Monday 25 August 2008

पुरूष पर्यवेक्षण -भौहें -2

मनोभावों को प्रगट कराने में भौहों की भी भूमिका है -देखें जर्नल आफ आई विजन
मनोभावों के मूक प्रकटीकरण में भौहों को महारत हासिल है .अब तक हमने भौहों के आरोह अवरोहों और उनके कुछ निहितार्थों को जाना .अब आगे .......
-भौहों का एक साथ ऊपर नीचे होना -इसमें भौहें नीचे होती हैं पर तुंरत ही ऊपर उठ जाती हैं .यह गहरी पीड़ा और चिंता का द्योतक है .तेज दर्द के समय भी भौहों का ऐसा प्रदर्शन हो उठता है .टीवी पर बाम की बिक्री के लिए सरदर्द के विज्ञापनों में इसी भंगिमा को दिखाया जाता है ।

-भौहों को पलक झपकते ऊपर से नीचे करना -यह भंगिमा सारी दुनिया में स्वागत-आमत्रण के लिए जानी जाती है .यह किसी स्वजनके दिखते ही उसके प्रति किया जाने वाला दोस्ताना व्यवहार है .उस व्यक्ति केनिकट आ जाने पर यह हाथों के मिलाने ,गले मिलाने या चुम्बन में तब्दील हो जाता है .पलक का ऊपर उठना मात्र ही आश्चर्य का द्योतक है -यदि उसमें होठों की मुस्कराहट भी मिल जाय तो यह अदा प्लीजेंट सरप्राईज़ बन जाती है ।
-ध्यानाकर्षण -आपसी बात चीत में भौहों को बार बार उठाने का एक संकेत यह भी है कि वक्ता की बात पर गौर किया जाय -वह अपनी समझ के मुताबिक किसी बात पर जोर दे रहा है तो भौहें उठा देगा ।
-भौहों को तेजी से और लगातार ऊपर नीचे करना -
सर्कस के जोकरों का यह चिर परिचित मजाकिया लहजा है .यह हंसी मजाक का संकेत है
-भौहों को ऊपर उठाना ,थोडा रुक कर नीचे गिरान -यह दुःख ,आश्चर्य और आपत्ति के मिले जुले भावों को प्रर्दशित करता है -सर्प्राईजड डिसअप्रूवल !
यह तो हुयी भौह -संकेतों की बात .पुरुषों को गहरे पराजय और चिंता के क्षणों में अपनी भौहों को दोनों हथेलियों से ढकते हुए भी देखा जाता है .मानों यह कहा जा रहा हो कि भाई अब मैं लाचार हूँ और पौरुष विहीन भी !स्पष्टतः घनी भरी पूरी भौहें पौरुष का प्रतीक हैं -इसलिए ही नारी की तुलना में पुरूष की भौहें ज्यादा घनी और मोटी होती हैं .मगर जब ये काफी मोटी और घनी तथा एक दूसरे से मिल सी जाती हैं तो एक अंगरेजी कहावत की याद दिलाती हैं -
ट्रस्ट नॉट मैन हूज आईब्रोज मीट ;फार इन हिज हार्ट यू विल फायिंड डिसीट .

13 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भौंह के नृत्य पर खूब जानकारी है। अब जो जानकारी है वह केवल पुरुषों के लिए नहीं अपितु नारी-पुरुष दोनों के बारे में है। जब नारी अंगों का चित्रण किया गया तो ध्यान केवल सौन्दर्य पर ही केन्द्रित था। आज जितना विस्तृत नहीं। यही तो नारियों की शिकायत है कि पुरुषों का समग्र मूल्यांकन और नारी का केवल सौन्दर्य के लिए? पर इस में आप का दोष कम और वर्षों से चली आ रही परंपरा का अधिक है। जानकारी उपयोगी है।

Gyan Dutt Pandey said...

सही है। भौंहों के माध्यम से सभी रस अभिव्यक्त हो सकते हैं!

L.Goswami said...

dinesh jee ki bat se 100 % sahmat hun..yah sikayat hai ise dur kariye.aap pakchhpat kar rahen hain.

Arvind Mishra said...

@द्विवेदी जी , रहम विधाता रहम ,एक नए विश्वयुद्ध का तुमुलघोष न करें
@लवली जी ,अनजाने में हुए किंचित पक्षपात के लिए माफी !अभी आगे आगे देखिये होता है क्या ?

Udan Tashtari said...

आभार जानकारी के लिए.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत अच्छी जानकारी ! संभालकर
रखने लायक है सामग्री ! धन्यवाद !

vipinkizindagi said...

बेहतरीन लिखा है आपने

समयचक्र said...

bahut badhiya janakari di hai . vaise khasakar mahilaao ke bhouh ke upar ek puraan bhi likha ja sakata hai . rochak janakari ke liye dhanyawad.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

टिप्पणी अवकाश।

L.Goswami said...

na na viswyudh bilkul nahi ab ashyog aandolan hoga

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी जान कारी दी हे आप ने भॊंह पर
धन्यवाद

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मिश्रा जी, आपको बड़े भाई श्री द्विवेदी जी की बात और उसपर लवली जी के समर्थन को ध्यान में रखते हुए नारी वर्ग के सौदर्य से इतर जाकर दूसरी खूबियों पर भी कंसेण्ट्रेट करना पड़ेगा। मेरा ख़्याल है कि ‘पुरुष-गाथा’ को थोड़ा विराम दिया जा सकता है। हम संतोष कर लेंगे। ...वैसे आपकी मेहनत रंग ला रही है।
बधाई स्वीकारें।

Arvind Mishra said...

त्रिपाठी जी, हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया ,आपने लवली जी का हवाला दिया है यह लेखमाला उनके कहने पर मैंने शुरू की है ,द्विवेदी जी की टिप्पणियाँ बड़ी सारगर्भित होती हैं -मगर यदि लवली जी चाहें और पंचों की राय यही हो तो श्रृंख्ला ख़त्म की जा सकती है .मैंने पहले ही कह रखा है -इदं न मम ....जनता जनार्दन के आगे इस नाचीज की क्या बिसात है ?
आज तो आंखों की गहराईओं में उतरने का इरादा है !