Tuesday 2 September 2008

पुरुष पर्यवेक्षण -कैसी कैसी ऑंखें !

सुबह के इस आन्ख्मार चाय - कप के साथ हाजिर है साईब्लाग -आंखों की एक नयी दास्ताँ लिए !
रोती हुयी आँखों की कुछ बातें और -जलचरों में सील और समुद्री उद्बिलाओं को रोते हुए पाया गया है ,मगर थल चरों में मनुष्य ही सच्ची मुच्ची रोता है -आंसुओं से डबडबाई या फिर जार जार रोती आँखें देखने वालों में दया भाव संचारित करती हैं -यह एक सशक्त सोशल सिग्नल है जो लोगों से 'केयर सोलिसिटिंग रेस्पांस ' की मांग करता है ।
वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि रोना मुख्य रूप से तनाव शैथिल्य की भूमिका निभाता है -यह दरअसल तनाव -रसायनों (स्ट्रेस प्रोटीन्स ) को बाहर का रास्ता दिखाता है .यही कारण है कि जी भर रोने से मन हल्का हो जाता है .और लोगों के स्नेह सांत्वना का जो बोनस देता है सो अलग !शायद गालिब ने रोने के इन फायदों को जान लिया था -"रोयेंगे हम हजार बार कोई हमें रुलाये क्यों ?"
आईये अब यह रोना धोना छोडें और सीधे प्रेमियों की आंखों में झांकें !देखें क्या चल रहां वहाँ ? पर सावधान ! किसी भी की आँख में लम्बी समय तक झांकना /देखना एक मुश्किल भारा मामला है -ऐसा तो बस केवल प्रेमरस में आकंठ डूबे प्रेमी ही कर सकते हैं .या तो फिर एक दूसरे से अतिशय घृणा करने वाले ही कर सकते हैं ।
प्रेमियों के मामले में तो उनके बीच का पारस्परिक भरोसा और सहज विश्वास उन्हें बेधड़क ऐसा करने देता है और वे एक दूसरे की आंखों में डूब कर जाहिरा तौर पर अनजाने ही एक दूसरे की पुतलियों की नाप जोख करते रहते हैं !
अगर दोनों में से किसी भी की नीयत में खोट हुआ तो पुतलियाँ भांप लेती हैं -सिकुडी सिमटी पुतली प्रेम की पींगे आगे बढाने को खबरदार कर देती है !दो प्रेमियों की नीयत में खोट को ये पुतलियाँ ही जैवीय रेड सिग्नल देकर जता देती हैं !हाँ कुछ अनाड़ी तब भी ऐसे होते हैं कि बिचारे इस सशक्त जैवीय सिग्नल को भांप नहीं पाते !और धोखा खा जाते हैं ।
नजरें प्रेम औरविलासिता के साथ इतनी गहरे जुडी हैं कि कई मिथकीय आख्यान तक इन पर रचे गए हैं -एक तो देवाधिपति इन्द्र से ही जुडा है -कहते हैं जब अहल्या -इन्द्र प्रसंग में भृगु के शाप से इन्द्र अभिशप्त हुए तो उनके शरीर पर सहस्र भग हो गए -जो उनकी काम लोलुपता को देखते हुए एक उचित ही ऋषि -श्राप था .लज्जित इन्द्र के काफी अनुनय विनय पर ऋषि ने उन भगों को हजार नेत्रों में बदल दिया -इन्द्र तब से सहस्र नेत्र धारी हैं -यहाँ नेत्र काम विलासता के द्योतक तो हैं ही साथ ही वे 'बुरी नजरों ' की भूमिका में भी हैं ।
दक्षिण इटली में इन बुरी आंखों का ऐसा खौफ रहा कि दो पोप -पियास ix और लियो xiii तक को बुरी आंखों वाला मान लिया गया था जो उनके अनुनायियों को उनसे दूर कर रहा था ।
आईये अंततः कुछ मशहूर इशारों की बात कर ली जाय -
१-आँखे नीची और झुंकी झुंकी पलकें -विनम्रता ,सम्मान देने और कुछ परिप्रेक्ष्य में दब्बूपन को दर्शाती हैं ।
२-पलकों को ऊपर उठा क्षण भर के लिए उठा ही छोड़ देना -मासूमियत का संकेत !
३-घूरती हुयी आँखें -अभिभावकों की आँख है जो बच्चों को अनुशाषित करती है ।
४-कनखियों से देखना -सीधे देखा न जाय और बिन देखे रहा न जाय !
५-आँखें मारना -एक आँख खुली रखते हुए दूसरी को सहसा दबा देना -यह गुप्त संकेत है पर साथ ही अजनबियों से सेक्स की गुप्त अपील भी -मगर यह संकेत कई संस्कृतियों में शिष्टाचार के विपरीत माना जाता है -बैड ईटीकेट्स /मैनर्स .इसलिए आप कम् से कम इस इशारे से बाज आयें या फिर माहौल भांप कर इसे आजमायें .
( यहाँ कुछ नेत्र -इशारे नर नारी में कामन हैं )

18 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

सबसे पहले तो आपको गणेश चतुर्थी की हार्दिक
शुभकामनाएं ! गणेशजी आपकी सब इच्छाए
पूर्ण करे !

बहुत ही शानदार लेख है ! सुबह सुबह पहला ही
आपका ब्लॉग खोला है ! काश ये ब्लॉग दुनिया
हमारे समय में भी होती तो इसका लाभ हम
भरपूर उठा पाते ! अब तो उम्र के लिहाज से एक
आँख कभी कभी बंद रह जाती है ! अच्छा हुवा
आपने बता दिया की ये ठीक बात नही है ! सो
आज ही आँख वाले डाक्टर साब को चेक करवा
कर इलाज करवाते हैं :)

रंजू भाटिया said...

आँखों की भाषा बहुत अदभुत लगी ..इस कड़ी में आप रोचक जानकरी दे रहे हैं अरविन्द जी ..शुक्रिया

seema gupta said...

"So interesting and strange ..... eyes too have such different kind of expresisons, i knw few but not all which i came to know through this wonderful article' eyes can speak, eyes can talk, eyes can decieve, and many more....

Regards

admin said...

ऑंखों ही ऑंखों में क्‍या कह दिया
आपकी पोस्‍ट पढ कर अनायास ही यह गाना याद आ गया।
शानदार पोस्‍ट और जानदार चित्र। बधाई।

महेन्द्र मिश्र said...

"गणपति बब्बा मोरिया अगले बरस फ़िर से आ"
श्री गणेश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .....
कुछ नेत्र -इशारे नर नारी में कामन हैं...
शुक्रिया

L.Goswami said...

मुझे तो बस आँखे दिखाना आता है :-) वाह अरविन्द जी खूब हैं आप भी जहाँ स्त्रीओं की बात थी आप सुन्दरता दिखा रहे थे अभी तथ्यपरक अन्वेषण ...यह तो सरासर पक्षपात है


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एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.

योगेन्द्र मौदगिल said...

अरविन्द जी,
गोविन्दा बाबा तो 'अंखियों से गोली मारे...'
फार्मूला भी बताय गये.
खैर..
मैं तो एक दोहा आपको (लवली जी को भी) समर्पित करता हूं...ki

'आंख-आंख में है भरा संदेहों का कीच
मन-रावण ने कर दिया तन को भी मारीच'

Gyan Dutt Pandey said...

नयन/रुदन/अपलक दृष्टि/प्रेम -- सब कवितामायी बातें हैं। रुक्ष पुरुष क्या बोले!

L.Goswami said...

अब कुछ ज्यादा हो गया मेरे गुस्से को लेकर!!
आज से टिप्पणी हड़ताल साईं ब्लॉग पर.. असहयोग आन्दोलन शुरू ,या तो घटिया पोस्टों को (या उनमे लिखे आपतिजनक वाक्यों को )हटाइए या फ़िर एक पाठक की कमी झेलिये अब मुझे कुछ नही कहना है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अरविन्द जी,
आपने लवली जी को कैसे नाराज किया, यह समझ में नहीं आ रहा है। कोई पुरानी खटक है क्या? इस पोस्ट में तो ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है!

नारी के मामले में ‘ख़ूबसूरती’ की चर्चा और पुरुष के मामले में ‘तथ्यपरक अन्वेषण’। हम तो इसका उल्टा सोचते हैं तो हँसी रोकना मुश्किल हो जाता है।

लवली जी के मिजाज के क्या कहने जो इसपर भी गुस्सा...चलिए, आपकी ओर से हम माफ़ी मांग लेते हैं। गलती बाद में बता दीजिएगा।

उन्हें आता है हमारे प्यार पे गुस्सा;
और हमें उनके गुस्से पे प्यार आता है...


अच्छा अब गुस्से को थूक दीजिए... बहुत अच्छी-अच्छी बातें हो रही हैं

राज भाटिय़ा said...

अरविन्द जी,बहुत ही सुन्दर , ओर जोर दार लेख लिखा हे आप ने , जब हम सोला सत्तरा साल के थे तो कभी कभी हमारी भी एक आंख बन्द हो जाती थी, एक दिन पिता जी ने देख लिया .... फ़िर उस बन्द आंख का ईलाज पिता जी ने ऎसा किया की फ़िर तो हम कन्खियो से देखना भी भुल गये ,तभी से नजरे झुकी झुकी रहती हे.
धन्यवाद

Arvind Mishra said...

सिद्धार्थ जी ,आभार ! यह मानव जगत भी कितना अजीब है एक ओर आप सरीखे सह्रदय परोपकारी [atruist )है जो दूसरे की सहायता को आ पहुँचते हैं दूसरी ओर आप देख ही रहे हैं ....मैंने ना कोई गुनाह किया और ना ही कोई अभद्रता !पर देखिये उन्हें गुस्सा भी आ गया और ब्लॉग छोड़ कर जाने की धमकी भी मिल गयी ......बहुत से भाव मन में उमड़ घुमड़ गए हैं मगर मैं शांत अपनी साधना में रत रहूँगा !
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद दुख्भाग्भवेत

ताऊ रामपुरिया said...

आ. मिश्राजी , मेरे ब्लॉग पे "फॉण्ट & कलर्स"
चेंज नही कराने देता ! उस जगह निचे स्टेटस
बार में एरर आन पेज लिखा आजाता है !
जो जो भी सलाह मिली करके देख चुका
हूँ ! श्री योगिंदर मौदगिल ने आपसे और लवली
जी से संपर्क कराने की सलाह दी है ! कृपया
आप कुछ उपाय बता सके तो बड़ी कृपा होगी !
धन्यवाद !

योगेन्द्र मौदगिल said...

मैंने गलत नहीं कहा ताऊ...
आप लवली जी के संचिका नामक ब्लाग पर जाइये
उस पर कंप्यूटर से संबंधित अनेक जानकारीपूर्ण आलेख हैं.
यदि पढ़ने से समस्या हल न हो तो,
उनसे इमेल से पूछ लें.
हां राजीव रंजन प्रसाद व उनके साथी जो आजकल
साहित्यशिल्पी नामक साइट बना रहे हैं
आप उन से भी पूछ सकते हैं..
अर्र मन्नै एक देस्सी टोटका बी तो बताया था
वो कर् या अक् नी...

ताऊ रामपुरिया said...

भाई योगिंदर मौदगिल जी इब म्हारै समझ
म आग्या सै की तैं ताऊ के कल रात तैं ही
मजे लेण लाग रया सै ! चलो कोई ना !
जब ऊंट पहाड़ क निचे आवेगा तब देखांगे !
फिलहाल तो मैं थारी कोई सलाह मानण
आला ना सूं ! :) थारी सलाह थम ही राखो !
बख्त जरुरत का आवैगी ! राम राम !

arun prakash said...

भृगु ऋषि से क्यों शाप दिला दिया इन्द्र को आपने !!! इस प्रकार की बात लिखेंगे तो गौतम ऋषी को भृगु को भी कोई शाप देना पडेगा अपनी पत्नी के पक्ष में बोलने के लिए | आपकी पुरूष संबंधी पोस्ट काम की जानकारी कम मुहावरों के बारें में ज्यादा जानकारी दें रहीं है शिकायत है मानव के अंगो के सौंदर्य चर्चा में इतना अन्तर कैसा | क्या होगा उन लोगों का जो ग्रीक पुरुषों के शरीर सौष्ठव की कल्पना कर आपसे इसकी चर्चा की कल्पना कर रहें है मरे मत से आप उन्हें निराश ही कर रहे है खैर आगे इसका ध्यान रखियेगा

Arvind Mishra said...

अरुण भाई ! आभारी हूँ आपका जो आपने उस त्रुटि की और ध्यान दिलाया -श्राप गौतम ऋषि ने ही दिया था ,व्यभिचार उनकी पत्नी के साथ जो हुआ था -पर मेरी स्मृति में ये भृगु कहाँ से टपक पड़े -क्या यह सठियापे की शुरुआत तो नहीं !
रही बात पुरूष सौदर्य की तो यह दृष्टि भेद से दृश्य (भेद) वाली बात है -पुरूष होने के नाते वह सौदर्य रस हमें प्राप्त नही हो रहा पर जहाँ उसे प्राप्त होना चाहिए वहाँ वह अबाध अगाध मिल रहा है .तभी तो यह सौदर्य यात्रा निरंतर बढ़ रही है -आराध्य अर्धनारीश्वर शक्तियां प्रत्यक्षतः भले ही हुंकार भर रही हों पर उन्हें इसमें रस प्राप्ति हो रही है ऐसा मैं आश्वस्त हूँ .यह प्रतिवेदना उन्ही के लिए ही तो है -इदं न मम !

arun prakash said...

रस जिन्हें मिलना चाहिए था वो भी गायब हैं पुराने पथिक जो पूर्व यात्रा में बड़ी बड़ी नैतिकता की बघार लगा रहे थे वे अपनी अपनी दाल कहाँ पका रहे है कुछ पता नहीं चल रहा है ? आप सठियाये नहीं है waise भी सठियाने को शिथिलता का द्योतक क्यों मान लिया जाता है परिपक्वता तो और तीक्ष्ण होती है तीसरे प्रहर की धूप और सूखे हुए मिर्च के तीखेपन को सभी जानतें है | आप अगर सठिया भी जायेंगे तो भी क्रियात्मक रूप से इसी तरह की तीखापन बनाये रहेंगे ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है