Monday 4 August 2008

दुनिया का सबसे छोटा साँप खोजा गया !

दुनियाँ का सबसे छोटा साँप

नाग पंचमी की पूर्व संध्या पर सर्प प्रेमियों के लिए एक बड़ी ख़बर यह है कि दुनिया का सबसे छोटा साँप दिखा है -जो बारबाडोस के करेबियन आईलैंड से एक अमेरिकी सर्प विज्ञानी ने खोज निकाला है .यह महज १० सेंटीमीटर लंबा है .इसके खोजकर्ता एस ब्लेयर हेजेज है जो पेन्न स्टेट विश्वविद्यालय में वैकासिक जीव विज्ञान पढाते हैं ।


दुनिया मे अब तक ज्ञात ३१०० सर्प प्रजातियों में यह सबसे छोटा पाया गया है .ब्लेयर ने इस नए वामन साँप का नामकरण अपनी पत्नी कार्ला एन् हैस के नाम पर लेप्टो टायिफ्लोप्स कार्ली रखा है -उनकी पत्नी भी सर्प विज्ञानी हैं ।


राहत की बात तो यह है कि यह विषैला साँप नही है -दीमक ,कीट पतंगो ,भुनगों को खाता है -पूरी तरह निरापद जीव है .जहाँ से यह साँप मिला है वह द्वीप डार्विन के समय से ही भीमकाय और लघुकाय दोनों तरह के जानवरों के लिए विख्यात रहा है ।


कहते हैं तक्षक नाग ने एक फूलों की टोकरी में लघु रूप बनाकर राजा परीक्षित के महल में प्रवेश पा लिया था और उन्हें डस कर मौत की नीद सुला दिया .वह कोई ऐसा ही वामन रूप साँप रहा होगा ,मगर विषैला .क्यों ?

17 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

यह तो संपोले बराबर लगता है - जो कई मेरे खड़ाऊं के नीचे कुचले गये हैं मेरे द्वारा - वर्षा के मौसम में।

Anonymous said...

साँप के नितम्ब और स्तन होते हैं क्या ?? क्या ज्यादा सुंदर होते हैं ?? और साँप की सेक्स अपील क्या होती हैं ?? कुछ अधुरा पण हैं आप के लेखन मे

राज भाटिय़ा said...

ब्लेयर ने इस नए वामन साँप का नामकरण अपनी पत्नी कार्ला एन् हैस के नाम पर लेप्टो टायिफ्लोप्स कार्ली रखा है
अजी सोचने की बात हे, इन नागिन का नाम अपनी पत्नि के नाम पर ही क्यो रखा ?? राम राम क्या सच मे कुछ ....... :)

vipinkizindagi said...

rachna ke comment par vichr kare...

vaisai post achchi hai

समयचक्र said...

vaise mane to is tarah ki prajati hamare desh me bhi ho sakati hai.rochak janakari hai

Arvind Mishra said...

@रचना जी ,
साईब्लाग पर आने के लिए आभार ,
आपका कटाक्ष मर्म भेदी है -मगर जब भी साँपों के फैलिक रूपकों की चर्चा होगी निश्चित ही आप की ज्ञान पिपासा शांत हो सकेगी .
अभी के लिए तो इतना ही कि साँप नितम्ब और वक्ष तो नही पुरूष विशेषांग के सिम्बल जरूर बने हैं -अपने फैलने सिकुड़ने की अदाओं को लेकर और दोनों के सहसा ही आकार परिवर्तन से भय का संचार होता है .

arun prakash said...

बंधुवर मिश्रा जी आपने सौंदर्य बोधपरक चर्चा की श्रंखला समाप्त क्या की कुछ लोगो के कामोद्दीपन की प्रक्रिया शांत नहीं हो पायी क्या आपने इतिहास व मिथकों में नाग कन्यायों / विष कन्याओं का उल्लेख नहीं पढ़ा है कृपया ऐसे किसी मिथक का सम्बन्ध में भी कभी चर्चा अवस्य करें जिससे रचना जी की जिज्ञासा शांत हो सके वैसे आपके इस कथन से मैं कुछ हद तक सहमत हूँ साँपों के सम्बन्ध में जिस प्रकार के रोमांच जनित भय तथा रूपकों की चर्चा की है कुछ हद तक उसके लिजलिजेपन को लेकर ऐसा लगता भी है . | अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है की भले ही पुरुषों को बदनाम किया जाता रहा है की वे नारी मन की सम्वेदना को कम उसे एक देह ही मानतें है किंतु रचना जी की जिज्ञासा क्या यह संकेत नहीं करती की नारी अभी स्वयम देह चर्चा से ऊपर नहीं उठ सकी है कोई पुरूष के देह के सौष्ठव को जानना चाहता है तो कोई सांपो में अंग विशेष की कल्पना | हे इश्वर इन्हे इनके सपनों में वो सब मत दिखाना जो ये जागृत अवस्था में दिमाग में सोचतें रहतें है | आमीन

Anonymous said...
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Anonymous said...

अरुण प्रकाश
आप को कितनी समझ हैं संवेदनाओ पता लग गया . जो मुझे पिछले एक साल से पढ़ रहे वो समझ गए होगी मेरे कमेन्ट मे छिपे कटाक्ष को . क्योकि आप को समझ नहीं आया इस लिये बता दूँ की मुझे कोई भी जिज्ञासा नहीं हैं . हिन्दी की कितनी सेवा हो रही हैं इस इस विद्रूप लेखन से से और कितना आप सब हिन्दी समझते हैं दिख रहा हैं !!!! धन्य हैं आप की समझ और आप की हिन्दी . इंग्लिश के ट्रांस्लाशन्स कर कर के ब्लॉग चलाना और हेडिंग मे सेंसेशन भरना शायद आप की समझ मे यही हिन्दी हैं .

L.Goswami said...
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admin said...

गजब, यहाँ पर मजेदार चर्चा छिडी है। लगता है अभी तक पिछली पोस्ट की खुमारी छाई हुई है।
शायद रचना जी को पिछली पोस्ट को लेकर आपत्ति है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि पिछली बातों के कारण आप हमेशा के लिए अपने मुंह का स्वाद ही खराब कर लें।

Anonymous said...

"अब मैं क्या कहूं ?मैं तो बस एक विनम्र प्रयास कर रहा हूँ कि हिन्दी साहित्य को वैश्विक स्तर देने में अपना अल्प योगदान दें सकूं ."

ये अरविन्द का कमेन्ट हैं नितम्ब वाली पोस्ट पर जरुर देखे
महामंत्री तस्लीम जी . मुझे किसी भी पोस्ट को लेकर क्या और क्यों आपति होगी , इनका ब्लॉग हैं जो चाहे परोसे . हाँ इंलिश का ट्रांसलेशन हिन्दी मे कर के हिन्दी का बोधिक स्तर कितना ये बढ़ा रहे हैं और कितना हिन्दी को अरुण समझ रहे हैं बहुत अच्छा दिख रहा हैं . साइंस के पर्दे मे आप क्या पढ़ना चाहते हैं वो भी समझ आ राह हैं .

राज भाटिय़ा said...

हे राम

arun prakash said...

हिन्दी की सेवा कर रही रचनाकारों का आभार ...शायद इंग्लिश अनुवाद के इस यन्त्र की न्यूनताओं से हिन्दी जगत को आघात लगा है ऐसा उनका विचार है किंतु ऐसा लगता है व्याकरण में लिंग सम्बंधित त्रुटियों की तरफ़ वे ध्यान आकृष्ट कराना चाहतीं है मैं जान बूझ कर ऐसा नहीं करता हूँ यह अवश्य है कि शब्द जनित लिंग के प्रति मेरा सहज ध्यान नहीं रहता जितना इस माध्यम से सेवा हो रही है |वैसे इन सेवादारों को अपनी पोस्ट में जो (बोधिक) और (प्रयास कर रहा हूँ ) तथा अंत में जो (आ राह) का प्रयोग किया है उससे जो अभिव्यंजना शक्ति में निखार आया है उससे मै आपकी हिन्दी सेवा का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर रहा हूँ
जहाँ तक लबली कुमारी जी का कथन है मैं उनकी भावनाओं का काफी सम्मान करते हुए यह अवश्य कहूंगा कि जो मिर्ची का अनुभवजन्य प्रयोग उन्होंने किया है हिन्दी साहित्य के प्रति उनकी यह सेवा भी श्लाघनीय है यूनानियों से किसी को कोई वैर नहीं मैं उनके लिए यह उक्ति दोहराना चाहूंगा कि धन्य है वे लोग जो कल्पना पूर्ण आशा नहीं करते क्यों कि उन्हें कभी निराश नहीं होना पड़ता

L.Goswami said...
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Anonymous said...

please read my earlier comment which inspire you to express your views about the greek mythological
character and your hidden desire.please read my comments in view of some queries expressed by some one eager to know about some special qualities about snakes .she comments on my hindi sahitya seva and about inefficiency to write correct hindi. iam not defending my views on the basis of any sahitya seva.it was baseless to say that jo chahe kah diya .again i pray for you the same prayer .

L.Goswami said...
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