Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Sunday, 31 August 2008
भारतीय भस्मासुरी भीमकाय भांटा अब थाली की शोभा बढाएगा !
भांटा बोले तो बैगन यानी ब्रिनज्ल ....यह भारत का पहला जेनेटिकली माडिफाईड फ़ूड (जी एम् फ़ूड ) बनने को बेताब है .बैंगन का भुरता /चोखा और कलौंजी के क्या कहने यम् यम् ....खाईये तो बस उंगलियाँ चाटते रह जाईये ।लेकिन भला यह भस्मासुरी भीमकाय का विशेषण ?यह क्या बला है ?
प्यारे मित्रों यह बला ही है -भला वह कैसे तो आईये इसे समझने के लिए एक कहानी सुनें .सन १८१८ में मशहूर ब्रितानी कवि पी बी शैली की पत्नी मेरी शैली ने एक उपन्यास लिखा था -जिसमे डॉ फ्रैन्केंसटीन को एक कृत्रिम मानव बनाने का चस्का लगता है और वे कई शवगृहों से लाशों के अंग प्रत्यंग दूंढकर लाते हैं और उनमें विद्युत् का संचार करते हैं -एक बहुत ही घिनौना प्राणी तैयार हो जाता है और डॉ उससे डर कर भागतेैं और अंततः उसके द्वारा सपरिवार मारे जाते हैं -यह एक दुखांत कथा है .फ्रैकेंसटीन नामक यह उपन्यास विश्व का पहला वैज्ञानिक उपन्यास माना जाता है .जिसका संदेश यह है कि -बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताय ......और जब वैज्ञानिकों ने अब पाराजीनी फसलें यानी किसी एक प्राणी के जीन को निकाल कर दूसरे प्राणी मे डालने का उपक्रम शुरू किया है तो विचारकों ने इसे भी एक फ्रैंक्सटीनियन काम धाम ही माना है .मसलन ध्रुवों की फ्लाउन्दर मछली के जीन को निकाल कर टमाटर में डाल देना ..जिससे टमाटर फ्रिज में लंबे समय तक चिकना और फूला Mसा बना रहे -क्योंकि उसमें एंटी फ्रीज जीन जो मिला है .अब आप यह टमाटर यदि खाते हैं तो एक तो यदि आप शकाहारी हैं तो धरम नष्ट भ्रष्ट हुआ और न जाने लांग रन में यह आपकी अंतडियों में क्या गुल खिलाये .ऐसे भोज्य पदार्थों को सारी दुनिया में फ्रंकेंसटीन फ़ूड कहा जा रहा है -इन्हे जेनेटिकली बदल्दिया गया है .ऐसे अनेक भोज्य पश्चिमीं बाजारों में और चोरी छिपे यहाँ भी बिकने लगे है -
भारत में पराजीनी फलों -फसलों पर कड़ी नजर के लिए एक समिति है -GEAC -जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी - जो यद्यपि इस समय विवादों में घिरी है मगर जल्दी ही भारत के लिए पहले जी एम् बैगन का उपहार जारी करने वाली है .
तो यह भस्मासुर और भीमकाय का क्या मतलब है ?अरे भाई !याद कीजिये शंकर और भस्मासुर की कथा जिसमें शंकर जी ने बिना आगा पीछा सोचे उस राक्षस को वरदान दिया और फिर मुसीबत में पड़ गए .तो मैंने भारतीय मनीषा के लिए फ्रैकेंसटीन के बजाय अपना जाना पहचाना भस्मासुर नाम चुना है -तो ये फिर भीमकाय क्या ?
ये बैगन बड़े बड़े आकार के होंगे इसलिए भीमकाय भी !
अब आप बताएं कि क्या भस्मासुरी बैगन आपको पसंद आयेगा ?
Friday, 29 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण :बड़ी आँखें ,छोटी आँखें !
मैं तो यही जानता था कि मृगनयनी का विशेषण नारियों के लिए इसलिए है कि उनकी आँखें बड़ी होती होंगी !मगर मेरी आँखें यह जानकर खुल गयीं कि पुरूष की ऑंखें नारियों की आंखों से इत्ता भर ही सही बड़ी होती हैं -तो अब चाहें तो आप अपने किसी पुरूष मित्र को म्रिग्नैन कहकरसंबोधित कर सकते/सकती हैं .हिन्दी के साहित्यकार नाक भौ सिकोणे तो बला से !
समूचे थलचरों में मनुष्य ही अकेला प्राणी है जो अपने भावोंद्गारों को आसुओं के जरिये भी व्यक्त कर सकता है .मतलब केवल वही रो सकता है अन्य प्राणी नहीं .घडियाली आंसू भी आप सभी जानते हैं नकली होते हैं .विश्व की अनेक संस्कृतियों की भावुक नारियों में अश्रु ग्रंथि भावुक नरों की अपेक्षा अधिक सक्रिय देखी गयी हैं -ऐसा होना महज सांस्कृतिक /सांस्कारिक लालन पालन जो पुरुषों को भावुकता के प्रदर्शन पर अंकुश रखना सिखाते हैं ,की देन है अथवा कोई जैवीय कारण यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है .मगर नारियों में यह अश्रु व्यवहार समूची दुनिया में इस कदर व्याप्त है कि इसके पीछे महज सामाजिक संस्कारों की भूमिका ही नही लगती ।
मनुष्य की पुतलियाँ किसी प्रिय या प्रिय वस्तु को देखकर फैल जाती हैं -यह एक अनैच्छिक क्रिया है .मतलब यह कि आप झूठ मूठ चाहकर भी अपनी पुतलियों को फैला कर यह प्रर्दशित नहीं कर सकते कि मोगाम्बो खुश हुआ .पुतलियाँ झूठों की पोल खोल देती हैं .मगर प्रिय/प्रिया दर्शन पर ये पुतलियाँ अनचाहे ही काफी फैलती जाती है -चहरे करीब आते जाते हैं और ये फैलती जाती हैं -पर यहीं एक मुश्किल आन पड़ती है -पुत्ल्यों के फैलते जाने से उनमें प्रवेश करने वाली रोशनी की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है जो रेटिना पर चका चौंध उत्पन्न करती है -दो प्रेमी चहरे काफी करीब हो जाने पर अब एक दूसरे की धुंधली धुंधली सी तस्वीर ही देख पाते हैं .डेजमानड मोरिस कहते हैं कि यह इसलिए ठीक है कि काफी करीब आए चेहरे एक दूसरे के मुहांसे ,फुंसी और पिर्कियों,धब्बों -यानि चहरे की बदसूरती से विकर्षित भी हो सकते हैं -तो यह प्रकृति प्रदत्त छुपा हुआ वरदान उनकी राहें आसान कर देता है .जब मामला किस तक जा पहुंचा हो तो नर के लिए काहें का ब्रेक !प्रकृति का छुपा मंतव्य तो सदैव संतति संवहन का ही है ।
अब कुछ आंखों की बरौन्यों पर -जो आंखों पर एक सुरक्षा घेरा बनाती हैं .भौहें तथा अन्य हिस्सों के बाल सफ़ेद हो सकते हैं पर अमूमन बरौनियाँ उम्रभर काली ही बनी रहती है -शायद इस अर्थ में ये पुरुषों की सच्ची मित्र हैं .प्रत्येक आंख में ऊपर नीचे लेकर औसतन २०० बरौनी बाल होते हैं .ऊपर के पलक में ज्यादा नीचे कम ।
जारी ..........
Monday, 25 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण -भौहें -2
मनोभावों के मूक प्रकटीकरण में भौहों को महारत हासिल है .अब तक हमने भौहों के आरोह अवरोहों और उनके कुछ निहितार्थों को जाना .अब आगे .......
४-भौहों का एक साथ ऊपर नीचे होना -इसमें भौहें नीचे होती हैं पर तुंरत ही ऊपर उठ जाती हैं .यह गहरी पीड़ा और चिंता का द्योतक है .तेज दर्द के समय भी भौहों का ऐसा प्रदर्शन हो उठता है .टीवी पर बाम की बिक्री के लिए सरदर्द के विज्ञापनों में इसी भंगिमा को दिखाया जाता है ।
५-भौहों को पलक झपकते ऊपर से नीचे करना -यह भंगिमा सारी दुनिया में स्वागत-आमत्रण के लिए जानी जाती है .यह किसी स्वजनके दिखते ही उसके प्रति किया जाने वाला दोस्ताना व्यवहार है .उस व्यक्ति केनिकट आ जाने पर यह हाथों के मिलाने ,गले मिलाने या चुम्बन में तब्दील हो जाता है .पलक का ऊपर उठना मात्र ही आश्चर्य का द्योतक है -यदि उसमें होठों की मुस्कराहट भी मिल जाय तो यह अदा प्लीजेंट सरप्राईज़ बन जाती है ।
६-ध्यानाकर्षण -आपसी बात चीत में भौहों को बार बार उठाने का एक संकेत यह भी है कि वक्ता की बात पर गौर किया जाय -वह अपनी समझ के मुताबिक किसी बात पर जोर दे रहा है तो भौहें उठा देगा ।
७-भौहों को तेजी से और लगातार ऊपर नीचे करना -
सर्कस के जोकरों का यह चिर परिचित मजाकिया लहजा है .यह हंसी मजाक का संकेत है
८-भौहों को ऊपर उठाना ,थोडा रुक कर नीचे गिराना -यह दुःख ,आश्चर्य और आपत्ति के मिले जुले भावों को प्रर्दशित करता है -सर्प्राईजड डिसअप्रूवल !
यह तो हुयी भौह -संकेतों की बात .पुरुषों को गहरे पराजय और चिंता के क्षणों में अपनी भौहों को दोनों हथेलियों से ढकते हुए भी देखा जाता है .मानों यह कहा जा रहा हो कि भाई अब मैं लाचार हूँ और पौरुष विहीन भी !स्पष्टतः घनी भरी पूरी भौहें पौरुष का प्रतीक हैं -इसलिए ही नारी की तुलना में पुरूष की भौहें ज्यादा घनी और मोटी होती हैं .मगर जब ये काफी मोटी और घनी तथा एक दूसरे से मिल सी जाती हैं तो एक अंगरेजी कहावत की याद दिलाती हैं -
ट्रस्ट नॉट ए मैन हूज आईब्रोज मीट ;फार इन हिज हार्ट यू विल फायिंड डिसीट .
Sunday, 24 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण -भौहें !
मनुष्य में बालदार भौहें हैं मगर चिम्पांजी में नदारद
नर वानर कुल में महज मनुष्य ही भौहों वाला प्राणी है -चिम्पांजी जो हमारा करीबी जैवीय रिश्तेदार है भौहों से वंचित है .भौहें भाव संप्रेषण में काफी सशक्त हैं .भौहों की भाव भंगिमा का कुछ ऐसा रंग चढ़ा कि उनमें देवत्व का आरोपण तक हो गया .परब्रह्म के भ्रिकूटिविलास से ब्रह्माण्ड तक झंकृत होने लग गया . जहाँ चिम्पांजी की भौहें बालों से पूरी तरह रहित होती है मनुष्य की भौहें बालों से लदी फदी !इनमें भाव संप्रेषण की अद्भुत क्षमता होती है .ईर्ष्या द्वेष ,पसंद नापसंद ,प्यार या गुस्सा ,खीझ आदि अनेक भावों की अभिव्यक्ति भौहें बखूबी कर लेती हैं ।
आईये भौंह विलास के कुछ नमूने देखें -
१-भौहें चढाना -त्योरी चढाना ,या त्योरी बदलना या फिर तेवर बदलना आदि अभिव्यक्तियाँ बस इन भौहों का विलास ही तो है -ये सभी अप्रसन्नता द्योतक है -मगर मजेदार यह है कि इसमें भौहें ऊपर चढाने के बजाय नीचे की जाती हैं ।इसमें भौहें नीचे तो होती ही हैं वे थोडा आपस में करीब भी हो जाती हैं .यह गुस्से का इजहार है ।
२-भौहें उठाना -यह भंगिमा भौहों को ऊपर उठाने की है पर इससे माथे पर भी बल पड़ जाता है .और चिंता की लकीरे स्पष्ट हो उठती हैं ।अन्य सन्दर्भों में यही भंगिमा आश्चर्य ,मुग्धता ,शंका ,अज्ञानता या फिर नक्चढ़ेपन का भाव संप्रेषण करती है .आँखे खोलना -आई ओपनर का भावार्थ भी इसी भंगिमान में छुपा है .सही भी है क्योंकि भौहों को उठाने पर आँखे पूरी खुल जाती है और सामने का दृश्य क्षेत्र काफी विस्तित हो जाता है .
३-एक कलाबाजी या कसरत यह भी -एक आँख की भौहे ऊपर ,दूसरी की नीचे -आपने यह पौरुष अदा कभी देखी ?इसका अभिप्राय है किसी बात पर शंकालु हो उठाना यह भाव प्रश्नवाचक भी है ।
जारी ........
Friday, 22 August 2008
जीन डोपिंग का आया ज़माना ......
खेल प्रतिस्पर्धाओं के लिए डोपिंग एक गंदा शब्द है .चीन में ओलम्पिक प्रतिस्पर्धाएं परवान पर हैं .डोपिंग को लेकर एक आशंका हमेशा ऐसे माहौल पर तारी रहती है .स्टेरायड डोपिंग का ज़माना लगता है लद गया है अब जीन डोपिंग की चर्चाएँ जोर पकड़ रही हैं !क्या है ये जीन डोपिंग ?
आईये इसे समझने का प्रयास करें ।
जीन डोपिंग जैवप्रौद्योगिकी की ऐसी नयी प्राविधि है जिसमें उन जीनों को शरीर में प्रविष्ट कराया जा सकता हैजिनसे शारीरिक क्षमता में अभूतपूर्व और अविश्वसनीय परिवर्तन आ जाय .ऐसे जीन शरीर की लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ा देने वाले हो सकतेहैं जिससे एथेलीट को अपने परफार्मेंस के दौरान अधिक से अधिक आक्सीजन मिल सके और वह थके नहीं -इसी तरह एक जीन ऐसा खोजा गया है जो पैरों की एक मांसपेशी को काफी मजबूती दे सकता है और दौडों को जीतने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है .दरसल ये खोंजे चिकित्साविज्ञान की वे खोजें हैं जिनसे पीड़ित मानवता को राहत मिल सकती है -रक्ताल्पता का उपचार हो सकता है ,पेशियों के ढीलापन वाले रोगी ठीक हो सकते है -पर इनके खेलों -खास कर विश्व स्पर्धाओं में दुरूपयोग की संभावनाओं का डर बढ़ता ही जा रहा है -मुश्किल है कि कई प्रचलित डोपिंग के तरीकों जिन्हें पहचाना जा सकता है के ठीक विपरीत इनकी पकड़ अभी तक मुश्किल है -क्योंकि जीन कुदरती प्रणाली का हिस्सा बन जाते हैं और पहचान में नही आ पाते ।
एक सनसनी खेज बात बतायी है कोस्मो ने अपने ब्लॉग पर -उनके अनुसार ७० फीसदी जमैका वासियों में एक जीन है जो Actinen A नामक मांस पेशी को मजबूती देता है -मतलब ? जमैका वासी दौडों में कुदरतीतौर पर मजबूत हैं .इन सारे विषयों को न्यू साईंटिस्ट पत्रिका ने ओलम्पिक के अवसर पर कवर किया है -आप की रूचि हो तो यहाँ देख सकते हैं ।
मैं यह सोच रहा हूँ कि आख़िर भारतीयों को कुदरत ने ऐसे कोई गुण क्यों नही दिए जहाँ एकाध ओलम्पिक रिकार्ड मिल जाने को ही लोग झ्न्खते रहते हैं .ऐसे लोगों को ढूंढ कर उन्हें रिजर्वेशन देने का वक्त आ गया है ! क्यों ?
Wednesday, 20 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण -बालों का रंग रोशन और कुछ दीगर बातें !
कई आदिवासी समाजों में पुरुषों द्वारा लंबे बाल रखने का रिवाज है जबकि औरतें सर मुदा कर रखती हैं .यहाँ पुरूष के लंबे घने बाल उसके ऊंचे स्टेटस का प्रतीक हैं .जैसे सीजर शब्द की व्युत्पत्ति में kaiser और tsar शब्द के मूल अर्थ ही लंबे बाल हैं .इसी अर्थ में लंबे बाल दलीय नेता या मुखिया के पहचान चिन्ह बन गए .कहते हैं इस परम्परा का उदगम आदिम गिल्गामेश के कथानक से हुआ है .महानायक गिल्गामेश लंबे घने बालों वाले थे .जिन्होंने बाल्मीकि रामायण पढी है वे जानते होंगे कि अपने भगवान् राम भी लंबे घने बालों वाले थे जिसे सजाने सवारने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती थी .लक्ष्मण के बालों को भी बड़ा दिखाया गया है -इन दोनों भाईयों के लिए वनवास में अपने बालों को सेट करना एक श्रमसाध्य काम बन गया था .अब जब हमारे महापुरुष ही घने लंबे बालों वाले ठहरे तो यह दिव्यता और उच्चता -राज घराने का एक स्टेटस सिम्बल बन गया .आज भी अपने क्षेत्रों के दिग्गज लंबे नारी सरीखे वाले बाल लहराते दिख जाते हैं -इसका प्रचलन भारत में बहुत पुराना है -दिव्यता के द्योतक इन लंबे बालों को साधू सन्यासियों -भगवान के समकालीन कथित अवतारों पर फबते हुए देखा जाता है -ये नारी से बाल तो हैं पर कतई स्त्रैण नही हैं .क्योंकि ऐसे दिव्यता के द्योतक बालों को सरेआम मुडाना ,सफाचट करना किसी की भी किरकिरी के लिए काफी है .यह किसी को अपमानित कराने का सबब हो सकता है -जैसे बालों को मुडवा कर गधे पर बैठाना किसी के लिए घोर अपमान हो सकता है -उसके सामाजिक हैसियत को गिराना हो सकता है .सर मुडाने का मतलब ही हुआ अतो विनम्रता और गिरा हुआ स्टेटस .ईश्वर के लिए सर मुडाने का मतलब हुआ उनके सामने मर मिटाना -कई धार्मिक कर्मकांडों में किसी दिव्यशक्ति के सामने बाल मुड्वाने का यही मरम है -कई लोगों ने तो इसे विनम्रता के ढोंग के रूप में भी लिया -मूंड मुडाई भये संन्यासी .
इति केश प्रकरणम्.......
Tuesday, 19 August 2008
वे अजन्मी बच्चियां !
आज की बी बी सी की यह समाचार प्रस्तुति दरअसल एक दर्दभरी दास्तान है -भारत में मादा भ्रूण पात की घटनाओं में तेजी आयी है जब कि लिंग के आधार पर यह भेदभाव या लैंगिक जांच यहाँ कानूनन अपराध है .अल्ट्रासाउंड तकनीक का दुरूपयोग मादा भ्रूणों को नष्ट कराने के लिए बढ़ता ही जा रहा है .स्टीव ब्रैडशा की रिपोर्ट यह खुलासा करती है कि भारत सचमुच नारियों के लिए अभी भी एक कष्टप्रद देश ही है .रिपोर्ट में जो आंकडा उधृत है वह बताता है कि देश में हर वर्ष १० लाख मादा भ्रूण विनष्ट हो रहे हैं -यह सचमुच एक बड़ी संख्या है .दिली में एक हजार लड़कों की तुलना में महज ८८१ लड़कियों का लिंग अनुपात रह गया है ।रिपोर्ट में बंगलौर आदि शहरों के भी हालत का वर्णन है .
यह संयोग ही है कि इस रिपोर्ट से भी कहीं ज्यादा गंभीर अध्ययन का ब्योरा अभी अभी अनवरत ने भी जारी किया है .साईब्लाग की दृष्टि में दरअसल यह ऐसा मुद्दा है जो विज्ञान के सामाजिक सरोकारों की ओर ध्यान आकर्षित करता है -अल्ट्रा साउंड तकनीक उदर संबन्धी बीमारियों के निदान के लिए विकसित की गयी थी .पर मनुष्य ने इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया है .इसी तरह दूसरी लिंग भेद की तकनीक है अम्नियोसेंटेसिस जिसमें कुछ गर्भजल को सीरिंज से निकाल कर जांच कर गुणसूत्रों के जरिये नर मादा लिंग की जांच प्रसव के पहले हो जाती है .यह तकनीक भी चोरी छिपे प्रयोग में लाई जा रही है .यह तकनीक अल्ट्रा साउंड की तुलना में प्रसवपूर्व जेनेटिक जांच के लिए ज्यादा प्रामाणिक है .मगर यह केवल उन स्थितियों में जेनेटिक परामर्श के लिए विकसित हुयी थी जब भावी नर या नादा संतान किसी लायिलाज जेनेटिक बीमारी से ग्रस्त होने की परबल संभावना रखते हों -पर अफ़सोस की यह तकनीक भी भारत में केवल मादा गर्भ की शिनाख्त और उसे विनष्ट करने के दुष्कर्म में इस्तेमाल हो रही है .यहाँ विज्ञान और तकनीकतथा वैज्ञानिक दोषी नही -दोषी हमारी आदिम मानसिकता है जो आज भी गुफाओं के कैद से मुक्त नही हो पायी है ।
एक बड़ा जनांदोलन ही हमें इस आदिम मानसिकता से मुक्ति दिला सकता है -इसमें वैज्ञानिकों को भी आगे आना होगा !
Sunday, 17 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण -केशव केशन अस करी ........2
मित्रों ,यदि आप चांद्रशीर्ष हैं तो दुखी न हों इसकी जिम्मेवारी काफी हद तक आपकी आनुवंशिकता को जाता है ,यह खानदानी हो सकता है इसके चांसेस ज्यादा हैं .और एक सनसनीखेज खुलासा यह भी कि चांद्र शीर्ष मित्रों में पौरुष हारमोन अधिक स्रवित होते पाये गए हैं .ये पौरुष हारमोन -खास तौर पर टेस्टोंस्टेरान तो जैसे बालों का दुश्मन ही है .टेस्टोंस्टेरान बालों की जड़ों पर हमला बोलता है और उन्हें बेदम कर देता है .यह पाया गया है कि खोपडी के अगल बगल के बाल इसी टेस्टोंस्टरआन की सक्रियता से झडते जाते हैं .हारमोन के प्रभाव से झड़ने वाले ये बाल कोटि जतन के बाद भी फिर से नही उग पाते .यह गंजापन स्थायी बन जाता है .
गंजापन तो वैसे एक लेट उम्र से शुरू होने वाली धीमी प्रक्रिया है मगर यह देखा गया है कि ५ लोगों में से कोई एक तो किशोरावस्था के बाद ही गंजेपन की चपेट में आने लग जाता है .हां, यह इतनी धीमी गति से होता है कि बहुधा नोटिस में नहीं आता .मगर ३० वर्ष के उम्र तक पहुंचते पहुंचते इस नग्न सत्य या कटु यथार्थ का अहसास होने लगता है .५० तक पहुंचते पहुंचते ६० फीसदी तक लोगों में गंजापन स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाता है .
आख़िर कैसे पाएं इस मुसीबत से छुटकारा .आईये हम बताते हैं आपको कुछ शर्तियाँ इलाज ! अब जब सारा खेल पुरूष हारमोन का ही है तो क्यों नहीं किशोरावाश्था तक पहुँच कर ऐसा कुछ किया जाय कि पुरूष हारमोन की सक्रियता कम कर दी जाय ! एक उपाय तो है मगर वह बड़ा नृशंस है -कास्टरेशन (बधियाकरण ) !अरे आप इसे हल्के में ले रहे हैं -जनाब ज़रा इतिहास के पन्ने तो पलटिये -किसी सुलतान के हरम के चौकीदार -हिजडों को कभी भी गंजा नही पाया गया .(कुछ बातें आप की कल्पना पर छोडी जा रही हैं ).गंजा होने से बचने का एक शर्तिया तरीका और हो सकता है -आप उस घर में जन्म ही क्यो लें जहान् यह नफासत विरासत में चली आ रही हो -काश ये दोनों उपाय व्यावहारिक होते !पर हे मेरे चांद्र शीर्ष मित्र नर होकर मन को निराश क्यों करते हो....मैंने अपनी पिछली पोस्ट में यह वादा किया था कि आपके मोरल को ऊंचा करने वाली एक बात आपको बताऊंगा ॥
तो वह बात यह है कि आपको अपने किसी भरे पूरे बालों वालें मित्र की तुलना में पुंसत्व का अतरिक्त बल मिला हुआ है .ऐसा विग्यानिओं का दावा है .बाल भले ही कम हैं पर पुरुसत्त्व के मामले में आप बाजी मार ले गए हैं .आप में टेस्टोंस्टरआन की अधिकता जो है -इस हारमोन के चलते आप औरों की तुलना में अधिक दबंग भी हैं ।
सावधान !हे चान्द्र शीर्ष मित्र !तुम्हारी यह खासियत तुम्हारे कई हमराहियों के लिए ईर्ष्या का सबब बन सकती है .पर यह कूवत तो आपने अपने भरे पूरे बालों की बलि देकर कुदरत से हासिल किया है -लोग बाग जलें तो जलें .....(सच कहूं ,यह जलन तो मुझे भी आपसे है ..)अगले अंक में बालों का रंग रोशन ....
Friday, 15 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण -पहला पड़ाव -१.....केशव केशन अस करी.......
केशव केशन अस करी जस अरिहू न कराहिं
चन्द्र मुखी मृगलोचनी बाबा कहि कहि जाहिं
महाकवि केशव की यह दृष्टि व्यवहार विज्ञान की कसौटी पर आज भी खरी है -क्योंकि कि पुरूष के बाल का सफ़ेद होना उसके वृद्धावस्था के आरम्भ के अनेक लक्षणों में से एक लक्षण तो हैं ही .राजा दशरथ ने अपने बालों की सफेदी देखकर राजपाट छोड़ने की तैयारी कर ली थी .
लेकिन पुरूष के लिए बालों की सफेदी से बढ़कर एक और चिंता का सबब है सर से बालों का इक सिरे से ही गायब होते जाने का -जो समाज में उसके हास परिहास का भी बायस बन जाता है-टकला,चान्दवाला आदि फब्तियां पुरूष के लिए 'मेरा दर्द न जाने कोय ' किस्मका दुखदर्द भी दे जाता है .खल्वाट खोपडी यानी टकले होते जाने का भी एक भरा पूरा विज्ञान है .
आईये पुरूष पर्यवेक्षण के इस पहले पड़ाव पर खोपडी पर बालों की इसी कारस्तानी का जायजा लेते चलें -
टकले होने के चार मुख्य पैटर्न मार्क किए गए हैं -बाकी इन चारों के मिलेजुले अनेक पैटर्न हैं .ये चार मार्क हैं -
१-द विंडोज पीक -इसमें सर के मध्य भाग में तो एक शिखा पट्टी बनी रहती है मगर अगल बगल से माल असबाब यानी बाल सफाचट होने लगते हैं .
२-द मांक पैच-यहाँ आगे के बाल तो सही सलामत रहते हैं मगर पीछे से इक चाँद उगने को बेताब नजर आता है .
और दिन ब दिन पूर्णिमा की ऑर अग्रसर होता है .
३-द डोम्द फोरहेड - सर के अगले भाग के लगभग आधे हिस्से से बालों का लोकार्पण हो उठता है और एक चंद्र सतह अनावृत्त हो उठती है .और
४-नेकेड क्राउन में सर के अगले भाग से शुरू होकर एक स्वेज नहर ख़ुद ब ख़ुद खुदती चली जाती है .मगर इस नहर के अगल बगल के तट बंधों पर बालों की एक फसल लहलहाती रहती है .यह ठीक विडोज पीक का उल्टा नजारा होता है .
ये तो रहे चार मुख्य पैटर्न -मगर ऐसे भी नर पुंगव हैं जिनमें ये चारो पैटर्न मिल जुल कर अठखेलियाँ खेलते हैं और तरह तरह के नजारे पेश करते हैं .
हे मेरे चंद्र्शीर्ष पुरूष मित्रों तुम कतई उदास न होना अगले अंक में आप के लिए एक जबरदस्त ख़बर है .कुदरत सबके सुखदुख का ख्याल रखती है -और हे चंद्र्मुखियाँ तुम केवल चन्द्र्सतह से मत भरमाना वह केवल एक भरम मात्र ही है .जी हाँ अगले अंक में होगा खुलासा !!
ब्लागरों के लिए एक खुशखबरी !
हारवर्ड विश्वविद्यालय के न्युरोविग्यानी अलायिस फल्हेर्टी ने हायीपर्ग्रैफिया -लिखने की कशिश वाले लोगों के मामलों का अध्ययन कर रही हैं .कुछ लिख कर अपने को अभिव्यक्त करने की अदम्य अकुलाहट जैसा ही एक नशा और होता है बात करने का .कुछ लोग बहुत बातूनी होते हैं .ब्लागिंग और बातूनीपन में एक साम्य पाया गया है कि ये दोनों गतिविधियाँ मस्तिस्क के लिम्बिक प्रणाली को उद्दीपित करती हैं .मस्तिष्क के मध्य भाग में पाया जाने वाली लिम्बिक प्रणाली कई अदम्य लालसाओं का केन्द्र बिन्दु होती है .मसलन भोजन करने ,कामोद्दीपन या किसी पहेली को हल करने में यही लिम्बिक प्रणाली निर्णायक भूमिका निभाती है. अब चूंकि ब्लाग्गिंग की गतिविधि से यह क्षेत्र उद्दीपित होता पाया गया है जिसमें डोपामाईन नामक रसायन स्रावित होता है .यह रसायन आनन्दानुभूति के लिए जाना जाता है .अमेरिका में कई हास्पिटलों में मरीजों द्वारा संचालित कई कम्युनटी ब्लागों का प्रचालन शुरू हुआ है .रोगियों में इसके पार्टी उत्साह देखा जा रहा है .कुछ लिंक्स आप भी देख सकते हैं -यहाँ ,यहाँ और यहाँ .
Sunday, 10 August 2008
पुरूष पर्यवेक्षण -एक देहान्वेषण यात्रा !(प्रस्तावना )
नारी सौन्दर्य यात्रा के समापन तक आते आते इस विषय पर अन्य बहस मुहाबिसों के साथ ही मुझसे नर नख- शिख वर्णन के लिए भी आग्रह किया जाने लगा. यह तर्क दिया गया कि 'विज्ञान की दृष्टि में चूंकि नर नारी में विभेद करना उचित नहीं इसलिए नर सौदर्य शास्त्र की चर्चा भी होनी चाहिए ' .इस मत की पुरजोर वकालत करती लवली जी ने आख़िर मुझे इस लेखमाला के लिए प्रेरित कर ही दिया .
जब साहित्य -सिनेमा में फरमाईशों और उनके पूरा किए जाने की समृद्ध परम्परा रही है तो फिर विज्ञान की दुनिया जहाँ ज्ञान विज्ञान के बांटने की परिपाटी वैसे भी रही है -इस फरमाईश को न पूरा करना मेरे कर्तव्यच्युत होने सरीखा ही है -अस्तु ,यह नयी शोध यात्रा ,मानव देह की पुरान्वेषण यात्रा ......आत्म देहान्वेषण यात्रा ....इस लेखमाला को आप भी अपनी ओर से कोई और भी शीर्षक सुझा सकते हैं .मैं इसे पुरूष सौन्दर्य यात्रा कहने में किंचित संकोच कर रहा हूँ क्योंकि फिर मेरे ऊपर कुछ ओर आरोप लगने लगेंगे -और देश का क़ानून मैं क्या, किसी के भी लिए भी शिरोधार्य होना चाहिए ......
वैसे भी पुरुषों के 'नख शिख 'सौदर्य वर्णन' की कोई परिपाटी मेरी जानकारी में नही है -और अपनी ओर से यह नामकरण कर मैं विवादों को आमंत्रित नही करना चाहता .लेकिन यह एक रोचक तथ्य है कि समूचे जंतु जगत में मादा के मुकाबले नर प्रत्यक्षतः अधिक चित्ताकर्षक लगता है - मोरिनी के बजाय मोर को देखिये , मुर्गी के बजाय मुर्गे को देखिये ,अनेक खग मृग में नर ही आकर्षक दीखते हैं .क्या मनुष्य के मामले में भी ऐसा ही है ?यह मुद्दा भी चिंतन की दरकार रखता है .मगर विज्ञान की तटस्थता के लिहाज से यह निर्णय करेगा कौन ? वही न जो न नारी हो और और न नर -क्या किन्नर ?
नारी सौदर्य के अपने सद्य प्रकाशित ब्लॉग पोस्टों में मैंने नारी अंग प्रत्यंग की चर्चा को सौदर्य चर्चा में इसलिए तब्दील कर दिया था कि नख शिख नारी सौदर्य वर्णन की हिदी साहित्य में एक परम्परा रही है -बस उसी की विरासत को यथाशक्ति अल्पबुद्धि कायम रखने तथा वैज्ञानिक ज्ञान की रुचिकर प्रस्तुति के लिहाज से और कुछ अपने व्यक्तिगत आग्रहों के चलते भी वह एक सौन्दर्य बोध यात्रा बनती गयी .......जिस पर अनुचित कम उचित ज्यादा वाद विवाद भी हुआ और शायद सही परिप्रेक्ष्य में उस पूरी यात्रा कथा को न लेने के कारण भी लोगबाग सशंकित से दिखे .....
मैं यह पुनः पुनरपि स्पष्ट कर दूँ- यहाँ केवल विज्ञान की वार्ता हो रही है कोई प्रायोजित और पूर्वाग्रहित आयोजन नही है यहाँ ,और न कोई लक्षित फलसफा ......हाँ पिछली कुछ कमियों को जिसे विद्वान् ब्लॉगर मित्रों ने चेताया है मैं ध्यान रखूंगा -मसलन वैज्ञानिक शोध सन्दर्भों का यथा सम्भव लिंक भी देने का प्रयास करूंगा .
मुझ पर नर नारी में पक्षपात कराने का आरोप न झेलना पड़े इसलिए भी यह पुरूष प्रसंग जरूरी हो गया है
इहाँ न पक्षपात कछु राखऊँ ,वेद पुरान संत मत भाखऊँ ...........
पुरूष के अंग प्रत्यंग का यह व्यवहार शास्त्रीय [ethologial ] अध्ययन भी दरअसल एक देहान्वेषण भ्रमण /पर्यटन शोध यात्रा ही है .निजी तौर पर एक ब्लॉगर के रूप में कहूं तो यह मेरे लिए भी एक आत्मान्वेषण यात्रा है -
इस शोध यात्रा की भी अध्ययन पद्धति [methodology ] वही है - सिर से लेकर पैरों तक अंग अंग प्रत्यंग का पर्यवेक्षण ! बालों से शुरू होकर आगे के सभी देह स्थल पडावों पर ठहरती सुस्ताती यह यात्रा आगे बढेगी -मगर इस बार द्रुत नहीं विलंबित गति से .......इस बीच साईब्लाग विज्ञान के अन्य क्षेत्रों को भी कवर करता रहेगा और पुरूष पर्यवेक्षण पर मेरा अध्ययन भी अपडेट होता रहेगा .
आईये शुरू करते हैं पुरूष की देहान्वेषण यात्रा ----आप बिना टिकट ही इस यात्रा का शुरू से ही मुसाफिर बन लें --आईये आईये स्वागत है .......संकोच न करें ......पुरूष और नारी सभी ब्लॉगर मित्रों के लिए यहाँ कोई पक्षपात नहीं ..दोनों के लिए एक ही कम्पार्टमेंट हैं .......
यह पूरी लेखमाला फर्मायिश्कर्ता को ही समर्पित है -इदं न मम .........
Friday, 8 August 2008
कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ..................!
इसे दूसरे पानीपत के युद्ध के समकक्ष भी देखा जा रहा है - - शुद्धता वादी भी इसे अभी तक निहार रहे हैं और मानसिक परिताप से आक्रान्त से हैं । .
वैज्ञानिक मनोवृत्ति सदैव सुचिंतित आलोचनाओं को प्रोत्साहित करती आयी है .ये वाद विचारों की उर्वरता की ही ओर इंगित करते हैं .विज्ञान जनित तथ्य किस सीमा तक सामाजिक आचार संहिताओं की परिधि को लाँघ रहे है यह भी अवश्य देखा जाना चाहिए - क्योंकि विज्ञान जीवन जीने का दर्शन हमें नही सिखाता -सामाजिक लक्षमण रेखाएं तो प्रबुद्ध जन ही तय करते हैं .मैं इन विवादों को इसी नजरिये से देख रहा हूँ .वैसे तो मैंने मन बना लिया था कि मानव अंगों के पुनरान्वेशन से अब मेरी तोबा है पर कुछ विचार शील मित्रों का यह आग्रह उचित ही पा रहा हूँ कि जब नारी सौन्दर्य की चर्चा यहाँ हुयी तो फिर पुरुषों की क्यों नहीं ?बात में दम है . तो बैठे ठाले मैं पुरूष के देहान्वेषण पर अध्ययन को अपडेट करनें में लगा हूँ और जल्दी ही नर नारी समानता के पलडे की बराबरी के लिहाज से पुरूष प्रसंग को भी यहाँ चर्चा में लाउंगा.
मुझे आभास है तब भी यहाँ टोका टोकी होगी ,किसकी तरफ़ से -नर या नारी यह भी समय बताएगा .और फिर कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ..................
Monday, 4 August 2008
दुनिया का सबसे छोटा साँप खोजा गया !
नाग पंचमी की पूर्व संध्या पर सर्प प्रेमियों के लिए एक बड़ी ख़बर यह है कि दुनिया का सबसे छोटा साँप दिखा है -जो बारबाडोस के करेबियन आईलैंड से एक अमेरिकी सर्प विज्ञानी ने खोज निकाला है .यह महज १० सेंटीमीटर लंबा है .इसके खोजकर्ता एस ब्लेयर हेजेज है जो पेन्न स्टेट विश्वविद्यालय में वैकासिक जीव विज्ञान पढाते हैं ।
दुनिया मे अब तक ज्ञात ३१०० सर्प प्रजातियों में यह सबसे छोटा पाया गया है .ब्लेयर ने इस नए वामन साँप का नामकरण अपनी पत्नी कार्ला एन् हैस के नाम पर लेप्टो टायिफ्लोप्स कार्ली रखा है -उनकी पत्नी भी सर्प विज्ञानी हैं ।
राहत की बात तो यह है कि यह विषैला साँप नही है -दीमक ,कीट पतंगो ,भुनगों को खाता है -पूरी तरह निरापद जीव है .जहाँ से यह साँप मिला है वह द्वीप डार्विन के समय से ही भीमकाय और लघुकाय दोनों तरह के जानवरों के लिए विख्यात रहा है ।
कहते हैं तक्षक नाग ने एक फूलों की टोकरी में लघु रूप बनाकर राजा परीक्षित के महल में प्रवेश पा लिया था और उन्हें डस कर मौत की नीद सुला दिया .वह कोई ऐसा ही वामन रूप साँप रहा होगा ,मगर विषैला .क्यों ?
Saturday, 2 August 2008
पांवों के पड़ाव पर विराम पाती सौन्दर्य यात्रा !
"आप के पाँव बहुत खूबसूरत हैं ,इन्हे जमीन पर मत रखियेगा नहीं तो ये गंदे हो जायेंगे ", मशहूर फिल्म पाकीजा की शुरूआत ही नायक द्वारा नायिका के खूबसूरत पावों की प्रशंसा से होती हैं। सिन्ड्रेला या लालपरी की कहानियों का जन्म स्थान चीन माना जाता है,जहाँ नारी के छोटे पावों को सदियों से खूबसूरत माना जाता रहा है। अभी कुछ समय पहले तक चीन में लड़कियों के पावों को बर्बरता पूर्वक छोटा बनाये रखने का रिवाज था। उन्हें बहुत छोटे आकार के ``जूते´´ पहनाये जाते थे। पावों की ऐड़ी और अग्रभाग को मिलाकर बांध दिया जाता था ताकि उनका सामान्य विकास रूक जाय।
चीन में ही नन्हें पावों को ``सुनहले कमल´´ की संज्ञा मिली हुई है। व्यवहारविदों की राय में इन सुनहले कमलों की भी भूमिका रही है। प्रेम संसर्ग के आत्मीय क्षणों में प्रेमीजन इन कमलवत पावों को चूमने से नहीं अघाते। अपने पैरों की विकृति के कारण सहजता से चलने फिरने में लाचार चीनी रूपसियाँ अपने को पूरी तरह से पुरुष सहचरों की दया पर निर्भर पाती है। यौनासक्त चीनी पुरुषों के ``अहम´´ को इससे तुष्टि मिलती है।
सुन्दरता की ओट में क्रूरता का यह घिनौना खेल क्या परपीड़ा से सुख प्राप्ति की विकृत मानसिकता का परिचायक नहीं है। आश्चर्य की बात है कि अभी भी चीन में नारी के ``कमलवत पांवों´´ के उपासकों की कमी नहीं है। कहाँ हैं नारी स्वतन्त्रता के पक्षधर?
सेक्स प्रतीकों की दुनिया में नारी पावों को ढकने वाले जूतों को ``योनि´´ के रूप में भी देखा गया है। कई विदेशी संस्कृतियों में जूतों के विभिन्न आकार प्रकार योनि प्रतीक को उभारते हुए नजर आते हैं। पावों के अलंकरण में भारतीय नारी की अग्रणी भूमिका रही है। किसी भरतीय नृत्यांगना के पावों को देखिए। मेंहदी और घुंघरूओं से उसके पावों की खुबसूरती में चार चा¡द लग जाते हैं। भारतीय नारी के श्रृंगार विधान में पावों का अलंकरण प्रमुखता से मुखरित होता है। नाना प्रकार के आभूषण और मेंहदी की डिजाइनें नारी पावों को सौन्दर्य के शिखर पर ला देती हैं।
नारी देह के मनोरम स्थलों की सुखद यात्रा के इस पड़ाव पर पहुँच मन एक अलौकिक प्रशान्ति भाव से भर उठता है। नारी के नख-शिख सौन्दर्य की यह शोध यात्रा यही उसके चरणों में विराम लेती है। किन्तु यहाँ नख शिख का कोई भेद नहीं है। यह रूप संसार की वह खोज यात्रा है जहाँ अन्त में आप प्रस्थान बिन्दु पर फिर वापस हो लेते हैं ।
नारी के रूप बन्ध से मुक्ति कहां ? मगर शायद इसीलिये महाकवि इस रूप्जाल में उलझ कर जीवन के उत्तर्दाय्त्वों के प्रति विमुखता से आगाह भी करता है -
दीप शिखा सम युवति तन ,मन जन होऊ पतंग
यह श्रंखला यहीं संपन्न होती है -मुझे इस पर विपरीत विचारों के अनेक जन्झावात भी झेलने पड़े ,शायद परिप्रेक्ष्य को सही नजरिये से न देख पाने के कारण कई ब्लॉगर बंधुओं से संवादहीनता की स्थिति बनी रही ...कुछ स्नेही औरपरिप्रेक्ष्य को समझ रहे ब्लॉगर बंधुओं ने मुझे लगातार प्रोत्साहित किया -मैं उन सभी सहयोगी साथियों और असहयोगी साथियों का भी आभार प्रगट करता हूँ जिन्होंने सम्मिलित रूप से इस सौन्दर्य यात्रा के जीवन्तता बनाए रखी -विज्ञान में विरोध की बड़ी अहमियत है -वादे वादे जायते तत्व्बोधः । एक विचार यह भी आया कि विज्ञान के नजरिये से नर नारी को लेकर पक्षपात क्यों ? पुरूष सौन्दर्य वर्णन क्यों नही ? यह प्रश्न साहित्यकारों से पूछा जाना चाहिए -तथापि मैं पुरूष सौसठव् पर भी एक श्रृखला अवश्य करना चाहता हूँ ........