Friday, 27 February 2009

जारी है कूल्हा पर्यवेक्षण !

एकीम्बो मुद्रा :सौजन्य ,वर्ल्ड आफ स्टाक
आईये गत कूल्हांक से आगे बढ़ें ! अगर रति क्रीडाओं में कूल्हे की भूमिका की चर्चा यहाँ सार्वजनिक मर्यादा के लिहाज से न भी किया जाय ( वैसे मेरे परम मित्र चाहते हैं कि मैं यहाँ कोई भेद भाव न रखूँ -उनसे क्षमा याचना सहित ! उनकी क्लास पृथक से !) तो भी हम यहाँ कुछ कूल्हा गतिविधियों की चर्चा अवश्य करना चाहेंगे !
एक सर्वकालिक ,सार्वजनीन कूल्हा मुद्रा है जिसे अंगरेजी में एकीम्बो मुद्रा (akimbo posture ) कहते हैं । पुरूष का अपने दोनों हाथ कूल्हे पर टिका कर खडा होने का जिसमें कूहनियां थोडा बाहर की ओर निकलती हुयी डबल हैंडिल वाली चाय केतली की मुद्रा बनाती हैं ! यह एक दबंग भाव भंगिमा है .मगर असामाजिक सी ! यह दोनों हाथों को आगे बढाकर आलिंगनके आह्वान के ठीक विपरीत है .अब भला कोई कूल्हों पर हाथों को टिका कर आलिंगनबद्ध कैसे हो सकता है ! यह मुद्रा समूची दुनिया में जाने अनजाने प्रायः पुरूष अपनाते देखे जाते हैं जो देखने वाले पर विकर्षण का भाव डालता है !
फुटबाल के खेल में गोल दागने से चूक गये किसी खिलाड़ी को देखिये वह यही मुद्रा अपनाए दीखता है ! मानों कह रहा हो -दूर हटो मैं बहुत गुस्से में हूँ ! इस मुद्रा के कई और भाष्य हैं -अगर आप किसी सोशल कार्यक्रम में शिरकत कर रहे हैं औरकिसी भी बाजू के लोगों -लुगाईयों को पसंद नहीं कर रहे तो उस साईड का ही हाथ -अर्ध एकीम्बों मुद्रा में उस साईड के कूल्हे पर रख दें -बस बात बन जायेगी ! उस साईड के लोग इशारा समझ जायेंगे कि आप उन्हें पसंद नही कर रहे ( इन दिनों दनादन ब्लॉगर मीट के प्रतिभागी खास गौर करें कृपया ) -यह मुद्रा पूरे विश्व में इतनी देखी परखी गयी है कि मैं आप का तो नही जानता मगर अवसर आने पर मैं इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहूंगा ! यह सामाजिक भीड़ भाड़ के अवसरों पर बिन कहे आपके मूड का प्रगटन करने का तरीका है .दोनों हाथ कूल्हे पर टिकें हैं तो मतलब साफ़ है दायें बाएं बाजू का कोई भी आपके पास न फटके !
और हाँ अगर किसी बाजू की जेन्ट्री /भद्रजनों पर मन आ ही जाय तो उधर के कूल्हे पर टिका हाथ धीरे से नीचे खिसका दें बस काम बन जायेगा -आप उधर के लोगों को निकट आने का संकेत कर चुकेंगें ! कई बास नुमा लोग ऐसी मुद्राएँ जाने अनजाने अंगीकार करते देखे गए हैं .और अर्ध एकीम्बों मुद्राए तो शादी विवाह ,दीगर सामजिक अवसरों ,पार्टियों अदि में देखे जा सकते हैं .हमारे यहाँ इस मुद्रा का कोई नामकरण नही हुआ है क्योकि यह एक अप्रत्यक्ष भाव संचार वली मुद्रा है जबकि प्रत्यक्ष भाव संचार की मुद्राओं जैसे जैसे नमस्कार .तस्बेदानियाँ आदि के नामकरण कई भाषाओं में मिलते हैं !
ऐसे ही एक कूल्हा व्यवहार प्रेमीजनों में खासा लोकप्रिय है -एक दूसरे के कमर में हाथ डाले और कूल्हे पर पंजों को टिकाये हुए चहलकदमी करने का ! यह आगे चलते रहने और फिर भी आलिंगनबद्ध हो जाने की बलवती इच्छा के बीच की एक समझौता वाली कोल्हू मुद्रा है .वैसे चहलकदमी करते रहते और तत्क्षण आलिंगनबद्ध हो जाने के मनोभाव विपरीतार्थी होते हैं -तब कमर को बाहुबद्ध करके चलते रहना भी एक समझौता परक भंगिमा बन जाती है -यद्यपि इस मुद्रा में भी आगे चलते रहना कम दिक्कत तलब नही होता -पर गहन प्रेम आगा पीछा कहाँ देखता है ? मगर आस पास आजू बाजू के लोग ऐसे जोडों को तुरत पहचान जाते हैं जो इससे बेखबर अर्ध आलिंगन में मस्त खरामा खरामा आगे बढ़ते रहते हैं ! उनके इस चाल चलन से आस पास के लोग उनकी घनिष्ठता को ताड़ जाते हैं !
कमर को बाहुबद्ध करने की ललक पुरुषों में ज्यादा देखी गयी है .एक अध्ययन में पाया गया कि ७७ फीसदी पुरुषों ने अपने महिला साथी के कमर को हाथ से घेरने में सक्रिय भूमिका दिखाई जबकि उनकी महिला मित्र ने इसे स्वीकार तो किया पर इस दौरान उनकी भूमिका पैसिव ही रही -इसी तरह मात्र १४ फीसदी महिलाओं ने कमर बाहु सम्बन्ध में ख़ुद पहल की और ९ फीसदी नारियों ने एक दूसरे को कमर बाहु बद्ध किया जबकि पुरूष पुरूष कमर बाहु बद्ध सम्बन्ध शून्य पाया गया ! ( समलिंगियों को छोड़ कर ) !
कुल/कूल्हा मिलाकर कमर और कूल्हा वस्तुतः नारी की ही थाती हैं और पुरूष पर्यवेक्षण में भी यही पहलू ही उभरता है !

9 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

पुरुष कूल्हा भी कोई कूल्हा है?

ताऊ रामपुरिया said...

वाह जबरदस्त है ये श्रंखला तो. अन्जाने मे हम जिन मुद्राओं के साथ रहते हैं उनके बारे मे जानना बडा अच्छा लग रहा है.

रामराम.

Science Bloggers Association said...

बहुत दिनों के बाद आपने मन से लिखा है, बधाई।

222222222222 said...

कूल्हा इतना महत्वपूर्ण होता है आज मालूम हुआ। शुक्रिया।

Himanshu Pandey said...

कूल्हा मुद्रा - जान गये.
इस तरह के आलेखों में सर्वेक्षणों और उनकी रिपोर्टों का भी बड़ा रोचक योगदान है, आप ढूंढ भी लेते हैं ऐसी सर्वेक्षण-रिपोर्ट.
धन्यवाद.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

कुल/कूल्हा मिलाकर कमर और कूल्हा वस्तुतः नारी की ही थाती हैं और पुरूष पर्यवेक्षण में भी यही पहलू ही उभरता है !

अच्छा तो आप इसमें जबरन घुसपैठ कर रहे हैं.

योगेन्द्र मौदगिल said...

भाई जी, होली है..... पृथक क्लास लगा ही लो..

मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है...
-एक लड़की ने दूसरी लड़की से पूछा कि ये लड़के-लड़के आपस में कैसी बातें करते होंगें ?
-दूसरी ने जवाब दिया जैसी बातें हम करती हैं वैसी बातें वो करते हैं...
-तो पहली एकदम चौंक कर दांत तले ऊंगली में चुन्नी लपेट दे कर बोली हाय राम बड़े गंदे हैं ये लड़के तो......

तो इसलिये भाई साहब आप घबरा किन से रहे हैं..?

मैं हू ना.....!!!!

कोई पूछ ले तो आप कह देना कि योगेन्द्र मौदगिल ने कहा था कि अलग क्लास भी जरूर लेनी है...

cg4bhadas.com said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर लेकिन पुरुष कूल्हा .... कूल्हा तो उन का ही अच्छा लगता है, पुरुषो की तरफ़ कभी ध्यान नही गया, लेकिन आप के लेख मै बहुत ही सुंदर जान्कारी मिली.
धन्यवाद