Monday, 5 October 2009

गंगा की गोद की सिसकती सूंस को मिला राष्ट्रीय जल जंतु का दर्जा


वन्य जीव सप्ताह (१ अक्तूबर -७अक्तूबर ) में इससे अच्छी खबर कोई हो नहीं सकती ! पिछले तकरीबन पचास सालों से मनाये जा रहे इस सरकारी पर्व पर इससे अच्छी बात मैंने कभी नहीं देखी सुनी-यह वन्यजीव सप्ताह भी एक और औपचारिक सरकारी आयोजन के रूप में सिमट गया होता मगर अब यह यादगार बन गया है -सूंस (डालफिन)  को राष्ट्रीय जल जंतु का दर्जा दे दिया गया है ! सूंस गंगा की  गोद में न जाने कब से सिसक सिसक कर अपनी जान की दुहाई मांग रही थी -अब सरकार के कानो पर जू रेंग गयी है !

वात्सल्यमयी गंगा न केवल हमारी वरन अनेक जल जंतुओं की प्राण दायिनी रही हैं -मगर कृतघ्न ,लोभी और अदूरदर्शी मानव के पर्यावरण विरोधी कारनामों से गंगा की छाती विदीर्ण होती रही है -उसकी आँचल की छाव तले पल बढ़ रहे अनेक जीवो की जान पर बन आई है -जिसमें सबसे बुरी गति गंगा की डालफिन (Platanista gangetica ) यानि अपनी सूंस की हुई है -दरअसल गांगेय सूंस एक विलक्षण प्राणी है -यह अंधी है बेचारी मगर मनुष्य की मित्र है ! हिन्दी में तो सूंस मगर बंगाल में सुसक या सिसुक और संस्कृत में सिसुमार के नाम से विख्यात इस जलीय जीव का अस्तित्व संकट में पड़ गया है !






प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अभी कल ही सम्पन्न राष्ट्रीय गंगा रीवर बेसिन अथारिटी की बैठक में जब बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने गंगा की डालफिन को राष्ट्रीय जलीय जंतु बनाए जाने की घोषणा की तो इसे सहज ही स्वीकार कर लिया गया .इस तरह नितीश कुमार अब जीव  जंतु प्रेमियों के भी हीरो बन गये हैं ! सूंसों की संख्या तेजी से गिरी है और ये अब २०० से भी कम रह गयीं है -मादा सूंस नर से बड़ी होती है और दूर से देखने में भैंस के छोटे से बच्चे की तरह लगती है काली सी मगर दिल वाली ऐसी कि कई डूबते लोगों की सहायता के भी इसके किस्स्से सुने गए हैं ! बाढ़ के दिनों में ऐसा लगता है कि भैसके बच्चे पानी के भीतर अठखेलियाँ खेल रहे हों ! गंगा की डाल्फिने समुद्र में प्रवेश नहीं करतीं और शायद इनकी मुसीबत का एक करण यह भी है -बाकी डालफिन प्रजातियाँ फिर भी समुद्र की अपार जलराशि में अपनी वंश रक्षा कर ले रही हैं .




बाघ के राष्ट्रीय पशु और मोर के राष्ट्रीय पक्षी घोषित होने के बाद गंगा की  डालफिन को राष्ट्रीय जल जंतु का दर्जा दे दिया गया है -इस तरह अब गंगा की डालफिन के जीवन मृत्य का प्रश्न अब हमारी राष्ट्रीय पहचान से जुड़ गया है ! यह वन्य जीव अधिनियम १९७२ के अधीन पहले से ही अबध्य प्राणी है -शिड्यूल एक में है ! अब यह राष्ट्रीय गौरव का भी प्रतीक बन गयी है ! मुख्यमंत्री नितीश कुमार की इस पहल के लिए वे वाहवाही के हकदार हैं .

7 comments:

Anil Pusadkar said...

वाकई बधाई के पात्र है नीतिश कुमार।मगर ये घोषणा सिर्फ़ कागज़ी नही होना चाहिये,वर्ना बाघ का क्या ह्श्र कर डाला है हम लोगो ने।हमारे प्रदेश के बस्तर के जंगलो मे विलुप्त हो रही पहाड़ी मैना को राजकीय पक्षी घोषित किया गया है मगर्……………।

Himanshu Pandey said...

यह वन्य जीव सप्ताह है- मुझे यह अंतिम दिन पता चला ।
अखबार में यह खबर पढ़ी - सोच ही रहा था कि गंगा की डाल्फिन मैंने देखी है कि नहीं । अब पता चला कि यह वही सूंस है । कई बार देखी है । अपने बगल वाली गंगाजी में भी ।
नीतिश कुमार जी की इस संवेदना के लिये उनका आभार । सबसे बड़ी बात प्रस्ताव का बिना लाग-लपेट के स्वीकार होना है ।

Arshia Ali said...

यह एक उत्साहजनक समाचार है, डाल्फिनों की घटती संख्या पर इसका सकारात्मक असर पडेगा।

राज भाटिय़ा said...

सरकार तो नही भगवान ही बचाये इस सूंस को, गंगा का पानी देखा था कभी खराब नही होता था, अब बोतल मे भर कर रखो तो दस दिन मै ही बदबू मारने लगता है, ऎसे मै यह निरिह जीव जंतू क्या करेगे....
आप ने बहुत सुंदर ढंग से लिखा, बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

अफ़लातून said...

तट से देखने पर सूंस जब सांस लेने के लिए थूथन निकल कर फिर पानी में चली जाती थी तब लगता था भिश्ती मसक निकला और फिर पानी में चला गया। जब गंगा पर बने मालवीय पुल से इन्हें देखा तब पता चला कि यह तो डॉल्फ़िन परिवार की हैं (मीठे पानी वाली,स्तनपायी) । उम्मीद है इनके बचे रहने की दिशा में कुछ हो।
हांलाकि फरक्का बांध बनने के बाद से अन्य मछलियां भी गंगा में नहीं आतीं।पहले बच्चे पैदा करने के सीज़न में धारा के विपरीत तैरते हुए बनारस कानपुर तक आ जाती थीं ।

अफ़लातून

Abhishek Ojha said...

मिल गया ना राष्ट्रीय का दर्जा? मतलब हालात सही में खराब है... कितनी बची होंगी?

Alpana Verma said...

शुभ संकेत हैं ,अच्छा समाचार.