Thursday 5 February 2009

अब पीठ पीछे पुरूष पर्यवेक्षण !

रोयेंदार पुरूष पीठ -आकर्षक या अनाकर्षक ?
पीठ पीछे किसी की बुराई और पीठ दिखा देने की बातों का सम्बन्ध मानवीय कमजोरियों से ही है -मगर मशहूर कवि कैलाश गौतम जी की एक बात मुझे अक्सर याद आ जाती है -सरकारी मुलाजिम की पीठ और कसाई की काठ एक ही जैसी हैं जो कितनी ही चोट झेलती रहती हैं पर फिर भी रोज साफ़ सुथरी होकर तैयार हो जाती हैं नयी चोट झेलने के लिए ! दरअसल हमारी पीठ ऐसी मजबूत बनी ही हुयी है -जब से आदमी चौपाये से दोपाया बना उसकी पीठ की मांसपेशियों पर तनाव बढ़ता गया -पीठ की तीन प्रमुख मांसपेशियां हैं -सबसे ऊपरी हिस्से में ट्रेपेजियास .मध्य पीठ में डारसल और नीचे ग्लूटील .ये तीनों मांसपेशियां ही हमें सीधा रखने में हमेशा तनी रहती हैं ।
अब चूंकि ३३ हड्डियों वाले मेरुदंड को भी पीठ द्वारा ही सरंक्षित करने का दायित्व है इसलिए मनुष्य की पीठ की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है .हमारा मेरुदंड आधुनिक वैज्ञानिकों ,चिकित्सकों के लिए अद्ययन का विषय तो है ही यह कितने ही आध्यात्मियों ,तांत्रिकों आदि के लिए भी पहेली बना आरहा है और कुण्डलिनी और ब्रह्म रंध्र जागरण के अनेक विचित्र प्रयोगों का माध्यम भी रहा है -इसलिए पीठ पूजा भी व्यवहार मे रही है .पीठ एक मजबूत आधार है इसलिए हम महत्वपूर्ण वक्तियों ,प्रतिष्ठानों,गतिविधि केन्द्रों को "पीठ "की संज्ञा से भी संबोधित करते हैं -धर्म के
उत्थान और संचार के पीठों की स्थापना के जगद्गुरू शंकराचार्य के प्रयासों से भला कौन अपरिचित होगा ?
वैसे तो मनुष्य की पीठ बिना रोएँ की यानी निर्लोम होती है मगर एकाध पुरुषों की पीठ पर घने बाल भी देखे जा सकते हैं .अब मनुष्य की पीठ के यौनाकर्षण के मुद्दे पर नारियों के विचार बटें हुए हैं -कुछ के अनुसार ये अति पौरुष के "सुपर नारमल जेंडर सिग्नल " के संकेत के तौर पर आकर्षक हैं मगर ऐसा भी विचार है कि यह मानवेतर कपि सदृश लक्षण होने के कारण पूरी तरह अनाकर्षक है .इन दूसरे विचार धारक के शब्दों में पुरूष की निर्लोम त्वचा ही स्पर्श की रुझान उत्पन्न करती है ।
एक पते की बात यह ही कि सूर्य की रोशनी -यानी धूप सेंकने पर उपरोक्त वर्णित मांसपेशियों में रक्त परिवहन बढ़ जाता है और उस पर सधे हाथों से की गयी मालिश मांसपेशियों के अधिक तनाव को खत्म कर देती है -शरीर हल्का फुल्का और तनाव से रहित हो जाता है -यह आजमूदा नुस्खा है तनाव शैथिल्य का .इसलिए ही मसाज पार्लर का व्यवसाय कई जगहों -केरल आदि में आसमान छू रहा है ! आज अप्राकृतिक जीवन शैली के चलते शहरी लोगों में तनाव की शिकायत बढ़ रही है
कई अध्ययन यह भी इंगित करते हैं कि हृदयाघात से जुड़े पीठ के दर्द के अलवा भी पीठ के दर्द का एक किस्म वह है जिनके मूल में सेक्सजीवन का नैराश्य भी है और इसका इलाज भी कोई दवा दारू नहीं बल्कि रति क्रिया की बारम्बारता में वृद्धि ही है ! इस बिन्दु पर मेरे एक मित्र की आनुभूतिक प्रतिक्रया भी शायद आए अगर वे इसे पढ़ रहे हैं तो !

17 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपने पीठ में छूरा भोंकने वालों के बारे में कुछ नहीं लिखा कि उन्होंने आघात करने और धोखा देने के लिए पीठ का वरण ही क्यों किया। :)

हमेशा की तरह रोचक और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट।

P.N. Subramanian said...

बुढापे में भी ज्ञानवर्धक लग रहा है. आभार.

रंजू भाटिया said...

ज्ञानवर्धक और रोचक बातें हैं आपकी लिखी इस पोस्ट में शुक्रिया

राज भाटिय़ा said...

मुझे तो यह रीछ दिख रहा है, या उस का ही कोई रिशते दार....:)
धन्यवाद इस जानकरी के लिये

ताऊ रामपुरिया said...

हमेशा की तरह बहुत रोचक जानकारी दी आपने.

रामराम.

mamta said...

यह आजमूदा नुस्खा है तनाव शैथिल्य का और हमारे पतिदेव का पसंदीदा । :)

arun prakash said...

सत्य वचन बंधुवर पीठ व तनाव शैथिल्य तथा ncbi की जानकारी जो आप आज दे रहे हैं उसकी खोज तो आपने बहुत पहले ही कर ली थी "तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना " की तर्ज पर ये नुस्खा दे कर क्यों ओर्थोपेडिक डाक्टरों की छुट्टी कराने पर तुले हैं आप अपनी मौलिक खोज को बाबा रामदेव को बता दें वे इससे लोगों का खास कर नव धनाढ्य लोगों के मेरु दंड के इलाज में कुछ जडी बूटियों के साथ आजमा लेंगे और निराश लोगों के मन में आशा का संचार का श्रेय आप को मिलेगा

Shastri JC Philip said...

आपके पीठ पीछ नहीं बल्कि आपके सामने ही बताये देते हैं कि इसे मिला कर आपके पिछले 4 आलेख काफी ज्ञानवर्धक रहे.

सस्नेह -- शास्त्री

-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

Gyan Dutt Pandey said...

सरकारी मुलाजिम की पीठ और कसाई की काठ एक ही जैसी हैं जो कितनी ही चोट झेलती रहती हैं पर फिर भी रोज साफ़ सुथरी होकर तैयार हो जाती हैं नयी चोट झेलने के लिए !
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क्या जबरदस्त कल्पना है!
दुष्यन्त याद आते हैं - हम सजदे में नहीं, चोट झेल कर झुकने की मुद्रा में लाये हैं अपनी पीठ!

Science Bloggers Association said...

जानकारी ही नहीं चित्र भी सटीक रहे हैं इस श्रंख्‍ला के। हार्दिक बधाई।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह भाई जी.. वाह.... निरन्तर ग्यानवर्धन हो रहा है, वाह..

प्रवीण त्रिवेदी said...

ज्ञानवर्द्धक पोस्ट!!

प्रवीण त्रिवेदी said...

ज्ञानवर्द्धक पोस्ट!!

Himanshu Pandey said...

रोचक व जानकारी से भरी इस पोस्ट के लिये धन्यवाद.

Paise Ka Gyan said...

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Mayur said...

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