Sunday, 5 July 2009

पशु पक्षियों के प्रणय प्रसंग -१ (डार्विन द्विशती विशेष )

सारस का प्रणय प्रदर्शन
जीव जंतुओं में योग्यतम के संतति संवहन का जिम्मा कुदरत के एजेंडे में शामिल है -और इसे अंजाम देने के लिए उसका आजमूदा नुस्खा है कामाश्त्र का संधान -कामाश्त्र के संधान का मतलब है समस्त जीवों में काम भावना के संचार की जुगत ! कामवश हो जीव जंतु ही नहीं स्वयम मनुष्य भी विचित्र से हाव भाव -व्यवहार का प्रदर्शन करता है जो उनके आम व्यवहार से सर्वथा भिन्न होता है .आईये प्राणि जगत में काम व्यवहार के इस एक मुख्य पहलू की एक व्यवहार शास्त्रीय (ETHOLOGICAL ) पड़ताल करें जो ख़ुद मनुष्य में अपने उत्स पर जा पहुँचा है !


प्रजातियों की वंश रक्षा के लिए जरूरी है कि -
१-प्रत्येक जीव जंतु अपने नर मादा जोड़े की सहज तलाश कर सकें
२- वे अपने जोड़े की प्रजाति के वांछित लिंग की पहचान कर सकें
३-वे एक दूसरे को आकर्षित कर लेने में समर्थ हो सकें जिससे करीबी निकटता हासिल हो सके
४-आपस में रति प्रसंग के लिए उत्प्रेरित कर सकने में समर्थ हो सकें
५-यह भी सुनिश्चित हो सके कि जोडों के बीच सटीक तालमेल और प्रणय साहचर्य से सफल संसर्ग फलीभूत हो सके
इन जैवीय उद्येश्यों की पूर्ति के लिए जीव जंतुओं में एक सुनिश्चित प्रणय काल-कोर्टशिप पीरियेड तय होता है जिसकी गतिविधियाँ अज़ब गजब व्यवहार प्रदर्शनों से शुरू होकर अंततः अपने मुकाम -रति प्रसंग तक जा पहुँचती हैं ।
यह कोर्टशिप अवधि निचले जीवों में बहुत अल्पकालिक होकर पशु पक्षियों में कुछेक मिनटों से मनुष्य तक आते आते एक वर्ष तक जा पहुँची है ।
अब जैसे छिपकलियों की कोर्टशिप बस यही कोई १५ -२० मिनट में अप्रैल माह में होती है -उच्चतर जीवों ,पशु पक्षियोंकी भिन्न भिन्न प्रजातियों में घंटे भर से कई दिनों की कोर्टशिप देखी जाती है ।

झींगुरों का संगीत ,मेढकों की टर्र टर्र ,पशुओं का एक तरीके से रम्भाना कोर्टशिप की शुरुआत का शंखनाद ही तो है -उनकी इन प्रणय पुकारों से मादा को आकर्षित करने का बिगुल बज उठता है !व्हेलें प्राणी जगत में सबसे जटिल और लम्बी अवधि का प्रणय गीत गाती हैं जो ६ मिनट से ३० मिनट तक जारी रह सकता है -यह सैकडों मील तक प्रणयातुर जोडों को सुनाई दे जाता है !

जारी ....

10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छी श्रंखला है। बहुत कुछ जानने को मिल सकता है इस से। यह भी समझने का अवसर है कि मनुष्य का इस मामले में जो व्यवहार है वह वर्तमान में ऐसा क्यों है?

Himanshu Pandey said...

श्रृंखला रोचक रहेगी और संवादी भी । डार्विन की द्विशती के बहाने बहुत कुछ गोपन अनावृत हो रहा है- डार्विन को सच्ची श्रद्धांजलि ।
श्रृंखला की गति मानस को पुष्ट करेगी तो शायद कुछ खास कह सकूँगा । आभार ।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब श्रंखला है. मन मे कुछ जिज्ञासाएं समय समय पर उठती रहती हैं या कभी पहले उठी थी..उनका शमन हो जाता है. बहुत धन्यवाद.

रामराम.

Ashok Pandey said...

डार्विन द्विशती पर बहुत ज्ञानवर्धक श्रृंखला आपने शुरू की है।
शायद प्रणय का नै‍सर्गिक सुख तो बस पशु-पक्षी ही उठाते हैं, आदमी तो जानवर हो चुका है :):)

डॉ. मनोज मिश्र said...

जानकारी भरी पोस्ट .

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

डार्विन को व्यवहारिक श्रद्धांजलि देती एक ज्ञान वर्धक श्रृंखला के लिए साधु-साधु |
''...............के बहाने से { चिट्ठा:अन्योनास्ति } पर भ्रमण का आभारी हूँ , धन्यवाद ||
विद्वत जनो के दो शब्द ही बहुत होते हैं |

ज्ञात सृष्टि में केवल मानव प्रजाति ही एक ऐसी प्रजाति है, जो बारहों मास अपनी इच्छानुसार यौन-क्रिया में सक्षम है जब की अन्य सभी का ऋतु-काल होता है और प्रकृति इस के द्वारा उनकी पजाति का वंशवर्धन व अग्रवर्धन कराती है ,यौन क्रीडा में आनन्द अन्य जीवों को भी आता ही होगा | परन्तु यह मानव प्रजाति ही है जो केवल और केवल मात्र अपने आनन्द के लिए ही रति-क्रीडा करती है ,और उस आनंद को बढाने हेतु नित नए एवं कृत्रिम तरीकों का भी अविष्कार करती रहती है ; यह '' होमोसेक्सुएलिटी '' भी उसी क्रम में आती है | यहाँ तक उसका स्वर्ग और जन्नत भी सेक्स रहित नहीं है वहां भी हूरें या अप्सराएँ है | आप के डार्विन द्विशती चिटठा माला का लिंक अपने किसी आलेख पर देने का इरादा बना रहा हूँ | जयति जयति !

Science Bloggers Association said...

रोचक और पठनीय सामग्री। पर आश्चर्य का विषय यह है कि कमेंट इतने कम क्यों हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Abhishek Ojha said...

हम्म... लुप्त हुई किसी प्रजातियों के लिए भी ये कारण रहा क्या?

Udan Tashtari said...

ये सही काम शुरु हुआ! शुभकामनाऐं.

अभिषेक मिश्र said...

रोचक श्रंखला है.