हमने नर नारी समानता के कतिपय मूलभूत समाज जैविकीय पहलुओं को पिछले दिनों जांचा परखा .अब आगे . पश्चिम से शुरू हुए नारीवादी आंदोलनों के बाद /बावजूद आज भी सारी दुनिया के कई हिस्सों में नारी पुरुष की " प्रापर्टी " और उससे निम्न दर्जे की मानी जाती है -और यह निश्चित ही दुखद है - आज भी नारी समानता के लिए किये गए जेनुईन प्रयासों का का प्रभाव नही दिखता -एक व्यवहारविद के लिए भी यह ट्रेंड उलझन में डालने वाला है कि लाखो वर्षों तक चलने वाले मानव विकास के दौरान ऐसा तो कभी नहीं था कि नारी पुरुष से कभी हीनता की स्थिति में रही हो -हाँ कार्य /श्रम विभाजन की दृष्टि से उनमें बटवारा तो था मगर अपने क्षेत्रों में तो ये दोनों ही श्रेष्ठ और निष्णात थे-इसलिए ही कालांतर के चिंतकों द्वारा भी बार बार यह कहा गया कि मानव जीवन रूपी रथ में नर नारी की भूमिका पहिये के समान ही है -और इनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं हो सकता ,दोनों समान हैं .
हमारे आदिम कार्य विभाजन में पुरुष एक दैनिक और दिन भर का माने दिहाड़ी गृह त्यागी आखेटक था मगर सामाजिक जीवन की धुरी के रूप में स्त्रियाँ ही थीं जो अपने घर परिवार की देखभाल -दोनों पहर के भोजन की व्यवस्था ,बच्चों का पालन पोषण और कबीलाई बसाहट की साफ़ सफाई में लगी रहती थीं -जहाँ आखेट प्रबंध के चलते पुरुष की एक समय में केवल एक काम पर ध्यान में बेहतरी होती गयी वहीं नारियां उत्तरोत्तर एक समय में एक साथ ही कई कामों को समान गुणवता के साथ सँभालने में दक्ष होती चली आई हैं -वे मल्टी टास्कर हैं -और इसका अनुभव मुझे भी गाहे बगाहे शिद्दत के साथ होता रहा है -एक रोचक और अंतर्जाल जगत से ही उदाहरण दूं -जहाँ बहुत से पुरुष जिसमें मैं भी सम्मिलित हूँ ही अंतर्जाल पर मानो टांग तोड़ कर बैठे रह जाते हैं -ब्लागिंग में मुब्तिला हो जाने पर उन्हें कुछ और नहीं सूझता (हाऊ पूअर न ? ) ठीक उसी समय अंतर्जाल प्रेमी नारियां एक साथ ही कई काम निपटाती रहती हैं -घर परिवार की देखभाल -खाना पीना ,चाय पानी ,आदि आदि -हमें उनसे चैटिंग करते समय भी यह अंदाजा नही रहता के उधर क्या क्या पापड बेले जा रहे हैं या कौन सी खिचडी पक रही है-मेरी तो एक महिला मित्र से इसे लेकर तक झक भी होती रहती है मगर मैं मंद मंद मुस्कराता भी रहता हूँ उनके इस नैसर्गिक और प्रणम्य क्षमता को जनता जो हूँ -प्रगटतः कहने या प्रशंसा करने की आदत नहीं है इसलिए कहता नहीं .जाहिर हैं नारी इस मामले में तो निश्चित ही बेजोड़ है कि वह एक समय में एक साथ कई समस्याओं को संभाल सकती है -टैकल कर सकती है पुरुष ऐसी क्षमता अब सीखने लग गया है पर नारी की तुलना में बहुत कमजोर है .अ पूअर सोल ! हा हा !
नर नारी पारस्परिक व्यक्तिव का यह अंतर आज भी बहुत स्पष्ट और प्रामिनेंट है .सांस्कृतिक विकास के पहले एक लिंग दूसरे पर हावी रहा हो ऐसा तो कतई नहीं था . वे अस्तित्व की रक्षा के लिए एक दूसरे पर हमेशा निर्भर रहे .मानव उभय लिंगों में एक यह आदिम संतुलन तो रहा ही है कि वे समान रहे मगर अलग अलग से ...
मगर फिर ऐसा क्या होता गया कि नारी पर पुरुषों का अनुचित अधिपत्य शुरू हुआ ? कब से और क्यूं ??यह चर्चा हम आगे के लिए मुल्तवी करते हैं .....
17 comments:
मल्टी टास्किंग - बहुत खूब !
आप आगे लिखिए, मैं चला सोने :)
प्रगटतः कहने या प्रशंसा करने की आदत नहीं है-जाहिर होता है अक्सर. :)
एक-एक शब्द सटीक है। अच्छा लगा पढ़कर।
बहुत सही जा रहे हैं। मल्टी टास्किंग का सही नमूना हम रोज किचेन में देखते हैं। कई आइटम एक साथ तैयार करते समय बच्चों की निगरानी भी होती रहती है। इसे हम पुरुषों को भी सीखना चाहिए।
बहुत सही और बहुत सुंदर!
गाड़ी के दोनों पहिए आपस में सब से अधिक तब उलझ रहे होते हैं जब वे गाड़ी में नहीं होते या जब वे एक दूसरे की देखभाल, जाँच परख कर रहे होते है।
"एक रोचक और अंतर्जाल जगत से ही उदाहरण दूं -जहाँ बहुत से पुरुष जिसमें मैं भी सम्मिलित हूँ ही अंतर्जाल पर मानो टांग तोड़ कर बैठे रह जाते हैं -ब्लागिंग में मुब्तिला हो जाने पर उन्हें कुछ और नहीं सूझता (हाऊ पूअर न ? )"... ... यह नहीं बताया कि पुरुष ब्लॉगर यह सब अपनी पत्नियों की सहायता के बिना नहीं कर सकते... खुद तो ऑफ़िस से आकर नेट पर जम जाते हैं और पत्नियाँ घर के सब काम निपटाती रहती हैं...आपकी अंतिम लाइनों का मूल कहीं यहीं तो नहीं... "मगर फिर ऐसा क्या होता गया कि नारी पर पुरुषों का अनुचित अधिपत्य शुरू हुआ ?"
...ध्यान रहे मैं घर में युद्ध नहीं कराना चाह रही...बस उस ओर ध्यान दिलाना चाह रही हूँ.
अरविन्द जी
कल एक साथ दो पोस्ट निपटाने के चक्कर में दोनों टिप्पणियां एक ही पोस्ट पर चली गईं जिसका सीधा मतलब ये हुआ कि हम दूसरी पोस्ट से गैरहाज़िर हुए ! खैर आज जो पढ़ा अब उस पर कुछ कहने की बारी है !
"हमें उनसे चैटिंग करते समय भी यह अंदाजा नही रहता के उधर क्या क्या पापड बेले जा रहे हैं या कौन सी खिचडी पक रही है-मेरी तो एक महिला मित्र से इसे लेकर तक झक भी होती रहती है मगर मैं मंद मंद मुस्कराता भी रहता हूँ "
ये मल्टी टास्कर और एकल टास्कर का भेद जानते ही हमारी समझ में आ गया कि हमसे चैटिंग के वक़्त आप मुस्करा काहे नहीं पाते हैं :)
वही दिल दिमाग की रस्साकशी ...
दिल तो कह रहा है कि नारियों की तारीफ समझ कर खुश हो ले ...मगर दिमाग कही कही अटक रहा है...
मल्टी टास्किंग ...क्या ये अंतरजाल प्रेमी गृहस्थ नारियों की तारीफ़ में है ..? कभी कभी दिमाग भी काम कर लेता है ...:)
@mukti
".आपकी अंतिम लाइनों का मूल कहीं यहीं तो नहीं... "मगर फिर ऐसा क्या होता गया कि नारी पर पुरुषों का अनुचित अधिपत्य शुरू हुआ ?"
...ध्यान रहे मैं घर में युद्ध नहीं कराना चाह रही...बस उस ओर ध्यान दिलाना चाह रही हूँ."
क्या यह निर्णयों पर कूद फांद कर पहुंचना जैसा नहीं है -
कूद फांद केवल हनुमान के लिये ही रहने दे न ! हा हा
श्रृंखला जारी है .....
.
.
.
"जहाँ आखेट प्रबंध के चलते पुरुष की एक समय में केवल एक काम पर ध्यान में बेहतरी होती गयी वहीं नारियां उत्तरोत्तर एक समय में एक साथ ही कई कामों को समान गुणवता के साथ सँभालने में दक्ष होती चली आई हैं -वे मल्टी टास्कर हैं -"
आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
Sci blog पर यदि यह लिख रहे हैं तो इस निष्कर्ष पर पहुँचने के उचित जीवशास्त्रीय, समाज-जैविकीय व व्यवहार शास्त्रीय संदर्भ भी देते चलें तो ही मुझ जैसों को लाभ होगा, अन्यथा कथा-कहानी सा लग रहा है सब कुछ।
आभार!
wah.. maza aa raha hai bhai ji
आप के लेख से सहमत है जी ओर यही सच भी है
@प्रवीण शाह जी,
गंभीर पाठकों के लिए संदर्भ :
For your quoted portion -
The Naked Woman by Desmond Morris (Introduction),2005,Vintage)
सारगर्भित विवेचन है.
रामराम.
बहुत खूब लिखा आपने मिश्रा जी , और हाँ जिन्हे समझ ना आये उन्हे समझांने कि उचित व्यवस्था की जाए ।
Vaystata ke chalate ab jakar pada yah aalekh kintu ruchi pichale dono alekho se barkarar hai...Bahut accha laga.Dhanywaad
बहुत सार्गर्भित और ग्यानवर्द्धक आलेख है। धन्यवाद
Post a Comment