करीब 18 साल बाद की मंगल यात्रा के लिए अभी से मेन्यू तैयार करने में व्यस्त हो गए हैं। यह मेन्यू ऐसे व्यंजनों का है जो लम्बे समय तक खराब नहीं होंगे और छह से आठ अंतरिक्ष यात्रियों के हिसाब से पर्याप्त होंगे। लाल ग्रह पर पहुंचने में अन्तरिक्ष यात्रियों को करीब छह महीने का समय लग सकता है और इतना ही वहां से वापसी में। वहां 18 महीने तक रुकना भी है। अब अगर इस दौरान उनका खाना खराब हो गया तो मुसीबत ही हो जाएगी। लिहाजा इनके खाने का विशेष मेन्यू तैयार हो रहा है। आइये एक बानगी लें - हो सकता है यह कभी हमें यहां जमीन पर भी नसीब हो जाए।

नासा के खाद्य वैज्ञानिक ऐसे व्यंजन श्रृंखलाओं को तैयार करने में जुटे हैं जो काफी लम्बे अरसे – माह, बरस, दस बरस तक जैसा का तैसा बने रहेंगे उनके स्वाद में भी फर्क नहीं आएगा। उन्होंने एक ब्रेड पुडिंग तैयार कर ली है जो चार सालों तक जस की तस बनी रह सकती है। पेंटागन में तैयार हुआ एक पाउंड केक पांच वर्षों तक फ्रेश बना रह सकता है। ये मीठे डेजर्ट ही नहीं दूसरे स्टार्टर्स और मेन कोर्स व्यंजन भी अभी बनाए जाने की अवस्थाओं से गुज़र रहे हैं जिन्हें मंगल ही नहीं धरती के फूड स्टोरों और आम रसोईघरों में कई वर्षों तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है।

कई लम्बी अवधि तक खाने योग्य बने रहने के वाले व्यंजनों की खेप पहले से ही अमेरिकी बाज़ारों में आ चुकी है। और वैश्विक व्यापार के चलते दूसरे देशों तक भी पहुंच रही है। इनमें एक तो समुद्र की चिकन मानी जाने वाली ट्यूना मछली ही है जो अब एयर टाइट पाउच में उपलब्ध है और पहले से मिलने वाली डिब्बा बंद ट्यूना की तुलना में बेहतर है। यह भी ढाई वर्षों की शेल्फ लाइफ लिए हुए है। दरअसल खाद्य पदार्थों/व्यंजनों को लम्बे समय तक परिरक्षित रखने की प्रौद्योगिकी सेना की आवश्यकताओं के चलते वजूद में आई।

सेना की टुकड़ियों को गंतव्य तक कूच और युद्ध या शान्ति के दौरान बना बनाया - 'मील्स रेडी टू ईट' (MRE) की जरुरत होती है। मगर उनका स्वाद बस माशा अल्लाह ही होता है। पहली बार वैज्ञानिकों ने एक ऐसा टिकाऊ सैंडविच तैयार किया है जो स्वादिष्ट है और बिना रेफ्रीजेरेटर के 3-5 वर्षों तक इस्तेमाल में आ सकता है। इसके भीतर तंदूर (बार्बीक्यूड) चिकन भरा रहता है या फिर पेपरानी। सैंडविच की बाहरी परत एक खाद्य पदार्थ पालीप्रोपेलीन की महीन परत से लैमिनेटेड होती है जो खाते वक्त महसूस ही नहीं होती। और भीतर भरे जाने वाली सामग्री में आर्द्रता शोषित करने वाले अनुमन्य रसायन सार्बिटाल और ग्लिसेराल होते हैं जिससे ब्रेड गीला न होने पाए। इसके चलते ब्रेड पर किसी भी बैक्टीरिया, फफूंद का संक्रमण रुक जाता है।

सुस्वादु सैंडविच को और भी बैक्टेरिया रोधी बनाने के लिए इन्हें पाक विद्या की एक सर्वथा नवीन प्रक्रिया - एचपीपी - हाई प्रेशर प्रोसेसिंग से गुजारा जाता है जिससे स्वाद भी बढ़ता है। इसके तहत व्यंजन को एक 'दबाव कक्ष' के भीतर 87000 पाउंड के दबाव से गुजारा जाता है। इसके चलते सभी बैक्टीरिया मर जाते हैं। इस समय 'हार्मेल नैचरल चॉइस लाइन' बाज़ार में इसी तरह के खाद्य पदार्थों की एक श्रृंखला लेकर आ गयी है। ये व्यंजन ऐसे  लगते हैं जैसे अभी अभी बनाए गए हों। नासा ने जिन व्यंजनों पर ख़ास ध्यान दिया है उनमें - कैरेट क्वायंस, थ्री बीन सैलेड्स, पोर्क चॉप्स, वेजिटेबल  ऑमलेट और ऐप्रीकार्ट कोब्लेर मुख्य हैं।

प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बाद जाह्नसन स्पेस सेंटर में इनका भंडारण होता है और इन्हें लगातार तीन वर्षों तक चख कर चेक करने के बाद ही फिलहाल अन्तरिक्षयात्रियों के लिए जारी किया जाता है।


ऐसे व्यंजन महज सैनिकों और अन्तरिक्ष वासियों के बजाय कई दैवीय आपदाओं, भूकंप, सुनामी आदि से प्रभावित लोगों तक भी पहुंचाये जा सकते हैं। अमेरिका में कैटरीना तूफ़ान के बाद इनका वितरण काफी दुर्गम जगहों पर फंसे लोगों में किया गया जो लम्बे समय तक प्रभावित क्षेत्रों में पड़े रहे। ऐसे व्यंजन निर्माण तकनीकों का सबसे बड़ा लाभ अंततः विकराल होती जनसंख्या के लिए हो सकेगा क्योंकि खाद्य सामग्रियों की बढ़ती खपत के चलते हमें खाद्य परिरक्षण और सुरक्षा की भी जरूरत होगी। आज भी भारत सरीखे विकासशील देश में बिना आधुनिक खाद्य - वितरण प्रणाली और प्रशीतन के 30 प्रतिशत तैयार खाद्य सामग्री खराब हो रही है। कहीं कहीं तो यह नुकसान 70 फीसदी पहुंच गया है । टाईम पत्रिका के अंक 12 मार्च 2012 में ऐसा ही दावा किया गया है। तो यह खाद्य परिरक्षण का मसला केवल अन्तरिक्ष की ऊंचाइयों से ही नहीं जुड़ा है बल्कि जमीनी हकीकत से ज्यादा जुड़ा है।

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सबसे महत्वपूर्ण तो यही है..

Arshia Ali said...

यम...यम।

जानकारी के लिए आभार।

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Anonymous said...

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