इन्ही ब्लॉग पन्नो पर हमने पशु पक्षियों के प्रणय याचन प्रदर्शनों को निरखा परखा और अब बारी है मनुष्य प्रजाति में प्रणय व्यवहार के अवलोकन की -मनुष्य प्रजाति यानि होमो सैपिएंस सैपिएंस जो एक 'सामाजिक प्राणी ' है ! जैवविद प्रायः प्रजाति को पारिभाषित करने में यह भी कहते हैं की जो प्राणी आपस में निर्बाध प्रजनन कर संतति जनन कर लेते हैं वे एक प्रजाति के होते हैं ! यह परिभाषा भी मनुष्य को एक भरी पूरी प्रजाति होने का गौरव देती है ! मतलब धरती पर का कहीं का गोरा या काला ,नाटा -मोटा कद काठी का इन्सान इस परिभाषा को पूर्णतः साक्षात ,चरितार्थ कर सकता है !
तो आईये अनावश्यक विस्तार को तूल न देकर हम सीधे मुद्दे की बात करें -मनुष्य के प्रणय प्रदर्शनों पर मेरे संग्रह में जो बेहतरीन कृति है वह डेज्मांड मोरिस की " इंटीमेट बिहैवियर " है ! आईये इस मसले पर इसी पुस्तक के हवाले से कुछ गौर फरमाएं !
मनुष्य का प्रणय काल दीगर पशुओं की तुलना में काफी अधिक -एक वर्ष तक लंबा खिचता देखा जाता है ! मगर सहज तौर पर यह औसतन एक वर्ष का आका गया है ! मनुष्य की पारस्थितिकीय जटिलताओं के चलते इस समय में प्रायः कमी बेसी भी देखी जाती है ! (मतलब प्यार में धैर्य का साथ न छोडें या धैर्य आपका साथ न छोडे तभी गनीमत है ! ) ! इसी एक वर्ष की अवधि में प्रथम दृष्टि के कथित अनुभव के साथ ही यौनिक संसर्ग तक प्रणय याचन (कोर्टशिप ) के कई चरण /स्टेप्स घटित होते हैं ! ऐसा लगता है कि व्यवहार शास्त्री ( इथोलोजिस्ट ) रूहानी प्रेम (प्लैटानिक लव ) को अपने अध्ययन क्षेत्र के बाहर का विषय मानते हैं -वे प्यार की दीवानगी में देह की भूमिका ही सर्वोपरि मानते हैं !
घनिष्ठ सम्बन्ध की व्याख्या करते हुए डेज्मांड मोरिस कहते हैं कि बिना शरीर के किसी भाग के हिस्से के संस्पर्श हुए किसी के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध नही हो सकता ! मतलब बात बात में घनिष्ठ सबंध का दावा करने वालों में यह देखा जाना चाहिए कि उनके अंग उपांग कभी संस्पर्श के दौर से गुजरे भी है या नहीं ! अब हैण्डशेक तक न हुआ हो और दावे किए जायं कि अमुक से हमारा घणा /घनिष्ठ संबंध है तो एक इथोलोजिस्ट को इस पर आपत्ति हो सकती है ! गरज यह कि घनिष्ठ सम्बन्ध संस्पर्शों की बिना पर ही परवान चढ़ते हैं ! तो जाहिर है मनुष्य के प्रणय याचन से यौन संसर्ग तक की कथा दरअसल कड़ी दर कड़ी घनिष्ठ से घनिष्ठतम संस्पर्शों का ही फलीभूत होना है ! मोरिस ने इस पूरी प्रक्रिया को कई चरणों /स्टेप्स में यूँ बयान किया है ! (मूल कृति से साभार ) ( इस अंतर्जाल संस्करण को पढने की सिफारिश है )
1. eye to body.
2. eye to eye.
3. voice to voice.
4. hand to hand.
5. arm to shoulder.
6. arm to waist.
7. mouth to mouth.
8. hand to head.
9. hand to body.
10. mouth to breast.
11. hand to genitals.
12. genitals to genitals.
मतलब आंख से शरीर ,आँख से आँख ,आवाज से आवाज ,हाथ से हाथ ,हाथ से कंधे ,
हाथ से कमर ,मुंह से मुंह ( चुम्बन ) ,हाथ से सिर ,हाथ से शरीर का कोई भी हिस्सा -यौनांग छोड़कर ,
मुंह से वक्ष ,हाथ से यौनांग ,यौनांग से यौनांग ! (इति रति-लीलाः)
मगर यहाँ एक काशन है !प्यार के एक पावदान से ऊपर के पावदान पर पैर रखना इतना सहज नही है !
यह पुरूष के प्रणय साथी के निरंतर प्रतिरोध ,हतोत्साहन ,और अनिच्छा को झेलते जाने का एक जज्बा है -यह प्रकृति के फूल प्रूफ़ सुरक्षात्मक उपायों की एक व्यवस्था है ताकि किसी नाकाबिल /अक्षमं को प्रजननं का मौका न मिल जाय जिसमे नारी को जहमत ही जहमत उठानी पड़ती है -गर्भ धारण से शिशु के लालन पालन तक ! तो एक स्टेप से आगे के स्टेप पर जाते हुए कड़ी जैवीय छान बीन भी अपरोक्ष रूप से चलती रहती है -इसमें किसी भी स्तर पर भी क्वालीफाई न कर पाने पर प्यार के मैदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है -भले ही आप उसके बाद बेमिसाल उर्दू पोएट्री लिखते पाये जाएँ ! हाँ आश्चर्य है कि इतनी चाक चौबंद व्यवस्था के बाद भी कुछ चक्मेबाज अपनी घुसपैठ बना ही लेते हैं और नारी अभिशप्त होती है ! ऐसा क्यों होता है -विमर्श जारी है !
ऊपर के चरणों के अपवाद वेश्यावृत्ति और सामाजिक अनुष्ठानों -परिणय जो निश्चय ही प्रणय नही है में मिलते है जिनमे बताये गए स्टेप्स गडमड हो जाते हैं -इन पर चर्चा फिर कभी !
तो आईये अनावश्यक विस्तार को तूल न देकर हम सीधे मुद्दे की बात करें -मनुष्य के प्रणय प्रदर्शनों पर मेरे संग्रह में जो बेहतरीन कृति है वह डेज्मांड मोरिस की " इंटीमेट बिहैवियर " है ! आईये इस मसले पर इसी पुस्तक के हवाले से कुछ गौर फरमाएं !
मनुष्य का प्रणय काल दीगर पशुओं की तुलना में काफी अधिक -एक वर्ष तक लंबा खिचता देखा जाता है ! मगर सहज तौर पर यह औसतन एक वर्ष का आका गया है ! मनुष्य की पारस्थितिकीय जटिलताओं के चलते इस समय में प्रायः कमी बेसी भी देखी जाती है ! (मतलब प्यार में धैर्य का साथ न छोडें या धैर्य आपका साथ न छोडे तभी गनीमत है ! ) ! इसी एक वर्ष की अवधि में प्रथम दृष्टि के कथित अनुभव के साथ ही यौनिक संसर्ग तक प्रणय याचन (कोर्टशिप ) के कई चरण /स्टेप्स घटित होते हैं ! ऐसा लगता है कि व्यवहार शास्त्री ( इथोलोजिस्ट ) रूहानी प्रेम (प्लैटानिक लव ) को अपने अध्ययन क्षेत्र के बाहर का विषय मानते हैं -वे प्यार की दीवानगी में देह की भूमिका ही सर्वोपरि मानते हैं !
घनिष्ठ सम्बन्ध की व्याख्या करते हुए डेज्मांड मोरिस कहते हैं कि बिना शरीर के किसी भाग के हिस्से के संस्पर्श हुए किसी के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध नही हो सकता ! मतलब बात बात में घनिष्ठ सबंध का दावा करने वालों में यह देखा जाना चाहिए कि उनके अंग उपांग कभी संस्पर्श के दौर से गुजरे भी है या नहीं ! अब हैण्डशेक तक न हुआ हो और दावे किए जायं कि अमुक से हमारा घणा /घनिष्ठ संबंध है तो एक इथोलोजिस्ट को इस पर आपत्ति हो सकती है ! गरज यह कि घनिष्ठ सम्बन्ध संस्पर्शों की बिना पर ही परवान चढ़ते हैं ! तो जाहिर है मनुष्य के प्रणय याचन से यौन संसर्ग तक की कथा दरअसल कड़ी दर कड़ी घनिष्ठ से घनिष्ठतम संस्पर्शों का ही फलीभूत होना है ! मोरिस ने इस पूरी प्रक्रिया को कई चरणों /स्टेप्स में यूँ बयान किया है ! (मूल कृति से साभार ) ( इस अंतर्जाल संस्करण को पढने की सिफारिश है )
1. eye to body.
2. eye to eye.
3. voice to voice.
4. hand to hand.
5. arm to shoulder.
6. arm to waist.
7. mouth to mouth.
8. hand to head.
9. hand to body.
10. mouth to breast.
11. hand to genitals.
12. genitals to genitals.
मतलब आंख से शरीर ,आँख से आँख ,आवाज से आवाज ,हाथ से हाथ ,हाथ से कंधे ,
हाथ से कमर ,मुंह से मुंह ( चुम्बन ) ,हाथ से सिर ,हाथ से शरीर का कोई भी हिस्सा -यौनांग छोड़कर ,
मुंह से वक्ष ,हाथ से यौनांग ,यौनांग से यौनांग ! (इति रति-लीलाः)
मगर यहाँ एक काशन है !प्यार के एक पावदान से ऊपर के पावदान पर पैर रखना इतना सहज नही है !
यह पुरूष के प्रणय साथी के निरंतर प्रतिरोध ,हतोत्साहन ,और अनिच्छा को झेलते जाने का एक जज्बा है -यह प्रकृति के फूल प्रूफ़ सुरक्षात्मक उपायों की एक व्यवस्था है ताकि किसी नाकाबिल /अक्षमं को प्रजननं का मौका न मिल जाय जिसमे नारी को जहमत ही जहमत उठानी पड़ती है -गर्भ धारण से शिशु के लालन पालन तक ! तो एक स्टेप से आगे के स्टेप पर जाते हुए कड़ी जैवीय छान बीन भी अपरोक्ष रूप से चलती रहती है -इसमें किसी भी स्तर पर भी क्वालीफाई न कर पाने पर प्यार के मैदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है -भले ही आप उसके बाद बेमिसाल उर्दू पोएट्री लिखते पाये जाएँ ! हाँ आश्चर्य है कि इतनी चाक चौबंद व्यवस्था के बाद भी कुछ चक्मेबाज अपनी घुसपैठ बना ही लेते हैं और नारी अभिशप्त होती है ! ऐसा क्यों होता है -विमर्श जारी है !
ऊपर के चरणों के अपवाद वेश्यावृत्ति और सामाजिक अनुष्ठानों -परिणय जो निश्चय ही प्रणय नही है में मिलते है जिनमे बताये गए स्टेप्स गडमड हो जाते हैं -इन पर चर्चा फिर कभी !
15 comments:
अच्छी पोस्ट! अपनी विशिष्ट मारक शैली मैं वेज्ञानिक तथ्यों से साक्षात्कार करा रही है।
चलो चलें - देह से परे की बात करें! :)
बेहतर।
संयोग से यहां आना बेकार न गया।
सही नज़रिए की उपस्थिति है और सरोकार भी।
वाह.... बेहतरीन प्रस्तुति..
विशिष्ट मारक शैली!
कोई अतिशयोक्ति नहीं :-)
मुझे एक और सार्थक लिंक मिला प्रजाति पर। इसी शब्द पर पोस्ट लिखने के इरादे से करीब 250 लिंक तो हो चुके :-))
अच्छी और रोचक जानकारी। अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
मै तो चला जिधर चले रास्ता......
अच्छा लेख। आगे के लेखों के इंतजार में...
आपका स्टाइल भी लाजवाब है! (डम्बलडोर की तरह)
मनुष्य का व्यवहार नियमों में कहाँ बध पायेगा, भले ही वो वैज्ञानिक नियम ही क्यों ना हो. हाँ अप्रोकसिमेट नियम हो सकते हैं और इस मामले में तो... :)
Khoj khoj kar vishay laa rahe hain.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
desmond मोरिस के अनन्य शिष्य इस देहेत्तर योनि से इतर भी कल्पना करें वैसे desmond मोरिस का मूल लेख व अन्य लिंक भी आपके सौजन्य से पढ़ा
अनंग शास्त्र के रचयिता आपको कोटिशः धन्यवाद दे रहे होंगे वैसे शास्त्रीय भाषा में इसका बड़ा ही प्रिय नाम दिया गया है शिश्नोदर परिपालक कृत्य
desmond मारिस ने naked ape में क्या लिखा है इसकी भी चर्चा विस्तार से आपके माध्यम से जानना चाहूँगा आपके लेख हमेशा कुछ सीखने को विवश करते हैं आभार
एक जबरदस्त पोस्ट जो देर से पढ़ी.
रेखाचित्र में प्रणय पूर्व कौतुक, औत्सुक्य और वक्ष स्पर्श की क्रिया को चित्रकार ने बखूबी चित्रित किया है।
"...प्रणय साथी के निरंतर प्रतिरोध ,हतोत्साहन ,और अनिच्छा को झेलते जाने का एक जज्बा ..." मरदई का एक पक्ष और उसकी मीमांसा अच्छी बन पड़ी है।
प्रणय लीला के सोपान अच्छे लगे। अभिषेक जी की 'लगभग' वाली बात से सहमति।
देह पर लिखना और अश्लीलता से बच जाना, एक बड़ी उपलब्धि है।
चकमेबाज सफल होते हैं नारी के भोलेपन, अज्ञान या काम की उत्कट इच्छा और प्राथमिकता के कारण। लेकिन यह अपवाद ही होता है। सामान्यत: नारी नैसर्गिक रूप से प्राप्त 'सिक्स्थ सेंस' का प्रयोग कर बच जाती है।
बलि जाऊं आपकी निरखन परखन की इस सूक्ष्मता पर -जो मुझे भी न दिखा वो जौहरी ने देख लिया -
आप तो केवल अभिषेक से सहमत और मैं अभिषेक समाहित शब्दशः इन शब्दों से समग्रतः सहमत और किंचित विस्मित भी !
महान निरखनहार है आप !
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