Friday, 13 March 2009

पुरूष पर्यवेक्षण विशेषांक !

अपने पाशविक विकास के क्रम में मनुष्य जब अपने दोनों पैरों पर उठ खडा हुआ तो एक जो सबसे बड़ी मुश्किल उसके सामने आन पडी वह थी उसके निजी अंग का ठीक सामने सार्वजनिक हो जाना जबकि पहले वे चारो पैरों पर होने से सामने से दीखते नही थे ,पिछले पैरों के बीच दुबके हुए सुरक्षित थे !अब निजी अंगों के सामने आने से अनचाहे लैंगिक संवाद का प्रगटीकरण मुश्किल हो चला ! सामजिक उठना बैठना भी असुविधानक होने लगा ! और तब प्रचलन शुरू हुआ निजी वस्त्रों के रूप में पत्रों पुष्पों ( Loin Cloth ) के आवरण का जो अपने परिवर्धित रूप में आज भी उसके साथ है .कह सकते हैं मनुष्य की विशिष्टता -लज्जा का सूत्रपात भी यहीं से हुआ ! अधोवस्त्रों के तीन फायदे हुए -

१-सामाजिक सन्दर्भों में अनचाहे लैंगिक प्रदर्शनों पर रोक लग गयी .
२-बेहद निजी क्षणों की यौनानुभूति इनके ऐच्छिक अनावरण से बढ गयी .
३-यौनांगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो चली .

अब यौनांगों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर मनाही का दौर भी शुरू हो गया , ..कालांतर में ज्यादातर देशों में नग्न प्रदर्शन पर कानूनी रोक लग गयी ! अब तो एकाध देशों को छोड़कर विश्व में हर जगह जननांगों के जन प्रदर्शन पर सख्त मनाही है .यहाँ तक कि अब कोई भी स्वेच्छा से भी यौन साथी के अतिरिक्त पूरी तरह अनावृत्त नहीं हो सकता .

निजी अंगों पर बाल उगने की प्रक्रिया लैंगिक परिपक्वता का शुरुआती चरण है जो यद्यपि नर नारी दोनों में सामान है पर मुख्यतः एक पौरुषीय गतिविधि है -क्योंकि नारियों में आश्चर्यजनक रूप से किशोरावस्था की शुरुआत (पहले से नहीं ) से ही किसी भी रोयेंदार वस्तु के प्रति एक तर्कहीन सा डर मन में बैठने लगता है -देखा गया है कि बच्चों में किसी रोयेंदार मकड़े को लेकर चिहुंक भरा डर एक जैसा ही होता है मगर स्त्रियों में यही डर १४ वर्ष तक पहुँचते पहुँचते पुरुष की तुलना में दुगुना हो जाता है .इसलिए ज्यादातर स्त्रियों में किसी भी रोयेंदार जानवर का दृश्य मात्र ही उनमें कंपकपी और चिहुंक उत्पन्न् करता है . डेज्मंण्ड मोरिस कहते हैं कि संभवतः इसलिए पुरुष की तुलना में नारियों द्बारा निजी अंगों से बालों को जल्दी जल्दी हटाते रहने और एक भरेपूरे व्यवसाय को पनपने का मौका मिला जिसमें एलक्टरोलायिसिस ,निर्मूलन लेपों ,सेफ्टी रेजरों का इस्तेमाल सम्मिलित हुआ ! आश्चर्यजनक है कि नारी से जुडी कितनी ही पुरुष्कृत कलाकृतियों में (अश्लील को छोड़कर ) यौनांग बाल न दिखाने की परम्परा रही है .यह प्रवृत्ति इस सीमा तक जा पहुँची कि पश्चिमी सभ्यता के भी शुचितावादी भद्रजनों के परिवारों के पले बढे लोगों को एक उम्र तक इसका गुमान ही नही रहता रहा कि नारी यौनांग बालयुक्त भी होते हैं -एक मशहूर वाकया कला समीक्षक जान रस्किन का ही है जिनके बारे में बताया जाता है कि वे अपनी मधुयामिनी में सहसा यह देखकर भयग्रस्त हो गये कि उनकी जीवनसंगिनी के निजी अंग बालयुक्त हैं !यह वाक़या दुखद तलाक की परिणति तक ले गया !

मनुष्य के अन्डकोशों की भी एक अंतर्कथा है -शायद आप यह जान कर आश्चर्य करें कि मानव के कपि सदृश पूर्वजों में अंडकोष बाहर की और लटकता न होकर उदरगुहा के भीतर हुआ करता था जो विकासक्रम में एक नली-इन्ज्यूयिनल कैनाल के जरिये बाहर निकल आया और साथ में एक आफत भी ले आया जिसे हम हार्नियाँ के नाम से जानते हैं ! हार्नियाँ में इसी नली के जरिये आँतें भी असामान्य स्थिति में नीचे खिसक आती हैं जिसका आपरेशन ही उचित विकल्प है .मनुष्य की उदरगुहा में प्रायः ९८.४ फैरेन्हायिट तापक्रम होता है जो शुक्राणुओं के लिए मुफीद नही है -इसलिए अन्डकोशों के बाहर आने से तापक्रम की कमीं ने शुक्राणुओं की जीविता दर को बढाया ! देखा गया है कि कई दिनों तक तेज बुखार रहने पर शुक्राणुओं की निष्क्रियता भी बढ़ जाती है ! लंगोट या कसे अधोवस्त्रों के नियमित उपयोग से भी शुक्राणुओं की गतिविधि पर प्रतिकूल प्रभाव देखा गया है -विवाह के कई वर्षों तक चाहकर भी संतान न होने की स्थति में पुरुषों के लिए अधोवस्त्रों को सर्वथा त्यागने की सलाह भी दी जाती रही है जब अन्य बातें सामान्य हों !
जारी .......

15 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

मुझे अब लग रहा है कि इस श्रंखला का नाम ही पुरुष पर्यवेक्षण गलत दे दिया गया था। इस में तो उस के अलावा और भी बहुत कुछ है। आप ने आज के इस आलेख में महत्वपूर्ण जानकारियाँ दे दी हैं।

अभिषेक मिश्र said...

वाकई कई जानकारियां नई थीं.

Himanshu Pandey said...

महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा आलेख । बहुत सजग होकर पढ़ रहा था इसे ।

P.N. Subramanian said...

gyanvardhak aalekh.

रवीन्द्र प्रभात said...

यौनांगों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर मनाही का दौर ,
निजी अंगों पर बाल उगने की प्रक्रिया ,
मनुष्य के अन्डकोशों की अंतर्कथा आदि पर
आपकी जानकारियों का अंदाज़ अद्भुत है , यही आकर्षण मुझे आपके ब्लॉग पर बार-बार खिंच लाता है !वाकई कई जानकारियां मेरे लिए नई है .../

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर जानकारी दी आप ने .
धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही लाजवाब और महत्वपुर्ण जानकारियां मिल रही हैं इस श्रंखला के द्वारा.

रामराम.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं. बधाई.

Gyan Dutt Pandey said...

रोम से भय बरास्ते इटली आया क्या? कमसे कम राजनीति में तो लगता है! :-)

Anita kumar said...

बहुत ही बड़िया लेख अरविन्द जी, बहुत सी नयी बातें पता चली, धन्यवाद

Malaya said...

बोल्ड ऐण्ड बिउटीफुल...। और क्या? बधाई और साधुवाद।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मिश्राजी, आपने तो कमाल का पर्य़वेक्षण पेश कर दिया। प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं। हार्दिक बधाई।

Arvind Mishra said...

@आभार अनिता जी ,
इस पोस्ट पर अकादमिक रूचि वली बस एक महिला चिट्ठाकार की टिप्पणी प्राप्त हुयी ? इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं ?
@ रवीन्द्र जी ,मंयक जी ,सिद्धार्थ जी ! बहुत आभार ! बस साथ रहें और अगला भाग भी देंखें !

Anita kumar said...

महिला चिठ्ठाकार नहीं अरविंद जी केवल ब्रेन्…॥इवोल्युशन, अन्थ्रोपोलोजी मेरे प्रिय विषय है और आप के लेख में दोनों के इनपुट्स है और मेरे ज्ञान में वृद्धी हुई है। आभारी हूँ आप की उसके लिए। इस श्रंखला की अगली कड़ी का इंतजार है।

Science Bloggers Association said...

महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी।