नाक के सवाल पर पिछली पोस्ट में हम मनुष्य के शारीरिक भूगोल की भूमध्य रेखा पर दो उभारों -नाक और पुरूष विशेषांग की चर्चा तक आ पहुंचे थे और उनके कथित साम्यों की पड़ताल में लगे थे.डेज्मांड मोरिस कहते हैं कि मनुष्य शरीर की भूमध्य रेखा के इन दोनों ऊँचें उभारों की कायिक रचना में समानता की बात केवल इसलिए होती है कि ये दोनों ही मांसल -स्पंजी संरचनाएं हैं जिनमें रक्त वाहिकाओं और ऊतकों की भरमार है और काम विह्वलता के क्षणों में इन दोनों ही रचनाओं में रक्त परिवहन बढ़ जाता है .और प्रणय के गहन क्षणों में ये दोनों ही अंग सेंसेटिव हो जाते हैं.वे रक्ताभ तो होते ही हैं ऊष्मित भी होते हैं .एक सनकी अध्येता ने तो प्रणय के गहनतम क्षणों में नाक का तापक्रम लिया तो पाया कि उसमें ३.५ से ६.५ फेरेंहाईट की बढोतरी हो जाती है ।
नाक तो पौरुष का प्रतीक है ही -रोमन नोज फिकरे को इसी अर्थ में लिया जाता है -पर चूंकि बड़ी नाक 'कहीं कहीं 'फैलिक सिम्बल 'के रूप में भी देखी जाती है ,इसलिए अब लोकाचार के लिहाज से समूची दुनियाँ में अब छोटी नाक ही अच्छी मानी जाती है -अभिनेताओं के रूप में अब छोटी नाक वालों का ही बोलबाला है .आज भी विश्व में कई जगह सेक्स अपराधों के लिए नाक काटने की ही सजा है -भारत में तो सूर्पनखा की नाक ऐसे ही मामले में काटी गयी थी पर आश्चर्यजनक है कि यहाँ समान अपराधों के लिए किसी पुरुष की नाक काटने का कोई वृत्तांत नहीं मिलता ।
कई आदिवासी संस्कृतियों में नाक की दोनों वायु प्रवाहिकाओं -नासिका द्वारों को आत्मा के आने जाने का रास्ता मना गया है .एक समय सारी दुनिया में ही यह मान्यता थी की आत्मा इसी द्वार से बाहर निकल जाती है .सामान्य साँस आने जाने के अलावा जब इन नासिका द्वार से कुछ भी अन्यथा -जैसे छींक का प्रवाह होता है तो उसे घबराहट के साथ देखा जाता है -और आस पास के लोग तुंरत ही 'गाड ब्लेस यू '-अपने यहाँ शतं जीवी का तात्कालिक उद्घोष करते हैं -मानो उसे हादसे से (आत्मा के निकलते निकलते बच जाने का हादसा )बच जाने पर आशीर्वाद दे रहे हों .इसलिए सार्वजनिक कार्य व्यवहारों में छींक को अपशकुन माना गया है .मरणासन्न व्यक्ति कीनासिका छेदों में रुई डालकर आत्मा को निकल भागने से रोकने की युक्तियाँ भी प्रचलित हैं। एक्सिमों जातियों में तो शव यात्रा में भाग लेते लोगों को नाक को बाकायदा बंद रखने के सख्त निर्देश है -ताकि मृत व्यक्ति की आत्मा के साथ साथ औरों की आत्माएं भी ना चलता बनें ।
नाक के आकार प्रकार के आधार पर एक क्षद्म विज्ञान भी वजूद में आ गया -फिजिओनोमी ,उन्नीसवीं सती के आते आते एक और छद्म विद्या -नोजियोलोजी भी प्रचलित हो उठी -भारत में मुखाकृति विज्ञान के नाम से भी यह विद्या जानी जाती रही है ।
नाक से जुड़े कई सिग्नल भी हैं -ख़ास कर झूंठ बोलने वाले अपनी नाक को पकड़ते हुए देखे गए हैं .अकसर ऐसा वे करते हैं जो झूंठ बोलने में परवीण नही हो पाते .ऐसा लगता है कि नौसिखिये झुट्ठे जब झूंठ बोलने का उपक्रम करने लगते हैं तो उनकी नाक में खुजली सी होने लगती है जिससे उंगलियाँ ख़ुद ब ख़ुद नाक तक जा पहुँचती हैं ।
भारत ही नहीं विश्व में कई जगहों पर नाक को चुटकी में दबा कर थोड़ी देर तक साँस रोंकने की क्रियाएं तनाव शैथिल्य के लिए की जाती हैं -प्राणायाम एक प्रचलित तरीका है .यह कुछ सीमा तक तनाव को कम करता भी है ।
इति नासिकोपाख्यानम !
17 comments:
बहुत बढ़िया...पिछली पोस्ट पढ़नी बाकी है..
NAAK ke baare mai itni saari jaankaari.....bahut badiya...
kai nayi baaten bhi pata chali....
नाक के बारे में गोगोल की कहानी 'नाक' (दी नोज') पढ़े बिना कोई भी जानकारी अधूरी है।
तो फिर नेकी और पूंछ पूंछ ,पढाये न यह कहानी !
बहुत रोचक जानकारी है यह नाक के बारे में ...कई नई बातें पता चली हैं इस लेख से ..शुक्रिया
बहुत बढिया जानकारी मिल रही है ! धन्यवाद !
इति नासिकोपाख्यानम ! अतीव सुन्दरम् च। मुग्धम् करोति...।
हा, हा, इससे ज्यादा संस्कृत नहीं आती।
यह तो अच्छा बताया - अब प्रयोग कर देखेंगे खांसी कर झूठ बोल और नाक पकड़ने का अध्ययन कर!
फीजियोनॉमी और नोजियोलॉजी शब्द भण्डर में बढ़े। धन्यवाद।
"read last artical also regarding this subject, very informative, and found new things, great"
Regards
आपने बहुत उपयोगी जानकारी दी है किन्तु मुझे हरिशकर परसाई का नाक का सवाल याद आगया. आभार.
आभार नाक ज्ञान देने के लिये-जारी रहा जाये.
बहुत ही सुन्दर ग्यान दिया इस नाक के बारे मे, साथ मे भगवान का शुकर कि आज शान्ति हे प्रलय स्रलय नही आई :)
Aap ki post padhkar naak ka mahatv pataa chlaa. Waise Naak aur mahilaaon ko lekar maine ek kahaavat bhi sunee hai. par use dohrana naarivadiyon ko lalkaarna hee kahlaayega. isliye main chup rahoonga.
कायिक रचना और ऊँचे उभारों के शरीर के भूमध्य रेखा तथा अन्तरंग क्षणों में तापमान बढ़ने रक्ताभ होने आदी की साम्यता कहाँ से ढूंढ रहे हैं महानुभाव हर ऊँची चीज की साम्यता अंग विशेष से मात्र ऊँचाई को लेकर ही नहीं की जानी चाहए बल्कि भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों का भी ख्याल करना चाहिए | सभी पर्वत हिमालय नहीं है और नही पठार स्थान स्थान का महत्व अलग अलग है हाँ यह अवस्य है की कहीं कहीं विकल्प रूप में प्रयोग हो सकतें है नासमझो या प्रयोगवादियों के लिए .......
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अध्ययन के लिये एक नया विषय, नाक के इस परिसीमन मापदंड के अनुसार जरा ’ चपटी नाक व नकटी नाक ’ वाली सभ्यता पर भी प्रकाश डालें !
गोगोल दि नोज़ का लिंक कहाँ मिलेगा ?
भाई, आपके शोध को पढ़ने का आनन्द ही कुछ और है..
बधाई..
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