Wednesday, 16 December 2009

क्या महिलायें बहलाने फुसलाने में ज्यादा पारंगत होती हैं ?



क्या महिलायें बहलाने फुसलाने में ज्यादा पारंगत होती हैं ? जी हाँ पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह हुनर ज्यादा विकसित है -ऐसा कहना है व्यव्हारविदों का ! उनका मानना है कि ऐसा इसलिए होता है कि माताओं पर बच्चों के लालन पालन का दायित्व पुरुषों से अधिक होने के नाते उनका यह स्वभाव ही बनता जाता है -अब बालहठ को आखिर कैसे संभाला जाय ? मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों -लीजिये मासूम हठी बालक चान्द ही मांग बैठा ! और वह कविता तो आपको याद होगी न -"हठ कर बोला चाँद  एक दिन ...." यह भी बाल मन को ही इंगित करती कविता है ! अब माँ करे भी तो क्या ..बाप को अपने बाहर के कामों से फुरसत नहीं -और यह शिकारी मनुष्य के काल से ही चलता आया है -घर पर अकेली माँ बच्चे को अब कैसे बहलाए फुसलाये ? तो प्रक्रति ने उत्तरोत्तर माँ को ऐसी क्षमता देनी शुरू की जिससे वह कन्विंसिंग लगे -बच्चे को लगे कि उसकी माँ झूंठ नहीं बोल रही है !... और माँ ने ऐसे निरापद झूठ  बोलने की क्षमता विकास के दौर में हासिल कर ली कि  इस विधा में पारंगत ही बन बैठी !

मगर कहानी यहीं खत्म नहीं होती ..बच्चे तो बच्चे ...बच्चों के बाप भी अक्सर झांसे में आ  जाते हैं -प्रेमी तो अक्सर बनते ही  रहते हैं -क्या मजाल कि झूंठ का ज़रा भी भान हो जाय ! पुरुष इतने सफाई से झूंठ नहीं बोल पाता -याद कीजिये पिछली बार कैसे झूंठ बोलते हुए आप पकडे गए थे...चेहरा सफ़ेद पड़ गया था  और हकलाहट थोड़ी बढ गयी थी न ?और तिस पर झपकती आँखों ने सारे राज का पर्दाफाश कर दिया था ...मगर यह आपको पता नहीं हैं कि मोहतरमा उससे कई ज्यादा बार आपको उल्लू बना चुकी हैं और आपको उसका आभास तक नहीं हुआ ! मगर यह काम महिला एक सरवाईवल वैलू के ही लिहाज से करती है ताकि परिवार का विघटन बचा रहे -बड़े होते बच्चों पर कोई विपदा न आ  जाय !

कई रियल्टी शो नारी के इस  आदिम हुनर का बेजा फायदा उठा रहे हैं -झूंठ बोलने की मशीन का बेहूदा प्रदर्शन कर महिला से यह उगलवाने का निर्लज्ज प्रदर्शन करते भये हैं कि उसका गैर वैवाहिक सम्बन्ध भी   है -अब दर्शक दीर्घ में बैठे बिचारे पति को तो मानो काटो तो खून नहीं ..एक रियलटी शो में मशीन ने जो झूंठ पकड़ा कि लोगों की रूहें काँप गयीं -मोहतरमा अपने पति की ह्त्या ही नियोजित किये बैठी थीं ! यद्यपि झूंठ पकड़ने वाली मशीने खुद भी विवादित रही हैं और बहुत से वैज्ञानिक उनकी सत्यता पर आज भी सशंकित से हैं मगर यह इन्गिति तो हो ही जाती है कि महिलायें ज्यादा सहज हो झूंठ बोल  जाती हैं जो सौ फीसदी सच लगता है !

अंतर्जाल पर ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जिन्हें रूचि हो वे यहाँ, यहाँ और यहाँ देख सकते हैं और खुद भी गूगलिंग कर इस रोचक मामले की पड़ताल कर सकते हैं ! कुछ ऐसे मामले हैं जहाँ वह केवल अपने जीवन साथी को खुश रखने के लिए ही झूंठ बोल जाती है जैसे कि उसने उसे सचमुच संतुष्ट कर दिया है !
संकलित कड़ियाँ यहाँ भी हैं  ! 
दावात्याग : अभी भी वैज्ञानिकों में यह मामला विवादित है -यहाँ केवल व्यवहारविदों (ईथोलोजिस्ट  )की राय व्यक्त हुई है!

53 comments:

Udan Tashtari said...

हमारी पत्नी को हम जबरिया सच मान बैठे...कहती हैं कि यू आर द क्यूटेस्ट...


काहे पहले नहीं बताये भई..हम यूँ ही ऐंठे घूमते रहे जबकि सुने भी थे:

हठ कर बोला चाँद एक दिन ...

:)

seema gupta said...

हा हा हा हा हा हा रोचक विश्लेष्ण ......बेचारे आदरणीय समीर जी.....अब तो कुछ हो भी नहीं सकता हा हा हा हा
regards

Arvind Mishra said...

@समीर जी मेरे पास ऐसा अभिलिखित विवरण है जिसमे श्रीमती समीरलाल के अलावा आपको दूसरी नवयौवनाओं ने भी क्यूट कहा है और जो अनूप शुक्ल की आपसे ईर्ष्या का बड़ा सबब है ...हा हा हा .....

Anonymous said...

man either are fools or love to behave like one , why i await your so called scientific reaserch on the same

as regds this post it makes your blog a laughing stock because science has nothing to do with this so why place it on a blog where you are trying to prove scientist par excellence

विवेक रस्तोगी said...

वाकई यह सही बात है हम भी सहमत है पर मिश्राजी आदमी भी कम नहीं होते ये तो हम कई बार देख चुके हैं, और ये आप किसी भी सरकारी दफ़्तर में बहुत आराम से देख सकते हैं।

बस नुकसान उसे ही पहुंचता है जो अपना पक्ष सही ढंग से नहीं रख पाता है और बेवकूफ़ बना रहता है पर हाँ महिलायें इस मामले में हरेक जगह बाजी मारती हैं, अगर १०० महिलाएँ इस तरह की होंगी तो २ आदमी इस तरह के होंगे, ये विश्लेषण मेरे द्वारा अनुभव के द्वारा दिया जा रहा है।

Arvind Mishra said...

@शुक्रिया रचना जी ,इस अतिवादी टिप्पणी के लिए ..अपनी अपनी समझ और अध्ययन है -विज्ञान कहा नहीं है ?
मगर एक बात नहीं समझ आयी आप क्यों बहुत उद्विग्न हो उठती हैं ? एक भद्र महिला ने भी कमेन्ट किया है !उसे भी संज्ञान में लें -हर बात को पूर्वाग्रह होकर देखने के ऐसी क्या विवशता है आपको ?
आपके साथ दिक्कत यह है की आप अपने अनुभवों को सारी दुनिया पर लादना चाहती हैं और खुद को भ्रमित नारीवादियों के सिंहासन पर आसीन हुआ देखना चाहती हैं -ईश्वर करें आपका और समाज का भला हो !

Unknown said...

बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने मिश्रा जी!

पर भाई! हमारी श्रीमती जी तो कभी झूठ नहीं बोलतीं!! :-)

दिनेशराय द्विवेदी said...

क्या खूब सूत्र निकाला है। हमें तो अभी तक कोई मिली नहीं इन्तजार में उम्र गवां बैठे।

पारुल "पुखराज" said...

आदरणीय अरविन्द जी
"बहलाना -फुसलाना" जैसे उम्दा.. शीर्षक/प्रश्न.. पे आपकी क्या राय है ....ज़रूर जानना चाहूँगी
सादर

अन्तर सोहिल said...

रोचक जानकारी
मैं व्यवहारविद तो नही हूं, मगर इस बात से पूर्ण सहमति है जी

प्रणाम

निर्मला कपिला said...

गर आपकी बात सच होती तो औरतें ही अधिक तर आँसू न बहाती। और धोखा न खाती। वैसे लगता है आप की पत्नि ने जरूर आपसे शिकायत की होगी कि आप उन्हें नहीं सराहते हैं। तभी आपको ये आलेख लिखना पडा अब उसके भाभी जी के मुँह पर कहने की हिम्मत तो आपमे नहीं होगी न। व्हाह बहुत खूब धन्यवाद्

Bhawna Kukreti said...

achha ji !!

Ghost Buster said...

महिलाओं का काम ऐसे भी आसान हो जाता होगा कि मर्द तो बहलने-फ़ुसलने को तैयार ही बैठे रहते हैं.

Anonymous said...

आपके साथ दिक्कत यह है की आप अपने अनुभवों को सारी दुनिया पर लादना चाहती हैं
blog vvyagtigat anubhavo ki daairy maatr haen dr arvind aap ko bhi shyaad aesi hi mahila mili haen jo chhal kapat aur dusro ko bevkoof banaa kar jeenae ki aadi haen

seedi sapaat sachhi raahaa apnae adhikaro kae saath chalane vaali ka anubhav kam hi haen shayaad jis din ho jayaegae aaleko mae taazagi aani shuru ho jayaegi

ताऊ रामपुरिया said...

रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट, आदरणीय द्विवेदीजी से सहानुभति है.:)

रामराम.

अजय कुमार said...

मेरे विचार से तो बहलाने फुसलाने की जगह समझाने का गुण कह सकते हैं - जैसे कि मेरी पत्नी के अनुसार मैं खाना पकाने में पारंगत हूं, तो अक्सर छुट्टियों के दिन मुझे-----

Himanshu Pandey said...

महिलाओं के इस व्यवहार की कंडिशनिंग कैसे हुई - इसका सुन्दर तर्क दिया है आपने व्यवहारविदों का ।

लिंक पढ़ेगे विस्तार के लिये । आभार ।

डॉ .अनुराग said...

अक्सर ऐसी कोई भी स्टडी विज्ञान में बहुत महत्वपूर्ण नजरो से नहीं देखी जाती ..कम से कम मेडिकल के क्षेत्र में तो .......यूँ भी उनका सेम्पल साइज़ बहुत छोटा होता है .फिर किन्ही पचास सौ लोगो के आधार पे एक बड़ी जन्संख्या/ जाति /समूह ....के व्योव्हार को निर्धारित नहीं किया जा सकता ...
जिस रिअलिटी शो की आप बात कर रहे है .उस महिला का पति शराबी /निकम्मा / था .जिसको वो महिला कई सालो से शादी के सामाजिक बंधन ओर अपने बच्चो की खातिर वर्षो से झेल रही थी ..जाहिर है ऐसी ही किसी परिस्थिति में उसके मन में विचार आया हो ....जो स्वाभाविक है ...इसमें औरत /पुरुष होने का कोई औचित्य नहीं है....वैसे भी पोली ग्राफिक मशीन की सत्यता बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती.........
अमूमन गैर वैवाहिक सम्बन्ध में स्त्रिया ज्यादातर अविवाहित होती है ..ओर पीड़ित पक्ष भी.......
.केवल भारतीय समाज में ही आज भी वो सिस्टम है जिसमे कई खूबसूरत .योग्य महिलाए साधारण ओर अयोग्य पति को निभाती आ रही है ....समाज ,मर्यादा ओर कंडिशनिंग संस्कारों की वजह से .....आप महज एक दिन सड़क ...मॉल....पे कुछ घंटे बिताये ओर पुरुषो पे निगाहे रखे ...यकीन मानिये असली चरित्र सामने आजायेगे

अजय कुमार झा said...

लिजीये सर शोध का असर तो दिखने भी लगा है ....मगर लगता है कुछ दवाईयों का रिएक्शन भी होता है ......होता है न ...? और एलियन जी क्यूट हैं ये तो श्रीमती एलियन न भी कहती तो मानना ही पडता ..भई हम इंसानों के बीच इकलौता एलियन तो किसी भी लिहाज से क्यूट होगा ही ...लाख कोई जलता रहे या फ़ुंकता रहे ....डा. साहब शोध जारी रहे ...रपट का असर घातक साबित हो रहा है ......

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तीन सौ लड़कियों और औरतों पर मेरे द्वारा किया गया सर्वे यह कहता है.... कि महिलायें बहलाने , फुसलाने और झूठ बोलने में माहिर होतीं हैं.... और यह किसी भी मर्द को झूठ बोलने के लिए मजबूर कर सकतीं हैं. महिलाओं में झूठ बोलने कि प्रवृत्ति जन्मजात होती है.... यह आँसू बहा के किसी भी मर्द को अपने बस में कर लेतीं हैं. अगर एक औरत चाह ले.... तो मर्द को पल भर में कुत्ता बना सकती है.... और ज़्यादातर औरतें यही चाहती हैं...कि मर्द कुत्ता बना रहे..... मर्द कुत्ता नहीं बनता ...तो मर्द खराब है.... यही इनका सोचना होता है..... महिलाओं को खूबसूरत मर्द कभी पसंद नहीं आते.... क्यूंकि यह खुद ही काम्प्लेक्स में आ जाती हैं.... ऐसा लगता है कि महिलायें पैदाईशी .... बहलाने , फुसलाने और झूठ बोलने वाली होती हैं..... यह तीन सौ लड़कियां मेरे जीवन में रही हैं..... और सब का विश्लेषण यही निकला..... और सैम्पल सर्वे कभी झूठ नहीं होता ..... यह probabilty का सिद्धांत है..... कोई महिला कभी लोयल नहीं हो सकती..... यह हमेशा ओपशंस खोजतीं हैं..... आज मैं तो कल आप.... परसों शाहरुख़ तो नरसों.... अमिताभ.... और यह सिलसिला चलता रहता है..... एक बात और औरत चाहे सौ साल कि भी क्यूँ न हो जाये.... इनका चार्म हमेशा बना रहता है.... और यही इनकी ख़ास बात होती है..... यह पूरी ज़िन्दगी खूबसूरत और अल्हड रह सकतीं हैं..... यही इनका प्लस पॉइंट हैं. ... औरतों का कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए..... यह गेहुआं सांप होतीं हैं..... औरतें झूठ का पुलिंदा होती हैं.... और बहला .... फूसला के तो इन्होने मर्डर तक करवाए हैं..... यह अच्छी माँ , अच्छी बहन और अच्छी पत्नी हो सकतीं हैं.... लेकिन कभी भी अच्छी दोस्त नहीं हो सकतीं..... और एक लड़का और एक लड़की में कभी भी दोस्ती नहीं हो सकती..... कहने के लिए दोस्त कह सकते हैं.... क्यूंकि मजबूरी होती है..... क्यूंकि दोनों में से कोई एक अगर शादी-शुदा हुआ तो एक दूसरे को दोस्त कह देंगे..... और ऐसे ही चलता रहता है.... औरतों को हमेशा टाइम पास करने के लिए कोई न कोई कंटर चाहिए होता है..... इसके लिए यह किसी का भी इमोशनल यूज़ कर सकतीं हैं..... मोस्टली... औरतों को मर्दों को.... रोता हुआ देखना अच्छा लगता है.... यह बहुत आसानी से धोखा दे देतीं हैं.... और इनको कोई फर्क भी नहीं पड़ता.... क्यूंकि ये इमोशनली स्ट्रोंग होतीं हैं.... अगर कोई भी मेरी बात को झुठला देगा तो जो बोलेगा वही हार जाऊंगा..... यह लेख आपका सटीक और विचारनीय है...

और आज महिलाओं से बहुत डांट खाने वाला हूँ.... पर सच कह रहा हूँ कि यह पर्सनल अनुभव और रिसर्च है....आपने टाईटल बहुत सही और सटीक दिया है.....

NB:-- यह शोध सैम्पल सर्वे पर आधारित है.... No others have right to object ... especially females.... All disputes are subject to Lucknow Jurisdiction.... महिलायें कृपया माफ़ करें....

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत रोचक जानकारी।

tarannum said...

अरविन्द जी
अक्सर हिंदी ब्लोगों को ढूंढती पढ़ती हूँ कमेन्ट नहीं करती उम्र में शायद आपकी बेटी के बराबर हूँ पर आपके इस शीर्षक को देख बड़ी हैरानी हुई है उसे ज्यादा दुःख भी. टी आर पी की राह पर आप भी शीर्षक देते है ?कमेन्ट पढ़कर ओर हैरानी हुई है . कोई महफूज अली कहते है
"यह तीन सौ लड़कियां मेरे जीवन में रही हैं..... और सब का विश्लेषण यही निकला..... और सैम्पल सर्वे कभी झूठ नहीं होता ..... यह probabilty का सिद्धांत है...."
"ये महाशय खुद स्वीकारते है के तीन सौ लडकियों से सम्बन्ध है फिर दूसरो को चरित्र प्रमाण- पत्र दे रहे है . किस मुंह से ?
औरतों का कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए..... यह गेहुआं सांप होतीं हैं..... औरतें झूठ का पुलिंदा होती हैं.... और बहला .... फूसला के तो इन्होने मर्डर तक करवाए हैं...."
क्या ऊपर आपकी सपोर्ट में आये तीन चार लोगो के घर मां बहन या बीवी है .जिसे वे ये लेख पढवाना चाहेगे .ओर हां इस कमेन्ट को रखियेगा .

Arvind Mishra said...

@डॉ. अनुराग ,किसी के हत्या कराने का विचार आपकी नजरो में सहज है -जानकार ताज्जुब हुआ !
@सुमन जी ,आपकी टिप्पणी देखने के सेकेंड्स पहले पूरी पोस्ट और टिप्पणियाँ अपनी बेटी और पत्नी को सूना रहा था -जिसमें महफूज की भी टिप्पणी थी -महफूज की बात थोड़ी अतिशयोक्ति भले मगर उसके पीछे छुपे दर्द को महसूस किया जा सकता है!मैंने खुद स्पष्ट कर दिया है की अभी यह मुद्दा किसी अंतिम निष्पत्ति पर नहीं पहुंचा है ! कृपया पूरी परिचर्चा को सहजता से लें !

Arvind Mishra said...

@"dr arvind, aap ko bhi shyaad aesi hi mahila mili haen jo chhal kapat aur dusro ko bevkoof banaa kar jeenae ki aadi haen "
Amazing,quite true ...how did you know mam?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जो मर्द चरित्र वाला होता है... वो मर्द नहीं होता .... वो doubtful पर्सनालिटी का होता है.... और जो मर्द यह कहता है कि वो चरित्र वाला है उनसे लड़कियों को भी बचना चाहिए..... ऐसे मर्द गे कि श्रेणी में आते हैं..... मर्द पैदाईशी चरित्रहीन होता है.... मर्द सिर्फ अपने संस्कार से ही अच्छा होता है.... मर्द यह कह सकता है कि वो संस्कारवान है..... चरित्रवान है तो बेचारा shemale है.... मैं तो खुद को सुपर चरित्रहीन कहता हूँ...और यह कहना मेरे लड़के होने को पुख्ता करता है.... और मुझे अपने बारे में खुल के ही कहने कि आदत है.... पर मैं संस्कारवान हूँ....

रेवती सिंह said...

बहुत सुंदर और रोचक बहस है। और महफ़ूज साहब ने बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया है। अफ़्सोस इस बात का है एक किसी महिला ने ही अपने पूर्वाग्रहों के चलते इस सुंदर बहस का बेडा गर्क करने की कोशीश की है? और एक श्रीमान ने भी ऐसा ही किया है।

निवेदन है कि आपकी निजी जिंदगी के कांटे यहां क्युं बिखेरते हैं? यह ब्लाग बहस है इसे आनंद पूर्वक चलने दिजिये।

बहुत बढिया और रोचक. महफ़ूज साहब को इस बात के लिये धयवाद कि उन्होने अन्य लोगों की तरह मुंहबोली बात नही की और बेबाक अपनी बात रखी।

Gyan Dutt Pandey said...

महिला न भईं नेता भईं! :)

Unknown said...

beshak hoti hain

apnaa toh yahi anubhav hai


MAZEDAAR POST !

Anonymous said...

महिलाओं में यह हुनर ज्यादा विकसित है
मतलब, पुरूषों में यह हुनर है तो लेकिन कम विकसित है

मगर कहानी यहीं खत्म नहीं होती
ओह, आप कहानी सुना रहे हैं?

अभी भी वैज्ञानिकों में यह मामला विवादित है
मुझे तो विवादित टिप्पणियों में कोई वैज्ञानिक नज़र नहीं आया

शायद आपके चाहने वालों की नज़रेइनायत एक और पोस्ट की ओर नहीं हुई हैं :-)
वो पोस्ट है
http://kulwant84.blogspot.com/2009/12/blog-post_17.html

बी एस पाबला

Anonymous said...

महिलाओं में यह हुनर ज्यादा विकसित है
मतलब, पुरूषों में यह हुनर है तो लेकिन कम विकसित है

मगर कहानी यहीं खत्म नहीं होती
ओह, आप कहानी सुना रहे हैं?

अभी भी वैज्ञानिकों में यह मामला विवादित है
मुझे तो विवादित टिप्पणियों में कोई वैज्ञानिक नज़र नहीं आया

शायद आपके चाहने वालों की नज़रेइनायत एक और पोस्ट की ओर नहीं हुई हैं :-)
वो पोस्ट है
http://kulwant84.blogspot.com/2009/12/blog-post_17.html

बी एस पाबला

tarannum said...

जो मर्द चरित्र वाला होता है... वो मर्द नहीं होता .... वो doubtful पर्सनालिटी का होता है....

new defination of man!

poor chap .

विनोद कुमार पांडेय said...

इस में किसी के गवाही की ज़रूरत नही सब अपने अपने घरों में देख ले और नतीजा खुद ब खुद सामने आ जाएगा..बढ़िया और मजेदार विश्लेषण....धन्यवाद.

Vinashaay sharma said...

इस विषय में क्या कहूँ ? डर लग रहा है ।

प्रवीण said...

.
.
.
आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,

मानव विकासक्रम की HUNTER-GATHERER स्टेज के दौरान की परिस्थितियों से ऐसा हुआ व्यवहारविद यह कहते हैं यही नहीं स्त्रियों में gossip अधिक करने की प्रवृत्ति भी उसी दौर का नतीजा है... पर मामला विवादास्पद है और आज के दौर की नारी इन निष्कर्षों से सहमति नहीं जतायेगी।

मनोज कुमार said...

क्या महिलायें बहलाने फुसलाने में ज्यादा पारंगत होती हैं ?"
जी नहीं।
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन।।

rashmi ravija said...

सुबह ही यह पोस्ट देखी थी...पर शीर्षक देखकर ही लगा कोई गंभीर विषय नहीं होगा.पर एक मित्र ने लिंक देकर आग्रह किया,पढने का...तब भी मुझे इस पोस्ट पर कुछ कहने लायक नहीं लगा...आजकल फैशन सा हो गया है, नारी को लेकर इस तरह की पोस्ट लिखना...पुरुषों
को थोडा,हंसने मजाक करने की वजह मिल जाती है...और महिलाओं को नाराज़ देख वे आनंदित हो जाते हैं...बस इस से ज्यादा कुछ मकसद नहीं होता,इन पोस्ट्स का.
पर अभी जब इस पोस्ट को टॉप पर देखा और हमारे मित्र महफूज़ की टिप्पणी पढ़ी तो चुप रहना मुश्किल हो गया. पहले
भी महफूज़ इस तरह की बातें लिखते आए हैं.पर उनका उतावलापन या बचपना समझ कर कब तक इग्नोर किया जा सकता है.स्त्रियों के बारे में ऐसी objectionable बातें.और वो भी तब, जब कुछ महिलायें आपकी बड़ी अच्छी दोस्त हैं..वे तो
आपकी माँ,बहन या पत्नी नहीं हैं...और आप कहते हैं दोस्त हो ही नहीं सकते?..फिर हम क्या हैं?महफूज़ आपको,अपने दिमाग के जाले साफ़ करने बहुत जरूरी हैं.स्त्रियों को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं,आपके मन में.
@अरविन्द जी,आपको भी ऐसी टिप्पणी प्रकाशित नहीं करनी चाहिए थी...डिलीट कर देनी चाहिए थी.इस से आपके पोस्ट पर ट्रैफिक तो बढ़ गया पर देखिये आपकी पोस्ट गौण हो गयी.और आपने
लिखा है .."एक रियलटी शो में मशीन ने जो झूंठ पकड़ा कि लोगों की रूहें काँप गयीं -मोहतरमा अपने पति की ह्त्या ही नियोजित किये बैठी थीं"...मैंने भी देखा था ये प्रोग्राम. नियोजित
नहीं.....ऐसे भाव आए थे मन में,बस....हाँ बहुत गलत है,अपने शराबी निकम्मे पति के लिए पल भर के लिए भी ऐसा सोच कैसे सकती है,औरत?वो तो देवी है,ना....उसे देवी और राक्षसी से अलग सिर्फ एक 'ह्युमन बिंग'के रूप में नहीं देख सकते,आपलोग.

अर्कजेश Arkjesh said...

मै कहता हूं नहीं । हर समय ऐसा नहीं होता । यह एक लैंगिक गुण नहीं है । यदि ऐसा कुछ भ्रम पैदा हुआ भी है तो उसकी वजह समाज में महिलाओं की कमजोर स्थित है न कि और कुछ ।

मैंने देखा है कि बहलाने फुसलाने और झूठ बोलने के मामले में कई पुरुष महिलाओं के भी नाक कान काट सकते हैं । आखिरकार सबसे बेहतरीन अभिनय करने वाला अभी भी पुरुष्‍ा ही है ।

तो यह महिलाओं का एक प्राकृतिक गुण नहीं है, यदि कोई समझता है कि उनमें यह अधिक है तो ।

पुरुष भी जहां उनकी स्थिति कमजोर होती है , वीरतापूर्ण होने की बजाय बहलाने फुसलाने से ही काम निकालना पसंद करते हैं ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

अरविन्द जी,
आपका आलेख पढ़ा..
' मगर यह काम महिला एक सरवाईवल वैलू के ही लिहाज से करती है ताकि परिवार का विघटन बचा रहे -बड़े होते बच्चों पर कोई विपदा न आ जाय !'
यह सच है की कई बार हमलोग....कुछ बातों को छुपा जाती हैं....सारे सच सामने खोल कर नहीं रखतीं...उतनी ही बात बतातीं हैं जितने के जरूरत होती है...इसका अर्थ यह हरगिज नहीं लगाना चाहिए कि...बहलाने फुसलाने में पारंगत होतीं हैं....
किसी भी स्त्री के जीवन को आप देखिये....उसे ससुराल और मायका के बीच एक संतुलन बना कर चलना पड़ता है...वो भी पूरी ज़िन्दगी...मर्दों के साथ यह समस्या नहीं होती हैं...
औरत पूरी ज़िन्दगी बँटी हुई होती है...और बँटा हुआ जीवन हमेशा संतुलन मांगता है....आपलोग खुद ही सोच के देखिये ...
आपने स्वयं कहा है कि यह सर्वाइवल वैलू है फिर इसे एक कमी क्यूँ माना जा रहा है....अगर औरत इन रिश्तों को पालना छोड़ दे तो आप किस तरह के समाज की कल्पना करेंगे बताइए....रिश्तें यूँ ही नहीं रहते हैं उन्हें भी maintenance कि ज़रुरत होती है....दुनिया को कोई भी रिश्ता taken for granted नहीं होता...हर रिश्ते को सम्हालना पड़ता है....और इसके लिए कभी कभी....झूठ.....मनाना....बहलाना....फुसलाना सभी कुछ करना पड़ता है.....आप मर्दों के रिश्तों को भी हम औरतें ही बचा कर रखती हैं... आप को तो पता भी नहीं होता कि आपके मामा की बेटी का पति आपका क्या होगा....इसलिए आप भी इन रिश्तों को एन्जॉय कीजिये और आक्षेप लगाना छोड़ कर ...अहसान मानिए.....कि हमने आपलोगों कि दुनिया बचायी हुई है....वर्ना तो बस ईश्वर ही जाने क्या होता ....!!!

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आप में बहुत हिम्मत है, सच्ची। "आ बैल मुझे मार" :-)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं जानता हूँ..... कि मेरी कई बातें बुरी भी लगेंगी..... पर अगर मेरी टिप्पणी को गहराई से पढ़ा जाए..... तो कुछ भी बुरा नहीं लगेगा..... यहाँ मैंने बात बेबाकीपन से रखी है..... और खुल के रखी है.... इसीलिए पोसिटिव बात छुप गई है..... मैं जेंडर बायिस्ड बिलकुल नहीं हूँ..... न ही डुअल बातें करता हूँ..... जैसा कि यहाँ कि एक टिप्पणी में है ..... सस्ती लोकप्रियता पाना मेरा उद्देश्य नहीं है..... क्यूंकि मैं तो अपनी पैदाइश से ही यही मान के चला कि मैं बैस्ट हूँ.... और शायद मुझसे मिलने के बाद भी ऐसा ही लगेगा.... यह मेरा अहंकार है.... मैं .... ऐसा ही मान कर चलता हूँ..... कि मैं जो कह रहा हूँ वो ही सही है...... (Exaggeration) मेरी बातें इसीलिए खराब लगतीं हैं..... क्यूंकि मैं डरता नहीं हूँ..... और बाकी लोग डरते हैं...कि लोग क्या कहेंगे? और बायिस्ड हो के लिखते हैं..... आप बात कहिये खुल के कहिये..... पर बायिस्ड हो के नहीं..... किसी के लेक्चरर. इंजिनियर, या डॉक्टर etc ..... होने से यह मतलब बिलकुल नहीं है..... कि वो बहुत इन्तेल्लिजेंट होगा..... कई पढ़े लिखे भी सुपर बेवकूफ होते हैं..... श्री . अरविन्द जी के इस लेख को समझ के तब आगे बढिए..... और दिमाग को अन्बायिस्द रख कर टिप्पणी करिए.... मेरी टिप्पणी खराब लग सकती है..... क्यूंकि उसमें छुपे भाव को नज़रंदाज़ किया जा रहा है.... मैंने एक ऐसा खाका खींचा है...जिसे कोई डिनाय नहीं कर सकता..... हाँ! मुझे गन्दा बोल कर.... एक संतुष्टि मिल सकती है..... पर क्या ऐसा लगता है कि मुझे गन्दा बोल कर कुछ होगा? यहाँ ब्लॉग जगत में भी कई मेल्स ऐसे हैं जो कि .... दोहरी बातें करते हैं..... पर क्या लगता है कि उनका कोई लेवल है? यह वो लोग हैं जो सिटीयाबाज़ कहलाते हैं..... यह हमेशा लड़कियों को खुश रखना चाह्त्वे हैं...... यह वो लोग हैं.... जिन्हें कभी लड़की का साथ नहीं मिला...... इसिस्लिये परेशां हैं...और डरते हैं कि लड़की कयI सोचेगी? मुझे कोई डर नहीं है..... और अगर मेरी बातें किसी को बुरी लग रहीं हैं..... तो क्या करूँ? माफ़ी मांगूंगा नहीं ,..... क्यूंकि कुछ गलत किया नहीं है...... और महिलाओं को भी ऐसा कुछ नहीं कहा है.... और अगर लगता है कि कहा है तो उसका explanation भी दिया है.... मैंने पहले ही कहा था..... कि मैं अपने जानने वाले महिलाओं से डांट खाऊंगा.... तो मैं डांट खाने के लिए तैयार हूँ.... क्यंकि आप सब और पूरा ब्लॉग जगत भी मुझे भाई के रूप में , बेटे के रूप में दोस्त के रूप में और एक बदमाश बच्चे के रूप में...(एक ऐसा बच्चा ...जो कि बड़ा है..) बहुत प्यार करतीं हैं..... और मेरी खराब चीज़ों को भी तो अपनाकर... मुझ पे स्नेह बरसातीं हैं..... और यही मेरी जीत है.....

tarannum said...

"Bunch of jokers".
i really feel pity for these man wifes and sisters.RASHMI is absolutely right while saying what should a women do for his alcoholic ,nonworking husband who is doing work for her kid and home.

rashmi ravija said...

@tarannum
Beg to differ mam....i never said that a wife should murder her alchoholic husband....jst said that if a thought like that,came across her mind for a moment....there was no harm in it as she too was a normal human being....and we should not condemn her as we dint exp what had she gone through...so we have no right to criticise her.Thats all

वाणी गीत said...

मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लेहूँ ....
यदि माता बहलाना फुसलाना नहीं जानती ...तो इस सृष्टि का क्या होता ...चन्द्रमा की शीतल किरणों से वंचित यह धरा क्या सूरज का तेज सहन कर पाती ...
जो पुरुष जीवनपर्यंत बच्चे ही बने रहते हैं तो फिर उनके आस पास मौजूद स्त्रियाँ उन्हें बहला फुसला कर ही तो सही राह दिखा सकती हैं ....क्या बुरा है ...!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah...
gazab kar diya...
saari baat hi khol kar rakh di...
jai ho...

गौतम राजऋषि said...

मिश्र जी के इस ब्लौग के बारे में ज्ञात न था मुझे। आज देखा तो अच्छा लगा।

वर्तमान पोस्ट की सार्थकता वैसे महफ़ूज भाई की टिप्पणी के बोझ तले दम तोड़ चुकी है। उनकी टिप्पणी पढ़ के सोच रहा हूँ कि मर्द कहलाने के लिये यदि वाकई में ऐसे चारित्रिक विशेषताओं की दरकार है तो मुझे चुड़ियां पहन कर करोड़ों दफ़ा स्त्री बने रहना मंजूर हो।

कंचन सिंह चौहान said...

@Major Saab... again felt proud for chosing you as bro in this crowded blog world....!

kai dino se dekh rahi hun is blog ke tarka vitark... soch rahi thi ki jin sab ko mai jaanti hun kya ve purush nahi aur jin 300 logo ka zikra hai, us hisaab se kya mai stri nahi....

मेरी आवाज सुनो said...

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं....!

--
शुभेच्छु

प्रबल प्रताप सिंह

कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत

मो. नं. - + 91 9451020135

ईमेल-
ppsingh81@gmail.com

ppsingh07@hotmail.com

ppsingh07@yahoo.com

prabalpratapsingh@boxbe.com



ब्लॉग - कृपया यहाँ भी पधारें...

http://prabalpratapsingh81.blogspot.com

http://prabalpratapsingh81kavitagazal.blogspot.com

http://prabalpratapsingh81.thoseinmedia.com/

मैं यहाँ पर भी उपलब्ध हूँ.

http://twitter.com/ppsingh81

http://ppsingh81.hi5.com

http://en.netlog.com/prabalpratap

http://www.linkedin.com/in/prabalpratapsingh

http://www.mediaclubofindia.com/profile/PRABALPRATAPSINGH

http://navotpal.ning.com/profile/PRABALPRATAPSINGH

http://bhojpurimanchjnu.ning.com/profile/PRABALPRATAPSINGH

http://thoseinmedia.com/members/prabalpratapsingh

http://www.successnation.com/profile/PRABALPRATAPSINGH

http://www.rupeemail.in/rupeemail/invite.do?in=NTEwNjgxJSMldWp4NzFwSDROdkZYR1F0SVVSRFNUMDVsdw==

www.SAMWAAD.com said...

बडा टेढा सवाल है, मैं तो कुछ नहीं कहूंगा।


------------------
जल में रह कर भी बेचारा प्यासा सा रह जाता है।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।

अनूप शुक्ल said...

गौतम राजरिशी की बात मैं दोहराता हूं जो उन्होंने दूसरे वाक्य में कही।

बसंती said...

फौजी आदमी ने तो बेखौफ़ अपनी बात कह दी। अनूप शुक्ल ने तो उसे मंजूर भी कर लिया चुपके से :-)
पुराने चैट सेशन भूल गये लगता है!!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अरविन्द जी, मजिलाओं के बारे में आपकी राय ऐसी कैसे बनी, ये कारण तो आप ही जानते होंगे, लेकिन इस तरह के आरोप उचित नहीं हैं.
गौतम जी को सलाम.

Anita kumar said...

चलिए कहीं तो पुरुष महिलाओं को अपने से बेहतर मान रहे हैं । इसी आधार पर लोकसभा में 50% आरक्षण मिल जाना चाहिए।
महफ़ूज जी की टिप्पणी पढ़ कर उनसे सहानुभूति जतलाने के सिवा कुछ नहीं कह सकते, बिचारे! गजब गुणवान और अजब संस्कारवान्।

Arvind Mishra said...

@@देवियों और सज्जनों ,
अच्छी भिडंत रही ,हा हा ,यद्यपि वह अभिप्रेत नहीं थी .
नारिया बेहतर झूंठ बोल लेती हैं यह कुछ मनोविज्ञानियों ,व्यव्हारविदों
के अध्ययन का निष्कर्ष था और इस पर कुछ ने तो संयत चर्चा करनी चाही मगर
कुछ नारियों ने समझा की यह उन पर पुरुष मानसिकता का हमला है -सेंटी हो गयीं !
कुछ ने सीधे मुझ पर हमला बोला !कभी कभी आश्चर्य होता है की हम क्यूं कुछ बातों पर एकदम असहज हो जाते हैं -हमने इंगित अध्ययन के तार्किक विश्लेषण करने ,उसकी कमियाँ देखने के बजाय चीख पुकार मचा दी !
मूल बात दब गयी -
महफूज भावुक हो गए क्योंकि उनका भोग हुआ यथार्थ इस अध्ययन से गहरे मेल खा गया -सहज ही असहज और आंदोलित हो उठे ! उन्हें जो करीब से जानता है और मुझे ऐसा सौभाग्य मिला है -वह जानता है की वे दिल से बुरे नहीं हैं बस उनके जीवन के अनुभव ही तिक्त होते होते चले गए ,मगर सार्वजनिक जीवन के कुछ निषेध है वे असहजता में भूल जाते हैं -मगर वहीं हममे से कुछ लोग इतने परिपक्व हैं की सामने दूसरों को खुश करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते -सार्वजनिक सौजन्य से तो कभी पीछे नहीं हटेगें मगर अकेले दिल की बात जुबान पर लेन में देर भी नहीं लगायेगें और कुछ लोग बीच के हैं -निरीह प्राणी से मेरे जैसा... हा हा .जो ऐसी पोस्ट लिख कर जनता जनार्दन की राय ,उनके मन को टटोलते हैं !
एक बात यह और की मैंने इस अध्ययन पर पना मत व्यक्त नहीं किया है -मगर सशंकित अवश्य रहा हूँ जो एक विज्ञानी मन की विवशता है -बहुत खुले कह दूंगा अपने संशयों को तो विप्लव मच जायेगा ! मगर मुझे स्वयं पता है की महिलायें जिस सहजता से हमें कई मामलों में कन्विंस कर लेती हैं हम उन्हें नहीं कर पाते -अब इसी पोस्ट को ही लीजिये न!