Monday, 14 September 2009

प्यार में ज़रा संभलना ......बड़े धोखे हैं इस राह में !

मानव प्यार की जटिलताओं को विवेचित करती लगातार यह  तीसरी पोस्ट इस श्रृखला की फिलहाल अंतिम कड़ी है ! इश्क से दीगर मसले और भी तो हैं ! प्रेम के जोडों में कई कुदरती अवरोधक (जिनकी चर्चा पिछले पोस्ट में हुयी है ) अनुपयुक्त साथी की पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने से रोक देते हैं ताकि अनचाहे गर्भ धारण और बाद की झंझटों ,बच्चों के लालन पालन के साझे बोझ को उठाने की समस्याओं से बचा जा सके !

दिक्कत है कि हमारे कई सामाजिक रीति रिवाज जो दरअसल अनुपयुक्त  जोडों के मिलन  के निवारण के लिए ही आरम्भ हुए,जैसे स्वयंवर  ही ,कालांतर में मात्र (विवाह की  ) रस्मो अदायगी तक सीमित रह गए ! उपयुक्त वर के  तलाश की कवायद तो आज भी जारी दिखती है (वधू की कम ही ! ) ,कई उपक्रम किये जाते हैं ,पंडित -फलित ज्योतिषी गणना करते हैं ("गन्ना मिलाना ",=गुण मिलाना ) फिर एक आदर्श जोड़ा /जोड़ी को सामाजिक हरी झंडी मिल जाती है ! मगर पूर्वजों द्वारा सही जोड़े के मिलान की 'कुदरती जरूरत' की समझ जहां विस्मित करती है वहीं आजकल इसके नाम पर चल रहे समझौते इस व्यवस्था के मूल उद्येश्य पर  ही प्रश्नचिहन लगाते हैं !

विवाह के रूप में जितने  जोडों को सामाजिक स्वीकृति मिलती है उनमें  कुदरती तौर पर कितने फीसदी सही जोड़े होते हैं यह भी एक मुद्दा है ! इसी तरह बलात्कार और वैश्यावृत्ति में भी कुदरत के सही जोड़ा मिलान की व्यवस्था ध्वस्त हो रहती है ! ये  कुदरत की सच्चे प्यार से उपयुक्त जोड़ा बंधवाने की व्यवस्था को धता बताते मानव व्यवहार के बड़े उदाहरण रहे !

कुछ छोटे छोटे झांसे भी देकर गलत जोड़े बनने के मामले अध्ययन के दौरान प्रकाश में आये हैं - जहाँ कुदरत की अनपयुक्त को पहचाने की मशीनरी फेल हो जाती है ! मसलन कोई दुर्घटना हो गयी -प्लेन ,ट्रेन , मोटर क्रैश ,अग्निकांड ,बाढ़ -इस दौरान दूसरों की भलाई के लिए शरीर की एक और व्यवस्था सक्रिय हो उठती है -कुछ लोगों में बहुत तीव्रता के साथ प्राणोत्सर्ग (altruism )तक की भावना उछाल मारती है -इस दौरान किसी ने किसी को जान पर खेल कर बचा लिया तो अचानक  हादसे के चलते धमनियों में तुरत  बढ़ गए "हादसा हारमोन " ऐडरनलीन के प्रभाव में  शरीर की अनुपयुक्त जोड़े के पहचान के प्रक्रिया फेल कर जाती है और जोडों में एक आकर्षण/कृतज्ञता भाव उत्पन्न हो जाता  है . फिल्मों में छोटी मोटी दुर्घटनाओं के बाद नायक नायिका में पनपते प्रेम का दिखाया जाना अकारण नहीं  है !

  मगर सावधान यह संतानोत्पत्ति के लिए सही जोड़ा नहीं भी हो सकता है ! इसी तरह जो महिलायें  गर्भ निरोधक गोली नियमित तौर पर ले रही होती हैं उनमें भी सही गलत जोड़े के पहचान की कुदरती व्यवस्था जवाब दे जाती है -क्योंकि गर्भ  निरोधक जो स्वयं एक तीव्र प्रभाव वाले हारमोन हैं और नारी की अंडोत्सर्जन प्रक्रिया को बाधित करते हैं " साईड  इफेक्ट " में  सही जोड़े की पहचान को प्रभावित कर देते हैं ! पश्चिमी देशों में  एक अध्ययन में तो यह पाया गया कि गर्भ निरोधक गोलियों  के इस्तेमाल के दौरान बने प्रणय सम्बन्ध और  विवाहों में तलाक की दर बहुत ज्यादा है ! जाहिर है नकली प्रेमी इस दौरान "एम् एच सी " फैक्टर की पहचान को धता बता देता है !

वैसे भी इश्क का बुखार लम्बे समय तक नहीं  चलता यह या तो "सहचर प्रेम " ( companionate love !)  में तब्दील हो जाता है  या फिर शनैः शनैः मिट जाता है जब यह कुदरत की मूल प्रजनन /संतानोत्पत्ति की भावना को किन्ही कारणों से भी चरितार्थ नहीं कर पाता ! मानवीय संदर्भ में जो सबसे महत्वपूर्ण जैवीय मुद्दा है वह ऐसे जोड़ा  बंधन (पेयर बांडिंग ) को बढावा देने का है जो संतति की जिम्मेदारियों का कुशलतापूर्वक वहन कर सकें -महज मौज मस्ती ही नहीं ! इसलिए निरे रोमांस पर लगाम लग जाती  है और यह किसी की जिन्दगी को लम्बे वक्त तक तबाह नहीं करता -" सहचर प्रेम " में बदल जाता है या फिर मिट जाता है ! भले ही असफल प्रेम के अनगिनत किस्से कहानियाँ को जन्म देकर ! मनुष्य जैसा तार्किक (और अतार्किक !)प्राणी भी इक मुकाम पर इसलिए ऐसे इश्क से तोबा कर लेता है जो फलदायी न हो -उतरती जाए है रोमांस की खुमारी अहिस्ता आहिस्ता ! 

मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि जोडों में रोमांस कुछ कमतर हो जाता है -यह सहचर प्रेम में तब्दील होकर अक्षुण हो उठता है -कई शादी शुदा जोडों में वर्षों उपरांत भी उनके ब्रेन का वह हिस्सा उद्दीप्त पाया जाता है जो कि इश्क के दीवानों में दमकता रहता है ! मगर ऐसे मामले अपवाद ही हैं !

10 comments:

विवेक सिंह said...

आह इतनी रोचक श्रंखला का फिलहाल समापन हो गया !

दिनेशराय द्विवेदी said...

जीवों में प्रजनन एक आवश्यक गुण है। इसी से जीवन अक्षुण्ण बना रहता है। लेकिन परिस्थितियाँ भी इसे अवश्य प्रभावित करती होंगी। मनुष्य प्रजाति के उद्भव और उस के विकास और प्राकृतिक वस्तुओं के रूप बदल कर उन्हें उपयोग में लेने की क्षमता के विकास की दीर्घ काल और संपूर्ण पृथ्वी पर एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो जाने की परिस्थितियों ने जोड़ा बनाने और संतानोत्पत्ति की प्राकृतिक पद्धति को अवश्य ही प्रभावित किया है। मनुष्य की संतानोत्पत्ति की आवश्यकता जो आदिम काल में रही होगी वह आज किसी हद तक परिवर्तित हुई है। इस ने भी तो मनुष्य के यौन व्यवहार को प्रभावित किया ही होगा? इस की छानबीन की जाए तो रोचक और उपयोगी होगी।
यह लघु श्रंखला उत्तम रही।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सशक्त और सुलझी हुई श्रंखला के लिये आभार. आपके इस प्रयास का कोई तोड नही है. शुभकामनाएं.

रामराम.

रंजू भाटिया said...

रोचक श्रृंखला चल रही है यह शुक्रिया

L.Goswami said...

अब आश्चर्यचकित होने की बारी मेरी है ..यह मेरी अगली पोस्ट की सामग्री थी ..शायद एक विषय पर लिखते वक्त सोंच का बहाव एक सा चलता है

Arshia Ali said...

धोखे तो जिंदगी की हर राह में हैं, फिर चाहे वह प्यार हो अथवा व्यापार।
{ Treasurer-S, T }

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन कड़ी..... वाह..

P.N. Subramanian said...

बड़ा ही इको फ्रेंडली लेख रहा. आभार..

arun prakash said...

इस लेख को दुबारा वेलान्ताइन डे पर प्रकाशित कीजियेगा तब इसकी अधिक प्रासंगिकता होगी
यौन व्यवहार को इतने करीब से परखने के बाद मई चाहूँगा की इश्क पर सब कुछ लुटा देने वाले उन अधेड़ महिलाओ व पुरुषों जिनके बारे में अक्सर खबरे आती रहती है तथा जिन पर सत्य कथाओ का पूरा प्रकाशन ही टिका हुआ है उनके अन्दर कौन सा केमिकल लोचा बोले तो हो जाता है ?
इस पर आपका शोध क्या कहता है क्यों की यह बड़ा ही मार्मिक विषय है
इस पर सामग्री हो तो अवश्य परोसियेगा

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत काम की जानकारी - हमें बहुत लेट मिल रही है! :)